आदेशों से अपील - धारा 104 से 106 एवं आदेश 43 सिविल व्यवहार प्रक्रिया संहिता।Appeals From Orders--Section 104 To 106 And Order 43 CPC.
आज्ञप्ति की तरह प्रत्येक आदेश अपील योग्य नहीं होता है। कुछ ही ऐसे आदेश है जिनके विरुद्ध अपील की जा सकती है। ऐसे आदेशों के बारे में प्रावधान संहिता की धारा 104 से 106 तक एवं आदेश 43 में किया गया। सिविल प्रक्रिया संहिता में धारा 104 से 106 निम्न प्रकार से उपबंधित की गई है --
आपकी सुविधा के लिए हमारी website का APP DOWNLOAD करने के लिए यह क्लीक करे -
APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE
धारा 104--- वे आदेश जिनकी की अपील होगी-
(1) निम्नलिखित आदेश की अपील होगी-
(1) धारा 35(क) के अधीन आदेश;
(2) धारा 91 के अधीन यथा स्थिति, धारा 91 या धारा 92 मैं निर्दिष्ट प्रकृति के बाद को संस्थित करने के लिए इजाजत देने से इनकार करने वाला आदेश;
(3) धारा 95 के अधीन आदेश;
(4) इस संहिता के उपबंधों में से किसी के भी अधीन ऐसा आदेश, जो जुर्माना अधिरोपित करता है या किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या सिविल कारागार में निरोध निर्दिष्ट करता है, वहां के सिवाय जहां की ऐसी गिरफ्तारी या निरोध किसी डिक्री के निष्पादन में है;
(5) नियमों के अध्ययन किया गया कोई ऐसा आदेश जिसकी अपील नियमों द्वारा अभिव्यक्त रूप से अनुज्ञात है, और इस संहिता के पाठ में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित के सिवाय किसी भी अन्य देशों की अपील नहीं होगी;
परंतु खंड (चच) मैं विनिर्दिष्ट किसी भी आदेश की कोई भी अपील केवल इस आधार पर ही होगी कि कोई आदेश किया ही नहीं जाना चाहिए था या आदेश कम रकम के संदाय के लिए किया जाना चाहिए था।
(2) इस धारा के अधीन अपील मैं पारित किसी भी आदेश की कोई भी अपील नहीं होगी।
धारा 105 - अन्य आदेश-
(1) अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी न्यायालय द्वारा अपनी आरंभिक या अपीलीय अधिकारिता के प्रयोग में किए गए किसी भी आदेश की कोई भी अपील नहीं होगी, किंतु जहां डिक्री की अपील की जाती है वहां किसी आदेश में की ऐसी गलती त्रुटि या अनियमित, जिसमें मामले के विनिश्चय पर प्रभाव पड़ता है, अपील ज्ञापन मैं आक्षेप के आधार के रूप में उपवर्णित की जा सकेगी।
धारा 106-- कौन से न्यायालय अपील सुनेंगे-- जहां किसी आदेश की अपील अनुज्ञात है, वहां वह उस न्यायालय में होगी, जिसमें उस वाद की डिक्री की अपील होती है जिसमें ऐसा आदेश किया गया था, या जहां ऐसा आदेश अपीली अधिकारिता के प्रयोग में किसी न्यायालय द्वारा (जो उच्च न्यायालय नहीं है )किया जाता है वहां वह उच्च न्यायालय में होगी।
इस प्रकार संहिता की धारा 104 (1) के अंतर्गत उन आदेशों का उल्लेख किया गया है, जिनके विरुद्ध अपील की जा सकती है जो सरल भाषा में निम्नानुसार है-
१. धारा 35 ए के अंतर्गत कोई आदेश - संहिता की धारा 35 ए विशेष प्रदान करने के बारे में व्यवस्था करती है;
२. धारा 91 व 92 के अंतर्गत वाह संस्कृत करने की अनुमति के लिए इनकार किया जाने वाला कोई आदेश:
संहिता की धारा 91 व 92 मैं क्रमश लोक अपदूषण या धार्मिक न्यास के संबंध में वाद संस्थित किए जाने की व्यवस्था की गई है।
३. धारा 95 के अंतर्गत कोई आदेश;
संहिता की धारा 95 में अपर्याप्त आधारों पर गिरफ्तारी, कुर्की, या व्यादेश अभीप्राप्त करने के लिए प्रतिकार के बारे में व्यवस्था की गई है।
४. किसी आज्ञप्ति के निष्पादन के अतिरिक्त संहिता के अधीन कोई जुर्माना अधिरोपित करने वाला या किसी व्यक्ति के निरोध या उसकी गिरफ्तारी का निर्देश करने वाला कोई आदेश।
५. ऐसे नियमों के अंतर्गत दिया गया कोई आदेश जिनमें नियमों द्वारा अभिव्यक्त रूप से अपील अनुज्ञात की गई हो।
इन आदेशों के विरुद्ध अपील तभी की जा सकती है जबकि उसमें विधि या प्रक्रिया संबंध में कोई गलती, त्रुटि या अनियमितता की गई हो। इन्हें किसी तथ्य के प्रश्नों के आधार पर अपील नहीं की जा सकती है।
धारा 105 में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि जहां अपील योग्य आदेशों के मामले में, जिनमें की अपील की जा सकती है, कोई अपील नहीं की जाती है, वहां ऐसे आदेशों को आज्ञप्ति से की गई अपील में अपील का विषय बनाया जा सकता है, तथा उनके प्रति आपत्ती की जा सकती है। ऐसी कोई विधि नहीं है जो किसी व्यक्ति को प्रत्येक अपील योग्य आदेश से अपील करने के लिए बाध्य करें। अपील न की जाने योग्य वाद के मामले में भी आदेश में कि किसी गलती त्रुटि या अनियमितता को अपील के ज्ञापन मैं आपत्ती के आधार के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
धारा 106 के अनुसार-- (1)
आदेश की अपील उसी न्यायालय में की जा सकेगी जिसमें कि उस बाद में को जिसमें ऐसा आदेश किया जाता है, आज्ञप्ति से अपील होती है।
(2) यदि आदेश करने वाला न्यायालय ऐसा आदेश अपील में करता है तो उस आदेश से अपील उच्च न्यायालय होगी।
आदेश 43 -- आदेशों की अपील -
आदेश 43 नियम 1 आदेशों की अपील - धारा 104 के उपबंधों के अधीननिम्नलिखित आदेशों की अपील होगी अर्थात--
(क) वाद पत्र में उचित न्यायालय में उपस्थित किए जाने के लिए लौटाने का आदेश जो आदेश 7 के नियम 10 के अधीन दिया गया हो, सिवाय उस दशा के जब आदेश 7 नियम 10(क) में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण में किया गया हो
(ख) हटाया गया
(ग) वाद की खरीजी को अपास्त करने के आदेश के लिए (ऐसे मामलों में जिसमें अपील होती है )आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 9 के नियम 9 के अधीन दिया गया हो;
(घ) एकपक्षीय पारित बिक्री को अपास्त करने के आदेश के लिए (ऐसे मामले में जिस में अपील होती है) आवेदन के नामंजूर करने का आदेश 9 नियम 13 के अधीन किया गया हो;
(च) आदेश 11 के नियम 21 के अधीन आदेश;
(झ) दस्तावेज के या पृष्ठांकन के प्रारूप पर किए गए आक्षेप पर आदेश जो आदेश 21 के नियम 34 के अधीन दिया गया हो; ( ण)विक्रय को अपास्त करने का या अपास्त करने से इनकार करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 72 या नियम 92 के अधीन दिया गया हो;
(णक) आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 21 के नियम 106 के उप नियम (1) के अधीन किया गया हो परंतु मूल आवेदन पर अर्थार्थ उस आदेश के नियम 105 के उपनियम (1) में निर्दिष्ट आवेदन पर आदेश अपीलनिय है;
(ट) वाद के उपशमन या खारीजी को अपास्त करने से इनकार करने का आदेश जो आदेश 22 नियम 9 के अधीन दिया गया हो;
(ढ) वाद की खरीदी को अपास्त करने के आदेश के लिए (ऐसे मामले में जिस में अपील होती है) आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 25 के नियम (2) के अधीन दिया गया हो;
(ढ क) निर्धन व्यक्ति के रूप में वाद लाने की अनुज्ञा के लिए आवेदन को नामंजूर करने का आदेश जो आदेश 33 के नियम 5 या नियम 7 के अधीन दिया गया हो;
(त) अंतराविभाची वादों में आदेश जो आदेश 35 के नियम 3 -4 या नियम 6 के अधीन दिया गया हो;
(थ) आदेश 38 के नियम 2 नियम 3 या नियम 6 के अधीन आदेश;
(द) आदेश 39 के नियम 1 नियम 2 नियम 2(क) , नियम 4 या नियम 10 के अधीन आदेश;
(ध) 40 के नियम 1 या नियम 4 के अधीन आदेश;
(न) अपील को आदेश 41 के नियम 19 के अधीन पुनः ग्रहण करने या आदेश 41 के नियम 21 के अधीन पुनः सुननेहै से इनकार करने का आदेश;
(प) जहां अपील न्यायालय की डिक्री की अपील होती हो वहां मामले को प्रतिप्रेषित करने का आदेश जो आदेश 41 के नियम 23 या नियम 23 (क) के अधीन दिया गया हो;
(ब) पुनर्विलोकन के लिए आवेदन मंजूर करने का आदेश 43 के नियम 4 के अधीन दिया गया।
(1क) डिक्रीयो के विरुद्ध अपील में के ऐसे आदर्शों पर आक्षेप करने का अधिकार जिनकी अपील नहीं की जा सकती --(1) जहां इस संहिता के अधीन कोई आदेश किसी पक्षकार के विरुद्ध किया जाता है और तदुपरांत निर्णय ऐसे पक्षकार के विरुद्ध सुनाया जाता है और डिक्री तैयार की जाती है वहां ऐसा पक्षकार डिक्री के विरुद्ध अपील में यह प्रतिवाद कर सकेगा कि ऐसा आदेश नहीं किया जाना चाहिए था और निर्णय नहीं सुना है जाना चाहिए था।
(2) ऐसी डिक्री के विरुद्ध अपील में जो समझौता अभिलिखित करने के पश्चात या समझौता अभिलिखित किया जाना नामंजूर करने के पश्चात वाद में पारित की गई है, अपीलार्थी को इस आधार पर डिक्री का प्रतिवाद करने की स्वतंत्रता होगी कि समझौता अभिलिखित किया जाना चाहिए था या नहीं किया जाना चाहिए था।
(2) प्रक्रिया -- आदेश 41 के नियम आदेशों की अपीलों को जहां तक हो सके लागू होंगे।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय --
(1) किसके आदेश से की गई अपील में पारित किए गए आदेश से द्वितीय अपील नहीं होगी।
ए आई आर 1977 इलाहाबाद 109
(2) आदर्शों के विरुद्ध अपील तभी की जा सकती है जबकि उसमें विधि या प्रक्रिया संबंध मैं कोई गलती, त्रुटि, या अनियमता की गई हो। इनमें किसी तथ्यों के प्रश्नों के आधार पर अपील नहीं की जा सकती है।
12 इलाहाबाद 200
(3) द्वितीय अपील विधि के किसी सारभूत प्रश्न के आधार पर ही संधारण योग्य है तथा तथ्य के निष्कर्ष के निष्कर्ष के आधार पर नहीं।
ए आई आर 1986 मध्य प्रदेश 70
(4) शब्द " वाद" में "अपील" भी सम्मिलित है; अतः किसी अपील के उपशमन को अपास्त करने से इनकार करने के आदेश के विरुद्ध अपील संस्थित की जा सकेगी।
ए आई आर 1982 दिल्ली 14
(5) धारा 104 सपठित आदेश 43 नियम 1-- व्यादेश अस्वीकार करने के विरुद्ध-- वादी अपील- प्लांट डॉक्टर है जो प्रतिवादी रेस्पोंडेंट के परिसर में एक अस्पताल स्थापित करना चाहते थे वादी द्वारा दिए गए नक्शे के अनुसार जमीन पर निर्माण कराने का प्रतिवादी ने कहा। यह मौखिक समझ थी। प्रतिवादी का एक लिखित समझौता भी तैयार हुआ जो बैंक से ऋण लेने के लिए था। अभिनिर्धारित-- मौखिक समझ जिसमें किसी दिनांक का निर्देश नहीं है, संदेहास्पद है-- वादी का सारा मामला तथ्य हिन होने से गिर जाता है। पक्षकारों के मध्य जो भी है वह लिखित समझोता है जो केवल बैंक ऋण हेतु है, इस समझौते से कोई स्पष्ट हक वादी गण को प्राप्त नहीं होते हैं, वादी के पक्ष में रक्षा करने हेतु कोई हक ही नहीं है।
1998 (2) DNJ (Raj.)557
(6) आदेश 43 नियम 1-- अपीलीय न्यायालय द्वारा एक पक्षीय आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील स्वीकार की एवं प्रकरण प्रति प्रेषित किया-- किसी भी पक्ष के द्वारा साक्ष्य पेश नहीं की गई-- प्रति प्रेषण के पश्चात विचारण न्यायालय द्वारा पुरस्कारों के साक्ष्य के लिए वाद नियुक्त नहीं किया- उसी साक्ष्य पर पुनः वाद डिक्री किया-- अपीलीय न्यायालय ने पुनः निर्णय ,निरस्त किया एवं प्रकरण को प्रतिवादी द्वारा वादी के जीरह के लिए प्रति प्रेषित किया-- अभिनिर्धारित, आदेश में कोई अवैधता नहीं है।
1995(2) DNJ (Raj.)537
(7) आदेश 43 नियम 1- विचारण न्यायालय ने प्रतिवादी के वेद प्रतिनिधि को प्रतिस्थापित करने हेतु आवेदन खारिज किया,- आदेश के विरुद्ध अपील- पोषणीयता- अपील पोषणीय है।
1998 (2) DNJ (Raj.)606
(8) आदेश 40 नियम 1 एवं आदेश 7 नियम 10- वाद का लौटया जाना-- वाद कृषि भूमि से संबंधित एवं सविदा की विशिष्ट पालन के लिए वाद पेश किया-- जिला न्यायाधीश ने आदेश 7 नियम 10 का आवेदन स्वीकार किया- प्रतिवादी ने जवाब दावा पेश नहीं किया- इस स्टेज पर करार की वैधता नहीं देखी जा सकती-- सिविल न्यायालय की अधिकारिता- अभी निर्धारित- सिविल न्यायालय में वाद पोषणीय है एवं विचारण न्यायालय ने कानूनन त्रुटि की है।
1996 (2) DNJ (Raj.)527
(9) धारा 104 सपथित आदेश 43 नियम 1- क्या एक अपील न्यायालय द्वारा आदेश 43 नियम 1 सपथित धारा 104 के तहत पारित आदेश के विरुद्ध अपील पोषणीय थी - अभिनिर्धारित-- यदि धारा 104 (1) के तहत अपील पोषणीय है तो धारा 104 (2) के निबंधों मैं उसमें से आगे और अपील ,पोषणीय नहीं होगी -- विशिष्ट अधिनियम के मामले में जब विशिष्ट अधिनियम के तहत अपील का प्रावधान हो तो धारा 104 लागू नहीं होगी क्योंकि यह क्यों ऐसे अधिकार को ही मान्यता देती है लेकिन अपील के अधिकार का प्रावधान नहीं करती-- अपील पोषणीय नहीं, की पुष्टि की।
2005 (1) RLW (SC) 19
(10) धारा 104 सपठित आदेश 43 नियम 1- लेटर पेटेंट अपील - निर्वाचन- अधीनस्थ न्यायालय या जिला न्यायालय द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध आदेश 43 नियम (1) सपठित धारा 104 के तहत की गई अपील में उच्च न्यायालय के माननीय एकल न्यायाधीश द्वारा निस्तारित अपील में पारित आदेशों के विरुद्ध लेटर्स पेटेन्ट अपील नहीं होगी।
2005 (1) RLW (SC)19
(11) आदेश 43 नियम 1 (घ) और आदेश 9 नियम 13-- मोटर यान अधिनियम 1988- अधिकरण के समक्ष दायर प्रतिकार के लिए आवेदन में प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करने हेतु आदेश 9 नियम 13 के तहत आवेदन पर अधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध आदेश 43 नियम 1(घ) के तहत अपील की पोषणीयता -- अभिनिर्धारित-- 43 नियम 1 सिविल प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू नहीं होते हैं और आदेश 9 नियम 13 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत खारिज किए गए आवेदन में अपील पोषणीय ही नहीं थी -- व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका दायर करने का हकदार है।
2005 (4) RLW 2589
(12) आदेश 43 नियम 1(r) सपथित आदेश 39 नियम 1 और 2 -- आदेश 43 नियम (1) के तहत अपील स्वीकार की लेकिन अपील लंबित रहने के दौरान निषेधाज्ञा हेतु आवेदन खारिज किया-- अपीलार्थी को अधिभोग करने का पूर्ण अधिकार था, निषेधाज्ञा हेतु आवेदन इस आधार पर खारिज किया कि अपीलार्थी को कोई अपूरित क्षति नहीं होगी - अभिनिर्धारित-- निषेधाज्ञा प्रदान करने की बजाय सिविल न्यायाधीश (वरिष्ठ खंड) को त्वरित गति से वाद निर्णित करने के निर्देश दिए।
2005 (4) RLW (SC) 2920
नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी उपर दी गयी हैं। आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से नई जानकारी के लिए जुड़े रहे।
very useful and important sections and orders are mentioned. thanks a lot.
ReplyDeletebut pdf download option should be for further.