न्यायिक पृथक्करण -धारा 10 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
धारा 10. न्यायिक प्रथकरण -
(1) विवाह का कोई पक्षकार चाहे वह विवाह इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात अनुष्ठापित हुआ हो, धारा 13 की उप धारा एक में विनिर्दिष्ट किसी आधार पर और पत्नी की दशा में उक्त धारा की उपधारा 2 में विनिर्दिष्ट किसी आधार पर भी, जिस पर विवाह विच्छेद के लिए अर्जी पेश की जा सकती थी, न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए प्रार्थना करते हुए अर्जी पेश कर सकेगा।
(2) जहां की न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित हो गई हो, वहां अर्जीदार पर बात की बाध्यता न होगी कि वह प्रत्यर्थी के साथ सहवास करें, किंतु दोनों पक्षकारों में से किसी के भी अर्जी द्वारा आवेदन करने पर तथा ऐसी अर्जी में किए गए कथन की सत्यता के बारे में अपना समाधान हो जाने पर न्यायालय, यदि वह ऐसा करना न्याय संगत और युक्ति युक्त समझे, तो डिग्री को विखंडित कर सकेगा।
आपकी सुविधा के लिए हमारी website का APP DOWNLOAD करने के लिए यह क्लीक करे -
APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE
न्यायिक पृथक्करण से 1 वर्ष से भीतर यदि दोनों में मेल-मिलाप ना हो पाए तो धारा 13 (क) के अंतर्गत विवाह विच्छेद का आधार बन जाता है। न्यायालय की न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को रद्द करने का अधिकार है। अभित्यजन याचिका पेश करने के 2 वर्ष पूर्व से बिना युक्तियुक्त कारण से था इस तथ्य को संदेह के परे सिद्ध किया जाना चाहिए। न्यायिक पृथक्करण को विवाह विच्छेद के लिए पहली सीढ़ी कहां जा सकता है। न्यायिक पृथक्करण को दंपत्ति का स्थाई अलगाव कहा जा सकता है एवं विवाह के सभी बंधनों को टूटना है। न्यायिक पृथक्करण के बाद पति पत्नी का रिश्ता नहीं टूटता है केवल अलग रहने की न्यायालय की अनुमति है इसलिए पति पत्नी में पुनःमिलाप हो सकता है और वो फिर से पति पत्नी का जीवन यापन कर सकते हैं और न्यायालय द्वारा पारित डिक्री विखंडित की जा सकती है। जबकि विवाह विच्छेद के बाद पुनः मिलाप का प्रश्न नहीं है यदि दोनों पति पत्नी के रुप में रहना चाहे तो उनका दुबारा ब्याह होगा। न्यायिक पृथक्करण के डिक्री पारित होने के बाद पति पत्नी दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र नहीं है।
इस अधिनियम में 1976 में महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है जिसके अनुसार धारा 13 (1) और 13 (2) मैं विवाह विच्छेद के जो आधार दिए गए हैं उन्हीं आधारों पर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित की जा सकती है । 13 (1) में जो आधार दिए गए हैं पति और पत्नी न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं। जब की धारा-13 दो में दिए गए आधार केवल पत्नी के लिए हैं। पक्षकार के आवेदन पर न्यायालय न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को विखंडित कर सकते हैं।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय --
(1) पत्नी झगड़ालू प्रवृत्ति की थी। वह अपने सास और ननद से मारपीट करती थी। पति परिवार में बड़ा और उसी के आय से खर्च चलता था। जब पत्नी अलग रहने के लिए कहती थी और अलग ना होने पर मारपीट करती थी और अपने पिता के घर चली गई थी। ऐसी स्थिति में पति के पक्ष में न्यायिक पृथक्करण की डिग्री प्रदान करना उचित था।
ए आई आर 1988 पंजाब हरियाणा 65
(2) पत्नी का गर्भ गिर जाने के कारण उसका इलाज कराने के लिए पत्नी का पिता अपने घर ले गया और पत्नी स्वास्थ्य होने पर खुद पति के घर वापस नहीं आई तो यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है की पत्नी अलग रहना चाहती है इसलिए पति को न्यायिक पृथक्करण की डिग्री नहीं दी जा सकती।
ए .आई .आर . 1988 उड़ीसा 93
(3) पत्नी ने न्यायिक पृथक्करण के लिए याचिका पेश की जिसमें डिक्री हुई तो पति पत्नी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं है और साथ न रहने से धारा 23 (1) के अनुसार पति की गलती नहीं है।
ए .आई .आर. 1988 कोलकाता 192
(4) विवाह का कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष से शारीरिक पृथक्करण कर ले और वैवाहिक बंधन को समाप्त करने के विचार से करें तो वित्तीय अभित्यजन माना जाएगा। इन दोनों तत्वों का होना आवश्यक है। जो सबूत नहीं किया गया तो अभित्यजन नहीं माना गया।
ए आई आर 1989 कोलकाता 74
(5) पति ने पूर्व में पत्नी की क्रूरता और अभित्यजन के आधार पर विवाह विच्छेद का आवेदन पेश किया जो सबूत ना होने से खारिज किया गया उसकी अपील नहीं हुई। दुबारा पति ने क्रूरता और अभित्यजन के आधार पर आवेदन पेश किया जिस ने आरोप लगाया गया है कि पत्नी ने पति के साथ कभी भी वापस लौटने का नोटिस दिया था। पूर्व न्याय के सिद्धांत पर क्रूरता का आधार पूर्व प्रकरण के आरोपों के आधार पर नहीं लगाया जा सकता की नोटिस दिए जाने की तिथि से अभित्यजन प्रारंभ होगा। अभित्यजन के आधार पर के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री दी गई।
ए आई आर 1989 मुंबई 75
ए आई आर 1984 सुप्रीम कोर्ट 1562
(6) पति ने अभित्यजन के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए आवेदन पेश किया किंतु पत्नी पति के साथ रहने को तैयार थी इसलिए विवाह विच्छेद की डिक्री नहीं दी गई।
ए आई आर 1990 केरल 151
(7) पति ने अन्य महिला से प्रेम संबंध रखा और उसके प्रेम में लिप्त होकर शादी करने का वचन भी दिया इसमें विवाहित पत्नी को मानसिक कष्ट हुआ पति का ऐसा आचरण क्रूरता है।
ए आई आर 1976 राजस्थान 1
(8) पति की याचिका पर जिला न्यायाधीश ने पत्नी द्वारा अभित्यजन एवं क्रूरता मानते हुए पति के पक्ष में न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित की तो पत्नी की अपील पर उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि पति के द्वारा याचिका पेश करने की तिथि तकअभित्यजन के 2 वर्ष पूर्ण नहीं हुए थे इसलिए पति के पक्ष में न्यायिक पृथक्करण की डिक्री विधिवत नहीं है।
ए आई आर 1973 राजस्थान 269
( 9) याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति में याचिका खारिज का आदेश अपील योग्य सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 8 एवं 9 के अंतर्गत है।
ए आई आर 1966 मैसूर 1
(10) यह असंभव है कि जार कर्म को साबित करने के लिए प्रत्यक्षदर्शी साक्षी उपलब्ध हो क्योंकि ऐसा बुरा कर्म गुप्त रूप से किया जाता है और यदि जार कर्म को साबित करने के लिए प्रत्यक्षदर्शी साक्षी पेश किया जाता है तो उसे सतर्कता से देखा जाना चाहिए एवं विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।
ए आई आर 1967 मद्रास 234
(11) यह संभव नहीं है कि जार कर्म की प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के द्वारा सबूत किया जा सके। परिस्थिति अन्य साक्षी से ही जार कर्म सबूत किया जा सकता है। आधी रात्रि में जवान पत्नी के साथ कोई व्यक्ति पाया गया जो रिश्तेदार भी नहीं था तो इससे यह ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है की पत्नी जार कर्म में लिप्त थी।
एआई आर 1967 मद्रास 85
(12) धारा 10 तथा 13 - विवाह विच्छेद-- न्यायिक पृथक्करण-- क्रूरता-- पति की सहमति के बिना ससुराल छोड़ना व तत्पश्चात वापस लौट कर ना आना क्रूरता है-- बिना किसी कारण के पत्नी द्वारा अपना ससुराल छोड़ना तथा तत्पश्चात वापस न आना -- दुर्व्यवहार, दहेज की मांग, पति द्वारा तलाक की धमकी, पति के माता पिता द्वारा क्रूरता पूर्वक बर्ताव तथा पति व उसके माता पिता द्वारा गाली गलौच का दोषारोपण साबित नहीं-- पति का व्यभिचार पूर्ण जीवन को साबित करने का कोई साक्ष्य नहीं-- झूठा दोषारोपण मानसिक क्रूरता को गठित करता है -- वापस साथ रहने की कोई संभावना नहीं -- न्यायिक पृथक्करण की डिक्री को विवाह विच्छेद की डिक्री में परिवर्तित किया गया।
2003 (1 ) DNJ ( Raj )184
(13) अपने को यह सिद्ध करना चाहिए कि पति का आचरण इस प्रकार का था की पत्नी को अपनी इच्छा के विरुद्ध मजबूर होकर पति का घर छोड़ना पड़ा।
ए आई आर 1967 पंजाब 397
नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी लिंक निचे दी गयी हैं। आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से नई जानकारी के लिए जुड़े रहे।
Kya न्यायिक पृथक्करण ki stithi main dusra vivah sambhav hai
ReplyDelete