ORDER 18 --HEARING OF THE SUIT AND EXAMINATION OF WITNESS.
आदेश 18 --वाद की सुनवाई और साक्षियो क़ी परीक्षा।
वाद की सुनवाई का प्रथम चरण साक्षियो की परीक्षा है।वाद का प्रस्तुत होना, लिखित कथन प्रस्तुत किया जाना, वाद पद निश्चित किया जाना, सभी वाद की प्राम्भिक कार्यवाही मात्र है।अतः वास्तविक रूप से वाद की सुनवाई अथवा कार्यवाही का आरम्भ साक्षियो की परीक्षा से होता है।न्यायलय में साक्षियो की परीक्षा किस प्रकार होगी इसके प्रावधान सहिंता के आदेश18 तथा धारा 138 में किये गए हैं।
सर्वप्रथम वादी अपने साक्षियो को प्रस्तुत करते हैं और उसके बाद प्रतिवादी अपने साक्षियो को प्रस्तुत करते हैं।
संहिता के संशोधन 2000 के अधिनियम जो 01जुलाई 2000 को लाग् हुआ है।संशोधन के पश्चात पक्षकारो का मुख्य परीक्षण शपथ पत्र से होता है।यानी मुख्य परीक्षा में पक्षकार अपना व गवाह का शपथ पत्र न्यायलय में प्रस्तुत करते हैं और विरोधी पक्षकार उनसे जिरह अथवा प्रतिपरीक्षा करता है।मुख्य परीक्षा को (Chief examination) व जिरह प्रतिपरीक्षा को (Cross examination)कहते हैं।वाद की सुनवाई में यह महत्वपूर्ण है।संहिता में आदेश 18 में इस बाबत उपबंध किये गए हैं जो इस प्रकार है --
आदेश 18 नियम 1सी पी सी -
आरम्भ करने का अधिकार--आरम्भ करने का अधिकार वादी को तब के सिवाय है जबकि वादी द्वारा अधिकथित तथ्यों को प्रतिवादी स्वीकार कर लेता है और यह तर्क करता है कि वादी जिस अनुतोष को चाहता है उसके किसी भाग को प्राप्त करने का वह हकदार या तो विधि के प्रश्न के कारण या प्रतिवादी द्वारा अधिकथित कुछ अतिरिक्त तथ्यों के कारण नहीं है और उस दशा में आरंभ करने का अधिकार प्रतिवादी को होता है।
नियम 2 - कथन और साक्ष्य का पेश किया जाना -
(1) उस दिन जो वाद की सुनवाई के लिए नियत किया गया हो, या किसी अन्य दिन जिस दिन के लिए सुनवाई स्थिगित की गई हो,वह पक्षकार जिसे आरम्भ करने का अधिकार है, अपने मामले का कथन करेगा और उन विवाद्यको के समर्थन में अपना साक्ष्य पेश करेगा जिन्हें साबित करने के लिए आबद्ध है।(2) तब दूसरा पक्षकार अपने मामले का कथन करेगा और अपना साक्ष्य (यदि कोई हो) पेश करेगा और तब पूरे मामले के बारे में साधारणतः न्यायलय को सम्बोधित कर सकेगा।
(3)तब आरम्भ करने वाला पक्षकार साधारणतया पूरे मामले के बारे में उत्तर दे सकेगा।
(3क) कोई भी पक्ष वाद में मौखिक रूप से संबोधित कर सकता है और उसके मौखिक तर्क की समाप्ति के पूर्व, यदि कोई हो न्यायलय उसे संक्षेप में सुभिन्न शीर्षकों में लिखित तर्को में अपने वाद के पक्ष में ऐसे लिखित तर्को को न्यायलय अभिलेख का एक अंग बना लेगा।
(3ख) ऐसे लिखित तर्क की प्रतिलिपी विरोधी पक्षकारो को साथ साथ ही प्रदान कर दी जायेगी।
(3ग) ललिखित तर्क को फाइल करने के उद्देश्य से स्थगन की अनुमति नहीं दी जायेगी जब तक की न्यायलय लिखित में अभिलिखित के कारण से स्थगन की स्वीकृति आवश्यक न समझे।
(3घ) न्यायलय वाद के किसी भी पक्षकार से,जैसा वह उचित समझे,मौखिक तर्क के लिए समय सीमा निर्धारित करेगी।
नियम 3--जहां कई विवाद्यक है वहाँ साक्ष्य --
जहां कई विवाद्यक है जिनमे से कुछ को साबित करने का भार दूसरे पक्षकार पर है वहां आरम्भ करने वाला पक्षकार अपने विकल्प पर या तो उन विवाद्यको के बारे में अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा या दूसरे पक्षकार द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के उत्तर के रूप में पेश करने के लिए उसे आरक्षित रख सकेगा और पश्चात कथित दशा में, आरम्भ करने वाला पक्षकार दूसरे पक्षकार द्वारा उसका समस्त साक्ष्य पेश किए जाने के बाद उन विवाद्यको पर अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा और तब दूसरा पक्षकार आरम्भ करने वाले पक्षकार के द्वारा इस प्रकार पेश किए गए साक्ष्य का विशेषतया उत्तर दे सकेगा, किन्तु तब आरम्भ करने वाले पक्षकार पूरे मामले के बारे में साधारणतया उत्तर देने का हकदार होगा।नियम (3क) --पक्षकार का अन्य साक्षियो से पहले उपसंजात होना --जहां कोई पक्षकार स्वंय कोई साक्ष्य के रूप में उपसंजात होना चाहता है वहा वह उसकी और से किसी अन्य साक्षी की परीक्षा किया जाने के पहले उपसंजात होगा, किन्तु यदि न्यायलय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जायेंगे, उसे पश्चात्वर्ती प्रक्रम में स्वयं अपने साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए अनुज्ञात करे तो वह बाद में उपसंजात हो सकेगा।
नियम 4 - साक्ष्य को अभिलिखित करना -
(1)प्रत्येक वाद में एक साक्षी का मुख्य परीक्षण शपथपत्र एवम उसकी प्रतिलिपि उस पक्षकार द्वारा साक्ष्य के लिए विरोधी पक्षकार को देगा।परन्तु जहां दस्तावेज फ़ाइल किये गए और पक्षकार उन दस्तावेजों पर सबूत एवम ऐसे दस्तावेजों की ग्राह्यता पर निर्भर करता है, जो कि न्यायलय के आदेश एवम शपथपत्र के साथ फ़ाइल किये गये है।
(2) उपस्थित साक्षी के साक्ष्य (प्रतिपरीक्षा व पुनर्परीक्षा) जिसका साक्ष्य (मुख्य परीक्षा)न्यायलय को शपथपत्र द्वारा पेश किया गया, न्यायलय द्वारा या उस द्वारा नियुक्त आयुक्त द्वारा ग्रहण किया जाय।
परन्तु न्यायलय इस उपनियम के अधीन आयुक्त की नियुक्ति के समय उन युक्तिसंगत कारणों का ध्यान रखें जो उचित हो।
(3)न्यायलय या आयुक्त, जैसी भी स्थति हो साक्ष्य को लिखित रूप में अथवा पत्र द्वारा न्यायाधीश या आयुक्त के समक्ष यथास्थति अभिलिखित किया जाय और जहां साक्ष्य आयुक्त के द्वारा अभिलिखित किया गया है वह जिस न्यायलय द्वारा नियुक्त हुआ है, को लिखित में अपनी रिपोर्ट के साथ उस साक्ष्य को हस्ताक्षर सहित लौटाएगा और इसके अंतर्गत लिया गया साक्ष्य वाद की रिपोर्ट का एक अंग होगा।
(4) आयुक्त उन टिप्पणी को जिन्हें वह परीक्षण के समय किसी भी साक्षी के व्यवहार के बारे में अभिलिखित कर सकते है।
परन्तु यदि आयुक्त के सम्मुख साक्ष्य के अभिलेख के समय कोई आपत्ति जताई जाती है तो वह अभिलिखित की जायेगी और तर्क के समय निर्णीत की जायेगी।
(5) आयुक्त की रिपोर्टआयोग नियुक्त करने वाले न्यायलय को आयोग की तिथि के 60दिन के अन्दर प्रस्तुत की जावेगी; यदि न्यायलय किन्ही कारणों से लिखित में समय नही बढ़ाता।
(6) उच्च न्यायालय अथवा जिला न्यायालय यथास्थति इस नियम के अधीन साक्ष्य को अभिलिखित करने के लिए आयुक्तों की सूची तैयार करेगा।
(7) सामान्य या विशेष आदेश द्वारा न्यायलय आयुक्त की सेवाएं के लिए पारिश्रमिक के रूप में भुगतान के लिए राशी निश्चित कर सकते हैं।
(8) आदेश 26के नियम16,16क,17और18के परन्तुक जिस रूप में लागू है इस नियम के अंतर्गत उस आयोग के विवाद्यक, निष्पादन एवम प्रतिवर्ती में लागू होंगे।
आदेश 26 के उपबन्ध के लिये यहाँ click करे।
नियम 5--जिन मामलों की अपील हो सकती है उनमें साक्ष्य कैसे लिखा जाएगा--जिन मामलों में अपील अनुज्ञात की जाती है उन मामलों में हर एक साक्षी का साक्ष्य --(क) न्यायलय की भाषा में,-
(१) न्यायाधीश द्वारा या उसकी उपस्थिति में और उसके व्येक्तिक निदेशन और अधीक्षण में लिखा जायेगा:या
(२) न्यायाधीश के बोलने के साथ ही टाइप राइटर पर टाइप किया जाएगा; या
(ख) यदि न्यायाधीश अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से ऐसा निदेश दे तो न्यायाधीश की उपस्थिति में न्यायलय की भाषा में यंत्र द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।
इस आदेश में 19 नियम उपबंधित किये गए है।अन्य महत्वपूर्ण उपबन्ध का आगे विवेचन किया जायेगा।
इस आदेश के नियम 1से 5तक बाबत भिन्न भिन्न न्यायलय द्वारा जो न्यायनिर्णय किये गए हैं वो आपकी सुविधा के लिए दिये जा रहे हैं --
1. उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां किसी पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अनेक अवसर प्रदान किया गया हो, फिर भी वह साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाया हो ,वहां ऐसे पक्षकार को खर्चे पर साक्ष्य पेश करने का और अवसर प्रदान किया जा सकता है।
AIR 2001 SC 1440
2. आदेश 18 नियम 2व 3क-वादी महिला अपनी साक्ष्य में नहीं उपस्थित हुई और उसके और से उसका मुख्तयार साक्षी में आया - वादिनी ने ऐसा सदभावी रहते किया परन्तु उसे विधिक जानकारी का ज्ञान होने पर स्वंय की साक्षी देनी चाही।अभिनिर्धारित--नियम3क निर्देशात्मक है और न्यायलय बाद में भी पक्षकार का साक्ष्य लेने में सक्षम है भले ही नियम अनुसार पूर्व में ऐसी अनुमति नहीं ली गई हो।
1999(1) DNJ (Raj.) 390
3.नियम1-वादी की और से उसका मुख्तयार को साक्ष्य के लिये योग्य साक्षी माना गया तथा राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय AIR1998Raj.185 से असहमति की गई।
AIR 2001 Kant.231
4.नियम2--प्रतिवादी की साक्ष्य का अभिखण्डन करने की साक्ष्य का अवसर उन
विवाद्यक बिंदु बाबत नही दिया जा सकता जिनके सबूत का भार पूर्व से वादी पर था।
AIR 2003 P&H 73
5. कोई न्यायलय विधिसमत कारण दिये बिना मात्र साक्ष्य सूची पेश नही करने के आधार पर बन्द नहीं कर सकेगा।
AIR 1981Dehli.224
6 .नियम5--न्यायाधीश की उपस्थिति केवल भौतिक उपस्तिथि से ही नहीं है।साक्ष्य अभिलिखित किया जाने के समय पीठासीन अधिकारी को सावधान व सचेत होना भी आवश्यक है।अन्य कार्य मे व्यस्त रहना उचित नहीं है।
AIR 1982 Raj. 317
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