Arrest and detention in the execution of decree-Section 55 CPC.आज्ञप्ति के निष्पादन में गिरफ्तारी और निरोध - धारा 55 सीपीसी। - CIVIL LAW

Monday, June 4, 2018

Arrest and detention in the execution of decree-Section 55 CPC.आज्ञप्ति के निष्पादन में गिरफ्तारी और निरोध - धारा 55 सीपीसी।

Arrest and detention in the execution of decree-Section 55 CPC.आज्ञप्ति के निष्पादन में गिरफ्तारी और निरोध - धारा 55 सीपीसी।


सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 55 आदित्य के निष्पादन में गिरफ्तारी और निरोध के संबंध में उपबंधित गई है जो निम्न प्रकार है--



धारा 55 सिविल प्रक्रिया संहिता--(1) निर्णित ऋणी डिक्री के निष्पादन में किसी भी समय और किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकेगा और यथासाध्य शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष लाया जाएगा और वह उस जिले में सिविल कारागार में, जिसमें निरोध का आदेश देने वाला न्यायालय स्थित है या जहां ऐसे सिविल कारागार में उपयुक्त व वास सुविधा नहीं है वहां ऐसे किसी अन्य स्थान में, जिसे राज्य सरकार ने ऐसे व्यक्तियों के निरोध के लिए लिए नियत किया हो, जिनके विरुद्ध किए जाने का आदेश ऐसे जिले के न्यायालय द्वारा दिया जाए, निरुद्ध किया जा सकेगा;

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परंतु प्रथमतः इस धारा के अधीन गिरफ्तारी करने  के प्रयोजन के लिए किसी भी निवास ग्रह में सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय के पूर्व प्रवेश नहीं किया जाएगा;

परंतु द्वितीयतः निवास ग्रह का कोई भी बाहरी द्वार तब तक तोड़कर नहीं खोला जाएगा जब तक कि ऐसा निवास ग्रह निर्णित ऋणी के अधिभोग में न हो और वह उस तक पहुंच होने देने से मना न करता या पहुंच होने देना किसी भांति निवारित न करता हो, किंतु जबकि गिरफ्तार करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी ने किसी निवास ग्रह में सम्यक रूप से प्रवेश कर लिया है, तब वह किसी ऐसे कमरे का द्वार तोड़ सकेगा जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने का कारण है कि उसमें निर्णित ऋणी है;

परंतु तृतीयतः यदि कमरा किसी ऐसी स्त्री के वास्तविक अधिभोग में है जो निर्णित ऋणी नहीं है और जो देश की रूढ़ियों के अनुसार लोगों के सामने नहीं आती है तो गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी को उसे यह सूचना देगा कि वह वहां से हट जाने के लिए स्वतंत्र है और उसे हट जाने के लिए युक्ति युक्त सुविधा देने के पश्चात वह गिरफ्तारी करने के प्रयोजन से कमरे में प्रवेश कर सकेगा;

परंतु चतुर्थतः जहां वह डिक्री, जिसके निष्पादन में निर्णित ऋणी को गिरफ्तार किया गया है, धन के संदाय के लिए डिक्री है और निर्णित ऋणी डिक्री की रकम और गिरफ्तारी का खर्चा उस अधिकारी को संदत्त कर देता है, जिसने उसे गिरफ्तार किया है वहां ऐसा अधिकारी उसे तुरंत छोड़ देगा।

(2) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह घोषणा कर सकेगी कि ऐसा कोई भी व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों का वर्ग, जिसकी गिरफ्तारी से लोगों को खतरा या असुविधा पैदा हो सकती है, डिक्री के निष्पादन में ऐसी प्रक्रिया से भिन्न प्रक्रिया के अनुसार जो राज्य सरकार विहित करें, गिरफ्तारी किए जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा।

(3) जहां निर्णित ऋणी धन के संदाय के लिए डिक्री के निष्पादन में गिरफ्तार किया जाता है और न्यायालय के समक्ष लाया जाता है वहां न्यायालय से यह बताया गया कि वह दिवालिया घोषित किए जाने के लिए आवेदन कर सकता है और यदि उसने आवेदन की विषय वस्तु के संबंध में कोई  असद्भावनापूर्ण कार्य नहीं किया है और यदि वह तत समय प्रवृत्त दिवाला विधि के उपबंधों का अनुपालन करता है तो वह उन्मोचित किया जा सकेगा।

(4) जहां निर्णित ऋणी दिवालिया घोषित किए जाने के लिए आवेदन करने का अपना आशय प्रकट करता है और न्यायालय को समाधानप्रद प्रतिभूति इस बात के लिए दे देता है कि वह ऐसा आवेदन एक मास के भीतर करेगा और वह आवेदन संबंधी या उस डिक्री संबंधी जिसके निष्पादन में वह गिरफ्तार किया गया था, किसी कार्यवाही में बुलाए जाने पर उपसंजात होगा वहां न्यायालय उसे गिरफ्तारी से छोड़ सकेगा और यदि वह ऐसी आवेदन करने और उपसंजात होने में असफल रहता है तो न्यायालय डिक्री के निष्पादन में या तो प्रतिभूति आप्त करने का या उस व्यक्ति को सिविल कारागार को सुपुर्द किया जाने का निर्देश दे सकेगा।




संहिता की धारा 55 के अंतर्गत - -

कोई निर्णित ऋणी किसी डिक्री के निष्पादन में किसी समय और किसी दिन गिरफ्तार किया जा सकेगा, लेकिन - -

( 1) किसी निवास ग्रह में सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय के पूर्व प्रवेश नहीं किया जाएगा।

(2) निवास घर का कोई बाहरी द्वार तोड़कर तब तक ना खोला जाएगा जब तक कि ऐसा निवास ग्रह निर्णित ऋणी के कब्जे में ना हो और वह उस तक पहुंच होने देने से इंकार ना करता हो। या पहुंच होने देने में किसी भांति की रुकावट पैदा ना करता हो।

(3) किसी महिला के वास्तविक दखल में होने वाले कमरे में, उसके कमरे से हट जाने के लिए उचित समय प्रदान किए बिना प्रवेश ना किया जाएगा।

(4) यदि निर्णित ऋणी डिक्री की रकम और गिरफ्तारी का खर्चा गिरफ्तारी करने वाले पदाधिकारी को चुका देता है तो उसको गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

धारा 56 के अंतर्गत धन के भुगतान के लिए किसी डिक्री के निष्पादन में किसी महिला को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।




महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय--


(1)डिक्री की राशि संदाय नहीं किए जाने पर निर्णित ऋणी तभी गिरफ्तार एवं निरुद्ध किया जा सकता है जब डिक्रीधारक यह साबित कर देता है कि -- निर्णित ऋणी के पास डिक्री की राशि का संदाय करने का प्रयास साधन उपलब्ध है लेकिन वह दुराशय के कारण संदाय नहीं करना चाहता है।
1987 ए आई आर (गुजरात) 160

(2)एक मामले में निर्धारित किया गया है कि सिविल कारावास का आदेश न केवल धन प्राप्ति की डिक्री में ही अपितु संविदा के विशिष्ट अनुपालन, स्थाई व्यादेश आदी की डिक्री के निष्पादन भी दिया जा सकता है।
1990  ए आई आर (कर्नाटक ) 1




(3)राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक मामले में पुनः सेवा में लेने के आदेश को आदेशात्मक व्यादेश नहीं माना गया। इसलिए आदेश 21 नियम 32 लागू नहीं होता है। प्रार्थी गण वाद में पक्षकार नहीं थे तथा उनके विरुद्ध दीवानी जेल का आदेश लागू नहीं हो सकता।
1993 DNJ  (Raj.) 68

(4)धारा 55 (3) - एक मामले में डिक्री के निष्पादन में निर्णित ऋणी को गिरफ्तार किया गया और इसके विरुद्ध आदेश का आदेश पारित किया गया। जहां याचिका जो गिरफ्तारी की आशंका करते हुए निष्पादन कार्यवाहियों के पूर्व प्रांतीय दिवाला अधिनियम 1920 की धारा 5 के अधीन दायर की गई, अपरिपक्व होगी वहां धारा 55 (3 )को ध्यान में रखते हुए ऐसा आवेदन पोषणीय नहीं होगा।
2007 ए आई आर( एनओसी) 217( आंध्र प्रदेश)

(5)किसी भी वाद में जब तक एक व्यक्ति के विरुद्ध पारित की गई डिक्री का संबंधित न्यायालय द्वारा समाधान नहीं हो जाता है, तब तक व्यक्ति को सिविल कारागार मैंनहीं भेजा जा सकता है।
1991 ए आई आर (दिल्ली) 129

(6)एक मामले में निचली अदालत में पूर्ववर्ती आदेश जारी किया कि निर्णित ऋणी के पास डिक्री की संतुष्टि के लिए पर्याप्त साधन है इसलिए वह धारा 55 के प्रावधान का अवलंबन नहीं ले सकता। पूर्ववर्ती आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी गई-निर्णित, निचली अदालत द्वारा धारा 55 के अंतर्गत प्रस्तुत आवेदन को अस्वीकार करना न्यायोचित था।
2011 (3) डी एन जे (राजस्थान) 1028


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