संक्षिप्त प्रक्रिया - - आदेश 37 सिविल प्रकिया संहिता।
SUMMARY PROCEDURE --ORDER 37 CPC.
(1) यह आदेश निम्नलिखित न्यायालयों को लागू होगा, अर्थात -
(क) उच्च न्यायालय, नगर सिविल न्यायालय और लघुवाद न्यायालय; और
(ख) अन्य न्यायालय;
परंतु उच्च न्यायालय खंड (ख) मैं विनिर्दिष्ट न्यायालयों के बारे में, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस आदेश के प्रवर्तन को वादों के केवल एस्से प्रवर्गो तक निर्बंधित कर सकेगा, जो वह उचित समझें और इस आदेश के प्रवर्तन के अधीन लाए जाने वाले वादों के प्रवर्गो को समय-समय पर, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, मामला के परिस्थितियां मैं यथा अपेक्षित और निर्बंधित कर सकेगा, बढा सकेगा या उसमें फेरफार कर सकेगा जो भी उचित समझें।
(2) उपनियम (1) के उपबंधों के अधीन रहते हुए यह आदेश में निम्नलिखित वादों के वर्गों को लागू होता है, अर्थात;
(क) विनिमय पत्र, हुडिया और वचन पत्र के आधार पर वाद,;
(ख) ऐसे वाद में जिनमें वादी, प्रतिवादी द्वारा संदेय ऋण या धन के रूप में परी निर्धारित मांग को ब्याज सहित या ब्याज के बिना केवल वसूल करना चाहता है जो निम्नलिखित आधार पर अद्भुत होता है, अर्थात--
( 1) लिखित संविदा: अथवा
( 2) ऐसी अधिनियमिति जिसमें वसूल की जाने वाली राशि कोई नियत राशि है या किसी शास्ति से भिन्न ऋणस्वरूप है, अथवा
(3) ऐसी प्रत्याभूति जिसमें केवल किसी ऋण या परीनिर्धारित मांग के बारे में मूलधन के लिए दावा किया गया।
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(2) संक्षिप्त वादों का संस्थित किया जाना --
(1) यदि वादी किसी ऐसे वाद को जिसे यह आदेश लागू होता है, इसके अधीन आगे चलाने की वांछा करता है तो वह वाद वाद पत्र उपस्थापित करके संस्थित किया जा सकेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें होगी, अर्थात--
(क) इस आशय का विनिर्दिष्ट प्रकथन कि वाद इस आदेश के अधीन फाइल किया जाता है:
(ख) ऐसे किसी अनुतोष का दावा वाद पत्र में नहीं किया गया है, जो इस नियम के विस्तार के अंतर्गत नहीं आता है, और
(ग) वाद के शीर्षक में वाद के संख्याक के ठीक नीचे निम्नलिखित अंतलेखन किया गया है, अर्थात: -
“सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 37 के अधीन”
( 2) वाद का समन परिशिष्ट (ख) के प्ररूप संख्याक 4 मैं या किसी एस्से अन्य प्ररूप मैं होगा जो समय समय पर विहित किया जाए।
(3) प्रतिवादी उपनियम 1 मैं निर्दिष्ट वाद की प्रतिरक्षा तब तक नहीं करेगा जब तक की वह उपसंजात नहीं होता है और उपसंजात होने मैं व्यतिक्रम होने पर वाद पत्र मैं के अभी कथन स्वीकृत कर लिए गए समझे जाएंगे और वादी विनिर्दिष्ट दर पर, यदि कोई हो, डिक्री की तारीख तक के ब्याज सहित किसी ऐसी राशि के लिए जो समन में वर्णित राशि से अधिक ना हो और खर्चे की ऐसी राशि के लिए जो उच्च न्यायालय उस निमित्त बनाए नियमों द्वारा समय-समय पर अवधारित करें, डिक्री पाने का हकदार होगा और ऐसी डिक्री तत्काल निष्पादित की जा सकेगी।
(3) प्रतिवादी की उपसंजात के लिए प्रक्रिया - -
(1) किसी ऐसे वाद में जिसे यह आदेश लागू होता है, वादी प्रतिवादी पर वाद पत्र और उसके उपबंधों की एक प्रति नियम 2 के अधीन समय के साथ तमिल करेगा और प्रतिवादी ऐसे तमिल के 10 दिन के भीतर किसी भी समय स्वयं या पलीडर द्वारा उपसंजात हो सकेगा और दोनों दशाओं में वह उस पर सूचनाओं की तमिल के लिए पता न्यायालय में फाइल करेगा।
(2) जब तक अन्यथा आदेश ना दिया गया हो तब तक ऐसे सभी संमन, सूचनाएं और अन्य न्यायिक आदेशिकाये जो प्रतिवादी पर तमिल किए जाने के लिए अपेक्षित हो, उस पर सभ्यक रूप से तमिल की गई तब समझी जाएगी जब वे उस पत्ते पर छोड़ दी गई हो जो ऐसे तमिल के लिए उसके द्वारा दिया गया था।
(3) उपसंजात होने के दिन ऐसी उपसंजाती की सूचना प्रतिवादी द्वारा वादी के प्लीडर को या यदि वादी स्वयं वाद लाता है तो स्वयं वादी को, ऐसी सूचना परिदत्त करके या पहले से डाक महसूस किए गए, पत्र द्वारा, यथास्थिति, वादी के प्लीडर के या वादी के पते पर भेजकर की जाएगी।
(4) यदि प्रतिवादी उपसंजात होता है तो उसके पश्चात वादी प्रतिवादी पर निर्णय के लिए समन परिशिष्ट ख के प्ररूप संख्या 4 मैं या ऐसे अन्य प्ररूप में जो समय समय पर विहित किया जाए, तामिल करेगा। ऐसा समन तामील के तारीख से 10 दिन के अन्यून समय में वापस किया जाने वाला होगा और जिसका समर्थन वाद हतूक और दावाकर्त रकम का सत्यापन करने वाले शपथ पत्र द्वारा किया जाएगा और उसमें यह कथन किया गया होगा कि उसके विश्वास में वाद में इस निमित्त कोई प्रतिरक्षा नहीं है।
(5) प्रतिवादी निर्णय के लिए ऐसे समन की तामील से 10 दिन के भीतर किसी भी समय शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा ऐसे तथ्य प्रकट करते हुए जो प्रतिरक्षा करने के लिए उसे हकदार बनाने के लिए पर्याप्त समझे जाए, ऐसे वाद की प्रतिरक्षा की इजाजत के लिए ऐसे समन के आधार पर आवेदन कर सकेगा और उसे प्रतिरक्षा करने की इजाजत बिना शर्त या ऐसे निबंधों पर जो न्यायालय या न्यायाधीश को न्याय संगत प्रतीत हो, मंजूर की जा सकेगी:
परंतु प्रतिरक्षा की इजाजत तब तक नामंजूर नहीं की जाएगी जब तक न्यायालय का यह समाधान नहीं हो जाता है कि प्रतिवादी द्वारा प्रकट किए गए तथ्य यह उपदर्शित नहीं करते हैं कि उसके द्वारा कोई सारवान प्रतिरक्षा की जानी है या प्रतिवादी द्वारा की जाने के लिए आशयित प्रतिरक्षा तुच्छ या तंग करने वाली है:
परंतु यह और की जहां वादी दावाकृत रकम का कोई भाग प्रतिवादी द्वारा उसके शोध्य होना स्वीकार कर लिया जाता है तो वाद की प्रतिरक्षा की इजाजत तब तक मंजूर नहीं की जाएगी जब तक शोध्य होने के लिए इस प्रकार स्वीकार की गई रकम प्रतिवादी द्वारा न्यायालय में जमा ना कर दी जाए।
(6) निर्णय के लिए ऐसे समन की सुनवाई के समय --
(क) यदि प्रतिवादी ने प्रतिरक्षा करने की इजाजत के लिए आवेदन नहीं किया है या यदि ऐसा आवेदन किया गया है और नामंजूर कर दिया गया है तो वादी तत्काल निर्णय का हकदार हो जाएगा; अथवा
(ख) यदि प्रतिवादी को पूर्ण दावे या उसके किसी भाग की प्रतिरक्षा करने की अनुज्ञा दी जाती है तो न्यायालय या न्यायाधीश उसे निर्देश दे सकेगा कि वह ऐसी प्रतिभूति ऐसे समय के भीतर दे जो न्यायालय या न्यायाधीश द्वारा नियत किया जाए, और न्यायालय या न्यायाधीश द्वारा विनिर्दिष्ट समय के भीतर ऐसी प्रतिभूति देने में या ऐसे अन्य निर्देशों का पालन करने में जो न्यायालय या न्यायाधीश द्वारा दिए गए हो असफल होने पर वादी तत्काल निर्णय का हकदार हो जाएगा।
(7) न्यायालय या न्यायाधीश, प्रतिवादी द्वारा पर्याप्त कारण दर्शित किए जाने पर, प्रतिवादी को उपसंजात होने या वाद की प्रतीक्षा करने की इजाजत के लिए आवेदन करने में विलंब के लिए माफी दे सकेगा।
(4) डिक्री को अपास्त करने की शक्ति-- डिक्रीदेने के पश्चात यदि न्यायालय को विशेष परिस्थितियों के अधीन ऐसा करना युक्तियुक्त लगे तो वह एसे निबंधनो पर जो न्यायालय ठीक समझे, डिक्री को अपास्त कर सकेगा और यदि आवश्यक हो तो उसका निष्पादन रोक सकेगा और सुमन पर उपसंजात होने और वाद में प्रतिरक्षा करने की प्रतिवादी को इजाजत दे सकेगा।
(5) विनिमय पत्र, आदि को न्यायालय के अधिकारी के पास जमा करने का आदेश देने की शक्ति-- इस आदेश के अधीन किसी भी कार्यवाही में न्यायलय आदेश दे सकेगा कि वह विनिमय पत्र हुंडी या वचन पत्र जिस पर वाद आधारित है, न्यायालय के अधिकारी के पास तत्काल जमा कर दिया जाए और यह अतिरिक्त आदेश दे सकेगा कि सभी कार्यवाहियां तब तक के लिए रोक दी जाए जब तक वादी उनके खर्चे के लिए प्रतिभूति ना दे दे।
(6) अनारदत्त विनिमय पत्र या वचन पत्र अप्रतिग्रहन का टिप्पण करने के खर्च की वसूली - - हर अनादरत विनिमय पत्र या वचन पत्र के धारक को ऐसे अनादरण के कारण उसके अप्रतिग्रहण या असंदाय का टिप्पण कराने में या अन्यथा उपगत व्वयो की वसूली के लिए उपचार होंगे जो उसे ऐसे विनय पत्र या वचन पत्र की रकम की वसूली के लिए इस आदेश के अधीन है।
(7) वादों में प्रक्रिया-- इस आदेश द्वारा जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, इसके अधीन वादों की प्रक्रिया वही होगी जो मामूली रीति से संस्थित किए गए वादों में होती है।
इस प्रकार उपरोक्त आदेश में उपबंधित के संपूर्ण अध्ययन से स्पष्ट है कि इस आदेश मैं अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकार से परक्राम्य लिखित वचन पत्र, हुंडी, विनिमय पत्र, क्रिकेट शर्मिंदा लिखित संविदा, धन के प्रतिरयुद्धरन आदि से संबंधित मामलों में संक्षिप्त प्रक्रिया का प्रावधान इस आदेश के अंतर्गत किया गया है।
ऐसे वादों में प्रतिवादी को उपसंजात होने और वाद में प्रतीक्षा करने के लिए तब तक समनुज्ञात नहीं किया जाता है जब तक वह अपवाद द्वारा संदर्शित करके की उसका प्रतिवाद वास्तविक है, न्यायालय की अनुमति प्राप्त नहीं कर लेता है।
न्यायालय द्वारा प्रतिरक्षा की अनुमति तभी दी जाएगी जब प्रतिवादी न्यायालय को यह संतुष्ट कर दे की--
(1) उसकी प्रतिरक्षा सारभूत है;
(2) विचारण योग्य है; एवं
(3) मिथ्या व तंग करने वाली नहीं है।
यदि ऐसी अनुमति प्रदान नहीं की जाती है तो वाद पत्र में किए गए अभी कथनों के विषय में यह समझा जायेगा कि वे स्वीकार कर लिया गया है और वादी आज्ञप्ति का हकदार होगा। विशेष परिस्थितियों में पूर्व पारित आज्ञप्ति करने की अनुमति दी जा सकेगी।
जहां डिक्री प्रतिवादी की अनुपस्थिति मैं पारित की जाती है और प्रतिवादी ऐसी डिक्री को अपास्त करना चाहता है, वहां प्रतिवादी को न्यायालय का निम्न बातों के बारे में समाधान करना होगा--
(१) कि उसकी अनुपस्थिति का पर्याप्त कारण था; तथा
(२) बाद में प्रतिरक्षा के पर्याप्त एवं सारभूत आधार विद्धिमान है।
न्यायिक निर्णय - -
( 1) संक्षिप्त वादों में वाद पत्र के साथ दस्तावेजों की प्रतियां भेजना अज्ञापक नहीं है। 80 प्रतियों के अभाव में समन की तामील को अपर्याप्त नहीं माना जा सकता। यद्यपि प्रतिवादी को वाद पत्र के साथ दस्तावेजों की प्रतियां नहीं दी गई थी लेकिन प्रतिवादी द्वारा उनका निरीक्षण कर लिया गया था। इसे पर्याप्त तमिल माना गया।
ए आई आर 2000 दिल्ली 156
(2) एक मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि जहां प्रतिवादी यह बता दे कि उसका प्रथम दृष्टया मामला है तथा विनिश्चय के लिए कोई सारवान प्रश्न विद्यमान है वहां उसे बिना किसी शर्त एवं बैंक गारंटी के प्रतिरक्षा का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
ए आई आर 1999 राजस्थान 98
(3) संक्षिप्त वादों में प्रतिवादी को प्रथम उपस्थिति के बाद "निर्णय हेतु समन" जारी किया जाता है और ऐसे समन की तामील के 10 दिन के भीतर उसे प्रतिरक्षा के लिए अनुमति है हेतु आवेदन करना होता है। इस 10 दिनों से अभिप्राय अधिकतम 10 दिनों से है, आगे नहीं अर्थात प्रतिवादी अधिकतम दसवें दिन तक आवेदन कर सकता है, उसके बाद में नहीं।
ए आई आर 1989 राजस्थान 132
(4) पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा एक मामले में कहां गया है कि बैंक द्वारा संस्थित हुंडी पर आधारित मामले में प्रतिवादी को बिना किसी शर्त प्रतिरक्षा पेश करने का अवसर प्रदान किया जा सकता है।
ए आई आर 1999 पंजाब एंड हरियाणा 111
(5) बैंक ड्राफ्ट के आधार पर वाद पेश किया - - वाद की पोषणीयता एवं ब्याज दिलाने के संबंध मैं आपत्ती-- बिल ऑफ एक्सचेंज, हुंडी अथवा प्रोनोट के आधार पर वाद आधारित नहीं - - पक्षकारों के बीच लिखित संविदा नहीं, बैंक ड्राफ्ट को लिखित संविदा नहीं माना जा सकता - - अभिनिर्धारित, आदेश 37 के अधीन वाद ग्रहण योग नहीं तथा निर्णय व डिक्री अपास्त किए जाने योग्य है तथा मामला प्रति प्रेषित किया गया।
1988 DNJ ( Raj ) 716
(6)) आदेश 37 नियम 1-- विलंब का परिमार्जन-- किसी मामले में परंतुक पर विचार नहीं किया गया-- वाद जिसमें उच्च मूल्य अंतर्गस्त हो, विस्तृत अवधारणा आवश्यक हो सकती है, आदेश का उद्देश्य वाद का शीघ्र निस्तारण करना है किंतु शीघ्र निस्तारण के आधार पर न्याय से वंचित नहीं करना चाहिए-- विलंब परिमार्जन पर वाद अथवा पक्षकारों की प्रकृति को देखते हुए विचार करना चाहिए एवं ना कि कुछ मामलों में प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर।
1998 (1) DNJ (Raj) 242
(7) एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने हेतु आवेदन - - निचले न्यायालय ने परिसीमा की अवधि 30 दिन गिनी, अभिनिर्धारित, सारा मामला आदेश 37 नियम 4 की सीमा के अंतर्गत है अतएव अधीनस्थ न्यायालय को आदेश है कि इन प्रावधानों के अनुसार मामले का विनिश्चय करें और प्रयुक्त विशेष परिस्थितियों की शब्दावली पर ध्यान देंवे।
1994 (2)DNJ (Raj) 529
(8) आदेश 37 नियम 5 - - प्रतिरक्षा की अनुमति प्रदान करते समय शर्त अधिरोपित करना - - वादी ने प्रामिसरी नोट के आधार पर वाद दायर किया - - प्रार्थी प्रतिवादी ने इस पर प्रकथन के साथ प्रतिरक्षा की अनुमति चाहि उसके द्वारा प्रोनोट के निष्पादन से इनकार किया गया था -- विचारण न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि प्रतिरक्षा की विधि मान्यता का परीक्षण रानी किया जा सकता था, फिर भी उसने पर्याप्त प्रतिभूति की शर्त के अध्यधीन प्रतिरक्षा की अनुमति प्रदान की -अभिनिर्धारित,
इस अवस्था में विचारण न्यायालय के लिए प्रतिरक्षा के गुण गुण का गहनता एवं पूर्णता के साथ परीक्षण आवश्यक नहीं होता-- प्रतिरक्षा की अनुमति प्रदान करते समय शर्त अधिरोपित करना विचारण न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
2009 (1) RLW 112
(9) आदेश 37 नियम 5 के तहत प्रतिरक्षा की अनुमति हेतु प्रतिवादी द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया गया - - विचारण न्यायालय द्वारा निरस्त किया गया। प्रतिवादी न्यायालय में राशि जमा कराने या वाद राशि की बैंक गारंटी देने सहित किसी भी शर्त के लिए तैयार नहीं था-- अभिनिर्धारित-- आदेश 37 नियम 5 के तहत प्रतिरक्षा की अनुमति हेतु आवेदन निरस्त करने वाला विचार न्यायालय का आदेश वैद्य व न्यायोचित होगा।
2010 (3) RLW 2550
(10) आदेश 37 नियम 3 (1) एवं नियम (4) - एक पक्षीय डिक्री - आदेश 37 नियम 3 (4) के तहत नोटिस - वादी ने वाद हेतु वह अपनी राशि के बारे में सत्यापित करते हुए आदेश 37 नियम 3 (4) के तहत वांछित की उस के दावे की कोई प्रतिरक्षा नहीं है, यह शपथ पूर्वक कहते हुए शपथ पत्र विचारण न्यायालय मैं प्रस्तुत नहीं किया - आदेश 37 नियम 3 (4) के आज्ञापक प्रावधानों की अनुपालना-- अभीनिर्धारित- डिक्री अपास्त करने हेतु यह विशेष परिस्थिति है।
RLW 2005 (1) Raj 48
(11) वाद की प्रतिरक्षा करने की प्रतिवादी को बिना शर्त अनुमति देना - - अभिनिर्धारित - - अनुमति प्रदान करने से पूर्व विचारण न्यायालय को चाहिए कि वह सुसंगत तथ्यों पर विचार करें - प्रतिवादी को भी आदेश है 37 के तहत पारित एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने हेतु आवेदन में विशेष कारण दर्शाने चाहिए साथ ही प्रतिरक्षा के लिए अनुमति प्रदान करने के लिए कारण भी-- 2 माह के भीतर यदि वह संपूर्ण वाद राशि जमा कराता है तो वह प्रतिरक्षा की अनुमति का हकदार होगा,।
2007 (1) RLW 844
(12) आदेश 37 व आदेश 9 नियम 13 - - एक पक्षीय डिक्री अपास्त करना - - प्रार्थना पत्र खारिज किया - आदेश 37 नियम 1 व 2 के अंतर्गत वाद पेश किया-- अप्लांट पर समन की तामील नहीं हुई - आदेश 37 नियम 3 (4) के अंतर्गत समन जारी करने का अवसर नहीं - सुनवाई का अवसर नहीं दिया - निर्णित, निर्णय अपास्त किया।
2017 (1) RLW 810
(13) आदेश आदेश नियम 3 (5) - - संक्षिप्त वाद - प्रतिरक्षा हेतु अनुमति - - विचारण न्यायालय ने गारंटी पेश करने हेतु शर्त आरोपित की -- ₹500000 की राशि की वसूली हेतु वाद करार पर आधारित है-- याची ने महत्वपूर्ण विधिक बिंदु उठाएं-- बिना शर्त अनुमति प्रदान करनी चाहिए-- शर्त आरोपितकरते हुए कारण नहीं बताएं-- निर्णित, शर्त आरोपित करने की सीमा तक आदेश अपास्त किया।
2016 (3) डी एन जे ( राजस्थान) 1014
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