ORDER 23 CPC -WITHDRAWAL AND ADJUSTMENT OF SUITS (आदेश 23 सी पी सी --वादों का प्रत्याहरण और समायोजन ) - CIVIL LAW

Tuesday, September 5, 2017

ORDER 23 CPC -WITHDRAWAL AND ADJUSTMENT OF SUITS (आदेश 23 सी पी सी --वादों का प्रत्याहरण और समायोजन )

 ORDER 23 CPC -WITHDRAWAL AND ADJUSTMENT OF SUITS.
आदेश 23 सी पी सी --वादों का प्रत्याहरण और समायोजन

    न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य अधिकारों का प्रवर्तन एवम अनुतोष प्राप्त करना होना होता है और वह तब तक चलता रहता है, जब तक वादी को अनुतोष प्राप्त नहीं होता है।लेकिन वाद का न्यायनिर्णय तक चलता ही रहे यह आवश्यक नहीं है।पक्षकारो को वाद के किसी प्रक्रम पर समझौता,समायोजन आदि करने का अधिकार प्राप्त होता है।और ऐसा करने के लिए वे स्वतन्त्र होते हैं।ऐसी स्थिति में वाद का चलते रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।एवम वाद का प्रत्याहरण (Withdrawal) कर दिया जाता है।इस बाबत प्रावधान सहिंता के आदेश23 में किये गए हैं।यह संहिता का महत्वपूर्ण प्रावधान है।तथा वाद प्रस्तुत होने के बाद यदि वाद समझौते या अन्य प्रकार से वादी अपने अनुतोष बाबत संतुष्ट हैं तब अपना वाद विड्रॉल कर लेगा।संहिता में निम्न प्रकार से उपबन्ध किये गए है--


आदेश23नियम 1--वाद का प्रत्याहरण या वाद के भाग का परित्याग--(1)वाद प्रस्तुत करने के बाद किसी भी समय वादी सभी प्रतिवादियों या उनमें से किसी के विरुद्ध अपने वाद का परित्याग या अपने दावे के भाग का परित्याग कर सकेगा;

        परन्तु जहां वादी अवयस्क है या ऐसा व्यक्ति है, जिसे आदेश 32 के नियम1से नियम 14 तक के उपबंध लाग् होते हैं वहां न्यायलय की इजाजत के बिना न तो वाद का और न वाद के किसी भाग का परित्याग किया जायेगा।

 (2) उपनियम (1) के परन्तुक के अधीन इजाजत के लिए आवेदन के साथ वाद मित्र का शपथपत्र देना होगा और यदि अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति का प्रतिनिधित्व प्लीडर द्वारा किया जाता है तो, प्लीडर को इस आशय का प्रमाणपत्र भी देना होगा कि प्रस्थापित परित्याग उसकी राय में अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति के फायदे के लिए है।
(3) जहां न्यायलय को यह समाधान हो जाता है कि ---
(क) वाद किसी औपचारिक त्रुटि के कारण विफल हो जायेगा, अथवा
(ख) वाद की विषयवस्तु या वाद के भाग के लिए वाद प्रस्तुत करने के लिए वादी को अनुज्ञात करने के पर्याप्त आधार है,
    वहां वह ऐसे निबन्धनों पर जिन्हें वह ठीक समझे, वादी को ऐसे वाद की विषयवस्तु या दावे के ऐसे भाग के संबंध में नया वाद प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता रखते हुए ऐसे वाद से  या दावे के ऐसे भाग से अपने को प्रत्याहत करने की अनुज्ञा दे सकेगा।
(4) जहां वादी --
(क)) उपनियम (1) के अधीन किसी वाद का या दावे के भाग का परित्याग करता है, अथवा
(ख) उपनियम(3) में निर्दिष्ट अनुज्ञा के बिना वाद से या दावे के किसी भाग से प्रत्याहत कर लेता है,
    वहावह ऐसे खर्चे के लिए दायीं होगा जो न्यायलय अधिनिर्णीत करे और वह ऐसी विषयवस्तु या दावे के ऐसे भाग के बारे में कोई नया वाद प्रस्तुत करने से प्रवारित होगा।

(5) इस नियम के किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह न्यायलय को अनेक वादियो में से एक वादी को उपनियम (1) के अधीन वाद या दावे के किसी भाग का परित्याग करने या किसी वाद या दावे का अन्य वादियो की सहमति के बिना उपनियम (3) के अधीन प्रत्याहरण करने की अनुज्ञा देने के लिए प्राधिकृत करती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि वाद का विड्रॉल आदेश 23  नियम 1 के अनुसार ही किया जा सकता है।आदेश 23 नियम 1 को सरल भाषा में इस तरह से समझा जा सकता है--

वादी सभी या किन्ही प्रतिवादी     के विरुद्ध वाद या दावे के किसी भाग को किसी समय वापिस ले सकते हैं।
यदि वादी अवयस्क है या जिन पर आदेश 32 के नियम 1 से 14लागू होते हैं तो न्यायलय की अनुमति के बिना वाद वापिस नहीं लिया जा सकता है। न ही दावे के किसी भाग का परित्याग ही किया जा सकता है।
न्यायलय की अनुमति हेतु प्रस्तुत आवेदन के साथ इस आशय का शपथ पत्र देना होगा कि ऐसा किया जाना अवयस्क के हित में है व उसके लिए लाभदायक है।जो निम्न द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा --

 (क) वाद मित्र द्वारा;

(ख) यदि वादी ( अवयस्क)का प्रतिनिधित्व किसी अधिवक्ता के द्वारा किया जा रहा है तो ऐसे अधिवक्ता का शपथ पत्र दिया जा सकता है।

नियम 3 के अनुसार न्यायलय वादी को नया वाद प्रस्तुत करने का अधिकार सुरक्षित रखते हुए भी वाद विड्रॉल करने या दावे के किसी भाग को प्रत्याहत करने की अनुमति दे सकता है।
बिना न्यायलय की अनुमति के या अधिकार सुरक्षित रखे बिना वाद विड्रॉल किया जाता है या दावे के भाग का परित्याग किया जाता है तो नया वाद नहीं ला सकेगा।

सहिंता के नियम 1 क.- प्रतिवादियों का वादियो के रूप में पक्षान्तरण करने की अनुज्ञा कब दी जाएगी---जहा नियम 1के अधीन वादी द्वारा वाद का प्रत्याहरण या परित्याग किया जाता है और प्रतिवादी आदेश 1 नियम10 के अधीन वादी के रूप में पक्षान्तरित किये जाने के लिए आवेदन करता है वहां न्यायलय, ऐसे आवेदन पर विचार करते समय इस प्रशन पर सभ्यक ध्यान देगा कि क्या आवेदक का कोई ऐसा सारवान प्रश्न है जो अन्य प्रतिवादी मे से किसी के विरुद्ध विनिश्चय किया जाना है।

आदेश 1 नियम10 के विस्तृत जानकारी के लिए यहां Click करें।


आदेश23 नियम 2.--परिसीमा विधि पर पहले वाद का प्रभाव नहीं पड़ेगा --अंतिम पुरवर्ती नियम के अधीन दी गई अनुज्ञा पर संस्थित किसी भी नये वाद में वादी परिसीमा विधि उसी रीति से आबद्ध होगा मानो प्रथम वाद संस्थित नहीं किया गया हो।

आदेश 23 नियम3.-वाद में समझौता - जहां न्यायलय को समाधानप्रद रूप से यह साबित कर दिया जाता है कि वाद ( पक्षकारो द्वारा लिखित और हस्ताक्षरित किसी विधि पूर्ण करार या समझौते के द्वारा) पूर्णतः या भागतः समायोजित किया जा चुका है या जहां प्रतिवादी वाद की पूरी विषय वस्तु के या उसके किसी भाग के संबंध में वादी की तुष्टि कर देता है वहा न्यायलय ऐसे करार ,समझौते या तुष्टि के अभिलिखित किये जाने का आदेश करेगा और (जहा तक कि वह वाद के पक्षकारो से सम्बंधित, चाहे करार ,समझौते या तुष्टि की विषयवस्तु वहीं हो या न हो जो किवाद की विषयवस्तु है वहां तब तदनुसार डिक्री पारित करेगा;)

(परन्तु जहाँ एक पक्षकार द्वारा यह अभिकथन किया जाता है और दूसरे पक्षकार द्वारा यह इंकार किया जाता है कि कोई समायोजन या तुष्टि तय हुई थी वहां न्यायलय इस प्रशन का विनिश्चय करेगा किन्तु इस प्रशन के विनिश्चय के परियोजन के लिए किसी स्थगन की मंजूरी तब तक नहीं दी जायेगी तब तक कि न्यायलय, ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जायेंगे, ऐसा स्थगन करना ठीक नहीं समझे।)

स्पष्टीकरण--कोई ऐसा करार या समझौता जो भारतीय सविंदा अधिनियम 1872के अधीन शून्य या शुन्यकर्णीय है, इस नियम के अर्थ में विधि पूर्ण नहीं समझा जाएगा।)

नियम 3 (क) वाद का वर्जन--कोई डिक्री अपास्त करने के लिये कोई वाद इस आधार पर नहीं लिया जायेगा कि वह समझौता जिस पर डिक्री आधारित है, विधि पूर्ण नहीं था।

नियम (3ख) --प्रतिनिधि वाद मे करार या समझौता न्यायलय की अनुमति के बिना प्रविष्ट न किया जाना।
नियम 4-- डिक्रीयो के निष्पादन की कार्यवाही पर प्रभाव न पड़ना।

उपर्युक्त नियम 3 व 4 से स्पष्ट है कि वाद में के पक्षकार कभी समझौता कर सकते हैं लेकिन इसके लिए कतिपय शर्तो का पूर्ण किया जाना आवश्यक है जो निम्न है--

1.समझौता लिखित व हस्ताक्षर युक्त हो ।
2. न्यायलय का समाधान किया जाना आवश्यक है।
3. वादी की संतुष्टि एवम समयोजन के लिए किया जाना आवश्यक है।
4. प्रतिनिधि वादों में न्यायलय की अनुमति से ही समझौता किया जा सकता है।
5.न्यायलय द्वारा अभिलिखित किया जाना आवश्यक है।
समझौता सविंदा अधिनियम के प्रावधान के अनुसार विधि पूर्ण होना चाहिए।

प्रतिनिधि वाद वो है निम्न हैं -
 (क)आदेश  1 नियम 8 के अंतर्गत वाद ।
 (ख)धारा 91 या 92 सी.पी.सी. के अधीन वाद।
 (ग) हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के कर्ता द्वारा अन्य सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए चलाया गया वाद।
 (घ)ऐसा वाद जिससे पारित डिक्री वाद में पक्षकार के रूप में नामित नहीं है परंतु  उसे आबद्ध करती है।

                 इस प्रकार यह एक सहिता में महत्वपूर्ण उपलब्ध हैं तथा इसकी विस्तृत जानकारी आवश्यक है।इस बाबत महत्वपूर्ण न्यायनिर्णय--



  1.आदेश 23 नियम 1 - आदेश 23 का परंतुक   आदेश 23 नियम 1 (3) के उपबंध रीट याचिका जो उच्च नयायालय और उच्चतम न्यायलय में प्रस्तुत की जाती हैं उन पर भी लागु होते हैं - यदि जब न्यायलय के बिना अनुमति के वाद विड्रोल किया जाता हैं तब पश्चातवर्ती याचिका मैन्टेनेबल नहीं होगी |
AIR 1992 SC. 509

2. आदेश 23 नियम 1 विड्रोल का प्राथना-पत्र  - अपीलीय न्यायालय उक्त आदेश के अंतर्गत विड्रोल की अनुमति प्रदान कर सकता हैं
 AIR 1991 HP 13

3. आदेश 23 नियम 3 - यह उपधरना सदैव रहती हैं की समझोते पर आधारित डिग्री वैध हैं जब तक इसके विपरीत सिद्ध न कर दिया जावे - अभिनिर्धारित जब डिग्री को चुनोती दी जावे और उसकी सत्यता संदिग्ध हो तो न्यायालय को मामले की जांच करनी चाहिए न की दुगरी को अपास्त कर मामले को रिमांड कर देवे |
 1996 (1) DNJ (RAJ) 356

  4. आदेश 23 नियम 3 - सहमती डिग्री के विरुद्ध अपील - जहां पक्षकारो के बयान लेख बद्ध व हस्ताक्षरित हो, वहां धारा 3 की अवेहलना नहीं मानी जा सकती हैं 
  AIR 1987 P & H  60.

  5. आदेश 23 नियम 1() - प्रत्यर्थी ने इस आधार पर आवेदन किया की मूल वाद या जुलाई 2006 के महीने में विदेश गयी तथा पता नहीं की वह कब लौट के आएगी - वाद में आवेदक प्रतिवादी में से एक हैं - विचरण न्यायालय ने आवेदन स्वीकार कर निर्देश दिया की आवेदक को वादियों के रूप जोड़ा जावे - विचरण न्यायालय ने इस पर विचार तथा विनिश्चय नहीं किया की वादिया ने वाद का परित्याग कर दिया हैं - निर्णित, विचरण न्यायलय द्वारा आदेश 23 नियम 1(क) के अंतर्गत दायर आवेदन को स्वीकार करना नियोजित नहीं था, आदेश आपस्त किया |
   2008(1) DNJ (RAJ) 277. 




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