समनों का निकाला जाना और उनकी तामील -आदेश
5 सी पी सी
Issue And Service Of Summons--Order 5
CPC.
प्राकृतिक न्याय का यह सर्वमान्य
सिद्धांत है कि प्रत्येक न्यायिक कार्यवाही का संचालन एवं वाद की सुनवाई पक्षकारों
की उपस्थिति में की जानी चाहिए। बिना पक्षकारों को सुनवाई का अवसर दिए की गई
न्यायिक कार्यवाही एवं वाद की सुनवाई और तदनुसार दीया गया निर्णय केवल न्याय को ही
दूषित नहीं करता अपितु इससे पक्षकारों के मन में न्याय के प्रति जो निष्ठा है वह
भी प्रभावित होती है। यह बात सिर्फ पक्षकारों के लिए ही नहीं अपितु साक्षियों के
लिए भी प्रयोज्य है। पक्षकारों की उपस्थिति के लिए
न्यायालय आदेश करता है और पक्षकारों को उपस्थित रहने के लिए आदेश जारी करता है उसे
विधिक भाषा में सम्मन कहां जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 5 में प्रतिवादी की उपस्थिति न्यायालय में
सुनिश्चित करने हेतु सम्मनो का निकाला जाना व उनकी तामिल बाबत उपबंध किया गया है।
संहिता में धारा 27 से 32 तक व आदेश 16 एवं 16 (अ) मैं भी
साक्ष्यो तथा कारावास में परिरुद्ध अथवा निरुद्ध व्यक्तियों की उपस्थिति के बारे
में प्रावधान किए गए हैं। आदेश 5 में प्रतिवादी की
उपस्थिति बाबत प्रावधान उपबंधित किए गए हैं जो निम्न प्रकार है --
समनों का निकाला जाना और उनकी तामील -आदेश
5 सी पी सी
Issue And Service Of Summons--Order 5
CPC.
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समनों का निकला जाना -आदेश 5 सी पी सी
नियम 1 - समन -
(1) जब वाद सम्यक रूप से संस्थित किया जा
चुका हो तब सम्मन में विनिर्दिष्ट किए जाने वाली तारीख को जोकि वाद संस्थित किए
जाने से 30 दिन के भीतर उपसंजात होने और दावे का
उत्तर देने और प्रतिरक्षा का लिखित कथन करने के लिए समन प्रतिवादी को पेश किया
जाए।
परंतु जब प्रतिवादी वाद पत्र के उपस्थित
किए जाने पर ही उपसंजात हो जाए और वादी का दावा स्वीकार कर ले तब कोई ऐसा समन नहीं
निकाला जाएगा;
परंतु यह और की परंतु यह और प्रतिवादी नियत 30 दिन की अवधि के भीतर लिखित कथन प्रस्तुत करने में असफल रहता
है, तब न्यायालय लिखित कथन फायल करने के लिए
किसी और दिन परंतु जो सम्मन तामिल होने के 90 दिन से अधिक ना हो, जैसा न्यायालय निश्चित करें, अनुमति दे सकता है।
(2) वह प्रतिवादी जिसके नाम उपनियम 1 के अधीन समन निकाला गया है--
( क) स्वयं, अथवा
( ख) ऐसे प्लीडर द्वारा, जो सम्यक रुप से अनुदिष्ट हो और वाद से
संबंधित सभी सारवान प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ हो, अथवा
( ग) ऐसे प्लीडर द्वारा, जिसके साथ ऐसा कोई व्यक्ति है ऐसे सभी
प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ है, उपसंजात हो सकेगा।
(3) हर ऐसा सम्मन न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी
द्वारा, जो वह नियुक्त करें, हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की
मुद्रा लगी होगी।
नियम -2. सम्मनो से उपाबद्ध वाद पत्र की प्रति -
हर सम्मन के साथ एक वाद पत्र की प्रति संलग्न होगी।
नियम-3. न्यायालय प्रतिवादी या वादी को स्वयं
उपसंजात होने के लिए आदेश दे सकेगा --
(1) जहां न्यायालय के पास प्रतिवादी के स्वीय
उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां सम्मन द्वारा यह आदेश किया जाएगा कि समन मैं विनिर्दिष्ट तारीख को
वह न्यायालय में स्वयं उपसंजात हो।
(2) जहां न्यायालय के पास वादी की उसी दिन
स्वीय उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां वह ऐसी उपसंजाति लिए आदेश करेगा।
नियम-4. पक्षकारों को स्वयं उपसंजात होने के लिए
तब तक आदेश नहीं किया जाएगा जब तक कि वह किन्हीं निश्चित सीमा के भीतर निवासी ना
हो-- किसी भी पक्ष कार को स्वयं उपसंजात होने
के लिए केवल तभी आदेश किया जाएगा जब वह--
( क) न्यायालय की मामूली आरंभिक अधिकारिता
की स्थानीय सीमा के भीतर निवास करता है, अथवा
( ख) ऐसी सीमाओं के बाहर किंतु ऐसे स्थान
मैं निवास करता है जो न्याय सदन से 50 मील कम या( जहां उस स्थान के जहां वह निवास करता है और उस
स्थान के जहां न्यायालय स्थित है, बीच पंचषष्ठाश
दूरी तक रेल स्ट्रीमर संचार या अन्य स्थापित लोग परिवहन है वहां) 200 मील से कम दूर है।
नियम-5. समन या विवाद्यको के स्थरीकरण के लिए या
अंतिम निपटारे के लिए होगा-- न्यायालय सम्मन
निकालने के समय यह अवधारित करेगा की क्या वह केवल विवाद्यको के स्थरीकरण के लिए होगा या वाद के
अंतिम निपटारे के लिए होगा और सम्मन में तदनुसार निदेश अंतर्विष्ट होगा;
परंतु लघुवाद न्यायालय द्वारा सुने जाने वाले हर वाद में सम्मन वाद के अंतिम
निपटारे के लिए होगा।
नियम-6. प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए दिन नियत
किया जाना -- प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए नियम 1 के उपनियम 1 के द्वारा दिन, न्यायालय के चालू कारबार, प्रतिवादी के निवास स्थान और समन कि तामिल
के लिए आवश्यक समय के प्रति निर्देश से नियत किया जाएगा और वह दिन ऐसे नियत किया
जाएगा कि प्रतिवादी को ऐसे दिन उपसंजात पुणे और उत्तर देने को समर्थ होने के लिए
पर्याप्त समय मिल जाए।
नियम 7 - समन प्रतिवादी को यह आदेश देगा कि वह वे दस्तावेज पेश करें जिन पर वह निर्भर करता है -- उपसंजाति और उत्तर के लिए समन मैं प्रतिवादी को आदेश होगा कि वह अपने कब्जे या शक्ति में की ऐसी (आदेश 8 के नियम 1 क मैं विनिर्दिष्ट सब दस्तावेजों या उनकी प्रतियों) को पेश करें जिन पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है।
नियम 8. अंतिम निपटारे के लिए समन निकाले जाने पर
प्रतिवादी को यह निर्देश होगा कि वह अपने साक्ष्यों को पेश करें -- जहां समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए है
वहां उसमें प्रतिवादी को यह निर्देश भी होगा कि जींस
साक्ष्यों के साक्षी पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है उन
सबको उसी दिन पेश करें जो उसकी उपसंजाति के लिए नियत है।
समन की तामील --Service OfSummons
नियम 9. न्यायालय द्वारा समन परिदान -
(1) जहां प्रतिवादी न्यायालय जिसमें वाद
संस्थित किया है की अधिकारिता में रहता है अथवा उस क्षेत्र में उसका अभीकर्ता रहता है जिस को समन की तामील को स्वीकार
करने का अधिकार है अन्यथा न्यायालय निर्देश दें, उचित अधिकारी को उस द्वारा तामिल करने अथवा उसके किसी
अधीनस्थ अथवा न्यायालय द्वारा अनुमोदित किसी कूरियर सेवा द्वारा तामिल कराये।
(2) उचित अधिकारी, जिस न्यायालय में वाद संस्थित है उस
न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय का अधिकारी होगा, जहां वह उचित अधिकारी उसे सम्मन न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट
विधि से भेजा जाएगा।
(3) समन की तामील, उसकी प्रति के परिदान अथवा प्रसारण द्वारा संबोधित रसीदी
रजिस्ट्री डाक द्वारा प्रतिवादी अथवा उसके तामिल की प्राप्ति के लिए अधिकृत
अभिकर्ता को अथवा स्पीड पोस्ट द्वारा उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित कोरियर सेवा
द्वारा अथवा उपनियम 1 द्वारा निर्देशित न्यायालय द्वारा अथवा
प्रलेखों को भेजने के अन्य साधनो द्वारा( फेक्स संदेश अथवा इलेक्ट्रॉनिक्स मेल
सेवा सहित) जो भी उच्च न्यायालय के नियमों द्वारा निर्धारित हो, की जा सकती है।
परंतु इस उपनियम के अंतर्गत समन की तामील वादी के खर्चे पर होगी।
(4) उप नियम 1 के अंतर्गत किसी वाद के होते हुए, जहां वादी न्यायालय की अधिकारिता से बाहर
रहता है जहां की वाद संस्थापित है और न्यायालय निदेश दे वादी को समन की तामील
उपनियम में वर्णित सम्मन तामिल विधि के तरीके
द्वारा (संबोधित रसीदी रजिस्ट्री डाक को छोड़कर)कराये, नियम 21 के उपबंध लागू नहीं होंगे।
(5) जब अभिस्वीकृति या अन्य कोई रसीद
प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यत हो , न्यायालय को प्राप्त हो या समन को धारित
करने वाली डाक सामग्री जो न्यायालय को, जो कि किसी डाक कर्मचारी या अन्य किसी कूरियर सेवा द्वारा
अधिकृत व्यक्ति द्वारा इस तात्पर्य के पृष्ठांकन की प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता
द्वारा सम्मन को धारित करने वाली डाक सामग्री को लेने से इनकार किया गया है या
उपनियम 3 में विनिर्दिष्ट किसी विधि से भेजे गए
सम्मन को लेने से इनकार किया गया हो, जबकि वह उसे निविदित या परिषित किया गया हो, समन जारी करने वाला न्यायालय यह घोषित कर
सकेगा की समन सम्यक रूप से प्रतिवादी पर तामिल हो गया है।
नियम 9क. वादी को तामिल के लिए सम्मन देना --(1) न्यायालय उपनियम (9) के अंतर्गत समन की तामिल के साथ
प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए समन जारी करने की अनुमति देने और
ऐसे समन की तामील के लिए वादी को समन की सुपुर्दगी दे सकता है।
(2) ऐसे समन की तामील ऐसे वादी द्वारा
प्रतिवादी को व्यक्तिगत रूप से 1 प्रति न्यायाधीश
द्वारा अथवा ऐसे अधिकारी द्वारा जिसे न्यायालय इसके लिए नियुक्त करें न्यायालय की मोहर
सहित हस्ताक्षरित अथवा तामिल की ऐसी विधि जो नियम 9 के उपनियम (3) दर्शित की गई है परिंदान या निविदान करें।
(3) नियम 16 और 18 के प्रावधान के अनुसार इस नियम के
अंतर्गत व्यक्तिगत रूप से समन तामिल करने वाला व्यक्ति तामिल करने वाला अधिकारी ही
है।
(4) यदि समन निविदत्त होने पर अस्वीकार किया
जाता है अथवा सम्मन प्राप्त करने वाला समन की तामील कि अभीस्वीकृति पर हस्ताक्षर
करने से इंकार करता है अथवा किसी अन्य कारण से समन व्यक्तिगत रूप से तामिल नहीं हो
पाता है तो पक्षकार की प्रार्थना पर न्यायालय ऐसे समन को पुनः जारी कर सकता है और
न्यायालय जेसे प्रतिवादी को समन जारी करते हैं उसी विधि द्वारा समन जारी करेगा।
नियम 10.तामील का ढंग -- समन की तामील उसकी ऐसी प्रति के परिदान
यानी निविदान द्वारा की जाएगी जो न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा जो वह नियुक्त
करें, हस्ताक्षरित हो और जिस पर न्यायालय की
मुद्रा लगी हो।
नियम 11.अनेक प्रतिवादियों पर तामिल - अन्यथा विहित के सिवाय जहां एक से अधिक
प्रतिवादी है, वहां समन की तामील हर एक प्रतिवादी पर की
जाएगी।
नियम 12. जब साध्य हो तब समन की तामिल स्वयं
प्रतिवादी पर, अन्यथा उसकेअभिकर्ता पर की जाएगी -- जहां कहीं भी यह साध्य हो वहां तामिल
स्वयं प्रतिवादी पर की जाएगी किंतु यदि तामिल का प्रति ग्रहण करने के लिए सशक्त
उसका कोई अभिकर्ता है तो उस पर उसकी तामिल पर्याप्त होगी।
नियम 13. उस अभिकर्ता पर तामिल जिसके द्वारा
प्रतिवादी कारवार करता है--
(1) किसी कारबार या काम से संबंधित किसी ऐसे
वाद में जो किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध है, जो उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर
निवास नहीं करता है जिसने समन निकाला है, किसी भी ऐसे प्रबंधक या अभिकर्ता पर तामिल ठीक तामिल समझी
जाएगी जो तामिल के समय ऐसी सीमाओं के भीतर ऐसे व्यक्ति के लिए स्वयं ऐसा कारबार या
काम करता है।
(2) पोत के मास्टर के बारे में इस नियम के
प्रयोजन के लिए यह समझा जायेगा स्वामी या भाड़े पर लेने वाले व्यक्ति का अभिकर्ता
है।
नियम 14. स्थावर संपत्ति के वादों में भारसाधक
अभिकर्ता पर तामिल--
जहां स्थावर संपत्ति की बाबत अनुतोष या उसके प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर
अभीप्राप्त करने के वाद में तामिल स्वयं प्रतिवादी पर नहीं
की जा सकती और प्रतिवादी का उस तामिल का पतिग्रहण करने के लिए सशक्त कोई अभिकर्ता
मानगो नहीं है वहां तामिल प्रतिवादी के किसी ऐसे अभिकर्ता पर की जा सकेगी जो उस
संपत्ति का भारसाधक है।
नियम 15. जहां तामिल प्रतिवादी के कुटुंब के
व्यस्क सदस्य पर की जा सकेगी--
जहां किसी वाद में प्रतिवादी अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है जब उस
पर समन की तामील उसके निवास स्थान पर की जानी है और युक्ति युक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाया जाने की संभावना नहीं है
और समन की तामिल का उसकी ओर से प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त उसका कोई अभिकर्ता
नहीं है वहां तामिल प्रतिवादी के कुटुम्ब के ऐसे किसी वयस्क सदस्य पर, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, की जा सकेगी जो उसके साथ निवास कर रहा
है।
स्पष्टीकरण- इस नियम के अर्थ में सेवक कुटुम का सदस्य नहीं है।
नियम 16. वह व्यक्ति जिस पर तामिल की गईं हैं, अभीस्वीकृति हस्ताक्षरित करेगा--
जहां तामिल करने वाला अधिकारी समन की प्रति स्वयं प्रतिवादी को, या उसके निर्मित अभिकर्ता को या किसी अन्य
व्यक्ति को, परिदत्त करता है या निवेदित करता है वहां
जिस व्यक्ति को प्रति ऐसे परिदत्त या निविदित की गई है उससे यह अपेक्षा करेगा कि
वह वह समन पर पृष्ठांकित तामिल की अभिस्वीकृति पर अपने हस्ताक्षर करें।
नियम 17. जब प्रतिवादी तामिल का प्रतिग्रहण करने
से इंकार करें या न पाया जाए तब प्रक्रिया--
जहां प्रतिवादी या उसका अभिकर्ता या उपरोक्त जैसा अन्य व्यक्ति अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इंकार
करता है, या जहां तामिल करने वाला अधिकारी सम्यक
और युक्तियुक्त तत्परता बरतने के पश्चात ऐसे
प्रतिवादी को न पा सके (जो अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है, जब उस पर समन की तामील उसके निवास स्थान
पर की जानी है और युक्तियुक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाया जाने की
संभावना नहीं है) और ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो समन की तामील का प्रतिग्रहण उसकी
ओर से करने के लिए सशक्त है और ना कोई ऐसा व्यक्ति है जिस पर तामिल की जा सके वहां
तामिल करने वाला अधिकारी उस ग्रह के, जिसमें प्रतिवादी मामूली तौर से निवास करता है या कारोबार
करता है या अभी लाभ के लिए स्वयं काम करता है, बाहरी द्वार पर या किसी अन्य सहज दृश्य भाग पर समन की एक
प्रति लगाएगा और तब वह मूल प्रति को उस पर पृष्ठांकित या उससे उपाबन्ध ऐसी रिपोर्ट
के साथ, जिसमें यह कथित होगा कि उसने प्रति को
ऐसे लगा दिया है और वह कौन सी परिस्थितियां थी जिनमें उसने ऐसा किया, कथित होगी और जिसमें उस व्यक्ति का( जो
कोई हो) नाम और पता कथित होगा जिसने ग्रह पहचाना था और जिसकी उपस्थिति में प्रति
लगाई गई थी, उस न्यायालय को लौटाएगा जिसने समन निकाला था।
नियम 18. तामिल करने के समय और रीति का पष्ठाकन--
तामिल करने वाला अधिकारी उन सभी दशाओं में जिनमें समन की तामील नियम 16 के अधीन की गई है उस समय को जब और उस
रिति को जिसमें समन की तामील की गई थी और यदि ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने उस व्यक्ति
को, जिस पर तामिल की गई है, पहचानता था और जो समन के परिदान या
निविदान का साक्षी रहा था तो उसका नाम और पता कथित करने वाली विवरणी मूल समन पर
पृष्ठांकित करेगा या कराएगा या मूल समन से उपाबंध करेगा या कराएगा।
नियम 19. तामिल करने वाले अधिकारी की परीक्षा--
जहां समन नियम 17 के अधीन लौटा दिया गया है वहां तामिल
करने वाले अधिकारी की परीक्षा उसकी अपनी कार्यवाहियों की बाबत न्यायालय स्वयं या
किसी अन्य न्यायालय द्वारा उस दशा में करेगा या कराएगा जिसमें उस नीम के अध्ययन
विवरणी तामिल करने वाले अधिकारी द्वारा शपथ पत्र द्वारा सत्यापित नहीं की गई है और
उस दशा में कर सकेगा या करा सकेगा जिसमें वह ऐसे सत्यापित की गई है और उस मामले
में ऐसी अतिरिक्त जांच कर सकेगा तो वह ठीक समझे और या तो वह घोषित करेगा कि समन की
तामील सम्यक रूप से हो गई है या ऐसी तामिल का आदेश करेगा जो ठीक समझे।
परंतु जहां मामले की परिस्थितियो मैं न्यायालय इसे अनावश्यक समझता है वहां इस
उपनियम की कोई बात न्यायालय से यह अपेक्षा नहीं करेगी वह रजिस्टर्ड डॉक द्वारा तामिल
करने के लिए समय निकालें।
नियम 20. प्रतिस्थापित तामिल--
(1) जहां न्यायालय का समाधान हो जाता है कि
यह विश्वास करने के लिए कारण है कि प्रतिवादी इस प्रयोजन से कि उस पर तामिल ना
होने पाए, सामने आने से बचता है या समन की तामील
मामूली प्रकार से किसी अन्य कारण से नहीं की जा सकती है वहां न्यायालय आदेश दे
सकेगा कि समन की तामील उसकी एक प्रति न्याय सदन के किसी सहज दृश्य स्थान में लगाकर
और( ऐसा कोई ग्रह हो) तो उस ग्रह के, इसमें प्रतिवादी का अंतिम बार निवास करना या कारबार करना या
अभी लाभ के लिए स्वयं काम करना ज्ञात है, किसी सहज दृश्य भाग पर भी लगा कर या ऐसे ही रिति से, जो न्यायालय ठीक समझे, की जाए।
(1क) जहां उप नियम 1 के अधीन कार्य करने वाला न्यायालय समाचार
पत्र में विज्ञापन द्वारा तामिल का आदेश करता है वहां वह समाचार पत्र ऐसा दैनिक
समाचार पत्र होगा जिसका परिचालन उस स्थानीय क्षेत्र में होता है, जिसमें प्रतिवादी का अंतिम बार वास्तव
में और स्वेच्छा से निवास करना या कारवार करना या अभी लाभ के लिए स्वयं का काम
करना ज्ञात है।
(2) प्रतिस्थापित तामिल का प्रभाव- न्यायालय
के आदेश द्वारा प्रतिस्थापित तामिल इस प्रकार प्रभावी होगी माना वह स्वयं से
प्रतिवादी पर की गई हो।
(3) जहां तामिल प्रतिस्थापित की गई हो वहां
उपसंजाति के लिए समय का नियत किया जाना-- जहां तामिल न्यायालय के आदेश द्वारा
प्रतिस्थापित की गई है वहां न्यायालय प्रतिवादी को उपसंजाति के लिए ऐसा समय नियत
करेगा जो उस मामले में अपेक्षित हो।
नियम 20क. निरसित
नियम 21. जहां प्रतिवादी किसी अन्य न्यायालय की
अधिकारिता के भितर निवास करता है वहां समन की तामील -- समन को वह न्यायालय, जिसने उसे निकाला है, अपने अधिकारियों में से किसी द्वारा (या
डाक द्वारा ऐसी कूरियर सेवा जिसे उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो, या फेक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक्स मेल
सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित
करें) द्वारा राज्य के भीतर या बाहर ऐसे किसी न्यायालय को भेज सकेगा( जो उच्च
न्यायालय ना हो) जिसकी उस स्थान में अधिकारिता है जहां प्रतिवादी निवास करता है।
नियम 22. बाहर के न्यायालयों द्वारा निकाले गए समन
की प्रेसिडेंसी नगरो में तामिल-- जहां कोलकाता मद्रास और मुंबई नगरों की सीमाओं से परे
स्थापित किसी न्यायालय द्वारा निकाले गए समन की तामिल ऐसी सीमाओ मैं से किसी के
भीतर की जानी है वहां वह लघुवाद न्यायालय को भेजा जाएगा जिसकी अधिकारिता के भीतर
उसकी तामिल की जानी है।
नियम 23. जिस न्यायालय को समन भेजा गया है-- वह न्यायालय, जिसको समन नियम 21 या 22 के अधीन भेजा गया है, उसकी प्राप्ति पर इस भांति असर होगा मानो वह उसी न्यायालय
द्वारा निकाला गया था और तब वह उससे संबंधित अपनी कार्यवाहियों के अभिलेख के( यदि
कोई हो) सहित समन उसे निकालने वाले न्यायालय को वापस भेज
देगा।
नियम 24. कारागार में प्रतिवादी पर तामिल-- जहां प्रतिवादी कारागार में परिरुद्ध है वहां समन कारागार के भारसाधक अधिकारी
को प्रतिवादी पर तामिल के लिए परिदत्त किया जाएगा (या डाक द्वारा ऐसी कूरियर सेवा
जिसे उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो या फैक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक मेंल
सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित
करें) भेजा जाएगा।
नियम 25. वहां तामिल, जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता
है और उसका कोई अभिकर्ता नहीं है-- जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता है और उसका भारत
में ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो तामिल प्रतिगृहीत करने के लिए सशक्त है वहां, यदि ऐसे स्थान और उस स्थान के बीच जहां न्यायालय स्थित है, डाक द्वारा संचार है तो, समन उस प्रतिवादी को उस स्थान के पत्ते
पर, जहां वह निवास कर रहा है, (या डाक द्वारा यार ऐसी कुरियर सेवा जिसे
उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो या फैक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा
जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित करें) भेजा जाएगा।
परंतु जहां ऐसा प्रतिवादी (बांग्लादेश या
पाकिस्तान निवास करता है) वहां समन उसकी एक प्रति के सहित, प्रतिवादी पर तामिल के लिए उस देश के
किसी ऐसे न्यायालय को भेजा जा सकेगा (जो उच्च न्यायालय ना हो) जिसकी उस स्थान में
अधिकारिता है जहां प्रतिवादी निवास करता है;
परंतु यह और की जाए ऐसा कोई प्रतिवादी
(बांग्लादेश या पाकिस्तान में अधिकारी है, जो यथास्थिति, बांग्लादेश या पाकिस्तान की सेना, नौसेना या वायु सेना का नहीं है) या उस
देश की रेल कंपनी या स्थानीय प्राधिकारी का सेवक है वहां समन उसकी एक प्रति के
सहित, उस प्रतिवादी पर तामिल के लिए उस देश के
ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी को भेजा जा सकेगा जिसे केंद्रीय सरकार राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा, उस निमित्त विनिर्दिष्ट करें।
नियम 26. राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय की मार्फत विदेशी राज्य क्षेत्र में तामिल-- जहां--
( क) केंद्रीय सरकार में निहित किसी वेदशिक
अधिकारिता के प्रयोग में, किसी ऐसे विदेशी राज्य क्षेत्र में, जिसमें प्रतिवादी वास्तव में और स्वेच्छा
से निवास करता है, कारोबार करता है या अभी लाभ के लिए स्वयं
काम करता है, ऐसा राजनीतिक अभिकर्ता नियुक्त किया गया
है या न्यायालय स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है जिसे उस समन की तामील करने
की शक्ति है, जो इस संहिता के अधीन न्यायालय द्वारा
निकाला जाए, अथवा
( ख) केंद्रीय सरकार ने किसी ऐसे न्यायालय
के बारे में जो किसी ऐसे राज्य क्षेत्र में स्थित है और पूर्वोक्त जैसी किसी
अधिकारिता के प्रयोग में स्थापित नहीं किया गया या चालू नहीं रखा गया है. राजपत्र
में अधिसूचना द्वारा घोषणा की है कि न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन निकाले गए
समन की ऐसे न्यायालय द्वारा तामिल विधिमान्य तामिल समझ जाएगी,
वहां समन से राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय को प्रतिवादी पर तामिल किए जाने के
प्रयोजन के लिए डाक द्वारा या अन्यथा या यदि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार
निर्देश दिया जाए तो उस सरकार के विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रालय की मार्फत या
ऐसे रीति से जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, भेजा जा सकेगा और यदि राजनीतिक अभिकर्ता
या न्यायालय समन को ऐसे राजनीतिक अभिकर्ता द्वारा या उस न्यायालय के न्यायाधीश या
अन्य प्राधिकारी द्वारा किए गए तात्पर्यत इस आशय के पष्ठानकन के सहित लौटा देता है
की समन की तामील प्रतिवादी पर इसमें इसके पूर्व निर्दिष्ट रिति से की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन का
साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 26( क). विदेशों के अधिकारियों को समन का
भेजा जाना-- जहां केंद्रीय सरकार ने राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा किसी विदेशी राज्य क्षेत्र के बारे में यह घोषणा की है कि उस
विदेशी राज्य क्षेत्र में वास्तव में स्वेच्छा से निवास करने वाले या कारोबार करने
वाले या अभीलाभ के लिए स्वयं काम करने वाले प्रतिवादियों पर तामिल किए जाने वाले
समन विदेशी राज्य क्षेत्र की सरकार के ऐसे अधिकारी को जो केंद्रीय सरकार द्वारा
विनिर्दिष्ट किया जाए, भेजे जा सकेंगे वहां समन ऐसे अधिकारी को
भारत सरकार के विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रालय की मार्फत या ऐसे अन्य रीति से
जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, भेजे जा सकेंगे और यदि ऐसा अधिकारी किसी ऐसे समन को उसके
द्वारा किए गए तात्पर्यत इस पृष्ठांकन के सहित लौटा देता है कि समन की तामील प्रतिवादी
पर की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन तामिल का साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 27. सिविल लोक अधिकारी पर या रेल कंपनी या
स्थानीय प्राधिकारी के सेवक पर तामिल-- जहां प्रतिवादी लोक अधिकारी है (जो भारतीय सेना, नौसेना या वायु सेना का नहीं है) या रेल
कंपनी या स्थानीय प्राधिकारी का सेवक है वहां, यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि समन की तामील अत्यंत
सुविधापूर्वक एसे की जा सकती है तो वह उसे उसकी प्रति के सहित जो प्रतिवादी द्वारा
रख ली जानी है, उस कार्यालय के प्रधान को जिसमें
प्रतिवादी नियोजित है, प्रतिवादी पर तामिल के लिए भेज सकेगा।
नियम 28. सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों पर तामिल-- जहां प्रतिवादी सैनिक, नौसैनिक या वायु सैनिक है वहां न्यायालय
समन को, उसकी उस प्रति के सहित जो प्रतिवादी
द्वारा रख ली जानी है, उसके कमान ऑफिसर को तामिल के लिए भेजेगा।
नियम 29. उस व्यक्ति का कर्तव्य जिस को समन तामील
के लिए परिदत्त किया जाए याभेजा जाए -(1) जहां समन तामील के लिए किसी व्यक्ति को नियम 24, नियम 27, या नियम 28 के अधीन परिदत्त
किया गया है या भेजा गया है वहां ऐसा व्यक्ति, उसकी तामिल, यदि संभव हो, करने के लिए और अपने हस्ताक्षर करके प्रतिवादी की लिखित
अभिस्वीकृति के साथ लौटाने के लिए आबद्ध होगा और ऐसे हस्ताक्षर तामिल के साक्ष्य
समझा जाएंगे।
(2) जहां किसी कारण से तामिल असंभव हो वहां
समन ऐसे कारण के और तामिल कराने के लिए की गई कार्यवाहियो के पूर्ण कथन के साथ
न्यायालय को लौटा दिया जाएगा और ऐसा कथन तामिल ना होने का साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 30. समन के बदले पत्र का प्रतिस्थापित किया
जाना--
(1) इसमें इसके पूर्व अंतर्विष्ट किसी बात के
होते हुए भी, जहां न्यायालय की राय है कि प्रतिवादी
ऐसी पंक्ति का है जो उसे इस बात का हकदार बनाती है की उसके प्रति ऐसा समान पूर्ण
बर्ताव किया जाए वहां वह समन के बदले
ऐसा पत्र, प्रतिस्थापित कर सकेगा जो न्यायाधीश द्वारा
या ऐसे अधिकारी द्वारा, जो वह इस निमित्त नियुक्त करें, हस्ताक्षरित होगा।
(2) उप नियम (1 )के अधीन प्रतिस्थापित पत्र में वह सब विशिष्टियां
अंतर्विष्ट होगी जिनका समन में कथित होना अपेक्षित है और उपनियम( 3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए
वह हर तरह से समन माना जाएगा।
(3) ऐसा प्रतिस्थापित पत्र प्रतिवादी को डाक
द्वारा या न्यायालय द्वारा चुने गए विशेष संदेश वाहक द्वारा या किसी ऐसी अन्य रीति
से जो न्यायालय ठीक समझे, भेजा जा सकेगा और जहां प्रतिवादी का ऐसा अभिकर्ता हो जो तामिल
प्रतिगृहीत करने के लिए सशक्त है वहां वह पत्र ऐसे अभिकर्ता को परिदत्त किया जा
सकेगा या भेजा जा सकेगा।
समन की तामील संबंधी सिविल प्रक्रिया
संहिता में उपरोक्त उपबंध आदेश 5 में दिए गए हैं।
सिविल प्रक्रिया संहिता संशोधन 2002 के जरिए सिविल
वादों के शीघ्र निस्तारण हेतु संहिता में संशोधन किए गए हैं। यह संशोधन आदेश पांच
मैं भी किए गए हैं। संशोधन संहिता के अनुसार न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को जो समन
जारी किया जाता है वह समन 30 दिवस में प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित
होकर अपना लिखित कथन न्यायालय में प्रस्तुत करें इस आशय का समन जारी किया जाता है
लेकिन यदि प्रतिवादी 30 दिन की अवधि में लिखित कथन प्रस्तुत करने
में असफल रहता है न्यायालय द्वारा कारण अभिलिखित करते हुए इस अवधि में वृद्धि की
जा सकेगी जो किसी भी दशा में 90 दिन से अधिक की
नहीं होगी। प्रत्येक समन के साथ वाद पत्र की एक प्रति संलग्न किया जाना होगा। समनो
का निकाला जाना और उनके तामिल की रिति के संबंधित उपबंधों का न्यायिक निर्णय सहित
विवेचन कर रहे हैं जिससे उपरोक्त उपबंधों को समझने में आसानी रहेगी।
महत्वपूर्ण निर्णय --
(1) एक मामले में कोलकाता उच्च न्यायालय
द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि समन पर उसे जारी करने वाले न्यायाधीश या अन्य
किसी ऐसे पदाधिकारी के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है जो न्यायालय द्वारा इस निमित्त
नियुक्त किया गया हो।
1966 ए आई आर (कोलकाता) 438
(2) आदेश 5 नियम 20 एवं हिंदू विवाह
अधिनियम धारा 13 - समन की प्रतिस्थापित तामील-- यदि समन की तामील
समुचित ना हो तो न्यायालय को सामान्य तौर पर दूसरी तामिल हैतू निर्देश दे देना
चाहिए-- तामिल लौटाई देखने पर न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा कि पति तामिल
से बच रहा था-- अभिनिर्धारित- न्यायालय अपने स्वयं के इस समाधान के अभाव में कि
पति तामिल से बच रहा है, आदेश 5 नियम 20 तहत प्रतिस्थापित तामिल
का निर्देश नहीं दे सकता।
2009 (2) DNJ
(SC) 3070
(3) आदेश 5 नियम 2 - प्रत्येक समन के
साथ वाद पत्र की प्रति संलग्न किया जाना आवश्यक है, यह एक आज्ञापक व्यवस्था है। यदि समन के साथ वाद पत्र की
प्रति नहीं भेजी जाती है तो ऐसे समन की तामिल
विधिमान्य नहीं मानी जा सकती है। मामले में पारित एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने
योग्य है।
1989 ए आई आर (मध्य प्रदेश) 330
(4) आदेश 5 नियम 6-- प्रतिवादी को
उपसंजाति के लिए दिन नियत किया जाना - समन
रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा गया जो प्रतिवादी पर 19 मई 1988 को तामिल हुआ तथा उपसंजाति के लिए दिनांक
21 मई 1988 थी- मुंबई से उपस्थित होना संभव नहीं-- पर्याप्त समय नहीं
दिया गया-- विचारण न्यायालय को सुनवाई स्थगित कर अगली तिथि को सूचना प्रतिवादी को
संसूचित की जानी चाहिए थी-- आज्ञापक प्रावधानों की पालना नहीं-- सम्मन सम्यक रूप
से तामिल नहीं हुआ एवं परिसीमा जानकारी के दिनांक से प्रारंभ होगी तथा उच्च
न्यायालय के आवेदन खारिज करने में अवैधता की है।
1998 (1)
DNJ (Raj.)146
(5) एक मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अभी
निर्धारित किया है कि समन में विनिर्दिष्ट वाद की सुनवाई कि दिनांक यदि ऐसे दिन पड़ती है जिस दिन न्यायालय का
अवकाश हो, ऐसा समन समुचित अथवा यथा विधि नहीं माना
जाएगा।
1964 ए आई आर (मध्य प्रदेश) 261
(6) समन की तामील के संबंध में दिल्ली उच्च
न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि--
(1) समन की तामील व्यक्तिगत प्रतिवादी पर
कराई जानी चाहिए।
(2) जहां एक से अधिक प्रतिवादी हो, वहां प्रत्येक प्रतिवादी पर व्यक्तिशः
एवं पृथकतया तामिल कराई जानी चाहिए।
(3) जहां प्रतिवादी नहीं मिले और युक्ति
युक्त समय के भीतर जिसके मिलने की संभावना नहीं हो वहां समन की तामील उसके परिवार
के किसी व्यस्क सदस्य पर कराई जा सकती है।
(4) समन की तामील कराने वाले अधिकारी द्वारा
समन पर तामिल का समय एवं रिति का पष्ठाकन किया जाना चाहिए।
(5) प्रतिस्थापित तामिल का आदेश तब तक नहीं
दिया जाना चाहिए जब तक कि पूर्व में जारी समन लौट कर ना आ जाए।
2001 ए आई आर (दिल्ली) 272
(7) आदेश 5 नियम 20-- प्रतिस्थापित तामिल
कब कराई जावे-- जब सामान्य रीती से तामिल नहीं कराई जा सके तब प्रतिस्थापित तामिल
का मार्ग ही उपलब्ध रह जाता है-- ऐसी तामिल कराने के पूर्व परिस्थितियों के आधार
पर न्यायालय को संतुष्ट हो जाना चाहिए-- अभिनिर्धारित-- तामिल अस्वीकार करने की
रिपोर्ट के कारण जो प्रतिस्थापित तामिल कराई गई है वह वैध है।
1996 (2)
DNJ (Raj.) 580
(8) कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक मामले में
अभिनिर्धारित किया है कि जहां सह प्रतिवादी के रूप में पति और पत्नी दोनों के नाम
समन जारी किए गए हो, लेकिन पत्नी के मकान के अंदर होने के
कारण उस पर तामिल नहीं हो पाई हो और पति ने समन लेने से इंकार कर दिया हो, वहां उनके मकान के बाहर समन चिपकाकर की
गई तामिल को उचित माना गया है।
1977 ए आई आर (कोलकाता) 372
(9) यदि रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया समन इस
पृष्ठांकन के साथ कि " पाने वाला लेने से इंकार करता है" लौटकर आता है और पोस्टमैन को
साक्ष्य में पेश नहीं किया जाता है लेकिन एक पक्षीय कार्यवाही को अपास्त करने के
लिए पेश किए गए आवेदन में दिया गया पत्ता समन पर अंकित पत्ते से मिलता है तो यह
उपधारणा की जाएगी कि समन वाला लिफाफा प्रतिवादी को निवेदित किया गया और उसने उसे
लेने से इंकार कर दिया।
1982 ए आई आर (गुजरात) 235
(10) समाचार पत्र में प्रकाशन के माध्यम से
समन की तामील को विधिमान्य मान लिया गया है। ऐसी तामिल के आधार पर मामले का एक
पक्षीय निस्तारण किया जा सकता है।
1989 ए आई आर (इलाहाबाद) 93
(11) आदेश 5 - समन की तामिल - सहवासी पत्नी द्वारा नोटिस प्राप्त किया
गया-- निर्णित, तामिल पूर्ण है।
2013 (1)
DNJ (Raj) 151
(12) आदेश 5 नियम 17-- चस्पान्दगी से
नोटिस का तामिल करना-- नोटीस में सही पता नहीं दर्शाया-- 2 गवाहों द्वारा जिनके नाम व पते लेखबद्ध/
प्रकट करने चाहिए, तामिल समर्थित होने चाहिए- नोटिस की उचित
तामिल नहीं हुई।
2013 (1)
DNJ (Raj) 351
(13) आदेश 5 नियम 15; आदेश 9 नियम 9-- एक पक्षी कार्रवाई को अपास्त करने हेतु आवेदन-- कार्यवाही
में भाग लेने की अनुमति दी लेकिन जवाब और दस्तावेज पेश करने हेतु अवसर नहीं दिया--
नोटिस प्रार्थिया के पुत्र पर तामिल किया-- उचित तामिल नहीं-निर्णित, आदेश उपान्तरित किया तथा जवाब एवं दस्तावेज पेश करने की
अनुमति दी।
2011 (1) DNJ
(Raj) 152
(14) यदि समन की तामील किसी निगम पर की जानी
हो तो ऐसे समन की एक प्रति डाक द्वारा या वाहक द्वारा उसके पंजीकृत कार्यालय पर या
ऐसे किसी स्थान पर जहां की वह निगम कारोबार करता है भेज दी जाएगी।
1961
ए आई
आर (सुप्रीमकोर्ट)1214
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समनों का निकला जाना -आदेश 5 सी पी सी
नियम 1 - समन -
(1) जब वाद सम्यक रूप से संस्थित किया जा
चुका हो तब सम्मन में विनिर्दिष्ट किए जाने वाली तारीख को जोकि वाद संस्थित किए
जाने से 30 दिन के भीतर उपसंजात होने और दावे का
उत्तर देने और प्रतिरक्षा का लिखित कथन करने के लिए समन प्रतिवादी को पेश किया
जाए।
परंतु जब प्रतिवादी वाद पत्र के उपस्थित
किए जाने पर ही उपसंजात हो जाए और वादी का दावा स्वीकार कर ले तब कोई ऐसा समन नहीं
निकाला जाएगा;
परंतु यह और की परंतु यह और प्रतिवादी नियत 30 दिन की अवधि के भीतर लिखित कथन प्रस्तुत करने में असफल रहता
है, तब न्यायालय लिखित कथन फायल करने के लिए
किसी और दिन परंतु जो सम्मन तामिल होने के 90 दिन से अधिक ना हो, जैसा न्यायालय निश्चित करें, अनुमति दे सकता है।
(2) वह प्रतिवादी जिसके नाम उपनियम 1 के अधीन समन निकाला गया है--
( क) स्वयं, अथवा
( ख) ऐसे प्लीडर द्वारा, जो सम्यक रुप से अनुदिष्ट हो और वाद से
संबंधित सभी सारवान प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ हो, अथवा
( ग) ऐसे प्लीडर द्वारा, जिसके साथ ऐसा कोई व्यक्ति है ऐसे सभी
प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ है, उपसंजात हो सकेगा।
(3) हर ऐसा सम्मन न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी
द्वारा, जो वह नियुक्त करें, हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की
मुद्रा लगी होगी।
नियम -2. सम्मनो से उपाबद्ध वाद पत्र की प्रति -
हर सम्मन के साथ एक वाद पत्र की प्रति संलग्न होगी।
नियम-3. न्यायालय प्रतिवादी या वादी को स्वयं
उपसंजात होने के लिए आदेश दे सकेगा --
(1) जहां न्यायालय के पास प्रतिवादी के स्वीय
उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां सम्मन द्वारा यह आदेश किया जाएगा कि समन मैं विनिर्दिष्ट तारीख को
वह न्यायालय में स्वयं उपसंजात हो।
(2) जहां न्यायालय के पास वादी की उसी दिन
स्वीय उपसंजाति अपेक्षित करने के लिए कारण हो वहां वह ऐसी उपसंजाति लिए आदेश करेगा।
नियम-4. पक्षकारों को स्वयं उपसंजात होने के लिए
तब तक आदेश नहीं किया जाएगा जब तक कि वह किन्हीं निश्चित सीमा के भीतर निवासी ना
हो-- किसी भी पक्ष कार को स्वयं उपसंजात होने
के लिए केवल तभी आदेश किया जाएगा जब वह--
( क) न्यायालय की मामूली आरंभिक अधिकारिता
की स्थानीय सीमा के भीतर निवास करता है, अथवा
( ख) ऐसी सीमाओं के बाहर किंतु ऐसे स्थान
मैं निवास करता है जो न्याय सदन से 50 मील कम या( जहां उस स्थान के जहां वह निवास करता है और उस
स्थान के जहां न्यायालय स्थित है, बीच पंचषष्ठाश
दूरी तक रेल स्ट्रीमर संचार या अन्य स्थापित लोग परिवहन है वहां) 200 मील से कम दूर है।
नियम-5. समन या विवाद्यको के स्थरीकरण के लिए या
अंतिम निपटारे के लिए होगा-- न्यायालय सम्मन
निकालने के समय यह अवधारित करेगा की क्या वह केवल विवाद्यको के स्थरीकरण के लिए होगा या वाद के
अंतिम निपटारे के लिए होगा और सम्मन में तदनुसार निदेश अंतर्विष्ट होगा;
परंतु लघुवाद न्यायालय द्वारा सुने जाने वाले हर वाद में सम्मन वाद के अंतिम
निपटारे के लिए होगा।
नियम-6. प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए दिन नियत
किया जाना -- प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए नियम 1 के उपनियम 1 के द्वारा दिन, न्यायालय के चालू कारबार, प्रतिवादी के निवास स्थान और समन कि तामिल
के लिए आवश्यक समय के प्रति निर्देश से नियत किया जाएगा और वह दिन ऐसे नियत किया
जाएगा कि प्रतिवादी को ऐसे दिन उपसंजात पुणे और उत्तर देने को समर्थ होने के लिए
पर्याप्त समय मिल जाए।
नियम 7 - समन प्रतिवादी को यह आदेश देगा कि वह वे दस्तावेज पेश करें जिन पर वह निर्भर करता है -- उपसंजाति और उत्तर के लिए समन मैं प्रतिवादी को आदेश होगा कि वह अपने कब्जे या शक्ति में की ऐसी (आदेश 8 के नियम 1 क मैं विनिर्दिष्ट सब दस्तावेजों या उनकी प्रतियों) को पेश करें जिन पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है।
नियम 8. अंतिम निपटारे के लिए समन निकाले जाने पर प्रतिवादी को यह निर्देश होगा कि वह अपने साक्ष्यों को पेश करें -- जहां समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए है वहां उसमें प्रतिवादी को यह निर्देश भी होगा कि जींस साक्ष्यों के साक्षी पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है उन सबको उसी दिन पेश करें जो उसकी उपसंजाति के लिए नियत है।
नियम 7 - समन प्रतिवादी को यह आदेश देगा कि वह वे दस्तावेज पेश करें जिन पर वह निर्भर करता है -- उपसंजाति और उत्तर के लिए समन मैं प्रतिवादी को आदेश होगा कि वह अपने कब्जे या शक्ति में की ऐसी (आदेश 8 के नियम 1 क मैं विनिर्दिष्ट सब दस्तावेजों या उनकी प्रतियों) को पेश करें जिन पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है।
नियम 8. अंतिम निपटारे के लिए समन निकाले जाने पर प्रतिवादी को यह निर्देश होगा कि वह अपने साक्ष्यों को पेश करें -- जहां समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए है वहां उसमें प्रतिवादी को यह निर्देश भी होगा कि जींस साक्ष्यों के साक्षी पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है उन सबको उसी दिन पेश करें जो उसकी उपसंजाति के लिए नियत है।
समन की तामील --Service OfSummons
नियम 9. न्यायालय द्वारा समन परिदान -
(1) जहां प्रतिवादी न्यायालय जिसमें वाद
संस्थित किया है की अधिकारिता में रहता है अथवा उस क्षेत्र में उसका अभीकर्ता रहता है जिस को समन की तामील को स्वीकार
करने का अधिकार है अन्यथा न्यायालय निर्देश दें, उचित अधिकारी को उस द्वारा तामिल करने अथवा उसके किसी
अधीनस्थ अथवा न्यायालय द्वारा अनुमोदित किसी कूरियर सेवा द्वारा तामिल कराये।
(2) उचित अधिकारी, जिस न्यायालय में वाद संस्थित है उस
न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय का अधिकारी होगा, जहां वह उचित अधिकारी उसे सम्मन न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट
विधि से भेजा जाएगा।
(3) समन की तामील, उसकी प्रति के परिदान अथवा प्रसारण द्वारा संबोधित रसीदी
रजिस्ट्री डाक द्वारा प्रतिवादी अथवा उसके तामिल की प्राप्ति के लिए अधिकृत
अभिकर्ता को अथवा स्पीड पोस्ट द्वारा उच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित कोरियर सेवा
द्वारा अथवा उपनियम 1 द्वारा निर्देशित न्यायालय द्वारा अथवा
प्रलेखों को भेजने के अन्य साधनो द्वारा( फेक्स संदेश अथवा इलेक्ट्रॉनिक्स मेल
सेवा सहित) जो भी उच्च न्यायालय के नियमों द्वारा निर्धारित हो, की जा सकती है।
परंतु इस उपनियम के अंतर्गत समन की तामील वादी के खर्चे पर होगी।
(4) उप नियम 1 के अंतर्गत किसी वाद के होते हुए, जहां वादी न्यायालय की अधिकारिता से बाहर
रहता है जहां की वाद संस्थापित है और न्यायालय निदेश दे वादी को समन की तामील
उपनियम में वर्णित सम्मन तामिल विधि के तरीके
द्वारा (संबोधित रसीदी रजिस्ट्री डाक को छोड़कर)कराये, नियम 21 के उपबंध लागू नहीं होंगे।
(5) जब अभिस्वीकृति या अन्य कोई रसीद
प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यत हो , न्यायालय को प्राप्त हो या समन को धारित
करने वाली डाक सामग्री जो न्यायालय को, जो कि किसी डाक कर्मचारी या अन्य किसी कूरियर सेवा द्वारा
अधिकृत व्यक्ति द्वारा इस तात्पर्य के पृष्ठांकन की प्रतिवादी या उसके अभिकर्ता
द्वारा सम्मन को धारित करने वाली डाक सामग्री को लेने से इनकार किया गया है या
उपनियम 3 में विनिर्दिष्ट किसी विधि से भेजे गए
सम्मन को लेने से इनकार किया गया हो, जबकि वह उसे निविदित या परिषित किया गया हो, समन जारी करने वाला न्यायालय यह घोषित कर
सकेगा की समन सम्यक रूप से प्रतिवादी पर तामिल हो गया है।
नियम 9क. वादी को तामिल के लिए सम्मन देना --(1) न्यायालय उपनियम (9) के अंतर्गत समन की तामिल के साथ
प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए समन जारी करने की अनुमति देने और
ऐसे समन की तामील के लिए वादी को समन की सुपुर्दगी दे सकता है।
(2) ऐसे समन की तामील ऐसे वादी द्वारा
प्रतिवादी को व्यक्तिगत रूप से 1 प्रति न्यायाधीश
द्वारा अथवा ऐसे अधिकारी द्वारा जिसे न्यायालय इसके लिए नियुक्त करें न्यायालय की मोहर
सहित हस्ताक्षरित अथवा तामिल की ऐसी विधि जो नियम 9 के उपनियम (3) दर्शित की गई है परिंदान या निविदान करें।
(3) नियम 16 और 18 के प्रावधान के अनुसार इस नियम के
अंतर्गत व्यक्तिगत रूप से समन तामिल करने वाला व्यक्ति तामिल करने वाला अधिकारी ही
है।
(4) यदि समन निविदत्त होने पर अस्वीकार किया
जाता है अथवा सम्मन प्राप्त करने वाला समन की तामील कि अभीस्वीकृति पर हस्ताक्षर
करने से इंकार करता है अथवा किसी अन्य कारण से समन व्यक्तिगत रूप से तामिल नहीं हो
पाता है तो पक्षकार की प्रार्थना पर न्यायालय ऐसे समन को पुनः जारी कर सकता है और
न्यायालय जेसे प्रतिवादी को समन जारी करते हैं उसी विधि द्वारा समन जारी करेगा।
नियम 10.तामील का ढंग -- समन की तामील उसकी ऐसी प्रति के परिदान
यानी निविदान द्वारा की जाएगी जो न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा जो वह नियुक्त
करें, हस्ताक्षरित हो और जिस पर न्यायालय की
मुद्रा लगी हो।
नियम 11.अनेक प्रतिवादियों पर तामिल - अन्यथा विहित के सिवाय जहां एक से अधिक
प्रतिवादी है, वहां समन की तामील हर एक प्रतिवादी पर की
जाएगी।
नियम 12. जब साध्य हो तब समन की तामिल स्वयं
प्रतिवादी पर, अन्यथा उसकेअभिकर्ता पर की जाएगी -- जहां कहीं भी यह साध्य हो वहां तामिल
स्वयं प्रतिवादी पर की जाएगी किंतु यदि तामिल का प्रति ग्रहण करने के लिए सशक्त
उसका कोई अभिकर्ता है तो उस पर उसकी तामिल पर्याप्त होगी।
नियम 13. उस अभिकर्ता पर तामिल जिसके द्वारा
प्रतिवादी कारवार करता है--
(1) किसी कारबार या काम से संबंधित किसी ऐसे
वाद में जो किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध है, जो उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर
निवास नहीं करता है जिसने समन निकाला है, किसी भी ऐसे प्रबंधक या अभिकर्ता पर तामिल ठीक तामिल समझी
जाएगी जो तामिल के समय ऐसी सीमाओं के भीतर ऐसे व्यक्ति के लिए स्वयं ऐसा कारबार या
काम करता है।
(2) पोत के मास्टर के बारे में इस नियम के
प्रयोजन के लिए यह समझा जायेगा स्वामी या भाड़े पर लेने वाले व्यक्ति का अभिकर्ता
है।
नियम 14. स्थावर संपत्ति के वादों में भारसाधक
अभिकर्ता पर तामिल--
जहां स्थावर संपत्ति की बाबत अनुतोष या उसके प्रति किए गए दोष के लिए प्रतिकर
अभीप्राप्त करने के वाद में तामिल स्वयं प्रतिवादी पर नहीं
की जा सकती और प्रतिवादी का उस तामिल का पतिग्रहण करने के लिए सशक्त कोई अभिकर्ता
मानगो नहीं है वहां तामिल प्रतिवादी के किसी ऐसे अभिकर्ता पर की जा सकेगी जो उस
संपत्ति का भारसाधक है।
नियम 15. जहां तामिल प्रतिवादी के कुटुंब के
व्यस्क सदस्य पर की जा सकेगी--
जहां किसी वाद में प्रतिवादी अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है जब उस
पर समन की तामील उसके निवास स्थान पर की जानी है और युक्ति युक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाया जाने की संभावना नहीं है
और समन की तामिल का उसकी ओर से प्रतिग्रहण करने के लिए सशक्त उसका कोई अभिकर्ता
नहीं है वहां तामिल प्रतिवादी के कुटुम्ब के ऐसे किसी वयस्क सदस्य पर, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, की जा सकेगी जो उसके साथ निवास कर रहा
है।
स्पष्टीकरण- इस नियम के अर्थ में सेवक कुटुम का सदस्य नहीं है।
नियम 16. वह व्यक्ति जिस पर तामिल की गईं हैं, अभीस्वीकृति हस्ताक्षरित करेगा--
जहां तामिल करने वाला अधिकारी समन की प्रति स्वयं प्रतिवादी को, या उसके निर्मित अभिकर्ता को या किसी अन्य
व्यक्ति को, परिदत्त करता है या निवेदित करता है वहां
जिस व्यक्ति को प्रति ऐसे परिदत्त या निविदित की गई है उससे यह अपेक्षा करेगा कि
वह वह समन पर पृष्ठांकित तामिल की अभिस्वीकृति पर अपने हस्ताक्षर करें।
नियम 17. जब प्रतिवादी तामिल का प्रतिग्रहण करने
से इंकार करें या न पाया जाए तब प्रक्रिया--
जहां प्रतिवादी या उसका अभिकर्ता या उपरोक्त जैसा अन्य व्यक्ति अभिस्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इंकार
करता है, या जहां तामिल करने वाला अधिकारी सम्यक
और युक्तियुक्त तत्परता बरतने के पश्चात ऐसे
प्रतिवादी को न पा सके (जो अपने निवास स्थान से उस समय अनुपस्थित है, जब उस पर समन की तामील उसके निवास स्थान
पर की जानी है और युक्तियुक्त समय के भीतर उसके निवास स्थान पर पाया जाने की
संभावना नहीं है) और ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो समन की तामील का प्रतिग्रहण उसकी
ओर से करने के लिए सशक्त है और ना कोई ऐसा व्यक्ति है जिस पर तामिल की जा सके वहां
तामिल करने वाला अधिकारी उस ग्रह के, जिसमें प्रतिवादी मामूली तौर से निवास करता है या कारोबार
करता है या अभी लाभ के लिए स्वयं काम करता है, बाहरी द्वार पर या किसी अन्य सहज दृश्य भाग पर समन की एक
प्रति लगाएगा और तब वह मूल प्रति को उस पर पृष्ठांकित या उससे उपाबन्ध ऐसी रिपोर्ट
के साथ, जिसमें यह कथित होगा कि उसने प्रति को
ऐसे लगा दिया है और वह कौन सी परिस्थितियां थी जिनमें उसने ऐसा किया, कथित होगी और जिसमें उस व्यक्ति का( जो
कोई हो) नाम और पता कथित होगा जिसने ग्रह पहचाना था और जिसकी उपस्थिति में प्रति
लगाई गई थी, उस न्यायालय को लौटाएगा जिसने समन निकाला था।
नियम 18. तामिल करने के समय और रीति का पष्ठाकन--
तामिल करने वाला अधिकारी उन सभी दशाओं में जिनमें समन की तामील नियम 16 के अधीन की गई है उस समय को जब और उस
रिति को जिसमें समन की तामील की गई थी और यदि ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने उस व्यक्ति
को, जिस पर तामिल की गई है, पहचानता था और जो समन के परिदान या
निविदान का साक्षी रहा था तो उसका नाम और पता कथित करने वाली विवरणी मूल समन पर
पृष्ठांकित करेगा या कराएगा या मूल समन से उपाबंध करेगा या कराएगा।
नियम 19. तामिल करने वाले अधिकारी की परीक्षा--
जहां समन नियम 17 के अधीन लौटा दिया गया है वहां तामिल
करने वाले अधिकारी की परीक्षा उसकी अपनी कार्यवाहियों की बाबत न्यायालय स्वयं या
किसी अन्य न्यायालय द्वारा उस दशा में करेगा या कराएगा जिसमें उस नीम के अध्ययन
विवरणी तामिल करने वाले अधिकारी द्वारा शपथ पत्र द्वारा सत्यापित नहीं की गई है और
उस दशा में कर सकेगा या करा सकेगा जिसमें वह ऐसे सत्यापित की गई है और उस मामले
में ऐसी अतिरिक्त जांच कर सकेगा तो वह ठीक समझे और या तो वह घोषित करेगा कि समन की
तामील सम्यक रूप से हो गई है या ऐसी तामिल का आदेश करेगा जो ठीक समझे।
परंतु जहां मामले की परिस्थितियो मैं न्यायालय इसे अनावश्यक समझता है वहां इस
उपनियम की कोई बात न्यायालय से यह अपेक्षा नहीं करेगी वह रजिस्टर्ड डॉक द्वारा तामिल
करने के लिए समय निकालें।
नियम 20. प्रतिस्थापित तामिल--
(1) जहां न्यायालय का समाधान हो जाता है कि
यह विश्वास करने के लिए कारण है कि प्रतिवादी इस प्रयोजन से कि उस पर तामिल ना
होने पाए, सामने आने से बचता है या समन की तामील
मामूली प्रकार से किसी अन्य कारण से नहीं की जा सकती है वहां न्यायालय आदेश दे
सकेगा कि समन की तामील उसकी एक प्रति न्याय सदन के किसी सहज दृश्य स्थान में लगाकर
और( ऐसा कोई ग्रह हो) तो उस ग्रह के, इसमें प्रतिवादी का अंतिम बार निवास करना या कारबार करना या
अभी लाभ के लिए स्वयं काम करना ज्ञात है, किसी सहज दृश्य भाग पर भी लगा कर या ऐसे ही रिति से, जो न्यायालय ठीक समझे, की जाए।
(1क) जहां उप नियम 1 के अधीन कार्य करने वाला न्यायालय समाचार
पत्र में विज्ञापन द्वारा तामिल का आदेश करता है वहां वह समाचार पत्र ऐसा दैनिक
समाचार पत्र होगा जिसका परिचालन उस स्थानीय क्षेत्र में होता है, जिसमें प्रतिवादी का अंतिम बार वास्तव
में और स्वेच्छा से निवास करना या कारवार करना या अभी लाभ के लिए स्वयं का काम
करना ज्ञात है।
(2) प्रतिस्थापित तामिल का प्रभाव- न्यायालय
के आदेश द्वारा प्रतिस्थापित तामिल इस प्रकार प्रभावी होगी माना वह स्वयं से
प्रतिवादी पर की गई हो।
(3) जहां तामिल प्रतिस्थापित की गई हो वहां
उपसंजाति के लिए समय का नियत किया जाना-- जहां तामिल न्यायालय के आदेश द्वारा
प्रतिस्थापित की गई है वहां न्यायालय प्रतिवादी को उपसंजाति के लिए ऐसा समय नियत
करेगा जो उस मामले में अपेक्षित हो।
नियम 20क. निरसित
नियम 21. जहां प्रतिवादी किसी अन्य न्यायालय की
अधिकारिता के भितर निवास करता है वहां समन की तामील -- समन को वह न्यायालय, जिसने उसे निकाला है, अपने अधिकारियों में से किसी द्वारा (या
डाक द्वारा ऐसी कूरियर सेवा जिसे उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो, या फेक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक्स मेल
सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित
करें) द्वारा राज्य के भीतर या बाहर ऐसे किसी न्यायालय को भेज सकेगा( जो उच्च
न्यायालय ना हो) जिसकी उस स्थान में अधिकारिता है जहां प्रतिवादी निवास करता है।
नियम 22. बाहर के न्यायालयों द्वारा निकाले गए समन
की प्रेसिडेंसी नगरो में तामिल-- जहां कोलकाता मद्रास और मुंबई नगरों की सीमाओं से परे
स्थापित किसी न्यायालय द्वारा निकाले गए समन की तामिल ऐसी सीमाओ मैं से किसी के
भीतर की जानी है वहां वह लघुवाद न्यायालय को भेजा जाएगा जिसकी अधिकारिता के भीतर
उसकी तामिल की जानी है।
नियम 23. जिस न्यायालय को समन भेजा गया है-- वह न्यायालय, जिसको समन नियम 21 या 22 के अधीन भेजा गया है, उसकी प्राप्ति पर इस भांति असर होगा मानो वह उसी न्यायालय
द्वारा निकाला गया था और तब वह उससे संबंधित अपनी कार्यवाहियों के अभिलेख के( यदि
कोई हो) सहित समन उसे निकालने वाले न्यायालय को वापस भेज
देगा।
नियम 24. कारागार में प्रतिवादी पर तामिल-- जहां प्रतिवादी कारागार में परिरुद्ध है वहां समन कारागार के भारसाधक अधिकारी
को प्रतिवादी पर तामिल के लिए परिदत्त किया जाएगा (या डाक द्वारा ऐसी कूरियर सेवा
जिसे उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो या फैक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक मेंल
सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित
करें) भेजा जाएगा।
नियम 25. वहां तामिल, जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता
है और उसका कोई अभिकर्ता नहीं है-- जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता है और उसका भारत
में ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो तामिल प्रतिगृहीत करने के लिए सशक्त है वहां, यदि ऐसे स्थान और उस स्थान के बीच जहां न्यायालय स्थित है, डाक द्वारा संचार है तो, समन उस प्रतिवादी को उस स्थान के पत्ते
पर, जहां वह निवास कर रहा है, (या डाक द्वारा यार ऐसी कुरियर सेवा जिसे
उच्च न्यायालय द्वारा मान्य किया गया हो या फैक्स संदेश या इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा या अन्य किसी विधि द्वारा
जैसा कि उच्च न्यायालय किसी नियम द्वारा निर्देशित करें) भेजा जाएगा।
परंतु जहां ऐसा प्रतिवादी (बांग्लादेश या
पाकिस्तान निवास करता है) वहां समन उसकी एक प्रति के सहित, प्रतिवादी पर तामिल के लिए उस देश के
किसी ऐसे न्यायालय को भेजा जा सकेगा (जो उच्च न्यायालय ना हो) जिसकी उस स्थान में
अधिकारिता है जहां प्रतिवादी निवास करता है;
परंतु यह और की जाए ऐसा कोई प्रतिवादी
(बांग्लादेश या पाकिस्तान में अधिकारी है, जो यथास्थिति, बांग्लादेश या पाकिस्तान की सेना, नौसेना या वायु सेना का नहीं है) या उस
देश की रेल कंपनी या स्थानीय प्राधिकारी का सेवक है वहां समन उसकी एक प्रति के
सहित, उस प्रतिवादी पर तामिल के लिए उस देश के
ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी को भेजा जा सकेगा जिसे केंद्रीय सरकार राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा, उस निमित्त विनिर्दिष्ट करें।
नियम 26. राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय की मार्फत विदेशी राज्य क्षेत्र में तामिल-- जहां--
( क) केंद्रीय सरकार में निहित किसी वेदशिक
अधिकारिता के प्रयोग में, किसी ऐसे विदेशी राज्य क्षेत्र में, जिसमें प्रतिवादी वास्तव में और स्वेच्छा
से निवास करता है, कारोबार करता है या अभी लाभ के लिए स्वयं
काम करता है, ऐसा राजनीतिक अभिकर्ता नियुक्त किया गया
है या न्यायालय स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है जिसे उस समन की तामील करने
की शक्ति है, जो इस संहिता के अधीन न्यायालय द्वारा
निकाला जाए, अथवा
( ख) केंद्रीय सरकार ने किसी ऐसे न्यायालय
के बारे में जो किसी ऐसे राज्य क्षेत्र में स्थित है और पूर्वोक्त जैसी किसी
अधिकारिता के प्रयोग में स्थापित नहीं किया गया या चालू नहीं रखा गया है. राजपत्र
में अधिसूचना द्वारा घोषणा की है कि न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन निकाले गए
समन की ऐसे न्यायालय द्वारा तामिल विधिमान्य तामिल समझ जाएगी,
वहां समन से राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय को प्रतिवादी पर तामिल किए जाने के
प्रयोजन के लिए डाक द्वारा या अन्यथा या यदि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार
निर्देश दिया जाए तो उस सरकार के विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रालय की मार्फत या
ऐसे रीति से जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, भेजा जा सकेगा और यदि राजनीतिक अभिकर्ता
या न्यायालय समन को ऐसे राजनीतिक अभिकर्ता द्वारा या उस न्यायालय के न्यायाधीश या
अन्य प्राधिकारी द्वारा किए गए तात्पर्यत इस आशय के पष्ठानकन के सहित लौटा देता है
की समन की तामील प्रतिवादी पर इसमें इसके पूर्व निर्दिष्ट रिति से की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन का
साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 26( क). विदेशों के अधिकारियों को समन का
भेजा जाना-- जहां केंद्रीय सरकार ने राजपत्र में
अधिसूचना द्वारा किसी विदेशी राज्य क्षेत्र के बारे में यह घोषणा की है कि उस
विदेशी राज्य क्षेत्र में वास्तव में स्वेच्छा से निवास करने वाले या कारोबार करने
वाले या अभीलाभ के लिए स्वयं काम करने वाले प्रतिवादियों पर तामिल किए जाने वाले
समन विदेशी राज्य क्षेत्र की सरकार के ऐसे अधिकारी को जो केंद्रीय सरकार द्वारा
विनिर्दिष्ट किया जाए, भेजे जा सकेंगे वहां समन ऐसे अधिकारी को
भारत सरकार के विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रालय की मार्फत या ऐसे अन्य रीति से
जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, भेजे जा सकेंगे और यदि ऐसा अधिकारी किसी ऐसे समन को उसके
द्वारा किए गए तात्पर्यत इस पृष्ठांकन के सहित लौटा देता है कि समन की तामील प्रतिवादी
पर की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन तामिल का साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 27. सिविल लोक अधिकारी पर या रेल कंपनी या
स्थानीय प्राधिकारी के सेवक पर तामिल-- जहां प्रतिवादी लोक अधिकारी है (जो भारतीय सेना, नौसेना या वायु सेना का नहीं है) या रेल
कंपनी या स्थानीय प्राधिकारी का सेवक है वहां, यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि समन की तामील अत्यंत
सुविधापूर्वक एसे की जा सकती है तो वह उसे उसकी प्रति के सहित जो प्रतिवादी द्वारा
रख ली जानी है, उस कार्यालय के प्रधान को जिसमें
प्रतिवादी नियोजित है, प्रतिवादी पर तामिल के लिए भेज सकेगा।
नियम 28. सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों पर तामिल-- जहां प्रतिवादी सैनिक, नौसैनिक या वायु सैनिक है वहां न्यायालय
समन को, उसकी उस प्रति के सहित जो प्रतिवादी
द्वारा रख ली जानी है, उसके कमान ऑफिसर को तामिल के लिए भेजेगा।
नियम 29. उस व्यक्ति का कर्तव्य जिस को समन तामील
के लिए परिदत्त किया जाए याभेजा जाए -(1) जहां समन तामील के लिए किसी व्यक्ति को नियम 24, नियम 27, या नियम 28 के अधीन परिदत्त
किया गया है या भेजा गया है वहां ऐसा व्यक्ति, उसकी तामिल, यदि संभव हो, करने के लिए और अपने हस्ताक्षर करके प्रतिवादी की लिखित
अभिस्वीकृति के साथ लौटाने के लिए आबद्ध होगा और ऐसे हस्ताक्षर तामिल के साक्ष्य
समझा जाएंगे।
(2) जहां किसी कारण से तामिल असंभव हो वहां
समन ऐसे कारण के और तामिल कराने के लिए की गई कार्यवाहियो के पूर्ण कथन के साथ
न्यायालय को लौटा दिया जाएगा और ऐसा कथन तामिल ना होने का साक्ष्य समझा जाएगा।
नियम 30. समन के बदले पत्र का प्रतिस्थापित किया
जाना--
(1) इसमें इसके पूर्व अंतर्विष्ट किसी बात के
होते हुए भी, जहां न्यायालय की राय है कि प्रतिवादी
ऐसी पंक्ति का है जो उसे इस बात का हकदार बनाती है की उसके प्रति ऐसा समान पूर्ण
बर्ताव किया जाए वहां वह समन के बदले
ऐसा पत्र, प्रतिस्थापित कर सकेगा जो न्यायाधीश द्वारा
या ऐसे अधिकारी द्वारा, जो वह इस निमित्त नियुक्त करें, हस्ताक्षरित होगा।
(2) उप नियम (1 )के अधीन प्रतिस्थापित पत्र में वह सब विशिष्टियां
अंतर्विष्ट होगी जिनका समन में कथित होना अपेक्षित है और उपनियम( 3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए
वह हर तरह से समन माना जाएगा।
(3) ऐसा प्रतिस्थापित पत्र प्रतिवादी को डाक
द्वारा या न्यायालय द्वारा चुने गए विशेष संदेश वाहक द्वारा या किसी ऐसी अन्य रीति
से जो न्यायालय ठीक समझे, भेजा जा सकेगा और जहां प्रतिवादी का ऐसा अभिकर्ता हो जो तामिल
प्रतिगृहीत करने के लिए सशक्त है वहां वह पत्र ऐसे अभिकर्ता को परिदत्त किया जा
सकेगा या भेजा जा सकेगा।
समन की तामील संबंधी सिविल प्रक्रिया
संहिता में उपरोक्त उपबंध आदेश 5 में दिए गए हैं।
सिविल प्रक्रिया संहिता संशोधन 2002 के जरिए सिविल
वादों के शीघ्र निस्तारण हेतु संहिता में संशोधन किए गए हैं। यह संशोधन आदेश पांच
मैं भी किए गए हैं। संशोधन संहिता के अनुसार न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को जो समन
जारी किया जाता है वह समन 30 दिवस में प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित
होकर अपना लिखित कथन न्यायालय में प्रस्तुत करें इस आशय का समन जारी किया जाता है
लेकिन यदि प्रतिवादी 30 दिन की अवधि में लिखित कथन प्रस्तुत करने
में असफल रहता है न्यायालय द्वारा कारण अभिलिखित करते हुए इस अवधि में वृद्धि की
जा सकेगी जो किसी भी दशा में 90 दिन से अधिक की
नहीं होगी। प्रत्येक समन के साथ वाद पत्र की एक प्रति संलग्न किया जाना होगा। समनो
का निकाला जाना और उनके तामिल की रिति के संबंधित उपबंधों का न्यायिक निर्णय सहित
विवेचन कर रहे हैं जिससे उपरोक्त उपबंधों को समझने में आसानी रहेगी।
महत्वपूर्ण निर्णय --
(1) एक मामले में कोलकाता उच्च न्यायालय
द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि समन पर उसे जारी करने वाले न्यायाधीश या अन्य
किसी ऐसे पदाधिकारी के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है जो न्यायालय द्वारा इस निमित्त
नियुक्त किया गया हो।
1966 ए आई आर (कोलकाता) 438
(2) आदेश 5 नियम 20 एवं हिंदू विवाह
अधिनियम धारा 13 - समन की प्रतिस्थापित तामील-- यदि समन की तामील
समुचित ना हो तो न्यायालय को सामान्य तौर पर दूसरी तामिल हैतू निर्देश दे देना
चाहिए-- तामिल लौटाई देखने पर न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा कि पति तामिल
से बच रहा था-- अभिनिर्धारित- न्यायालय अपने स्वयं के इस समाधान के अभाव में कि
पति तामिल से बच रहा है, आदेश 5 नियम 20 तहत प्रतिस्थापित तामिल
का निर्देश नहीं दे सकता।
2009 (2) DNJ
(SC) 3070
(3) आदेश 5 नियम 2 - प्रत्येक समन के
साथ वाद पत्र की प्रति संलग्न किया जाना आवश्यक है, यह एक आज्ञापक व्यवस्था है। यदि समन के साथ वाद पत्र की
प्रति नहीं भेजी जाती है तो ऐसे समन की तामिल
विधिमान्य नहीं मानी जा सकती है। मामले में पारित एकपक्षीय डिक्री अपास्त किए जाने
योग्य है।
1989 ए आई आर (मध्य प्रदेश) 330
(4) आदेश 5 नियम 6-- प्रतिवादी को
उपसंजाति के लिए दिन नियत किया जाना - समन
रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा गया जो प्रतिवादी पर 19 मई 1988 को तामिल हुआ तथा उपसंजाति के लिए दिनांक
21 मई 1988 थी- मुंबई से उपस्थित होना संभव नहीं-- पर्याप्त समय नहीं
दिया गया-- विचारण न्यायालय को सुनवाई स्थगित कर अगली तिथि को सूचना प्रतिवादी को
संसूचित की जानी चाहिए थी-- आज्ञापक प्रावधानों की पालना नहीं-- सम्मन सम्यक रूप
से तामिल नहीं हुआ एवं परिसीमा जानकारी के दिनांक से प्रारंभ होगी तथा उच्च
न्यायालय के आवेदन खारिज करने में अवैधता की है।
1998 (1)
DNJ (Raj.)146
(5) एक मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अभी
निर्धारित किया है कि समन में विनिर्दिष्ट वाद की सुनवाई कि दिनांक यदि ऐसे दिन पड़ती है जिस दिन न्यायालय का
अवकाश हो, ऐसा समन समुचित अथवा यथा विधि नहीं माना
जाएगा।
1964 ए आई आर (मध्य प्रदेश) 261
(6) समन की तामील के संबंध में दिल्ली उच्च
न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि--
(1) समन की तामील व्यक्तिगत प्रतिवादी पर
कराई जानी चाहिए।
(2) जहां एक से अधिक प्रतिवादी हो, वहां प्रत्येक प्रतिवादी पर व्यक्तिशः
एवं पृथकतया तामिल कराई जानी चाहिए।
(3) जहां प्रतिवादी नहीं मिले और युक्ति
युक्त समय के भीतर जिसके मिलने की संभावना नहीं हो वहां समन की तामील उसके परिवार
के किसी व्यस्क सदस्य पर कराई जा सकती है।
(4) समन की तामील कराने वाले अधिकारी द्वारा
समन पर तामिल का समय एवं रिति का पष्ठाकन किया जाना चाहिए।
(5) प्रतिस्थापित तामिल का आदेश तब तक नहीं
दिया जाना चाहिए जब तक कि पूर्व में जारी समन लौट कर ना आ जाए।
2001 ए आई आर (दिल्ली) 272
(7) आदेश 5 नियम 20-- प्रतिस्थापित तामिल
कब कराई जावे-- जब सामान्य रीती से तामिल नहीं कराई जा सके तब प्रतिस्थापित तामिल
का मार्ग ही उपलब्ध रह जाता है-- ऐसी तामिल कराने के पूर्व परिस्थितियों के आधार
पर न्यायालय को संतुष्ट हो जाना चाहिए-- अभिनिर्धारित-- तामिल अस्वीकार करने की
रिपोर्ट के कारण जो प्रतिस्थापित तामिल कराई गई है वह वैध है।
1996 (2)
DNJ (Raj.) 580
(8) कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक मामले में
अभिनिर्धारित किया है कि जहां सह प्रतिवादी के रूप में पति और पत्नी दोनों के नाम
समन जारी किए गए हो, लेकिन पत्नी के मकान के अंदर होने के
कारण उस पर तामिल नहीं हो पाई हो और पति ने समन लेने से इंकार कर दिया हो, वहां उनके मकान के बाहर समन चिपकाकर की
गई तामिल को उचित माना गया है।
1977 ए आई आर (कोलकाता) 372
(9) यदि रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया समन इस
पृष्ठांकन के साथ कि " पाने वाला लेने से इंकार करता है" लौटकर आता है और पोस्टमैन को
साक्ष्य में पेश नहीं किया जाता है लेकिन एक पक्षीय कार्यवाही को अपास्त करने के
लिए पेश किए गए आवेदन में दिया गया पत्ता समन पर अंकित पत्ते से मिलता है तो यह
उपधारणा की जाएगी कि समन वाला लिफाफा प्रतिवादी को निवेदित किया गया और उसने उसे
लेने से इंकार कर दिया।
1982 ए आई आर (गुजरात) 235
(10) समाचार पत्र में प्रकाशन के माध्यम से
समन की तामील को विधिमान्य मान लिया गया है। ऐसी तामिल के आधार पर मामले का एक
पक्षीय निस्तारण किया जा सकता है।
1989 ए आई आर (इलाहाबाद) 93
(11) आदेश 5 - समन की तामिल - सहवासी पत्नी द्वारा नोटिस प्राप्त किया
गया-- निर्णित, तामिल पूर्ण है।
2013 (1)
DNJ (Raj) 151
(12) आदेश 5 नियम 17-- चस्पान्दगी से
नोटिस का तामिल करना-- नोटीस में सही पता नहीं दर्शाया-- 2 गवाहों द्वारा जिनके नाम व पते लेखबद्ध/
प्रकट करने चाहिए, तामिल समर्थित होने चाहिए- नोटिस की उचित
तामिल नहीं हुई।
2013 (1)
DNJ (Raj) 351
(13) आदेश 5 नियम 15; आदेश 9 नियम 9-- एक पक्षी कार्रवाई को अपास्त करने हेतु आवेदन-- कार्यवाही
में भाग लेने की अनुमति दी लेकिन जवाब और दस्तावेज पेश करने हेतु अवसर नहीं दिया--
नोटिस प्रार्थिया के पुत्र पर तामिल किया-- उचित तामिल नहीं-निर्णित, आदेश उपान्तरित किया तथा जवाब एवं दस्तावेज पेश करने की
अनुमति दी।
2011 (1) DNJ
(Raj) 152
(14) यदि समन की तामील किसी निगम पर की जानी
हो तो ऐसे समन की एक प्रति डाक द्वारा या वाहक द्वारा उसके पंजीकृत कार्यालय पर या
ऐसे किसी स्थान पर जहां की वह निगम कारोबार करता है भेज दी जाएगी।
1961
ए आई
आर (सुप्रीमकोर्ट)1214
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