निर्णय से पहले गिरफ्तारी - आदेश 38 सिविल प्रक्रिया संहिता ।
Arrest before judgment -Order 38 CPC.
न्यायालय का मुख्य कार्य न्याय प्रदान करना है और न्याय का मुख्य उद्देश्य पक्षकारों के उन अधिकारों का प्रवर्तन करना है जिनके लिए वे अधिकृत हैं। न्यायालय उक्त कार्य आज्ञप्ति, निर्णय अथवा आदेश के माध्यम से पूरा करते हैं। न्यायालय द्वारा प्रदत्त आज्ञप्ति दोनों पक्षकारों पर बाध्यकारी होती है, कोई भी प्रकार उससे बच नहीं सकता। यदि प्रतिवादी ऐसी आज्ञप्ति से बचना चाहता है, उसमें विलंब करना चाहता है अथवा उसे विफल बनाना चाहता है तो न्यायालय उसे ऐसा नहीं करने देता। ऐसे व्यक्ति को न्यायालय निर्णय से पूर्व ही गिरफ्तार करने अथवा उसकी संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकेगा, इसका उल्लेख संहिता की धारा 94 एवं 95 तथा आदेश 38 में किया गया है। इस प्रकार निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी एवं कुर्की का मुख्य उद्देश्य आज्ञप्ति के फलों को सुनिश्चित करना एवं प्रतिवादी को उस आज्ञप्ति के निष्पादन को विफल करने से रोकना है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 38 निम्न प्रकार से उपबंधित किया गया है।
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आदेश 38 सिविल प्रक्रिया संहिता - -
नियम 1 - उपसंजाति के लिए प्रतिभुति देने की मांग प्रतिवादी से कब की जा सकेगी-
जहां धारा 16 के खंड (क) से खंड (घ) तक में निर्दिष्ट प्रकृति के वाद से भिन्न वाद के किसी भी प्रक्रम न्यायालय का शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है कि --
(क) प्रतिवादी वादी को विलंबित करने के या न्यायालय के किसी आदेशिका से बचने के या ऐसे किसी डिक्री के जो उसके विरुद्ध पारित किए जाए निष्पादन को विलंबित किया करने के आशय से - -
( 1) न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओ से फरार हो गया है या उन्हें छोड़ गया है, अथवा
(2) न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से फरार होने ही वाला है या उन्हें छोड़ने ही वाला है, अथवा
(3) अपनी संपत्ति को या उसके किसी भाग को व्यनित कर चुका है या न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से हट चुका है, अथवा
(ख) प्रतिवादी ऐसी परिस्थितियों के अधीन भारत छोड़ने वाला है, जिनसे यह युक्ति युक्त अधिसम्भाव्यता है कि वादी किसी ऐसी डिक्री के जो वाद में प्रतिवादी के विरुद्ध पारित किए जाएं, निष्पादन में उसके द्वारा बाधित या विलंबित होगा या हो सकेगा,
वहां न्यायालय, प्रतिवादी की गिरफ्तारी के लिए और न्यायालय के समक्ष उसे इसलिए लाए जाने के लिए कि वह यह हेतुक दर्शित करें कि वह अपनी उपसंजाति के लिए प्रतिभूति क्यों न दे, वारंट निकाल सकेगा:
परंतु यदि प्रतिवादी कोई ऐसी रकम जो वादी के दावे को तुष्ट करने के लिए पर्याप्त होने के तौर पर वारंट में विनिर्दिष्ट है, उसी अधिकारी को, जिसे वारंट का निष्पादन न्यस्त किया गया है,दे देता है तो वह गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और ऐसी रकम न्यायालय द्वारा तब तक जमा रखी जाएगी जब तक वाद का निपटारा ना हो जाए या जब तक न्यायालय को आगे और आदेश ना हो जाए।
(2) प्रतिभुति -
(1) जहां प्रतिवादी ऐसा हेतुक दर्शित करने में असफल रहता है वहां न्यायालय या तो उसे अपने विरुद्ध दावे उत्तर के लिए पर्याप्त धन या अन्य संपत्ति न्यायालय में जमा करने के लिए या उसे समय तक जब तक वाद लंबित रहता है और जब तक ऐसे किसी डिग्री की जो उस वाद में उसके विरुद्ध पारित की जाए, तुष्टि नहीं की जाती, बुलाए जाने पर किसी भी समय अपनी उपसजाति के लिए प्रतिभूति देने के लिए आदेश दे सकेगा या उस राशि की बाबत जो प्रतिवादी ने अंतिम पूर्ववर्ती नियम के परंतुक के अधीन जमा करदी हो ऐसा आदेश कर सकेगा जैसा वह ठीक समझे।
(2) प्रतिवादी की उपसजाति के लिए हर प्रतिभू अपने को आबद्ध करेगा कि वह ऐसी उपसंजाति में व्यतिक्रम होने पर ऐसी कोई राशि देगा जिसे देने के लिए प्रतिवादी वाद में आदिष्ट किया जाए।
(3) उन्मोचित किए जाने के लिए प्रतिभू के आवेदन प्रक्रिया-
(1) प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए प्रतिभू उस न्यायालय से जिसमें वह ऐसा प्रतिभू हुआ है, अपनी बाध्यता से उन्मोचित किए जाने के लिए किसी भी समय आवेदन कर सकेगा।
(2) ऐसा आवेदन किए जाने पर न्यायालय प्रतिवादी को उपसंजात होने के लिए समन करेगा या यदि वह ठीक समझे तो उनकी गिरफ्तारी के लिए प्रथम बार ही वारंट निकाल सकेगा।
(3) समन या वारंट के अनुसरण मैं प्रतिवादी को उपसंजात होने पर या उसके स्वेच्छाया अभ्यर्पण करने पर न्यायालय प्रतिभु को उसकी बाध्यता से उन्मोचित करने के लिए निर्देश देगा और नई प्रतिभूति लाने की अपेक्षा प्रतिवादी से करेगा।
(4) जहां प्रतिवादी प्रतिभूति देने में या नई प्रतिभूति लाने में असफल रहता है वहां प्रक्रिया -
जहां प्रतिवादी नियम 2 या नियम 3 के अधीन किसी आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है वहां न्यायालय उसे सिविल कारागार को तब तक के लिए सुपुर्द कर सकेगा जब तक वाद का विनिश्चय ना हो जाए या जहां प्रतिवादी के विरुद्ध डिक्री पारित कर दी गई है वहां जब तक डिक्री तुष्ट न कर दी जाए:
परंतु कोई भी व्यक्ति कारागार में इस नियम के अधीन किसी भी दशा में 6 माह से अधिक की अवधि के लिए और वाद की विषय वस्तु की रकम या मूल्य ₹50 से अधिक नहीं है तो 6 सप्ताह से अधिक की अवधि के लिए निरुद्ध नहीं किया जाएगा:
परंतु यह भी ऐसी आदेश का उसके द्वारा अनुपालन कर दिए जाने के पश्चात कोई भी व्यक्ति इस नियम के अधीन कारागार में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
आदेश 38 सिविल प्रक्रिया संहिता के साथ संहिता की धारा 94 व 95 मैं भी इस बाबत उपबंध किए गए हैं जो निम्न प्रकार है--
धारा 94-- अनुपूरक कार्यवाहियां-- न्यायालय न्यास के उद्देश्य का विफल किया जाना निवारित करने के लिए उस दशा में जिसने ऐसा करना विहित हो--
(क) प्रतिवादी को गिरफ्तार करने के लिए और न्यायालय के सामने इस बात का हेतुक दर्शित करने के लिए लाए जाने के लिए की उसे अपने उपसंजात होने के लिए प्रतिभूति क्यों नहीं देनी चाहिए, वारंट निकाल सकेगा और यदि वह प्रतिभूति के लिए दिए गए किसी आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है तो उसे सिविल कारागार को सुपुर्द कर सकेगा;
(ख) प्रतिवादी को अपनी कोई संपत्ति पेश करने के लिए प्रतिभूति देने का और उस संपत्ति को न्यायालय के नियंत्रणधीन रखने का निर्देश दे सकेगा या किसी संपत्ति की कुर्की आदिष्ट कर सकेगा;
(ग) अस्थाई व्यादेश अनुदत्तकर सकेगा और अवज्ञा की दशा में उसके दोषी व्यक्ति को सिविल कारागार को सुपुर्द कर सकेगा और आदेश दे सकेगा की उसकी संपत्ति कुर्क की जाए और उसका विक्रय किया जाए;
(घ) किसी संपत्ति का रिसीवर नियुक्त कर सकेगा और उसके संपत्ति को कुर्क करके और उसका विक्रय करके उसके कर्तव्य का पालन करा सकेगा;
(ड़) ऐसे अन्य अंतर्वर्ती आदेश कर सकेगा जो न्यायालय को न्याय संगत और सुविधापूर्ण प्रतीत हो।
धारा 95-- अपर्याप्त आधारो पर गिरफ्तारी, कुर्की या व्यादेश अभी प्राप्त करने के लिए प्रति कर -
(1) जहां किसी वाद में, जिसमें इसके ठीक पहले की धारा के अधीन कोई गिरफ्तारी या कुर्की कर ली गई है अस्थाई व्यादेश दिया गया है--
(क) न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि ऐसी गिरफ्तारी, कुर्की या व्यादेश के लिए आवेदन अपर्याप्त आधार पर दिया गया था, अथवा
(ख) वादी का वाद असफल हो जाता है और न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि उसके संस्थित किए जाने के लिए कोई युक्ति युक्ति या अधिसंभाव्य नहीं था,
वहां प्रतिवादी न्यायालय से आवेदन कर सकेगा और न्यायालय ऐसे आवेदन पर अपने आदेश द्वारा( ₹50000 से अनधिक) इतनी रकम वादी के विरुद्ध अधिनिर्णीत कर सकेगा जितना वह प्रतिवादी के लिए उसके द्वारा किए गए व्यय के लिए या उसे हुई क्षति के लिए( जिसके अंतर्गत प्रतिष्ठा की शक्ति भी है) युक्तियुक्त प्रतिकर समझे;
परंतु न्यायालय, अपने धन संबंधी अधिकारिता की परिसीमाओ से अधिक रकम इस धारा के अधीन अधिनिर्णित नहीं करेगा।
(2) ऐसे किसी आदेश का अवधारण करने वाला आदेश ऐसे गिरफ्तारी, कुर्की या व्यादेश के संबंध में प्रतिकर के लिए किसी वाद का वर्जन करेगा।
वाद के किसी प्रक्रम पर न्यायालय का शपथ पत्र या अन्यथा यह समाधान हो जाए कि प्रतिवादी -
( 1) वाद के परीक्षण को विलंब करने:
( 2) न्यायालय के किसी आदेशिका से बचने: या
( 3) अपने विरुद्ध पारित की जाने वाली आज्ञप्ति के निष्पादन में अवरोध पैदा करने के आशय से:
(क) फरार हो गया है;
(ख) न्यायालय के स्थानीय क्षेत्रअधिकार को छोड़कर चला गया है; या
(ग) फरार होने वाला है; या
(घ) न्यायालय के स्थानीय क्षेत्र अधिकार को छोड़कर बाहर चले जाने वाला है; या
(ड़) प्रतिवादी न्यायालय के स्थानीय क्षेत्राधिकार की अपनी संपत्ति का व्ययन कर दिया है, या हटा दिया है; या
(च) प्रतिवादी भारत से बाहर जाने वाला है, जिससे डिक्री के निष्पादन में या तो अवरोध पैदा होगा या विलंब हो।
तब न्यायालय ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध इस आशय का गिरफ्तारी का वारंट जारी करेगा कि उसे न्यायालय के समक्ष लाया जाए और वह यह हेतु सदर्शित करेगी वह अपनी उपसंजाति के लिए क्यों ना प्रतिभूति दे।
यदि प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित होकर न्यायालय का यह समाधान करा देता है कि वह प्रतिभूति देने को तैयार है या वादी की आज्ञप्ति की रकम न्यायालय में जमा करा देता है तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और वारंट रद्द कर दिया जाएगा।
संहिता की धारा 16 के अंतर्गत आने वाले वादों में निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी का आदेश नहीं दिया जा सकेगा यह वाद निम्नलिखित है--
(1) अचल संपत्ति की पुनः प्राप्ति के लिए वाद,
(2) अचल संपत्ति की बंटवारे के लिए वाद,
( 3) अचल संपत्ति के मोचन निषेध या उसके बंधक निषेध के लिए वाद,
( 4) अचल संपत्ति के किसी अधिकार या उसके किसी हित की अवधारणा के लिए वाद,
( 5) अचल संपत्ति के विक्रय के लिए वाद,
( 6) अचल संपत्ति पर प्रभार के लिए वाद
उपयोग प्रकार के वादों में निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी का आदेश अभी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय--
(1) निर्णय से पूर्व गिरफ्तारी एवं कुर्की का मुख्य उद्देश्य आज्ञप्ति के निष्पादन को सुनिश्चित करना एवं प्रतिवादी को उस आज्ञप्ति के निष्पादन को विफल करने से रोकना है।
1978 ए आई आर (केरल) 11
( 2) उपस्थिति एवं संपत्ति पेश करने हेतु प्रतिभूति पेश करना - प्रतिवादी पूर्व में उपस्थित हो चुका था - आदेश 38 नियम 1 के तहत आवेदन को निस्तारित करते समय निम्न न्यायालय ने कोई गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं किया बल्कि अभीसंभावी आज्ञप्ति के विरुद्ध प्रतिभूति जमा करने हेतु प्रतिवादी को निर्देश दिए - अभिनिर्धारित - आदेश 38 नियम 1 के प्रावधान यह उपबंध करते हैं की गिरफ्तारी वारंट के निष्पादन से बचने के लिए प्रतिवादी वारंट में विनिर्दिष्ट किसी राशि का संदाय वारंट के निष्पादन हेतु कर सकता है-- वादी का आदेश 38 नियम 5 सिविल प्रक्रिया संहिता संहिता के तहत आवेदन पत्र न्यायालय के समक्ष लंबित था और न्यायालय द्वारा उसी आदेश से उक्त आवेदन पत्र का भी निस्तारण किया जा चुका था, तो फिर इन दोनों आवेदन-पत्रों के मध्य कोई कठोर भिन्न रुख अपनाया नहीं जा सकता विशेष कर उस समय जब न्यायालय ऐसी स्थिति का सामना कर रहा था कि समन तामील कराने की प्रक्रिया के दौरान, प्रतिवादी उस वाद संपत्ति को पूर्व में ही अन्य संक्रांत कर चुका था।
2010 (1) DNJ (Raj) 273
(3) आदेश 38 नियम 5 के तहत अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते समय न्यायालय को उस अवस्था में प्रथम दृष्टया राय बनानी होती है-- उसे पक्षकारों द्वारा उठाए गए सभी प्रतिकारो की सत्यता या अन्यथा पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती-- यहां तक की भागीदारी अधिनियम के अंतर्गत भी वादी प्रथम दृष्टया अपना दावा ना केवल फर्म के विरुद्ध अपने भागीदारों के विरुद्ध भी प्रवर्तित करा सकता है-- भागीदारों के दायित्व की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
2008 (2)RLW 1503 (SC)
(4) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में अभी निर्धारित किया है कि धन संबंधी वादों में भी डिक्री पारित होने के पूर्व किसी महिला को गिरफ्तार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
1991 ए आई आर (दिल्ली) 129
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