Whether the adoption deed must be registered ?क्या दत्तक ग्रहण विलेख का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक है? - CIVIL LAW

Thursday, April 11, 2019

Whether the adoption deed must be registered ?क्या दत्तक ग्रहण विलेख का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक है?

Whether the adoption deed must be registered ?
क्या दत्तक ग्रहण  विलेख का पंजीकरण कराया जाना आवश्यक है?
Presumption as to registered documents relating to adoption --\]Section 16 Hindu Adoption And Maintenance Act 1956

दत्तक से संबंधित रजिस्ट्रीकृत दस्तावेजों के बारे में उपधारणा --धारा 16 हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषणअधिनियम 1956


      धारा  16. हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम - -  दत्तक से संबंधित रजिस्ट्रीकृत दस्तावेजों के बारे में उपधारणा -- जब कभी भी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई ऐसी दस्तावेज जिसमें किसी किये गए दत्तक का अभिलिखित होना तात्पर्यित हो और जो अपत्य को दत्तक देने और लेने वाले व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षरित हो किसी न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए तब जब कि और यदि उसे नासाबित न कर दिया जाए वह न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि वह दत्तक इस अधिनियम के उपबंधों के अनुपालन में किया गया है।




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Section 16.hindu adoption and maintenance act--

Presumption as to registered documents relating to adoption - Whenever any document registered under any law for the time being in force is produced before any court purporting to record an adoption made and is signed by the person giving and the person taking the child in adoption, the court shall presume that the adoption has been made in compliance with the provisions of this Act unless and until it is disproved.

    गोद संबंधी दस्तावेज का पंजीकरण होना तथा  गोद पुत्र एवं पुत्री को गोद लेने वाले व्यक्ति और गोद देने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित होना जरूरी है तभी न्यायालय के समक्ष पेश किया जाने पर यह अनुमान लगाया जाएगा कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार गोद लिया गया। किंतु यदि यह सिद्ध कर दिया जाए कि गोद छल कपट से लिया गया या दस्तावेज को अन्यथा सिद्ध कर दिया जाए तो गोद रद्द किया जा सकेगा।






पंजीबद्ध दस्तावेज - - यदि गोद लिए जाने का पंजीबद्ध दस्तावेज पेश किया जाता है तो अनुमान यही होगा कि अधिनियम के प्रावधानों का पालन किया गया है बच्चे को गोद लेने और देने के तथ्य को सबूत करना जरूरी नहीं है।
1993 ए आई आर (आंध्र प्रदेश) 336

अनुमान खंडनिय - सीलिंग की कार्रवाई के दौरान दत्तक ग्रहण के 20 वर्ष बाद दत्तक ग्रहण विलेख पंजीबद्ध किया गया जबकि स्कूल के अभिलेख में पिता का नाम पर प्राकृतिक पिता का नाम ही दर्ज रहा है। प्राकृतिक पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में गोद लिया जाने के फलस्वरूप उसका नाम प्रमाणित नहीं किया जाने के संबंध में प्रमाणीकरण दस्तावेज भी पेश नहीं किया।अतः घोषणात्मक वाद खारिज किया गया।
1993 एमपी. डब्ल्यू.एन. 78

गोद दस्तावेज आवश्यक नहीं-- गोंद लिया जाने के संबंध में अच्छा सबूत पेश किया जाता है तो उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। पंजीकृत दस्तावेज नहीं होने से गोद अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
1939 एआईआर (नागपुर) 221

पति की अनुमति के बिना विधवा द्वारा गोद लेना-- जब पक्षकार बनारस स्कूल के हिंदू विधि से शासित होते हैं तो पति की गोद लेने के संबंध में अनुमति के बिना विधवा को पुत्र गोद लेने का कोई अधिकार नहीं है यदि गोद लिया भी जाता है तो पति की अनुमति के बिना लिया गया गोद अवैध है। विधवा के द्वारा गोद लेने की विधिवत कार्य की गई हो, संपूर्ण रीति कर्म अपनाए गए हो एवं दत्तक विलेख भी लिखा गया हो तथा दत्तक विलेख में इस बात का इंद्राज भी हो कि पति ने गोद लेने की अनुमति दी थी उसी के अनुसार गोद लिया जा रहा है तो इतना ही पति की अनुमति सबूत करने के लिए यथेष्ट नहीं है। पति द्वारा विधवा को गोद लेने की अनुमति दी गई थी इस बात की साक्षी सबूत स्पष्ट किया जाना आवश्यक है। अनुमति के सबूत के बिना गोद लेने की विधिवत कार्यवाही एवं दत्तक विलेख निरर्थक है एवं गोद अवैध है।
1980 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 2008

एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि विधवा गोद लेने के लिए पति से अधिकृत ना हो तो सपिंडा की सहमति आवश्यक है नजदीकी गोत्रज ने स्वार्थवश अनुमति नहीं दी है तो दूरस्थ गोत्रज की सहमति ली गई है तो गोद वैध माना गया।
1978 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट)

आध्यात्मिक लाभ एवं पति का वंश बनाए रखने के लिए पति की अनुमति के बिना पुरुष सपिंडा की सहमति  विधवा को ले सकती है।
1970 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 1963




दत्तक का दस्तावेज एवं दत्तक लेने वाले की मानसिक स्थिति -- दत्तक विलेख में केवल इतना ही लिखा था कि दत्तक लेने वाले ने दत्तक को दत्तक ग्रहण किया। दत्तक विलेख मैं यह नहीं लिखा था कि किस वर्ष किस तारीख को किस स्थान में गोद लिया गया। जैसा कि दत्तक विलेख में सामान्यतया  लिखा जाता है कि दत्तक ग्रहण  के समय कौन कौन व्यक्ति उपस्थित थे। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था कि कब और कहां गोद ग्रहण संपन्न हुआ और क्या आवश्यक समारोह संपन्न किया गया। इसके अतिरिक्त दत्तक जाने वाले के द्वारा डॉक्टर का परीक्षण कराया गया और डॉक्टर का बयान गोद लेने वाले की मानसिक स्थिति पर शंका उत्पन्न करता है। इसलिए यह माना गया कि दत्तक का विलख अवैध है क्योंकि गोद लेने वाला स्वस्थ मस्तिष्क का था और दत्तक विलेख निष्पादित कर सकने की स्थिति में था ऐसा नहीं कहा जा सकता।
1980 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 1754

वसीयतनामा दत्तक का इंद्राज यथेष्ट नहीं - वसीयत कर्ता के द्वारा वसीयतनामा में किसी व्यक्ति को गोद पुत्र के रूप में वर्णित कर दिया गया हो तो निश्चित रूप से यह लिखित एक ग्राहय साक्ष्य है परंतु वसीयतनामा में इस प्रकार का अभीकथन गोंद लिए जाने का पूर्ण सबूत नहीं माना जा सकता। जो व्यक्ति दत्तक का दावा करता है उस पर यह प्रमाण भार है कि वह सबूत करें कि विधिवत गोद लेने की कार्रवाई हुई और गोद लिया गया क्योंकि वह गोद लिए जाने के कथन करने वाला व्यक्ति प्राकृतिक उत्तराधिकार के विरुद्ध स्वतः गोद के आधार पर उत्तराधिकारी बनना चाहता है। इसलिए गोद लिया जाना सबूत करने के लिए प्राकृतिक एवं दत्तक मां-बाप की सहमति से गोद में लेने देने की पूर्ण कार्रवाई साक्ष्य द्वारा सिद्ध किया जाना चाहिए। साक्ष्य के द्वारा विधिवत गोद लिया जाना सिद्ध नहीं किया जाता है और वसीयतनामा में किसी व्यक्ति को गोद पुत्र के रुप में संबोधित कर दिया जाता है तो यह सम्बोधित मात्र  गोद लिए जाने का पूर्ण सबूत नहीं है विशेषकर ऐसी स्थिति में है जबकि गोद लेने की कार्यवाही इतनी अधिक पुरानी ना हो की गोद लिए जाने संबंधी साक्षी उपलब्ध ना रह जाए। इसलिए साक्षी सबूत करना आवश्यक है।
1980 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 419

अनुमान (Presumption) - जब दत्तक का विलेख पंजीबद्ध हो और उसके निष्पादन को कपट और अनुचित प्रभाव का आरोप लगाते हुए चुनौती दी गई हो सिद्ध करने का भार उस पक्षकार पर होगा जो कपट और अनुचित प्रभाव का आरोप लगाता हो।
1977 एआईआर (इलाहाबाद) 441

दत्तक विलेख  में हस्ताक्षर नहीं-- यदि दत्तक विलेख में गोद देने वाले प्राकृतिक पिता के हस्ताक्षर नहीं है परंतु दत्तक विलख
को पंजीकरण के लिए प्राकृतिक पिता ने ही पेश किया था तो धारा 16 के अनुसार दत्तक विलख के विधिवत निष्पादित होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
1975 एआईआर (कर्नाटक) 79




दस्तावेज है तो प्रमाण भार -- इस धारा के अनुसार अनुमान का नियम है जिसके अनुसार जब गोद की पुष्टि में पंजीबद दस्तावेज हो तो न्यायालय को यह अनुमान करना चाहिए की गोद लेना इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार किया गया है जब तक की प्रतिकूल सिद्ध ना कर दिया जाए। फलतः गोद को निष्पादित करने वाले को उसी प्रकार गोद सिद्ध करने की जरूरत नहीं है जिस प्रकार बिना दस्तावेज वाले गोद में सिद्धकरना पड़ता है।
1979 एआईआर (उड़ीसा) 205

इस संबंध में नीचे दिए गए न्याय निर्णय --

(1) इस अधिनियम के प्रभाव शील होने के पूर्व लिए गए संबंध में इस अधिनियम के प्रभाव शील होने के बाद दिनांक 21 12 1956 को पंजीबद्ध विलेख अभिस्वीकृति के संबंध में निष्पादित किया गया तो इस धारा के अंतर्गत अनुमान नहीं लगाया जाएगा और गोद प्रतिपादित करने वाले पर सिद्ध करने का पूर्ण भार रहेगा, धारा 16 लागू नहीं होगी।
1978 एआईआर (उड़ीसा) 48

(2) गोद लिए जाने के अनुमान के संबंध में इस धारा के प्रावधान के अनुसार निम्न शर्त पूर्ण होना चाहिए -(1) गोद का दस्तावेज होना चाहिए (2) दस्तावेज पंजीबद्ध होना चाहिए (3) वह दतक अभिलेख किया जाने का दस्तावेज हो जो की संपन्न किया गया है (4) उसे न्यायालय में पेश किया जाना चाहिए। यदि इनमें से कोई तत्व का अभाव हो तो गोद का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। दत्तक लेने की अभिस्वीकृति मैं दस्तावेज पंजीबद्ध किया गया था। परंतु उसमें प्राकृतिक मां-बाप के हस्ताक्षर स्वीकृति के रूप में नहीं थे इसलिए प्राकृतिक माता पिता ने गोद की स्वीकृति के संबंध से दस्तावेज निष्पादित किया। गोद लेने वाले और देने वाले माता पिता का एक ही दस्तावेज में हस्ताक्षर होना चाहिए तभी इस धारा के अंतर्गत वैधता का अनुमान लगाया जाएगा।
1977 एआईआर (उड़ीसा) (69)

(3) जब गोद 36 वर्ष पुराना हो और सभी आचरण से सव्यवहार यह खुलेआम प्रदर्शित करता हो की गोद लिया गया था विधिवत गोद लिया जाना माना जाएगा तथा जो गोद को चुनौती देता है उस पर यह सिद्ध करने का प्रमाण भार होगा कि गोद नहीं लिया गया।
1972 एआईआर ,( सुप्रीम कोर्ट) 808

महत्वपूर्ण है न्यायिक निर्णय--

(1) एक बार यदि किसी व्यक्ति ने किसी बच्चे को गोद में ले लिया तो वह गोद रद नहीं किया जा सकेगा अर्थात गोद माता पिता या गोद पुत्र या प्राकृतिक पिता उस गोद को रद्द नहीं कर सकता।
1968 एआईआर (राजस्थान)51




(2) धारा 16 के अंतर्गत अनुमान करने का प्रावधान है परंतु अनुमान खंडनिय है। वादी ने प्रति वादिनी के मृत पति के द्वारा गोद लिए जाने का दावा किया। गोद का दस्तावेज वादी के पिता के द्वारा हस्ताक्षरित नहीं था इसलिए वादी को गोद में दिया गया और लिया गया सिद्ध नहीं हो पाया।
1984 एआईआर (इलाहाबाद) 44

(3) जो व्यक्ति प्राकृतिक उत्तराधिकार को नकारना चाहता है उसी पर सिद्ध करने का प्रमाण भार होगा कि वह गोद लिए जाने के  तथ्य को और उसकी वैधता को सिद्ध करें। जो साक्ष्य पेश किया जाए उसमें धोखा या कपट की जरा भी शंका ना रहे तथा साक्ष्य इस प्रकार का रहे कि उसकी सत्यता पर शंका ना रह जाए। किसी भी जाति में गोद लिया गया हो गोद लेने और देने का कर्म अवश्य ही सबूत किया जाना चाहिए।
1983 एआईआर (सुप्रीम कोर्ट) 114





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