वाद की रचना
(FRAME OF SUIT )
न्याय प्रशासन मे वाद की रचना करना महत्वपूर्ण हैं। इसमे वाद की बहुलता (multiplicity of suit) को रोकना एक आवश्यक तत्व हैं। इसे रोकने के लिए संहिता मे विविध प्रावधान किए गए हैं। जेसे -
1 विचाराधीन न्याय (res - subjudice ) धारा 10 cpc ,
2 पूर्व न्याय (res - judicata ) धारा 11cpc ,
3 अपर वाद का वर्जन (bar to furthersuit ) धार 12 cpc , आदि का प्रावधान किया गया हैं। साहित्य के आदेश 2 मे वाद की रचना की व्यवस्था की गई हैं।
आदेश 2 नियम 1 cpc - हर वाद की विरचना यावतसाध्य ऐसे की जाएगी की विवादग्रस्त विषयों पर अन्तिम विनिश्चय करने के लिए आधार प्राप्त हो जाए ओर उनसे संपृक्त अतिरिक्त मुकदमे बाजी का निर्धारण हो जाए ।
नियम 2 - वाद के अन्तर्गत सम्पूर्ण दावा होना-
(१ ) हर वाद के अन्तर्गत वह पूरा दावा होगा उस वाद हेतुक के विषय मे करने का वादी हकदार हैं, किन्तु वादी के वाद को किसी न्यायलय की अधिकारिता के भीतर लाने की दृष्टि से अपने दावे के किसी भाग का त्याग कर सकेगा ।
नियम 2 (२)- दावे के भाग का त्याग - जहा वादी अपने दावे के किसी भाग के बारे मे वाद लाने का लोप करता हैं या उसे साशय त्याग देता हैं वह उसके बाद वह इस प्रकार लोप किए गए या त्यागे गए भाग के बरे मे वाद नहीं लाएगा ।
नियम २(३) - कई अनुतोषों मेसे एक के लिए वाद लाने का लोप - एक ही वाद हेतुक ( same cause of action ) के बारे मे एक से अधिक अनुतोष पाने का हकदार व्यक्ति ऐसे सभी अनुतोषों या उनमे से किसी एक के लिए वाद ल सकेगा,किन्तु वहऐसे सभी अनुतोषों के लिए वाद नहीं लाएगा।
स्पष्टीकरण - इस नियम के प्रयोजन के लिए कोई बाध्यता और उसके पालन के लिए समपार्श्विक( collateral ) प्रतिभूति ओर उसी बाध्यता के अधीन उद्भूत उपरोक्त दावे के बारे मे यह समझा जाएगा की वे क्रमशः एक ही वाद-हेतुक गठित करते हैं।
आदेश २ मे यह स्पष्ट हैं की वाद के सम्पूर्ण अनुतोषों को एक ही वाद मे सम्मिलित किया जाना चाहिए । इसका उद्देश्य वाद की बहुलता को रोकने का प्रावधान हैं। सरल भाषा मे हम यह कह सकते हैं की जहा वादी एक ही वाद कारण से कई अनुतोषों का पाने का अधिकार रखता हैं वहा उसे एक ही वाद मे समस्त अनुतोषों की मांग कर लेनी चाहिए । यदि किसी अनुतोष का न्यायालय की अनुमति के बिना लोप करेगा तो दुबारा वाद उस अनुतोष बाबत नहीं कर सकेगा । आदेश २ नियम २(३) cpc
यहा यह उल्लेखित करना आवश्यक हैं की जहा पूर्ववती एवं पश्चातवर्ती वाद मे वाद हेतुक भिन्न भिन्न हो , वह पश्चातवर्ती वाद वर्जित नहीं होगा।
नियम ३ - वाद हेतुक के सयोजन
नियम ४ - अचल सम्पति की पुनः प्राप्ति के लिए कुछ दावो को संयोजित किया जावा ।
नियम ५ - निष्पादक , प्रशासक या वारिस ध्वर या उसके विरुद्ध दावे।नियम ६ - प्रथक विचरण का आदेश देने की न्यायलय की शक्ति।
नियम ७- कुसंयोजन के बारे मे आक्षेप ।
( आदेश २ की मुख्य मंशा वादों की बहुलता रोकना ।)
आगे हम संहिता के महत्वपूर्ण आदेश, धराए ,नजीरों संबंधी जानकारी देने का प्रयाश करेगे पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगी ।
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Nice right
ReplyDeleteThanks
Deleteउत्तम एवं ज्ञानपरक जानकारी हेतू आभार।
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Deleteउत्तम एवं ज्ञानपरक जानकारी हेतू आभार।
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