Representative Suit-Order 1 Rule 8 CPC.( प्रतिनिधित्व वाद ) - CIVIL LAW

Thursday, June 7, 2018

Representative Suit-Order 1 Rule 8 CPC.( प्रतिनिधित्व वाद )

Representative Suit-Order 1 Rule 8 CPC.
प्रतिनिधित्व वाद - आदेश 1 नियम 8 सीपीसी।


आदेश 1 नियम 8 सिविल प्रक्रिया संहिता- एक ही हित में सभी व्यक्तियों की ओर से एक व्यक्ति वाद ला सकेगा या प्रतिरक्षा कर सकेगा-(One person may sue or defend on behalf of all in same interest.)-

(1) जहां एक ही वाद में एक ही रखने वाले बहुत से व्यक्ति है वहां-

( क) इस प्रकार हितबद्ध सभी व्यक्तियों की ओर से या उनके फायदे के लिए न्यायालय की अनुज्ञा से ऐसे व्यक्तियों में से एक या अधिक व्यक्ति वाद ला सकेंगे या उनके विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा या ऐसे वाद में प्रतिरक्षा कर सकेंगे;

( ख) न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि इस प्रकार हितबंद सभी व्यक्तियों की ओर से या उनके फायदे के लिए ऐसे व्यक्तियों में से एक या अधिक व्यक्ति वाद ला सकेंगे या उनके विरुद्ध वाद लाए जा सकेंगे या वे ऐसे वाद में प्रतिरक्षा कर सकेंगे।

(2) न्यायालय से प्रत्येक मामले में जहां उपनियम 1 के अधीन अनुज्ञा या निर्देश दिया गया है, इस प्रकार हिट बंद सभी व्यक्तियों को या तो व्यक्तिगत तमिल करा कर या जहां व्यक्तियों की संख्या या किसी अन्य कारण से ऐसी तमिल युक्तियुक्त रुप से साध्य नहीं है वहां लोक विज्ञापन द्वारा, जैसा भी न्यायालय हर एक मामले में निर्दिष्ट करें, वाद संस्थित किए जाने की सूचना वादी के खर्चे पर देगा।

(3) कोई व्यक्ति जिसकी ओर से या जिसके फायदे के लिए उपनियम (1) में के अधीन कोई वाद संस्थित किया जाता है या ऐसे वाद में प्रतिरक्षा की जाती है, उस वाद में पक्षकार बनाए जाने के लिए न्यायालय को आवेदन कर सकेगा।

(4) आदेश 23 के नियम 1 के उपनियम ( 1)  के अधीन ऐसे वाद में दावे के किसी भाग का परित्याग नहीं किया जाएगा और उस आदेश के नियम 1 के उपनियम 3 के अधीन ऐसे वाद का प्रत्याहरण नहीं किया जाएगा और उस आदेश के नियम 3 के अधीन ऐसे बाद में कोई करार, समझौता या तुष्टि अभिलिखित नहीं की जाएगी जब तक कि न्यायालय ने इस प्रकार हितबद्ध सभी व्यक्तियों को उपनियम (2) में विनिर्दिष्ट रीति से सूचना वादे के खर्चे पर ना दे दी हो।

(5) जहां ऐसे वाद में वाद लाने वाला या प्रतिरक्षा करने वाला कोई व्यक्ति वाद या प्रतिरक्षा में सम्यक तत्परता से कार्य नहीं करता है वहां न्यायालय उस वाद में वैसा ही हित रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति को उसके स्थान पर रख सकेगा।

(6) इस नियम के अधीन वाद में पारित डिक्री उन सभी व्यक्तियों पर आबद्धकर होगी जिनकी ओर से या जिनके फायदे के लिए, यथास्थिति, वाद संस्थित किया गया है या एस्से वाद में प्रतिरक्षा की गई है।

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स्पष्टीकरण- इस बात का अवधारण करने के प्रयोजन के लिए की वे व्यक्ति जो वाद ला रहे हैं या जिन के विरुद्ध वाद लाया गया है या जो ऐसे वाद में प्रतिरक्षा कर रहे हैं, किसी एक वाद में वैसा ही हित रखते हैं या नहीं, यह साबित करना आवश्यक नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों का वही वाद हेतुक है जो उन व्यक्तियों का है जिन की ओर से या जिनके के फायदे के लिए, यथास्थिति, वे वाद ला रहे हैं या उनके विरुद्ध वाद लाया जा रहा है या एसे वाद में प्रतिरक्षा कर रहे हैं।

  सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के उपबंध अधिक मुकदमे बाजी से बचने के लिए संहिता में लोकहित के अंतर्गत सम्मिलित किए गए हैं। इन उपबंधों को लागू करने के लिए आवश्यक शर्त यह है कि उन व्यक्तियों के हित समान होने चाहिए जिनकी और से वाद लाया जा रहा है। यानी कि या तो उनके हित समान होने चाहिए या उनका चाहा गया अनुतोष सम्मान होना चाहिए। आदेश 1 नियम 8 की सरल भाषा के आधार पर इस नियम के अंतर्गत वाद लाने की प्रमुख अपेक्षा उन विभिन्न व्यक्तियों के हित की समरूपता है जिनकी ओर से या जिनके फायदे के लिए वाद संस्थित किया जाए। न्यायालय को इस बाबत विचार करते हुए की क्या उक्त नियम के अधीन इजाजत मंजूर किए जाए या नहीं यह परीक्षा करनी चाहिए कि क्या उप नियम के अधीन उपबंधित प्रक्रिया अपनाएं जाने को न्यायोचित ठहराने के लिए हित की पर्याप्त समानता है। वह उद्देश्य जिनके लिए यह उपबंध अधिनियमित किया गया है, वास्तव में उन प्रश्नों के ऐसे विनिश्चय को साधारण प्रक्रिया का आश्रय  लिए बिना सुकर बनाना है जिसमें काफी व्यक्ति हित बंद है।


  विधि का यह एक सामान्य नियम है कि किसी वाद में हित रखने वाले समस्त व्यक्तियों को आवश्यक रूप से पक्षकार की हैसियत से सम्मिलित किया जाना चाहिए। यह नियम सुविधा के सिद्धांतों पर आधारित है, लेकिन यह कोई निरपेक्ष नियम नहीं है। जिसके अपवाद संहिता के आदेश एक के नियम 8, 8ए एवं 12 में किया गया है। आदेश 1 नियम 8 के अनुसार किसी वाद में के हित में समस्त व्यक्तियों को वाद में पक्षकार की हैसियत से सम्मिलित किया जाना आवश्यक नहीं है। उनमें से कोई एक या एकाधिक उन सब का प्रतिनिधित्व करते हुए वाद संस्थित कर सकता है या प्रतिरक्षा कर सकता है। इस नियम का मुख्य उद्देश्य ऐसे वाद की सुनवाई में, जहां पक्षकारों की संख्या अत्यधिक हो उन सबका एक समान हित हो, असुविधा एवं विलम्ब को दूर करना है।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय-

(1) किसी समिति की ओर उसके सचिव द्वारा वाद संस्थित किया जा सकता है यदि समिति ने अपनी ओर से सचिव को वैधानिक कार्यवाही के संचालन के लिए प्राधिकृत किया हो।
1991 ए आई आर (कोलकाता) 1

(2) उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में अभी निर्धारित किया है कि जिस व्यक्ति की तरफ से प्रतिनिधि वाद संस्थित किया जा रहा है उसे वाद में उसी प्रकार का हित रखना चाहिए।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 642

(3) किसी समुदाय विशेष के प्रतिनिधियों द्वारा वाद संस्थित किया जा सकता है प्रतिनिधिक वाद के लिए न्यायालय की अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 396

(4) जहां किसी न्यायालय में संहिता की धारा 92 के अंतर्गत एक वाद वादी द्वारा संस्थित किया जाता है, तो वहां वह वाद दान एवं लोक न्यास में जनता के विधिक अधिकारों की सुरक्षा करने हेतु एक विशेष प्रकृति का वाद होता है।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 444

(5) उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में अभी निर्धारित किया है कि किसी समुदाय की संपत्ति पर किसी व्यक्ति ने अतिक्रमण किया हो तो वहां उस अतिक्रमण के अपनयन का अन्वेषण करके इस प्रकार की संपत्ति की सुरक्षा करने हेतु अथवा समुदाय की संपत्ति में अपने विधिक अधिकार को प्रख्यात करने के प्रयोजन से उस समुदाय का कोई भी सदस्य अतिक्रमण करता के विरुद्ध एक सफलतापूर्वक वाद दायर कर सकता है।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 396

(6) जहां किसी वाद में कुछ पक्षकार गण प्रश्न गत मुद्दे का पुनः निवारण करने हेतु तलाश करते हैं तो वहां या तो व्यक्तियों के बहुत अवश्यमेव सार्वजनिक शिकायत होनी चाहिए या फिर उनके हित को उक्त मामले में अवश्यमेव सार्वजनिक होना चाहिए।
1991 ए आई आर (दिल्ली) 334

(7) सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत एक प्रतिनिधि वाद के लिए संबंधित न्यायालय की अनुज्ञा आदेशात्मक होती है। यही नहीं बल्कि माननीय न्यायालय के मतानुसार एक तरीके से अथवा अन्य ढंग से आवश्यक तात्विक उपपत्ति का अभाव जहां होता है, तो वहां उस वाद की प्रकृति को संबंधित न्यायालय द्वारा न्यायोचित नहीं ठहराया जाएगा।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 396

(8) उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में अभिनिर्धारित किया है कि ऐसे वाद में जहां पीड़ित पक्षकार को वाद में नामित नहीं किया गया, तो भी वह निर्विवाद रुप से चकबंदी द्वारा आबद्ध होगा। यदि उक्त स्थिति में ऐसा है तो वह वाद संहिता के आदेश 23 के नियम 3 बी के प्रयोजन हेतु तथा शर्तों के अनुसार एक प्रतिनिधि वाद कहा जाएगा।
1990 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 1480

(9) जहां किसी पक्ष कार द्वारा एक मूर्ति के मुद्दे पर वाद संस्थित किया जाता है, तो वहां स्वयं के हित की सुरक्षा करने का भी संबंधित पक्षकार के पास विधिक अधिकार होता है।
1991 ए आई आर (पंजाब एंड हरियाण) 247

(10) विचारण न्यायालय ने प्रार्थिया के वाद में पक्षकार बनने के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। उक्त मामले में आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत नोटिस प्रकाशित किया गया था क्योंकि मामला लोग लोक न्यास से संबंधित था, इसलिए प्रार्थिया ने वाद में पक्षकार बनने के लिए आवेदन किया। प्रार्थिया ने जो आवेदन दिया उसमें यह प्रकट नहीं किया गया कि उसका उस न्यास में क्या हित है तथा पक्षकार बनने का कारण बताये बिना ही आवेदन किया। निर्णित किया गया कि विचारण न्यायालय ने प्रार्थिया के आवेदन को अस्वीकार करके कोई गलती नहीं की है। वाद प्रारंभिक स्तर पर होने से प्रार्थी उन कारणों सहित नया आवेदन कर सकते हैं जिनके आधार पर वह वाद के पक्षकार बनना चाहते हैं।
2005( 2) डी एन जे (राजस्थान) 666

(11) मूर्ति हेतु वाद के मामले में सुने जाने का अधिकार - समुदाय की संपत्ति - अभिनिर्धारित - प्रतिनिधि वाद संधारित करने हेतु आदेश 1 नियम 8 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत अनुमति आवश्यक नहीं - मूर्ति के नजदीकी मित्र के रुप में कोई भी व्यक्ति वाद संधारित कर सकता था और उस समुदाय का सदस्य होने के नाते वह अपने स्वयं के अधिकार के रूप में भी वाद संधारित कर सकता था।
2007 (1) आर एल डब्ल्यू (राजस्थान) 298

(12) जब आदेश 1 नियम 8 के अंतर्गत संबंधित न्यायालय की अनुज्ञा को वादी द्वारा नहीं प्राप्त किया जाता है, तो वह उस वाद के लिए घातक होता है और ऐसी परिस्थिति में न्यायालय द्वारा पारित गई की गई डिक्री उन व्यक्तियों पर बाध्यकारी प्रभाव नहीं रखेगी जो कि शहर में अन्य मस्जिदों का प्रबंध करने वाले होते हैं।
1993 ए आई आर (मद्रास) 51

(13) कोई व्यक्ति प्रतिनिधिक वाद के पक्षकार के रूप मैं संयोजित किए जाने की मांग करता है तो उसे न्यायालय को संतुष्ट करना पड़ेगा कि वे पक्षकार जो अभिलेख पर मौजूद है उसके हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।
1994 ए आई आर( उड़ीसा) 21

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