Maintenance of wife -पत्नी का भरण-पोषण
SECTION - 18 THE HINDU ADOPTIONS AND MAINTENANCE ACT, 1956
whether married hindu wife shall be entitled to be maintained by her husband during her lifetime.
धारा -18. पत्नी का भरण-पोषण -- (1) इस धारा के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि हिन्दू पत्नी चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् विवाहित हो अपने जीवनकाल में अपने पति से भरणपोषण पाने की हकदार होगी
(2) हिन्दू पत्नी अपने भरण-पोषण के दावे को समपहृत किए बिना अपने पति से पृथक् रहने के लिए निम्नलिखित किसी भी दशा में हकदार होगी :
(क) यदि उसका पति अभियजन, अर्थात् युक्तियुक्त कारण के बिना और उसकी सम्मति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका परित्याग करने का या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करने का दोषी है;
(ख) यदि उसका पति उसके साथ ऐसी क्रूरता का व्यवहार करे जिससे उसके अपने मन में इस बात की युक्तियुक्त आशंका पैदा हो कि उसके पति के साथ रहना अपहानिकर या क्षतिकारक होगा;
(ग) यदि उसका पति उग्र कुष्ठ से पीड़ित है;
(घ) यदि उसके पति की कोई अन्य पत्नी जीवित है;
(ङ) यदि उसका पति उसी गृह में जिसमें उसकी पत्नी निवास करती है कोई उपपत्नी रखता है या किसी उपपत्नी के साथ अन्य किसी स्थान में अभ्यासतः निवास करता है;
(च) यदि उसका पति कोई अन्य धर्म में संपरिवर्तित होने के कारण हिन्दू नहीं रह गया है; और
(छ) यदि उसके पृथक् होकर रहने का कोई अन्य न्यायोचित कारण है।
(3) यदि कोई हिन्दू पत्नी असती है या किसी अन्य धर्म में संपरिवर्तित होने के कारण हिन्दू नहीं रह गई है तो वह अपने पति से पृथकू निवास करने और भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी ।
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Section. 18. Maintenance of wife - (1) Subject to the provisions of this section, a Hindu wife, whether married before or after the commencement of this Act, shall be entitled to be maintained by her husband during her lifetime.
(2) A Hindu wife shall be entitled to live separately from her husband without forfeiting her claim to maintenance,-
(a) if he is guilty of desertion, that is to say, of abandoning her without reasonable cause and without her consent or against her wish, or of wilfully neglecting her;
(b) if he has treated her with such cruelty as to cause a reasonable apprehension in her mind that it will be harmful or injurious to live with her husband;
(c) if he is suffering from a virulent form of leprosy;
(d) if he has any other wife living;
(e) if he keeps a concubine in the same house in which his wife is living or habitually resides with a concubine elsewhere;
(f) if he has ceased to be a Hindu by conversion to another religion; (g) if there is any other cause justifying her living separately.
(3) A Hindu wife shall not be entitled to separate residence and maintenance from her husband if she is unchaste or ceases to be a Hindu by conversion to another religion.
धारा 23 के प्रावधानों के अनुसार न्यायालय को यह अधिकार है कि कितने भरण पोषण राशि दिलाई जाए। पत्नी यदि दुषचरित्र हो या उसने दूसरा धर्म स्वीकार कर लिया हो तभी वह पति से भरण पोषण प्राप्त करने से वंचित होगी अन्यथा उसे पति से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। पति के दुराचरण और भरण-पोषण से अस्वीकार करने पर पत्नी अलग निवास एवं भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। अभित्यजन (Desertion) क्रूरता, पति को कोढ, पति की दूसरी पत्नी हो पति रखेल को घर में रखें या अन्यत्र रखेल के साथ रहे, पति ने दूसरा धर्म ग्रहण किया हो, अन्य उचित कारण से पत्नी अपने पति से अलग रहकर भरण पोषण के अधिकारणी है। यदि पत्नी दुशचरित्र हो या अन्य धर्म ग्रहण करले तो वह भरण-पोषण की अधिकारी नहीं रहेगी। मामला चलने तक अंतरिम भरण पोषण की भी पत्नी अधिकारणी है।
अंतरिम भरण-पोषण - - पत्नी ने अपने पति के विरुद्ध अंतरिम भरण पोषण और स्त्रीधन की वापसी के लिए वाद पेश किया। तथा धारा 94 एवं 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आवेदन पेश कर अंतरिम भरण पोषण के लिए निवेदन किया। यद्यपि अधिनियम में अंतरिम भरण पोषण के लिए विशेष प्रावधान नहीं है फिर भी न्यायालय अंतरिम भरण-पोषण दिला सकता है।
1994 एआईआर (दिल्ली) 234
पुत्रवधू को अंतरिम भरण-पोषण-- आवेदक रज्जू सिंह के पुत्र मुलायम सिंह के साथ उत्तर वादी मुन्नी देवी का विवाह हुआ था। विधवा होने के बाद मुन्नी देवी ने धारा 19 (1) के अंतर्गत राजू सिंह के विरुद्ध वाद पेश किया कि खानदानी संपत्ति में उसके पति का 1/3 हिस्सा था। उसकी परवरिश का कोई साधन नहीं है। उसने परवरिश एवं अंतरिम परवरिश का दावा किया ₹250 प्रति माह परवरिश दिलाया गया।
विवाह अस्वीकार करना-- पत्नी के द्वारा भरण-पोषण के लिए बाद पेश किया गया और अंतरिम भरण-पोषण की मांग की गई। पति ने पत्नी से वैवाहिक संबंध को अस्वीकार किया गया। मामले के तथ्यों को देखते हुए धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अंतरिम भरण पोषण दिलाया जा सकता है।
1989 एआईआर (उड़ीसा) 137
भरण पोषण के लिए प्रस्तुत वाद में अंतरिम भरण पोषण प्राप्त करने के लिए आवेदन पेश किया जाता है तो अंतरिम भरण-पोषण दिलाया जा सकता है। पति यदि निर्धन हो गया है और पत्नी को भरण-पोषण की राशि देने के लिए सक्षम नहीं है जो पति को मजबूर नहीं किया जा सकता। यह दुर्भाग्य है इसमें पत्नी को भी भागीदार बनना चाहिए।
1989 एआईआर (केरल) 124
आवेदन में गलत धारा का लिखा जाना,-- भरण पोषण के वाद में पत्नी ने अंतरिम भरण-पोषण और वाद खर्च के लिए धारा 24 हिंदू विवाह के अंतर्गत आवेदन पेश किया। निर्णय दिया गया कि आवेदन में गलत प्रावधान लिख देने से भरण पोषण के आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। परंतु वाद खर्च के लिए धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता को लागू नहीं किया जा सकता है।
1987 एआईआर (उड़ीसा) 251
रखेल - पति के घर में उसके रखैल साथ में रहती है तो पत्नी को पति से अलग रहकर भरण पोषण पाने का अधिकार है।
1983 एआईआर (कर्नाटक) 209
अंतरिम भरण-पोषण - - पत्नी ने पति के विरुद्ध भरण पोषण प्राप्त करने के लिए वाद पेश किया। पति और पत्नी के बीच अविवादित रूप से संबंध ठीक ना होना पाया गया क्योंकि पति के द्वारा रखेल रखे जाने का आरोप पत्नी ने लगाया था। पति की जिम्मेदारी है कि वह जीवन पर्यंत पत्नी का भरण पोषण करने की अधिकारणी है।
1980 एआईआर (पटना) 67
1975 एआईआर (कोलकाता) 260
1973 एआईआर (मद्रास) 369
1962 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 526
एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया है कि दित्तीय पत्नीजीवित हो और पति के साथ नहीं रहती हो तो भी प्रथम पत्नी को भरण-पोषण पाने का अधिकार है। दित्तीय पत्नी का पति के साथ आवश्यक नहीं है। जीवित रहना यथेष्ट है।
1960 ए आई आर (इलाहाबाद) 601( पूर्ण पीठ)
द्वितीय पत्नी की परवरिश-- धारा 18 में शब्द हिंदू पत्नी का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी जिसका विवाह इस अधिनियम के प्रावधान के अनुसार वेध है। ऐसा निर्वचन इस धारा के प्रावधानों को निरथर्क कर देगा। धारा 18 के अंतर्गत आशयित " हिंदू पत्नी" से अर्थ है हिंदू पत्नी जिसका विवाह संपन्न हुआ हो यद्यपि वह विवाह इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत शून्य है । इसलिए द्वितीय पत्नी भी पति से भरण पोषण पाने की अधिकारी है।
1976 एआईआर (आंध्र प्रदेश) 43
इस संबंध में अन्य न्यायिक दृष्टांत - -
( 1) पति द्वारा दितीय विवाह करने के बाद पत्नी को नपुसंक बताते हुए विवाह विच्छेद या दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थपन का आवेदन पेश किया एवं पत्नी ने पति पर क्रूरता का आरोप लगाकर भरण पोषण का दावा किया। सिद्ध हुआ कि पति ने पत्नी से सहवास किया था एवं पहले साथ रखने का इच्छुक था डॉक्टर ने अपनी पत्नी को मेथुन योग्य सिद्ध किया तो पति की याचिका खारिज की गई।
1975 एआईआर (आंध्रप्रदेश) 3
(2) पति ने धारा 9 हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आवेदन पेश किया था एवं पत्नी ने इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 18 के अंतर्गत भरण पोषण का वाद पेश किया था तो भी धारा 24 अधिनियम के अंतर्गत पत्नी अंतरिम भरण पोषण का दावा कर सकती है,। धारा 10 सीपीसी लागू नहीं होगी।
1973 एआईआर (आंध्र प्रदेश) 31
(3) जब पत्नी का भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार ही विवादित हो तो इस धारा के अंतर्गत या धारा 151 सीपीसी के अंतर्गत अंतरिम भरण-पोषण नहीं दिलाया जा सकता है।
1972 एआईआर (आंध्रप्रदेश) 62)
(4) जब पत्नी क्रूरता का आरोप लगाती है तो दूर व्यवहार एवं जीवन को खतरा सबूत होना चाहिए। पत्नी के विरुद्ध जार कर्म का आरोप क्रूरता नहीं है।
1966 ए आई आर (आंध्र प्रदेश) 289
( 5) यदि पति ने द्वितीय विवाह किया हो तो प्रथम पत्नी भरण पोषण की एवं अलग रहने की अधिकारी हो जाती है और यदि प्रथम पत्नी अलग निवास एवं परवरिश का दावा करती है तो बिना युक्ति युक्त कारण से अभीत्यजन नहीं कहा जा सकता एवं पति इस आधार पर न्यायिक पृथक्करण की मांग नहीं कर सकता।
1963 एआईआर (आंध्र प्रदेश) 123( ,पूर्ण पीठ)
हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम, 1956 के प्रावधान आश्रित के भरण पोषण के लिए व्यवस्था करते हैं चका धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता में भी भरण पोषण की व्यवस्था की गई है। इस अधिनियम की धारा 22 के अनुसार विधवा को अपने पति की संपत्ति में भरण पोषण का अधिकार है और जो उसके पति की संपत्ति को विरासत में प्राप्त करते हैं, इस प्रकार वह संयुक्त परिवार या संयुक्त परिवार की पूंजी से भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है किंतु मृत पति की संपत्ति से ही भरण पोषण प्राप्त करने के लिए अधिकारणी है। ऐसा दावा संयुक्त परिवार के विरुद्ध नहीं किया जा सकता। किस अधिनियम की धारा 25 और 28 हिंदू विधवा के उस भरण पोषण का दावा को लागू नहीं होगा जोकि पति की संपत्ति को विरासत में प्राप्त करने वाले वारिसों के विरुद्ध ना होकर पति के संयुक्त परिवार के विरुद्ध हो। इन धाराओं में हिंदू से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। हिंदू संयुक्त परिवार के विरुद्ध भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं दिया गया है। संयुक्त परिवार की कतिपय में संपत्ति पर विधवा की परवरिश के लिए प्रभार परवरिश की डीक्री हो तो विधवा परिस्थिति के अनुसार परवरिश की राशि में वृद्धि के लिए अधिकृत है। यदि प्रभार को जानते हुए भी उस संपत्ति को कोई खरीद लेता है खरीदार से भी विधवा परवरिश प्राप्त कर सकती है एवं वर्द्धि के लिए दावा कर सकती है।
1971 एआईआर (केरल) 216
Whether pension of husband can be attached for recovery of maintenance to wife?
IN THE HIGH COURT OF JUDICATURE AT BOMBAY,
NAGPUR BENCH, NAGPUR
CRIMINAL REVISION APPLICATION NO.202 OF 2018
Bhagwant s/o Pandurang Narnawre, Vs Radhika w/o Bhagwant Narnawre,
CORAM : M.G.GIRATKAR, J.
DATE : APRIL 5, 2019.
1. Heard. ADMIT. Heard finally by consent of learned
counsel Shri P.K.Mishra for the applicant/husband and learned
counsel Shri S.J.Kadu for the nonapplicant/
wife.
2. Learned counsel for the applicant/husband submitted
that learned Magistrate exceeded its jurisdiction by passing order
of attachment of pension. He submitted that before retirement, the
applicant/husband was getting salary of Rs.1,53,000/per
month
and after retirement he is getting pension of Rs.72,000/per
month. He further submitted that the applicant/husband is not in
a position to pay Rs.30,000/per
month to his wife as
maintenance. Learned counsel pointing out Section 11 of the
Pensions Act, 1871 submitted that as per the said Section, pensions
cannot be attached. He submitted that order of learned Magistrate
directing the applicant/husband to pay interim maintenance at
Rs.30,000/per
month to the nonapplicant/
wife is perverse one.
He submitted that Rs.30,000/as
maintenance is exorbitant.
Whereas, he submitted that at the most it should be at Rs.20,000/per
month. Lastly, learned counsel for the applicant/husband
submitted the learned Magistrate wrongly passed order below
Exhibit 5 without giving an opportunity of hearing. Hence, he
prayed to allow the present revision application.
3. Learned counsel Shri S.J.Kadu for the nonapplicant/
wife submitted that pensions can be attached for
payment of maintenance amount. He submitted that the
applicant/husband is well settled person having sufficient means
and is getting Rs.72,000/per
month as pension. He pointing out
crossexamination
of the applicanthusband
submitted that the
applicant/husband received Rs.20.00 lacs as pensionary benefits.
He is residing at Amravati in his own house. He purchased a row
house at Nagpur. The said admission made by the
applicant/husband shows that the applicant/husband can pay
maintenance at Rs.30,000/per
month to his wife. Nobody is
dependent on him. Hence, the present revision is liable to be
dismissed.
4. Learned counsel Shri P.K.Mishra for the
applicant/husband pointed out Section 11 of the Pensions Act,
1871 and submitted that pensions cannot be attached. The said
Section 11 is reproduced herein below:
“11. Exemption of pension from attachment.No
pension granted or continued by Government on
political considerations, or on account of past
services or present infirmities or as a
compassionate allowance,
and no money due or to become due on account
of any such pension or allowance.
shall be liable to seizure, attachment or
sequestration by process of any Court a[***] at
the instance of a creditor, for, any demand
against the pensioner, or in satisfaction of a
decree or order of any such Court.
b[This section applies a[***] also to pensions
granted or continued, after the separation of
Burma from India, by the Government of
Burma.]
[a] The words “in Part A States and Part C
States” were omitted by S.2 A.L.O., 1956 (1111956).
[b] Inserted by A.O., 1937 (141937).
[c] That is, on or after 141937.”
The above said Section shows that in civil disputes
pensions cannot be attached at the instance of creditors.
Commentary relied on by learned counsel for the
applicant/husband at serial No.16 under head of attachment shows
that, “maintenance allowance granted to wife cannot be considered
as debt – She is not a creditor hence exemption under S.11 cannot
be granted to husband. (1985)87 Punk LR 682 : (1985) 12 Cri LT
219”. The said commentary itself shows that pensions can be
attached to recover amount of maintenance. Hence, the stand
taken by learned counsel for the applicant/husband that pensions
cannot be attached is not digestible.
5. Having heard the submissions made by learned
counsel for the parties, it appears that the applicant/husband is
retired and getting pension. The wife is also doing beauty parlour.
The maintenance amount at Rs.30,000/per
month granted by
learned Magistrate appears to be exorbitant. Pending disposal of
domestic violence proceedings before learned Magistrate, at this
stage amount of Rs.20,000/per
month towards interim
maintenance appears to be proper. Hence, following order is
passed.
ORDER
(i) The criminal revision application is partly allowed.
(ii) Order of interim maintenance is maintained. However,
amount at Rs.30,000/per
month is modified.
(iii) Instead of Rs.30,000/per
month, the applicant/husband shall
pay Rs.20,000/per
month towards interim maintenance to his
wife during the pendency of D.V.Act proceedings.
(iv) The order of attachment of pension is hereby quashed and set
aside subject to the applicant/husband clears all arrears of
maintenance within a period of one month from today.
(v) Learned Magistrate is directed to decide the Criminal
Application No.254/2016 pending before it within a period of 3
months from the date of receipt of writ of this order.
The criminal revision application stands disposed of in
aforesaid terms.
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