निष्पादन के लिए आवेदन - आदेश 21 नियम 10 से 23 सी पी सी
आदेश 21 के नियम 10 से 23 तक में निष्पादन के लिए आवेदन किए जाने के बारे में प्रावधान किया गया है। प्रत्येक आज्ञप्ति धारी उस न्यायालय से आज्ञप्ति पारित की है, उस आज्ञप्ति के निष्पादन के लिए आवेदन कर सकेगा तथा ऐसा आवेदन लिखित या मौखिक हो सकेगा। डिक्री और आदेशों का निष्पादन के लिए आवेदन किए जाने के बारे में प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 10 से 23 तक में किए गए हैं जो इस प्रकार है।
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नियम 10 -- निष्पादन के लिए आवेदन -
जहां डिक्री का र्धारक उसका निष्पादन करना चाहता है वहां वह डिक्री पारित करने के वाले न्यायालय से या इस निमित्त नियुक्त अधिकारी से ( यदि कोई हो) या यदि डिक्री किसी अन्य न्यायालय को इसमें इसके पूर्व अंतर्विष्टउपबंधों के अधीन भेजी गई है तो उस न्यायालय से या उसके उचित अधिकारी से आवेदन करेगा।
नियम 11-- मौखिक आवेदन -
(1) जहां डिक्री धन के संदाय के लिए है वहां, यदि निर्णित ऋणी न्यायालय की परी सीमाओं के भीतर में है तो, न्यायालय डिक्री पारित करने के समय डिक्रीदार द्वारा किए गए मौखिक आवेदन पर आदेश दे सकेगा की वारंट की तैयारी के पूर्व ही डिक्री का अविलंब निष्पादन निर्णित ऋणी की गिरफ्तारी द्वारा किया जाए।
(2) लिखित आवेदन - उसके सिवाय जैसा उपनियम ( द्वारा उपबंधित है, डिक्री के निष्पादन के लिए हर आवेदन लिखा हुआ और आवेदक या किसी अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसके बारे में न्यायालय को समाधान पर रुप से साबित कर दिया गया है कि वह मामले के तथ्यों से परिचित है, हस्ताक्षरित और सत्यापित होगा और उसमें सा निबंध रूप से निम्न विशिष्टियां होगी, अर्थात--
(क) वाद का संख्याक
(ख) पक्षकारों के नाम
(ग) डिक्री की तारीख
(घ) क्या डिक्री के विरुद्ध कोई अपील की गई है
(ड़) क्या डिक्री के पश्चात पक्षकारों के बीच कोई संदाय या विवाद ग्रस्त बात का कोई अन्य समायोजन हुआ है और (यदि कोई हुआ है तो) कितना या क्या
(च) क्या डिक्री के निष्पादन के लिए कोई आवेदन पहले किए गए हैं और (यदि कोई किए गए हैं तो ) कौन से हैं और ऐसे आवेदनों की तारीखें और उनके परिणाम;
(छ) डिक्री मदे शोध्य रकम, यदि कोई ब्याज हो तो उसके सहित या उसके द्वारा अनूदित अन्य अनुतोष किसी प्रति डिक्री की विशिष्टियां के सहित चाहे वह उस डिक्री की तारीख के पूर्व या पश्चात पारित की गई हो जिसका निष्पादन चाहा गया है;
(ज) अधिनिर्णय खर्चा कि (यदि कोई हो) रकम
(झ) उस व्यक्ति का नाम जिसके विरुद्ध डिक्री का निष्पादन छा गया है; तथा
(न) वह है ढंग जिस में न्यायालय की सहायता अपेक्षित है अथार्थ क्या--
(1) किसी विनिर्दिष्ट डिक्री संपत्ति के परिदान द्वारा;
(2) किसी संपत्ति की कुर्की द्वारा या कुर्की और विक्रय द्वारा या कुर्की के बिना विक्रय द्वारा;
(3) किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी और कारागार में निरोध द्वारा;
(4) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा:
(5) अन्यथा जो अनुदत्त अनुतोष की प्रकृति से अपेक्षित है।
(3) जिस न्यायालय से उप नियम (2)के अधीन आवेदन किया गया है, वह आवेदन से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह डिक्री की एक पुरानी प्रति पेश करें।
नियम 11 (क) - गिरफ्तारी के लिए आवेदन में आधार का कथित होना-- जहां निर्णित ऋणी गिरफ्तारी और कारागार में निरोध के लिए आवेदन किया जाता है वहां उसमें उन आधारों का जिन पर गिरफ्तारी के लिए आवेदन किया गया है कथन होगा या उसके साथ एक शपथपत्र होगा जिसमें उन आधारों का जिन पर गिरफ्तारी के लिए आवेदन किया गया है कथन होगा।
नियम 12- ऐसी जगम संपत्ति की कुर्की के लिए आवेदन जो निर्णित ऋणी के कब्जे में नहीं है -
जहां किसी ऐसे जंगम संपत्ति की कुर्की के लिए आवेदन किया गया है जो निर्णित ऋणी की है किंतु उसके कब्जे में नहीं है वहां डिक्री दार उस संपत्ति का जिस की कुर्की की जानी है युक्ति युक्त रूप से यथार्थ वर्णन अंतर्विष्ट करने वाली एक संपत्ति तालिका आवेदन के साथ उपाबंद करेगा।
नियम 13 - स्थावर संपत्ति की कुर्की के आवेदन में कुछ विशिष्ट या का अंतर्विष्ट होना - जहां निर्णित ऋणी की किसी स्थावर संपत्ति की कुर्की के लिए आवेदन किया जाता है वहां उस आवेदन के पाद भाग में निम्नलिखित बातें अंतर्विष्ट होगी अथार्त--
(क) ऐसी संपत्ति का ऐसा वर्णन जो उसे पहचान के लिए पर्याप्त है और उस दशा में जिसमें ऐसी संपत्ति सीमाओं द्वारा या भू वस्थापन या सर्वेक्षण के अभिलेख के संख्या को के द्वारा पहचान की जा सकती है ऐसी सीमाओं या संख्यकों का विनिर्देश; तथा
(ख)निर्णित ऋणी का ऐसी संपत्ति में जो अंश या हित आवेदक के सर्वोत्तम विश्वास के अनुसार है और जहां तक वह उसका अभिनिश्चय कर पाया हो वहां तक उस अंश या हित का विनिर्देश।
नियम 14 - कलेक्टर के रजिस्टर् मैं से प्रमाणित उद्धरण की कुछ दशाओं में अपेक्षा करने की शक्ति - जहां किसी ऐसे भूमि थी कुर्की के लिए आवेदन किया जाता है जो कलेक्टर के कार्यालय में रजिस्ट्रीकृत है वहां न्यायालय आवेदक से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उस भूमि के स्वतधारी के रुप में या उस भूमि में या उसके राजस्व में कोई अंतरनिय हित रखने वाले के रुप में या उस भूमि के लिए राजस्व देने के दायीं के रूप में रजिस्टर में दर्ज व्यक्तियों का और रजिस्टर में दर्ज स्वतधारियों के अंशो को विनिर्दिष्ट करने वाला प्रमाणित उद्धरण ऐसे कार्यालय के रजिस्टर में से पेश करें।
नियम 15 - संयुक्त डिक्रीदार द्वारा निष्पादन के लिए आवेदन -
(1) जहां डिक्री एक से अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप से पारित की गई है वहां जब तक कि डिक्री में इसके प्रतिकूल कोई शर्त अधिरोपित ना हो, पूरी डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन ऐसे व्यक्तियों में से कोई एक या अधिक अपने सभी के फायदे के लिए या जहां उनमें से किसी की मृत्यु हो गई हो वहां मृतक के उत्तर जीवियो और विधिक प्रतिनिधियों के फायदे के लिए कर सकेगा।
(2) जहां न्यायालय डिक्री का निष्पादन इस नियम के अधीन किए गए आवेदन पर अनुज्ञात करने के लिए पर्याप्त हेतुक देखें वहां वह ऐसा आदेश करेगा जो वह उन व्यक्तियों के जो आवेदन करने में सम्मिलित नहीं हुई है, हितों के संरक्षण के लिए आवश्यक समझें।
नियम 16 - डिक्री के अंतरीति के द्वारा निष्पादन के लिए आवेदन - जहां किसी डिक्री का या, यदि कोई डिक्री दो या अधिक व्यक्तियों के पक्ष में संयुक्त रूप से पारित की गई हो तो डिक्री में किसी डिक्रीदार के हित का अंतरण लिखित समनुदेशन द्वारा या विधि की क्रिया द्वारा हो गया है वहां अंतरति उस न्यायालय से जिसने डिक्री पारित की थी डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन कर सकेगा और डिक्री उसी रीति से और उन्हीं शर्तों के अधीन रहते हुए इस प्रकार निष्पादित की जा सकेगी मानो आवेदन ऐसे डिक्री दार के द्वारा किया गया हो;
परंतु जहां डिक्री के पूर्वोक्त जैसे हित का अंतरण समनुदेशन द्वारा किया गया है वहां ऐसे आवेदन की सूचना अंतरक और निर्णित ऋणी को दी जाएगी और जब तक न्यायालय ने डिक्री के निष्पादन के बारे में उनके आक्षेपों को (यदि कोई हो) ना सुन लिया हो तब तक यह निष्पादित नहीं की जाएगी,;
परंतु यह और भी कि जहां दो या अधिक व्यक्तियों के विरुद्ध धन के संदाय की डिक्री उनमें से एक को अंतरित की गई है वहां वह अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध निष्पादित नहीं की जाएगी
स्पष्टीकरण- इस नियम की कोई बात धारा 146 के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी और उस संपत्ति में जो वाद की विषय वस्तु है, और अधिकारों का कोई अंतरित डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन, इस नियम द्वारा यथा अपेक्षित डिक्री के पृथक समनुदेशन के बिना कर सकेगा
नियम 17 - डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन प्राप्त होने पर प्रक्रिया -
(1) डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन नियम 11 के उपनियम (2) द्वारा रूप से प्राप्त होने पर न्यायालय यह अभीनिश्चित करेगा की क्या नियम 11 से14 तक की अपेक्षा में से जो उस मामले में लागू है,अनुपालन किया जा चुका है और यदि उनका अनुपालन नहीं किया गया है तो न्यायालय त्रुटि का तभी और वहां ही या उस समय के भीतर, जो उसके द्वारा नियत किया जाएगा, दूसर किया जाना अनुज्ञात करेगा।
(1क) यदि त्रुटि इस प्रकार दूर नहीं की जाती है न्यायालय आवेदन को नामंजूर करेगा;
परंतु जहां न्यायालय की राय में नियम 11 के उपनियम (2) के खंड (छ) और (ज) मैं निर्दिष्ट रकम के बारे में कोई अशुद्धि हो वहां नयालय आवेदन को नामंजूर करने की बजाय (रकम को अंतिम रुप से विनिश्चित कराने के पक्षकारों के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना) अंतिम रूप से रकम विनिश्चित करेगा और इस प्रकार अंतिम रूप से विनिश्चित रकम वाली डिक्री के निष्पादन के लिए आदेश करेगा।
(2) जहां आवेदन उपनियम (1) के उपबंधों के अधीन संशोधित किया जाता है वहां वह विधि के अनुसार और उस तारीख को जिसको वह पहले पेश किया गया था, पेश किया गया समझा जाएगा।
(3) इस नियम के अधीन किया गया हर संशोधन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित या इनिशियल किया जाएगा।
(4) जब आदेश ग्रहण कर लिया जाए तब न्यायालय उचित रजिस्टर में आवेदन का टिप्पण और वह तारीख जिस दिन वह दिया गया था, प्रविष्ट करेगा और इसमें इसके पश्चात अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, आवेदन की प्रकृति के अनुसार डिक्री के निष्पादन के लिए आदेश देगा;
परंतु धन के संदाय के लिए डिक्री की दशा में कुर्क की गई संपत्ति का मूल्य डिक्री के अधीन शोध्य रकम के यथाशक्य लगभग बराबर होगा।
नियम18-- प्रतिडिक्री की दशा में निष्पादन-
(1) जहां न्यायालय से आवेदन ऐसी डिक्री के निष्पादन के लिए किया जाता है जो 2 राशियों के संदाय के लिए प्रथक प्रथक वादों में उन्हें पक्षकारों के बीच पारित की गई है और ऐसे न्यायालय द्वारा एक ही समय निष्पादनीय है, वहां--
(क) यदि दोनों राशियां बराबर है तो दोनों डिग्रियों ने तुष्टि की पुष्टि कर दी जाएगी, तथा
(ख) यदि दोनों राशियां बराबर नहीं है तो बड़ी राशि वाली डिक्री के धारक द्वारा ही और केवल उतनी ही राशि के लिए जो छोटी राशि को घटाने के पश्चात शेष रहती है, निष्पादन कराया जा सकेगा और बड़ी राशि वाली डिक्री में छोटी राशि की तुष्टि की प्रविष्टि कर दी जाएगी और साथ ही साथ छोटी वाली डिक्री में भी तुष्टि की प्रविष्टि कर दी जाएगी।
(2) इस नियम के बारे में यह समझा जायेगा कि यह वहां लागू है जहां दोनों में से कोई पक्षकार उन डिक्रियो मैं से एक का समनुदेशित थी द्वारा शोध्य निर्णित ऋणी को।
(3) इस नियम के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि यह लागू है जब तक कि--
(क) उन वादों में से जिनमें डिक्रिया की गई है एक में का डिक्रीदार दूसरे में का निर्णित ऋणी ना हो और हर एक पक्षकार दोनों वादों मैं एक सी ही हैसियत ना रखता हूं, तथा
(ख) डिक्रियो के अधीन शोध्य राशिया निश्चित न हो।
(4) कई व्यक्तियों के विरुद्ध संयुक्त और पृथकत पारित डिक्री का धारक अपनी डिग्री को ऐसे डिक्री के संबंध में जो ऐसे व्यक्तियों में एक या अधिक के पक्ष में अकेले उसके विरुद्ध पारित की गई हो प्रति डिक्री के रूप में बरत सकेगा।
नियम (19) एक ही डिक्री के अधीन प्रतिदावा की दशा में निष्पादन -
जहां न्यायालय से आवेदन ऐसी डिक्री के निष्पादन के लिए किया गया है जिसके अधीन दो पक्ष कार एक-दूसरे से धन की राशियां वसूल करने के हकदार हैं, वहां--
(क) यदि दोनों राशियां बराबर है तो दोनों के लिए तुष्टि की प्रविष्टि डिक्री में कर दी जाएगी; तथा
(ख) यदि दोनों राशियां बराबर नहीं है तो बड़ी राशि के हकदार पक्षकार द्वारा ही उतनी ही राशि के लिए जो छोटी राशि घटाने के पश्चात शेष रहती है, निष्पादन कराया जा सकेगा, और छोटी राशि की तुष्टि की प्रविष्टि डिक्री में कर दी जाएगी।
नियम 20-- बंधक वादों में प्रति डिक्रिया और प्रतिदावे--
नियम 18 और नियम 19 मैं अंतर्विष्ट उपबंध, बंधक या भार का प्रवर्तन कराने में विक्रय की डिग्रियों को लागू होंगे।
नियम 21-- एक साथ निष्पादन-- न्यायालय निर्णित ऋणी के शरीर और संपत्ति के विरुद्ध एक साथ निष्पादन करने से इनकार स्व विवेकानुसार कर सकेगा।
नियम 22-- कुछ दशाओं में निष्पादन के विरुद्ध हेतु दर्शित करने की सूचना--(1) जहां निष्पादन के लिए आवेदन--
(क) डिक्री की तारीख के 2 वर्ष के पश्चात किया गया है, अथवा
(ख) डिक्री के पक्षकार के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध किया गया है, अथवा जहां धारा 44क के उपबंधों के अधीन फाइल की गई डिक्री के निष्पादन के लिए आवेदन किया गया है, अथवा
(ग) जहां डिक्री का पक्षकार दिवालिया न्याय निर्णयनिर्मित किया गया है वहां दिवाले में समनुदेशित या रिसीवर के विरुद्ध किया गया है,
वहां डिक्री निष्पादन करने वाला न्यायालय उस व्यक्ति के प्रति, जिसके विरुद्ध निष्पादन के लिए आवेदन किया गया है, यह अपेक्षा करने वाली सूचना निकालेगा कि वह उस तारीख को जो नियत की जाएगी, हेतुक दर्शित करें की डिक्री उसके विरुद्ध निष्पादित क्यों न की जाए;
परंतु ऐसी कोई सूचना ना तो डिक्री की तारीख और निष्पादन के लिए आवेदन की तारीख के बीच 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के परिणाम स्वरुप उस दशा में आवश्यक होगी जिसमें की निष्पादन के लिए किसी पूर्वतन आदेश पर उस पक्षकार के विरुद्ध, जिसके विरुद्ध निष्पादन के लिए आवेदन किया गया है, किए गए अंतिम आदेश की तारीख से 2 वर्ष के भीतर ही निष्पादन के लिए आवेदन कर दिया गया है और न निर्णित ऋणी के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध आवेदन किए जाने के परिणाम स्वरुप उस दशा में आवश्यक होगी जिसमें कि उसी व्यक्ति के विरुद्ध निष्पादन के लिए प्र्वतन आवेदन पर न्यायालय उसके विरुद्ध निष्पादन चालू करने का आदेश दे चुका है।
(2) पूर्वगामी उपनियम की कोई भी बात उस उपनियम द्वारा विहित सूचना निकाले बिना डिक्री के निष्पादन में कोई आदेशिका निकालने से न्यायालय को प्रवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी, यदि उन कारणों से जो लेख बंद किए जाएंगे, उसका विचार हो कि ऐसी सूचना निकालने से अयुक्तियुक्त विलम्ब होगा या न्याय के उद्देश्य विफल हो जाएंगे।
नियम 22क -- विक्रय से पूर्व किंतु विक्रय की उद्घोषणा की तमिल के पश्चात निर्णित ऋणी की मृत्यु पर विक्रय का अपास्त ना किया जाना--
जहां किसी संपत्ति का किसी डिक्री के निष्पादन में विक्रय किया जाता है वहां केवल इस कारण की विक्रय की उद्घोषणा के जारी किए जाने की तारीख और विक्रय की तारीख के बीच निर्णीत ऋणी की मृत्यु हो गई है और इस बात के होते हुए भी विक्रय अपास्त नहीं किया जाएगा कि डिक्री दार ऐसे मृत निर्णित ऋणी के विधिक प्रतिनिधि को उसके स्थान पर रखने में असफल रहा है, किंतु ऐसी असफलता की दशा में न्यायालय न्यायालय विक्रय को उस दशा में अपास्त कर सकेगा जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि विक्रय का म्रत निर्णीत ऋणी के लिए विधिक प्रतिनिधि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
नियम 23-- सूचना निकल जाने के पश्चात प्रक्रिया-
(1) जहां वह व्यक्ति जिसके नाम नियम 22 के अधीन सूचना निकाली गई है उपसंजात नहीं होता है या न्यायालय को समाधानप्रद रुप से हेतुक दर्शित नहीं करता है की डिक्री का निष्पादन क्यों न किया जाए वहां न्यायालय आदेश देगा कि डिक्री का निष्पादन किया जाए।
(2) जहां ऐसा व्यक्ति डिक्री के निष्पादन के विरुद्ध कोई आआक्षेप पेश करता है वहां न्यायालय ऐसे आक्षेप पर विचार करेगा और ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय --
(1) प्रत्येक आज्ञप्ति धारी उच्च न्यायालय से जिसने आज्ञप्ति पारित की है, उस आज्ञप्ति के निष्पादन के लिए आवेदन कर सकेगा।
ए आई आर 1973 सुप्रीम कोर्ट 2065
(2) आदेश 21 नियम 11 उपनियम (1) द्वारा उपबंधित को छोड़कर आज्ञप्ति के निष्पादन के लिए प्रत्येक आवेदन लिखित में और आवेदक या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इसके बारे में कि न्यायालय को समाधानप्रद पर रूप मैं सिद्ध कर दिया गया है कि वह मामले के तथ्यों से परिचित है, हस्ताक्षरित एवं सत्यापित होगा और उसमें सारणीबद्ध रूप में नियम 11 उपनियम (2) मैं उल्लेखित विशिष्टियां अंतर्विष्ट होगी।
ए आई आर 1961 सुप्रीम कोर्ट 1969
(3) किसी संयुक्त डिक्री का निष्पादन समस्त डिग्रीधारियों के लाभ के लिए किसी एक डिक्री धारी है द्वारा किया जा सकेगा बशर्ते कि कोई अन्यथा कारण ना हो।
ए आई आर 1981 इलाहाबाद 280
(4) यदि निष्पादन की कार्रवाई डिक्री पारित होने के 2 वर्ष बाद संस्थित की जाती है तो उसकी सूचना निर्णीत ऋणी को दीया जाना आवश्यक ।जहां कब्जा प्राप्त करने के लिए पारित डिक्री के 6 वर्ष बाद निष्पादन की कार्रवाई की जाती है वहां निर्णित ऋणी को हेतु दर्शित करने के लिए नोटिस दिया जाना आवश्यक है।ऐसा नोटिस दिए बिना कब्जे के वारंट जारी कर देना अविधिमान्य है।
ए आई आर 1986 हिमाचल प्रदेश 3
(5) किसी आज्ञप्ति के निष्पादन के लिए किसी न्यायालय का क्षेत्राधिकार केवल इस आधार पर समाप्त नहीं हो जाएगा कि वाद संस्थित किए जाने के पश्चात अथवा आज्ञप्ति पारित किए जाने के पश्चात कोई क्षेत्र उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में किसी अन्य न्यायालय में स्थांतरित हो गया है।
ए आई आर 1973 सुप्रीम कोर्ट 528
(6) यदि कोई न्यायालय स्थांतरित हो जाता है तो ऐसी अवस्था में वह न्यायालय भी जिसके क्षेत्राधिकार में ऐसा स्थांतरित पर हुआ है, आज्ञप्ति का निष्पादन कर सकेगा।
ए आई आर 1969 गुजरात 141
(7) धारा 39 के अंतर्गत आज्ञप्ति धारी द्वारा आवेदन किया जाने पर, आज्ञप्ति पारित करने वाला न्यायालय किसी आज्ञप्ति को निष्पादन के लिए ऐसे किसी सक्षम क्षेत्र अधिकार वाले न्यायालय को भेज सकेंगा।
ए आई आर 1971 राजस्थान 30
(8) आदेश 21 नियम 10 सपठित आदेश 6 नियम 17-- संपत्ति अंतरण अधिनियम- धारा 109- बेदखली व किराए की चूक हेतु वाद लंबित- वादग्रस्त मकान का विक्रय-- नए क्रेता ने वाद में संशोधन मांगा और वादी की पंक्ति में जुड़ गया-- इस संशोधन को चुनौती दी गई-- अभिनिर्धारित, ऐसा आदेश अधिकारिता से आगे है और पक्षकारों के अभीवचनों के विपरीत है- सद्भभाविक आवश्यकता का हक पश्चात में हुए विक्रय के साथ हस्तांतरित नहीं होगा-- सद्भभाविक आवश्यकता तो प्रत्येक मामले में अलग-अलग व्यक्तिपरक विवेचित होती है।
1996 (2) DNJ (Raj.)584
(9) आदेश 21 नियम 15-- स्टांप अधिनियम, 1899-- धारा 36 एवं 42(2)-- विभाजन डिक्री, धारा 42(2 )के उपबंध प्रयोज्य है- क्या यह स्टांप पेपर पर लिखी जाने वाली चाहिए-- अभी अनिर्धारित-- नहीं।
1997 (1)DNJ (Raj.) 159
(10)आदेश 21 नियम 17 (4)-- इस प्रावधान का आदेश-- जब निष्पादन का आदेश सही रूप से प्रस्तुत हो जावे तो निष्पादन न्यायालय के समक्ष एक ही मार्ग है कि उसका निष्पादन तत्काल करावे- यही एकमात्र मार्ग है और एक ही अपवाद इस आदेश के नियम 22 में है जो 2 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने पर प्रभावशाली होता है-- प्रस्तुत मामले में निष्पादन कार्यालय ने तात्विक अनियमितता की त्रुटि, नोटिस निकाल कर की है जबकि न्यायालय को निष्पादन हेतु तत्काल कार्रवाई करनी थी।
1997 (2) DNJ (Raj) 426
(11) आदेश 21 नियम 22 -- निष्कासन की डिक्री -- निष्पादन आवेदन पत्र 5 वर्ष बाद पेश किया -- आदेश 21 नियम 22 के अधीन नोटिस की आवश्यकता-- प्रार्थी के पिता ने दित्तीय अपील पेश की जो सन 1988 में राजीनामा से खारिज हुई- प्रार्थी पर आदेश 22 नियम 3 व आदेश 21 नियम 66 के अधीन नोटिस की तामील-- प्रार्थी पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा- अधिकारिता की त्रुटि नहीं -प्रार्थी ने नई किराया दारी की स्पष्ट तारीख का उल्लेख नहीं किया-- द्वितीय अपील के लंबित होते हुए किरायेदारी उत्पन्न नहीं की जा सकती है-- अन्य विधिक प्रतिनिधियों को नोटिस की आवश्यकता नहीं क्योंकि प्रार्थी का ही दुकान पर आधिपत्य है-- अभी निर्धारित -- पुनरीक्षण मैं सार नहीं है एवं रद्द की गई।
1996 (1) DNJ (Raj.)151
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Rcms me avedan nirast ho jaye to punh prakriya me liya ja sakta h kya
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