वाद लंबित रहते भरण पोषण और कार्यवाहियों के व्यय -- धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम 1955
Maintenance Pendente Lite and Expenses Of Proceedings.
धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम - कि इस अधिनियम के अधीन होने वाली किसी कार्रवाई में न्यायालय को यह प्रतीत हो कि यथास्थिति, पति या पत्नी की ऐसी कोई स्वतंत्र आय नहीं है जो उसके संभाल और कार्रवाई के आवश्यक व्ययों के लिए पर्याप्त हो वहां पति या पत्नी के आवेदन पर प्रत्यर्थी को यह आदेश दे सकेगा की वह अर्जीदार को कार्रवाई में होने वाले व्यय तथा कार्रवाई के दौरान में प्रतिमास ऐसी राशि संदत्त करें जो अर्जीदार की अपनी आय तथा प्रत्यर्थी की आय को देखते हुए न्यायालय को युक्तियुक्त प्रतीत हो।
इस प्रकार धारा 24 के अंतर्गत मूल याचिका के लंबित अवस्था में पति या पत्नी द्वारा याचिका पेश करने पर गैर याचिकाकार का वाद खर्च एवं पोषण के लिए मासिक खर्च न्यायालय दिलवा सकता है बशर्ते की गैर याचिकाकार के पास यह यथेष्ट साधन खर्च वहन करने का ना हो। पति या पत्नी जो भी इस धारा मैं पेश याचिका का गैर याचिकाकार हो उसे खर्च दिला सकता है। यदि मामले मैं विवाह का अस्वीकार किया गया हो या क्षेत्राधिकार का प्रश्न उठाया गया हो तो भी खर्च दिलाया जा सकता है। भरण पोषण और वाद खर्च प्राप्त करने के लिए जो आवेदन इस धारा के अंतर्गत पेश किया जाता है उस पर न्यायालय को पहले निर्णय करना चाहिए। यदि प्रत्यर्थी अपने लिखित कथन पेश करने के पूर्व इस धारा के अंतर्गत आवेदन पेश करता है तो इस आवेदन पर पहले निर्णय दिया जाना चाहिए क्योंकि प्रत्यर्थी को लिखित कथन तैयार करने में खर्च भी करना पड़ता है। प्रार्थना पत्र पेश करने की दिनांक से आदेश की दिनांक तक व आदेशानुसार खर्च दिलाने का प्रावधान है। संशोधित धारा 28 के अनुसार इस धारा में पारित अंतरिम आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकेगी। 1976 के संसोधन के पूर्व अपील का प्रावधान था। इस धारा में स्पष्ट प्रावधान है कि पति या पत्नी में से जिसके भी स्वतंत्र आय ना हो उसे खर्च राशि दिलाई जा सकती है मूल याचिका में पति या पत्नी दोनों में से कोई प्रार्थी हो सकता है और इस धारा के अंतर्गत पति या पत्नी मैं से कोई भी आवेदन कर सकता है।
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धारा 24 के अंतर्गत पक्षकार को मामला का खर्च तथा भरण पोषण दिलाने का प्रावधान है अतः आवेदन पर आदेश देने के समय विवाह की वैधता पर विचार किया जाना चाहिए। धारा 24, 25, 26 के अधीन पारित आदेश कोई सारभूत आदेश नहीं है किंतु अनुषंगिक आदेश है। धारा 24 का आशय आर्थिक रुप से कमजोर पक्षकार को वाद खर्च और अंतरिम भरण पोषण दिलाने का प्रावधान है। इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि धारा 23 (2) के अंतर्गत मेल मिलाप के कार्यवाही करने के बाद ही अंतरिम भरण पोषण और बात कर लिया जा सकता है। बिना विशेष कारण बिना आवेदन की तिथि से भरण पोषण नहीं दिलाना चाहिए। धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पारित आदेश अंतरिम आदेश है जिसकी अपील नहीं की जा सकती है। वाद खर्च व भरण पोषण खर्च हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने वाला पक्षकार द्वारा प्रकरण मैं कोई विलम्ब नहीं किया है तो उसे आवेदन की तिथि से भरण पोषण व वाद खर्च की राशि दिलाने का आदेश दिया जा सकता है। धारा 24 के अंतर्गत संतान को अंतरिम भरण पोषण प्रदान नहीं किया जा सकता है। धारा 26 के अंतर्गत आवेदन पर विचार किया जा सकता। है। भरण पोषण के आदेश में धन की मात्रा धारा 24 के अंतर्गत पारित आदेश न्याय निर्णय है जिसके विरुद्ध अपील की जा सकती है। इसी प्रकार यदि न्यायालय भरण पोषण का खर्च सशर्त प्रदान करता है तो पुनरीक्षण मैं सुधारा जा सकता है। धारा 11 के अंतर्गत विवाह को अवैध व शून्य घोषित करने के लिए याचिका पेश की जाती है तब धारा 24 के अनुसार न्यायालय को अंतरिम भरण पोषण दिलाने का अधिकार है।हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 मैं प्रावधान किया गया है कि किस तिथि से भरण पोषण की राशि दिलाने का आदेश दिया जाएगा। धारा 24 के शीर्षक रहे हैं वाद लंबित रहने तक भरण पोषण देना लिखा है जिसका अर्थ है याचिका पेश किए जाने की तिथि से निर्णय होने तक। इसलिए यह न्यायालय के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है कि भरण पोषण देने का आदेश की तिथि से दिया जाए। सामान्यतया भरण पोषण की राशि आदेश की तिथि से दिलाया जाना चाहिए। भरण पोषण दिलाये जाने के आदेश की अवहेलना किए जाने पर आवेदन खारिज किया जा सकता है, या बचाव समाप्त आदेश पारित किया जा सकता है। चिंटुआ का आदेश देते समय न्यायालय को कारण अभिलिखित करने होंगे। न्यायालय को कार्यवाही स्थगित करने और खारिज करने का अधिकार है परंतु अधिकार का उपयोग क्रमश करना चाहिए। पहले कार्यवाही ही स्थगित करके पहले राशि पटाने का मौका देना चाहिए फिर व्यतिक्रम करने वाले ने कार्यवाही प्रारंभ की है तो खारिज की जा सकती है। इसके अतिरिक्त जिससे भरण पोषण दिलाया गया है उसे आदेश के निष्पादन की कार्रवाई करने का अवसर देकर कार्यवाही स्थगित की जा सकती है। सिविल न्यायालय द्वारा भरण पोषण का आवेदन खारिज होने पर दांडीक कार्रवाई में उक्त आदेश का कोई विपरीत प्रभाव नहीं होगा। धारा 24 के आवेदन पत्र के साथ शपथ पत्र पेश करना आवश्यक है। धारा 24 एवं 26 के प्रावधानों के अनुसार मुख्य वाद के लंबित अवस्था में पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण दिलाए जाने का प्रावधान है।
धारा 24 व 26 के प्रावधानों के अंतर्गत मुख्य याचिका के लंबित अवस्था मैं पत्नी बच्चे को भरण पोषण पाने का अधिकार है परंतु इन दोनों धाराओं में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि यदि मुख्य याचिका मैं निर्णय कर दिया जाता है उसके बाद याचिका के लंबित अवस्था में भरण पोषण प्रदान करने का न्यायालय का क्षेत्राधिकार समाप्त नहीं होता है और उसके बाद भी आदेश पारित किया जा सकता है। ए आई आर 1981 पंजाब हरियाणा 305 मैं अन्य न्यायालय से असहमति प्रकट करते हुए आदेश दिया गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत यह एक महत्वपूर्ण उपबंध है। जो अत्यंत उपयोगी उपबंध है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय --
(1) एक पक्षीय विवाह विच्छेद की डिक्री को रद्द किए जाने के लिए आदेश 9 नियम 13 सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आवेदन पोषणीय है। यह उपबंध धारा 24 में भी लागू होता है।ए आई आर 1988 पंजाब 31
( 2) यदि किसी मामले में धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भरण पोषण का आदेश पारित हो चुका है धारा के अंतर्गत भरण पोषण की राशि निर्धारित करते समय उस पर विचार करना चाहिए।
ए आई आर 1987 राजस्थान 159
(3) पति ने धारा 9 के अंतर्गत दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना केली याचिका पेश की और नोटिस प्राप्त होने पर पत्नी ने भरण पोषण राशि एवं खर्चे की राशि दिलाने के लिए धारा 24 के अंतर्गत आवेदन पेश किया। विचारण न्यायालय द्वारा प्रतिवादी की पेश मूल याचिका की तिथि से भरण पोषण राशि दिए जाने का आदेश दिया जिसे उच्च न्यायालय ने उचित माना।
ए आई आर 1988 इलाहाबाद 130
(4) अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी के साथ भरण पोषण पाने का एक बच्चे का हक, अभिनिर्धारित - वाद लंबित रहने के दौरान भरण पोषण प्रदान करते समय न्यायालय को पत्नी के साथ अवयस्क एक बच्चे के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए विशेष कर उस समय जब पति अपनी पत्नी के निर्वाह है हेतु उसकी आय के स्वतंत्र स्त्रोत को साबित करने में असफल रहा हो, जब पिता जीवित हो एवं उसकी आय का पर्याप्त सोत्र हो तो बच्चे के भरण पोषण पर व्यय करने की एकमात्र जिम्मेवारी माता की नहीं हो सकती-- धारा 24 के तहत बच्चा भरण पोषण पाने का हकदार है।
2006 (2) आर एल डब्ल्यू 1525
(5) धारा 24-- पत्नी एवंदो पुत्रों का भरण-पोषण- वाद-कालीन भरण पोषण की राशि- प्रत्यर्थी की आय ₹5000 होना विश्वास करने योग्य नहीं-- पत्नी की अपनी स्वयं कीआय थी-- वर्तमान मूल्य सूचकांक को दृष्टिगत रखते हुए भरण पोषण की राशि स्वीकार की।
2005 (5) आर एल डब्ल्यू 636 (सुप्रीम कोर्ट)
(6) क्या अधिनियम की धारा 25 के तहत पारित आदेश को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 के तहत या अधिनियम की धारा 28 (2) तहत अपील में पुनरीक्षण के द्वारा चुनौती दी जा सकती है? अभिनिर्धारित-- धारा 25 के तहत पारित आदेश धारा 28 (2) के तहत अपील योग्य है यदि वह आदेश अंतरिम आदेश नहीं है- यह अंतिम आदेश है-- कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भरण पोषण का अंतरिम आदेश सदैव धारा 24 के तहत पारित किया जाता है-- धारा 25 के तहत आवेदन पृथक एवं स्वतंत्र कार्रवाई है-- धारा 397 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पुनरीक्षण पोषणीय नहीं-- धारा 25 के तहत पारित किया गया आदेश अधिनियम की धारा 28 (2) के तहत अपील योग्य है।
2005 ( 3) आर एल डब्ल्यू 1857( राजस्थान)
( 7) धारा 24-- पत्नी के विरुद्ध विवाह विच्छेद का मामला लंबित रहते पत्नी ने अंतरिम भता व खर्चा मांगा -- अंतरिम भता प्रदान करते समय के प्रकम में धारा 24 का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि उसे जीवन यापन तथा मामले से प्रतिरक्षा करने हेतु प्रधान होता है-- “जारकर्म” के आरोप और “जारकर्म” सिद्ध हो जाने मैं बहुत अंतर है - - धारा 24 के प्रावधान अपना कार्य स्वयं करेंगे।
1995 (2) डी एन जे (राजस्थान) 572
( 8) पति ने यह अभिवाक करते हुए कि वह बेरोजगार है अपनी सेवारत पत्नी से निर्वाह भत्ता मांगा -- तथ्यों से प्रकट होता है कि उसने ने अपना धंधा त्याग दीया है और वह कमाई करने योग्य है-- पति भरण पोषण की मांग नहीं कर सकता है।
1999 (1) डी एन जे (राजस्थान) 386
(9) संपत्ति जमीन आदि की आय नहीं है तो उससे फसल या रकम प्राप्त होती है वह आय यदि किसी संपत्ति से कोई आय प्राप्त नहीं होती है तो आय में शामिल नहीं होगी।
1981 ए आई आर ( दिल्ली) 50
(10) वाद के खर्च को पूर्ण करने के लिए खर्च की राशि और भरम पोषण की राशि का निर्धारण करना न्यायालय के क्षेत्राधिकार एवं स्वविवेक के अंतर्गत है इसलिए रीविजन में उच्च न्यायालय ऐसे आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
1972 ए आई आर ,( पटना) 80
(11) स्वतंत्र आय शब्द एक तथ्यात्मक प्रश्न है। ऐसा प्रावधान कहीं नहीं है यदि कोई व्यक्ति अपने पिता या संबंधी के फार्म मैं या अन्य प्रकार के संस्थान में कार्य करता है तो वाद के लंबित अवस्था में भरण पोषण नहीं देना पड़ेगा उसके स्वतंत्र आय नहीं है। यदि व्यक्ति अपने परिवार के सदस्य या संबंधी के साथ कार्य करता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी कोई आय नहीं है।
1980 ए आई आर ,( पंजाब हरियाणा) 120
(12) धारा 13 व 24 -- अपीलार्थी पति ने उसके द्वारा उसकी पत्नी से विवाह विच्छेद चाहते हुए दायर किए गए अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत आवेदन को अस्वीकार किया जाने के विरुद्ध अपील दायर की-- अपीलार्थी पति ने उच्च न्यायालय के द्वारा प्रत्यर्थी पत्नी के पक्ष में अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत अधि निर्णित राशि के बकाया का भुगतान किस्तों में करने के लिए जारी निर्देशों की पालना नहीं की, ना तो भुगतान का कोई सबूत पेश किया गया और नहीं उच्च न्यायालय के समक्ष समयावधि बढ़ाएं जाने का आवेदन किया गया - अपीलार्थी के पास प्रत्यर्थीया पत्नी को भरण पोषण के बकाया का भुगतान न किए जाने का युक्तियुक्त कारण नहीं है - -निर्णित, अपीलार्थी पति द्वारा प्रत्यर्थी पत्नी को भरण पोषण के बकाया का भुगतान किया जाने के न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना को देखते हुए अपील खारिज किए जाने योग्य है।
2011 (2) DNJ (,Raj.) 854
(13) धारा 24 - - पति के आवासीय मकान में आवास प्रदत्त करने को निर्देश देने बाबत आवेदन - - प्रार्थिया सरकारी स्कूल में अध्यापिका है और पति भी अध्यापक है - - आवेदन इस आधार पर खारिज किया कि जब प्रार्थिया भरण पोषण के लिए हकदार नहीं है तो आवास स्वीकार नहीं किया जा सकता है, धारा 13 के अंतर्गत विवाह विघटन हेतु याचिका विचाराधीन है - - प्रार्थिया वाद कालीन भरण पोषण का दावा करने हेतु हकदार नहीं है - - आवास प्रदान करने हेतु मामला नहीं बनता।
2011 (3)DNJ (Raj)1399
(14) धारा 24 - - अंतरिम भरण पोषण - - पति द्वारा क्रूरता व अधित्यजन के आधार पर पेश तलाक याचिका स्वीकार की -- पत्नी द्वारा अपील-- पत्नी व नाबालिक पुत्र को भरण-पोषण-- अ प्लांट 2000रुपये प्रतिमाह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्राप्त कर रही है लेकिन इस आधार पर धारा 24 के अंतर्गत आवेदन वर्जित नहीं है -- दो प्रावधानों का दायरा भिन्न है-- धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अनुकल्प उपचार प्राप्त होने के कारण आवेदन का पोषणीय ना होनानहीं कहा जा सकता-- प्रावधान के उद्देश्य को देखते हुए पत्नी अथवा पति अकेले के लिए भरण पोषण प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता-- नाबालिग पुत्र को भी भरण पोषण मंजूर करने हेतु न्यायालय सक्षम है-- पत्नी की वास्तविक आय के बारे में साक्षी नहीं-- निर्णित, भरण पोषण के रूप में रु 3000 प्रतिमाह और रु 5000 वाद खर्चा व वकील फीस के रूप में दिलाएं।
2012 (1) ,DNJ (Raj) 228
(15) धारा 24 - - अंतरिम भरण पोषण के 8000 रुपए प्रतिमाह अधिनिर्णीत किया -अपीलेंट ने धारा 9 के अंतर्गत कार्यवाही संस्थित की - वसीम खान के साथ अवैध संबंध रखने का जवाब में विनिर्दिष्ट आरोप लगाया तथा प्रत्यर्थी पत्नी डेंटल सर्जन है वह कमा रही है-- उठाए गए बिंदुओं को न्यायालय द्वारा निर्णित करना अपेक्षित है -- यह नहीं कहा जा सकता कि धारा 9 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र सद्भावी है-- रेस्पोंडेंट की आय का सबूत अपीलाट द्वारा पेश नहीं किया गया--निर्णित, अपील गुणागुनहीन है है व खरीज की गई।
2017 (2) RLW 1517 (Raj)(DB)
( 16) धारा 24 - - वादकालीन भरण पोषण - - तर्क की याचिका की तारीख से भरण पोषण अधिनिर्णीत करना उचित नहीं था, सामान्यता भरण पोषण आवेदन की तिथि से प्रदान करना चाहिए न की आदेश की दिनांक से -- मध्यस्तथा कार्यवाही का लंबित रहना आवेदन की तिथि से भरण-पोषण अस्वीकार करने हेतु आधार नहीं है--निर्णित, आलोच्य आदेश न्याय संगत है व हस्तक्षेप से इनकार किया।
2013 (4) DNJ (Raj.) 1798
(17) भरण पोषण की बकाया राशि की वसूली - वसूली की कार्रवाई प्रारंभ करने का पत्नी को निर्देश दिया - - 45 दिनों में पति यदि राशि भुगतान ना करें, संपूर्ण राशि का भुगतान होने तक पति की गिरफ्तारी व निरोध के लिए वारंट जारी करेगा।
2015 (1) DNJ (Raj) 245 (DB)
( 18) धारा 24 - - पत्नी ने विवाह विघटन की याचिका पेश की और न्यायालय ने पत्नी को भरण पोषण और वाद खर्च पति से दिलाने का आदेश दिया। पत्नी ने मामला विलंबित करने की दृष्टि से साक्ष्य पेश नहीं किया तो न्यायालय ने भरण पोषण बंद करने का आदेश दिया। न्यायालय को भरण पोषण संबंधी आदेशो में परिवर्तन करने का, स्थगित करने का अधिकार है, माना गया।
ए आई आर 1976 दिल्ली 246
(19) धारा 24-- भरण पोषण एवं वाद खर्च दिलाना के आदेश में तथ्य और आधार जिन पर आदेश पारित किया गया है, विवेचन नहीं किया गया इसलिए आदेश रद्द किया गया।
1978 ए आई आर (पंजाब) 32
(20) धारा 24 एवं आदेश 9 नियम 13 सिविल प्रक्रिया संहिता - - इस अधिनियम के अंतर्गत यह पक्षीय डिक्री को निरस्त करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है इसलिए धारा 21 के अनुसार व्यवहार प्रक्रिया संहिता की शरण लेनी होगी आदेश 9 नियम 13 के अंतर्गत आवेदन पेश करना होगा। इसलिए आदेश 9 नियम 13 के अंतर्गत पेश आवेदन इसी अधिनियम के अंतर्गत की कार्यवाही है इसलिए ऐसी कार्यवाही जब लंबित हो तो धारा 24 के अंतर्गत आवेदन पोषणीय हैं।
1985 ए आई आर (दिल्ली) 40
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