Return of plaint -Order 7 Rule 10 CPC.
वाद पत्र का लोटाया जाना - आदेश 7 नियम 10 सीपीसी.
न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने के पश्चात न्यायालय द्वारा वाद ग्राह्य किए जाने पर प्रक्रिया आदेश 7 नियम 9 में दी गई है जिसके अनुसार न्यायालय द्वारा वाद पत्र ग्राह्य कर लिया जाने पर आदेश 5 के नियम 9 के निर्धारित ढंग से प्रतिवादियों पर तमिल कराए जाने वाले समन दिए जाएंगे तथा वादी से यह अपेक्षा की जाएगी की वह ऐसे आदेश के 7 दिन के भीतर वाद पत्र की उतनी प्रतियां पेश करें जितने की प्रतिवादी है और विहित शुल्क जमा कराएं। तथा प्रतिवादी की तमिल होने के पश्चात और उसकी ओर से आपत्ति होने पर या न्यायालय वाद विचरण के किसी प्रकरम पर न्यायालय को यह प्रतीत हो कि उसे वाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है, वहां वह वाद पत्र को उस पर पृष्ठांकन करने के बाद समुचित न्यायालय में पेश किया जाने के लिए वादी को लौटा देगा। सिविल प्रक्रिया संहिता में इस बाबत उपबंध आदेश 7 नियम 10 में किए गए हैं जो इस प्रकार है -
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आदेश 7 नियम 10 सीपीसी--(1)( नियम 10क के उपबंधों के अधीन रहते हुए, वाद पत्र) वाद के किसी भी प्रकम में उस न्यायालय में उपस्थित किया जाने के लिए लौटा दिया जाएगा जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था।
(2) वाद पत्र को लौटाया जाने पर प्रक्रिया- न्यायाधीश वाद पत्र के लौटाए जाने पर, उस पर उसके उपस्थित किए जाने की और लौटाए जाने की तारीख, उपस्थित करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटे जाने के कारणों का संक्षिप्त कथन पष्ठाकित करेगा।
यह उपबंध वाद पत्र प्रस्तुत करने के पश्चात तथा न्यायालय द्वारा वाद ग्रहण करने के पश्चात उस वाद पत्र को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं होने के कारण उस वाद पत्र को वादी को लौटाए जाने बाबत संहिता में किए गए हैं। क्षेत्राधिकार के आधार पर किसी वाद को लौटाए जाने की कार्यवाही अविलंब की जानी चाहिए। संहिता मैं नियम 10 क जहां वाद पत्र उसके लौटाए जाने के पश्चात फाइल किया जाना है, वहां न्यायालय में उपसंजाति के लिए तारीख नियत करने की न्यायालय की शक्ति व नियम 10 ख समुचित न्यायालय को वाद अंतरित करने की अपील न्यायालय की शक्ति के बारे में उपबंध किए गए हैं। संहिता में यह महत्वपूर्ण उपबंध है, विभिन्न न्यायालयों के विनिश्चय इस उपबंध को समझने के लिए दिया जा रहे है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय--
(1) जहां न्यायालय को यह प्रतीत हो कि उसे वाद की सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार नहीं है, वहां वह वाद पत्र को उस पर पृष्ठांकन करने के बाद समुचित न्यायालय को पेश किए जाने के लिए लौटा देगा।
1934 ए आई आर (पटना) 504
(2) क्षेत्राधिकार के आधार पर किसी वाद को लौटाए जाने की कार्रवाई अविलंब की जानी चाहिए। 5 वर्ष बाद किसी वाद को सक्षम न्यायालय में पेश करने के लिए लौटाया जाना समुचित नहीं है।
1987 ए आई आर (उड़ीसा) 34
(3) घातक दुर्घटना अधिनियम - आदेश 7 नियम 10 - - अपकृत्य मैं समुचित उपचार दीवानी वाद होने के कारण याचिका खारिज करना क्योंकि यह पोषणीय नहीं है-- दुर्घटना जुलाई 1988 होने के कारण याचिका अविलंब अक्टूबर 1998 में दायर की गई जो इतने वर्षों तक उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित रही अब यदि इसे केवल खारिज किया जाता है तो दावेदारो के पास कोई उपचार नहीं बचेगा जो न्याय का उपहास होगा यदि उनके प्रकथन सत्य है- आदेश 7 नियम 10 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए याचिका को समुचित अधिकारिता वाले न्यायालय में एक वाद पत्र के रूप में पेश करने एवं उसके जवाब दावे को लिखित कथन के रूप में लेने हेतु लौटाने के निर्देश दिए।
2009 (4 ) RLW 3363
(4) जहां कोई मामला सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत सिविल न्यायालय द्वारा नहीं सुना जा सकता है, वहां उस मामले को समुचित प्राधिकारी के समक्ष पेश करने हेतू वादी को लौटा देना जाना चाहिए।
1997 ए आई आर (मध्य प्रदेश) 147
(5) वाद पत्र का लौटाया जाना - वाद पत्र लौटाए जाने के पश्चात जिस न्यायालय में उसे दायर करना होता है, मैं उपस्थित होने की तिथि नियत करने के न्यायालय की शक्ति-- अभिनिर्धारित-- सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 10 क या10 ख के तहत स्थानांतरित न्यायालय या अधिकरण के समक्ष उपस्थित होने के लिए दोनों पक्षकारों को निर्देश देने के लिए स्वयं न्यायालय को शक्ति प्राप्त है और उस प्रयोजनार्थ वह उपस्थित होने की तिथि नियत कर सकता है और न्यायालय की वह शक्ति वादी के आवेदन पर निर्भर नहीं करती।
2007 (1) RLW 232
(6) वाद पत्र का लौटाना - - अधिकारिता की तनकी वादी के विरुद्ध तय की एवं पुनर्विलोकन याचिका भी निरस्त की गई-- विचारण न्यायालय ने सक्षम राजस्व न्यायालय में पेश करने के लिए वाद पत्र लौटाने का आदेश दिया-- वार्ड कृषि भूमि से संबंधित था तथा विचारण न्यायालय ने तनकी नंबर 6 विरचित की कि क्या डिक्री विधिमान्य व शुन्यकरणीय है-- राजस्व न्यायालय द्वारा निर्णित नहीं की जा सकती है-- वाद पत्र में चाहे गए अनुतोष से सिविल न्यायालय को वाद सुनने की अधिकारिता है एवं अधिकारिता की तनकी पर निष्कर्ष अवैध है, अपास्त किया।
1998 (1) DNJ (Raj.)65
(7) आदेश 7 नियम 10 - - राष्ट्रीय पर्यावरण अधिकरण के समक्ष पेश करने हेतु वाद पत्र का लौट आया जाने का विचारन न्यायालय ने आदेश किया, आदेश की अपील खारिज हुई। अधिकरण ने टावर के विवाद के संबंध में क्षेत्राधिकार अधिकरण का नहीं माना। निचले न्यायालय द्वारा पारित आदेश अपास्त किए तथा वाद रेस्टोर किया।
2016 (2)DNJ (Raj.) 540
(8) वाद पत्र लौटाने का आदेश - वाद वर्ष 1998 में पेश किया और न्यायालय की आर्थिक क्षेत्रधिकारीता के संबंध में जवाब दावा में आपति नहीं उठाई। प्रतिवादी का मामला नहीं की प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। आपति उठाने के अधिकार का अधित्यजन हुआ--निर्णित, आदेश अपास्त किए तथा गुण-अवगुण पर वाद निर्णित करने का विचार न्यायालय को निर्देश दिया।
2016 (3) DNJ (Raj.) 1867
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