हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम 1956
Hindu Adoption And Maintenance Act,1956
हिन्दू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम 21 दिसंबर 1956 को भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया व अधिनियम दिनांक 21-12- 1956 से प्रभावशील हुआ उसी दिन इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। जम्मू एवं कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारतवर्ष में हिंदुओं को यह अधिनियम लागू किया गया है तथा विदेश में निवास करने वाले हिंदुओं को लागू करने के संबंध में यह अधिनियम मौन है क्योंकि इंटरनेशनल लॉ के अनुसार जो व्यक्ति जिस देश का अधिवासी है उसी देश की विधि सेवा वह व्यक्ति शासित होगा।
इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात अधिनियम की धारा 5 से 17 के प्रावधानों के अनुसार ही गोद लिया वह दिया जा सकेगा।
आपकी सुविधा के लिए हमारी website का APP DOWNLOAD करने के लिए यह क्लीक करे -
APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE
धारा 5 दत्तक इस अधिनियम द्वारा विनियमित होंगे -
(1) किसी हिंदू के द्वारा यानी निमित्त कोई भी दत्तक इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात इस अध्याय के अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार जाने के सिवाय नहीं किया जाएगा और उपबंधों के उल्लंघन में किया गया कोई भी दत्तक शून्य होगा।
(2) किसी ऐसे दत्तक से,जो शून्य है न तो दत्तक कुटम्ब में किसी व्यक्ति के पक्ष में किसी ऐसे अधिकार का सृजन होगा जिससे वह दत्तक के कारण अर्जित करने के सिवाय अर्जित नहीं कर सकता था और ना किसी भी व्यक्ति के वे अधिकार ही नष्ट होंगे जो उसे अपने जन्म के कुटम्ब में प्राप्त हैं।
उपरोक्त धारा से स्पष्ट है कि धारा 5 से 17 के प्रावधानों के विरुद्ध लिया गया गोद अवैध होगा तथा ऐसे अवैध गोद के कारण गोद पुत्र को कोई हक प्राप्त नहीं होगा तथा अन्य किसी प्रकार के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
धारा 30 के अनुसार इस अधिनियम के प्रभावशील होने के पूर्व लिए गए गोद के लिए तत्समय प्रचलित विधि ही लागू होगी तथा धारा 12 के अनुसार गोद पुत्र का संबंध अपने प्राकृतिक माता-पिता से एवं उनके संबंधियों से समाप्त हो जाता है तथा गोद के माता-पिता से प्राकृतिक संतान जैसा संबंध हो जाता है जब किसी हिंदू नारी का पति सन्यासी हो जाए या न्यायालय द्वारा पागल घोषित हो जाए पति की मृत्यु हो जाए तो हिंदू नारी पुत्र या पुत्री को गोद मे ले सकती है तथा उसके द्वारा इस प्रकार लिया गया गोद उसके पति के लिए गए गोद माना जाएगा।
ए .आई .आर .1967 सुप्रीम कोर्ट 1761
इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात इस अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के उल्लंघन में दत्तक लिया जाता है तो दत्तक शुन्य होगा। इस अधिनियम के प्रभावशील होने के पूर्व लिए गए गोद के लिए तत समय पर्वत विधि लागू होगी इसलिए ततसमय लिया गया गोद यदि तत समय विधि के प्रतिकूल है परंतु इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुकूल है तो इस अधिनियम के अनुसार उसे वैद्य नहीं माना जाएगा किंतु तत समय प्रवर्तन विधि के अनुसार अवैध होगा।
इस अधिनियम की धारा 5(1 )के प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि किसी भी हिंदू के द्वारा या किसी भी हिंदू के लिए कोई गोद इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन में नहीं लिया जाएगा किसी भी हिंदू के लिए गोद कोई दूसरा व्यक्ति नहीं ले सकता केवल पत्नी ही अपने पति के लिए गोद ले सकती है। प्राचीन हिंदू विधि में भी विधवा के पति के द्वारा अधिकृत किए जाने पर अपने पति के लिए पुत्र गोद ले सकती थी और वह गोद पुत्र विधवा एवं उसके पति दोनों का ही पुत्र होता था इसी प्रावधान को ध्यान में रखते हुए धारा 5 (1)में दीया गया है कि किसी भी हिंदू के लिए गोद किस प्रकार लिया जा सकता है। प्राचीन हिंदू विधि एवं इस अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके अनुसार कोई हिंदू दूसरे हिंदू के लिए गोद ले सके केवल विधवा को गोद लेने का अधिकार है जो अपने पति के लिए गोद ले सकती है अर्थात विधवा अपने पति के लिए गोद ले सकती है और गोद में दिया गया पुत्र इस विधवा के पति का भी पुत्र हुआ तथा गोद पुत्र का संबंध अपने प्राकृतिक माता-पिता से समाप्त हो जाता है और गोद माता-पिता से उसी प्रकार संबंध स्थापित हो जाता है जैसे प्राकृतिक पुत्र का रहता है जो धारा 12 में दिए गए प्रतिबंधों के अधीन रहता है।
ए आई आर 1967 सुप्रीम कोर्ट 1761
यह स्थापित सिद्धांतहै कि पुत्र विहीन जैन विधवा यदि पुत्र गोद लेना चाहे तो उसे पति के द्वारा इस हेतु प्राधिकृत किया जाना सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। जो व्यक्ति गोद का विरोध करने में दिलचस्पी रखते हैं उन्होंने ही यदि गोदपत्र से गोत्रपुत्र जैसा ही व्यवहार किया और वह गोदपुत्र के रूप में मानते चले आए तो जो व्यक्ति गोद को अस्वीकार करते हैं उन पर ही सिद्ध करने का प्रमाण भार होगा।
1985 MPL J 20
जैन में पिता के नाम को चलाने के उद्देश्य से ही गोद पुत्र लिया जाता है जो धर्मनिरपेक्ष है। इसलिए गोद के लिए जाने वाले पुत्र की आयु विवाह का कोई प्रतिबंध नहीं है कोई विशेष उत्सव कर्म भी आवश्यक नहीं है विधवा जैन अपने पति से अधिकृत हुए बिना भी गोद ले सकती है बाल बच्चे वाले आदमी भी गोद जा सकता है ऐसी रूढ़ि को अनैतिक या लोक नीति के विरोध नहीं माना गया है।
ए आई आर 1985 दिल्ली 95
हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम में
धारा 6 विधिमान्य दत्तक संबंधी अपेक्षाएं
धारा 7 मैं हिंदू पुरुष की करने की सामर्थ्य व
धारा 8 हिंदू नारी की दत्तक लेने की सामर्थ्य के बारे में उपबंधित यह क्या है।
धारा 9 दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति के बारे में उपबंध किए गए हैं जो इस प्रकार है --
धारा 9 दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति -
(1) अपत्य के पिता या माता या सरक्षक के सिवाय कोई व्यक्ति अपत्य को दत्तक देने की सामर्थ्य नहीं रखेगा।
(2) यदि पिता जीवित हो तो वह धारा 3 उपधारा 4 के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि केवल उसे ही दत्तक देने का अधिकार होगा किंतु जब तक की माता पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग न कर चुकी हो या वह हिंदू ना रह गई हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित ना कर दिया हो कि वह विकृत चित्त की है ऐसा अधिकार माता की सआम सम्मति के बिना प्रयोग में नहीं लाया जाएगा।
(3) यदि पिता मर चुका हो या पूर्ण और अंतिमरूप से संसार कात्या कर चुका हो या हिंदू ना रह गया हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में घोषित कर दिया हो कि वह विकृत चित्त का है तो माता अपत्य को दत्तक दे सकेगी।
(4) जहां माता और पिता दोनों मर चुके हो या पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग कर चुके हो या अपत्य को त्याग चुके हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उनके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृत चित्त के हैं या जहां की अपत्य की जनकता ज्ञात ना हो, तो उस अपत्य का संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा से उस अपत्य को किसी भी व्यक्ति को जिसके अंतर्गत स्वयं व संरक्षक भी आता है दत्तक दे सकेगा।
(5) न्यायालय किसी संरक्षक को उपधारा (4) के अधीन अनुज्ञा देने के पूर्व इस बात को ध्यान में रखकर की अपत्य की आयु और समझने की शक्ति कितनी है दत्तक दिए जाने के संबंध में अपत्य की इच्छा पर सम्यक विचार करके अपना इस बारे में समाधान कर लेगा की दत्तक दिया जाना अपत्य के लिए कल्याणकारी होगा या नहीं और यह कि दत्तक देने के प्रतिफल स्वरूप कोई संदाय या इनाम ऐसे किसी संदाय या इनाम के सिवाय, जैसा कि न्यायालय मंजूर करें, अनुज्ञा के लिए आवेदन करने वाले ना तो प्राप्त किया है और ना प्राप्त करने का करार किया है और ना किसी भी व्यक्ति ने आवेदन करने वाले को किया या दिया है और न ही करने या देने के लिए करार उससे किया है।
स्पष्टीकरण- के प्रयोजन के लिए-
1. माता और पिता पदों के अंतर्गत दत्तक माता और दत्तक पिता नहीं आते हैं
(1क)" संरक्षक" से वह व्यक्ति अभिप्रेरित है जिसकी देखरेख में किसी अपत्य का शरीर या उसका शरीर और संपत्ति दोनों हो और इसके अंतर्गत आते हैं।
(क) अपत्य के पिता या माता की विल द्वारा नियुक्त संरक्षक; तथा
(ख)किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त किया घोषित संरक्षक तथा
(२) " न्यायालय" से ऐसा नगर सिविल न्यायालय या जिला न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंदर दत्तक लिया जाने वाला अपत्य मामूली तौर पर निवास करता है।
इस प्रकार इस धारा के विवेचन से स्पष्ट है बच्चे के माता पिता या संरक्षक ही बच्चे को गोद में दे सकते हैं। संरक्षक द्वारा बच्चे को गोद में लिए जाने के पूर्व न्यायालय की अनुमति लेना आवश्यक है, बच्चे के पिता बच्चे की माता की सहमति से ही गोद में दे सकता है किंतु यदि माता ने संसार त्याग कर दिया है यह सहमति देने में अयोग्य है तो सहमति की आवश्यकता नहीं है। माता में सौतेली माता सम्मिलित नहीं है। बच्चे का गोद एक ही बार होता है दोबारा नहीं होता है। माता स्वयं बच्चे को गोद में नहीं दे सकती परंतु पति की सहमति के अयोग्य हो या माता विधवा हो तो गोद में बच्चा दे सकती है। यदि सौतेली माता बच्चे कि सरंक्षक नियुक्त हो तो न्यायालय की अनुमति से बच्चे को गोद दे सकती है। अनुमति के लिएआवेदन पत्र जिस सिटी में सिविल न्यायालय या जिला जिला न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत बच्चा निवास करता हो उसे न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा। अवयस्क बच्चे के संरक्षक को बच्चे को गोद में देने का अधिकार है किंतु सौतेली माता को सौतेले पुत्र को गोद में देने का अधिकार नहीं है। माता का अर्थ प्राकृतिक माता से है सौतेली माता से नहीं।
प्राचीन हिंदू विधि में यह प्रावधान था कि सौतेली मां अपने सौतेले पुत्र को गोद में नहीं दे सकती थी। इस अधिनियम के प्रभावशील होने के बाद भी स्थिति मैंपरिवर्तन नहीं हुआ है। धारा 9 में दिया गया पद "माता"से अर्थ है प्राकृतिक माता इसलिए सौतेली माता गोद में नहीं दे सकती इसलिए सौतेली मां के द्वारा दिए जाने से लिया गया गोद धारा 5 ( 1) एवं 6 (2) के अनुसार अवैध है।
ए आई आर 1975 सुप्रीम कोर्ट 1103
प्राकृतिक माता-पिता को ही अपने बच्चे को गोद में देने का अधिकार है। सौतेली माता अपने बच्चे को नहीं दे सकती।
ए. आई .आर.1973 राजस्थान 7
इस प्रकार स्पष्ट है कि दत्तक देने का प्रथम अधिकार पिता को ही है परंतु इस अधिकार का प्रयोग दत्तक में जाने वाले पुत्र की माता कि सहमति से ही कर सकता है। यदि माता ने संसार त्याग कर दिया हो या धर्म परिवर्तन कर दिया हो या विकृत चित्र हो तभी पिता को माता की सहमति की जरूरत नहीं है। विकृत चित् की घोषणा न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए।
यदि बच्चे कीमाता पिता की मृत्यु हो गई हो संसार का त्याग कर दिया हो बच्चे को त्याग कर दिया हो या न्यायालय द्वारा विकृत चित् घोषित हो या बच्चे का पिता कौन है इसकी जानकारी ना हो तबउस बच्चे को संरक्षक न्यायालय की अनुमति से उस बच्चे को गोद दे सकता है या गोद ले सकता है। इस धारा के स्पष्टीकरण के अनुसार संरक्षक वही व्यक्ति होगा जो माता-पिता की वसीयत द्वारा नियुक्त हो या न्यायालय द्वारा नियुक्त हो।
इस अधिनियम की धारा 10 व्यक्ति जो दत्तक लिए जा सकते हैं -- के संबंध में है जिसका विस्तृत विवेचन निम्न प्रकार है।
धारा 10 व्यक्ति जो दत्तक लिए जा सकते हैं --
कोई भी व्यक्ति दत्तक लिए जाने योग्य न जब तक कि निम्नलिखित शर्तें पूरी ना हो, अर्थात
( 1 )वह हिंदू है
(2 )वह पहले ही से दत्तक नहीं लिया जा चुका है, या नहीं ली जा चुकी है
(3) उसका विवाह नहीं हुआ है, तब के सिवाय जबकि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढ़ि या प्रथा हो जो विवाहित व्यक्तियों का दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो;
(4) उसने 15 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तब के सिवाय जबकि पक्षकारों को होने वाली कोई ऐसी रूढ़ि या प्रथा हो जो ऐसे व्यक्तियों का, जिन्होंने 15 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो, दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो।
इस धारा के अध्ययन से स्पष्ट है कि गोद में लिए जाने वाले बच्चे का हिंदू होना, पूर्व में गोद ना लिया जाना, अविवाहित होना, 15 वर्ष से कम आयु का होना आवश्यक है किंतु रूढ़ि व प्रथा हो तो विवाहित या 15 वर्ष आयु पूर्ण करने वाला बच्चा भी गोद में लिया जा सकता है। धारा 9 के प्रावधानों के अनुसार दत्तक माता पिता अपने दत्तक पुत्र को गोद में नहीं दे सकते उसी के समान किस धारा के भी प्रावधान है कि एक बार दत्तक लिया गया बच्चा पुनः दत्तक मैं नहीं दिया जा सकता। एकमात्र पुत्र को राजेश पुत्र को गोद में लिए जाने के लिए कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है तथा साथ ही गूंगे बहरे अस्वस्थ बच्चे को मैं लेने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
एक मामले में 22 वर्ष की आयु का बच्चा जो उस क्षेत्र के पुराने मुंबई राज्य का भाग था किसी भी आयु के व्यक्ति को गोद में लेने की प्रथा आदि कॉल से प्रचलित थी और प्रथा की न्यायिक मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। इसलिए यदि गोद लेने का तथ्य सबूत कर दिया जाता है तो गोद वैद्य है प्रथा सिद्ध करना आवश्यक नहीं है।
ए आई आर 1991 सुप्रीम कोर्ट 1180
15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को दत्तक नहीं लिया जा सकता जब तक कि इसके अपवाद स्वरुप कोई प्रथा या रूढ़ि सिद्ध नहीं की जाती है। इसलिए यदि 15 वर्ष की अधिक आयु व्यक्ति को गोद लेने रूढ़ि या प्रथा हो तो इसका विशेष रूप से अभिवचन किया जाना चाहिए और पंजीबद्ध गोदनामा निष्पादित किया गया हो। इसलिए 21 वर्ष के अनाथ लड़के को गोद लिया अमित बना गया।
ए आई आर 1975 सुप्रीम कोर्ट 1103
गोद लेने और गोद देने के संबंध में विधि में कोई रीति निर्धारित नहीं है किंतु गोद में लेना व देने की कार्रवाई होनी चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि बच्चे को गोद में बैठाया जाए। जब गोद लेने वाले पिता ने बच्चे को गोद में लिया को तो गोद में लेने वाली मां समारोह मैं उपस्थित रही और बच्चों को उपहार दिया इससे सिद्ध हो जाता है कि गोद के लिए उसकी सहमति थी। इस प्रकार की सहमति परिस्थितियां से जानी जा सकती है सीधी सहमति सिद्ध करना आवश्यक नहीं
ए आई आर 1972 मुंबई 98
ए आई आर 1970 सुप्रीम कोर्ट 1286
ए आई आर 1961 सुप्रीम कोर्ट 1378
दत्तक पंजीबद्ध दस्तावेज का अभाव - कथित दतक माता ने गोद को अस्वीकार किया कोई पंजीबद्ध गोद का दस्तावेज भी नहीं था। कथित गोद के समय जो पुरोहित और व्यक्ति उपस्थित थे उनका परीक्षण भी नहीं कराया। गोद के बाद पिता का नाम परिवर्तन भी नहीं किया गया और ना ऐसा साक्ष्य पेश किया गया की गोद पुत्र अपनी गोद माता के साथ रहता था। इस तरह गोद लिए जाने का तथ्य ही सबूत ने किया गया। इसलिए गोद दावा अमान्य किया गया।
ए आई आर 1987 सुप्रीम कोर्ट 962
हिंदू दत्तक तथा भरण पोषणअधिनियम 1956 के अन्य महत्वपूर्ण उपबंध का विवेचन आगामी ब्लॉग में किया जाएगा।
महत्वपूर्ण न्याय निर्णय ---
(1) 15 वर्ष का आयु से अधिक आयु के लड़के को गोद में लिया गया है। ऐसा भी कथन नहीं किया गया की 15 वर्ष से अधिक आयु के लड़के को रूढ़ि के अनुसार गोद में लिया जा सकता है। विरोधी विज्ञ मैं इस आधार पर चुनौती नहीं दिया। न्यायालय यह निर्णय देने में सक्षम है कि गोद लेना अवैध है।
ए आई आर 1986 इलाहाबाद 54
(2) हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 10 -- दत्तक पुत्र एवं वाद संपत्ति के पूर्ण स्वामी के रूप में घोषणा दत्तक ग्रहण एवं समझौता विलेख पर आधारित होना-- अभिनिर्धारित - एक पुत्र का दत्तक ग्रहण करने से दत्तक ग्रहण करने वाली माता अपनी अलग संपत्ति को अंतरण या वसीयत से निस्तारित करने की शक्ति से वंचित नहीं हो जाती -- मात्र दत्तक ग्रहण करने से वह स्वयं की निस्तारण योग्य संपत्ति के निस्तारण करने के अधिकार से वंचित नहीं हुई।
2004 (4) RLW (SC) 524
(3) धारा 10 एवम 11 (3) -- दत्तक की विधि मान्यता -- विधवा द्वारा बच्चा गोद लिया गया - अभीनिर्धारित -- जहां पक्षकार विवाद्यक मे सलंग्न नहीं होते या सलंग्न होने के पश्चात उसे त्याग देते हैं, दत्तक के तथ्य को स्वीकार करते हुए, तो कार्यवाही इस धारणा पर नियत की जानी चाहिए की दत्तक 1 स्वीकृत तथ्य है।
ए आई आर 2003 राजस्थान 107
(4) व्यक्ति जो गोद लिया जा सकता है- धारा 10 (4) के अनुसार वह व्यक्ति जिसने 15 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की हो उसे गोद लिया जा सकता है -- अभीनिर्धारित -- यदि पक्षकारों मैं लागू कोई रिवाज यह प्रथा 15 वर्ष की आयु पूरी कर चुके व्यक्तियों को गोद लेने की अनुमति देता
हो तो उसे गोद लिया जा सकता है।
2004 (3) RLW ( ,Raj.)1980
(5) दत्तक किस प्रकार विधिमान्य हो? यदि धार्मिक अनुष्ठान पुरा ना हो वास्तविक( सपुर्दगी) सौपने को सिद्ध करना पड़ेगा।
1995 (1) DNJ (Raj.) 64
(6) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 - धारा 96- गोद पुत्र के रुप में पोषण हेतु वाद विचारण न्यायालय द्वारा खारिज किया गया-- गोद के समय वादी 16 वर्ष की आयु का था -- रिवाज या प्रथा का अभिवचन नहीं किया गया न साबित किया -- वादी ने बयान किया कि उसे 14 -01-1984 को गोद लिया गया लेकिन बाद में कुछ विवाद हुआ -- विवाद के निपटारे के बाद पर्दश 1 गोदनामा निष्पादित किया -- धारा 16 के प्रावधान की अपालना -- प्राकृतिक माता व गोदमाता ने गवाह के रूप पर हस्ताक्षर किए-- कानून की दृष्टि में गोद वैध नहीं-- प्राकृतिक माता को साक्षी मैं पेश नहीं किया और यह तात्विक लोप है -- धारा 5 के प्रावधान का उल्लंघन-- निर्णित, अपील सारहीन है व खारिज की।
2015 (2) DNJ (Raj.)552
नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी लिंक निचे दी गयी हैं। आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से नई जानकारी के लिए जुड़े रहे।
17 y old girl she dont no her mother and father..... and also dont know her birth,cast, any riletive, she is alon live her life in a hostel,,,, BUT she want to live with mi legally as my wife for her bright future but i am alredy married so what should i can do legally.....?
ReplyDeleteReplay must........
17 y old girl she dont no her mother and father..... and also dont know her birth,cast, any riletive, she is alon live her life in a hostel,,,, BUT she want to live with mi legally as my wife for her bright future but i am alredy married so what should i can do legally.....?
ReplyDeleteReplay must........
Tharki
ReplyDeleteThis is very helpful website and helpful article
ReplyDelete