वादों का अंतरण --TRANSFER OF SUIT
SECTION 22 TO 25 CPC.
सामान्यता वाद उस न्यायालय में पेश किया जाता है और उसी को सुनने का अधिकार होता है जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार मैं वादग्रस्त संपत्ति स्थित हो,वाद मैं पक्षकार निवास करते हो या वाद कारण उत्पन्न हो लेकिन यह एकदम निरपेक्ष नियम नहीं है कभी कभी वाद के पक्षकारों को यह प्रतीत हो सकता है कि न्यायालय विशेष से उन्हें उचित एवं सही न्याय नहीं मिल सकता है तो ऐसी अवस्था में वह अपने वाद को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय मैं अंतरित करने की मांग कर सकते हैं यह उचित भी है क्योंकि न्यायालय का मुख्य कार्य न्याय प्रदान करना होता है और यदि यह उद्देश्य पूरा नहीं होता है तो न्याय का कोई अर्थ नहीं रहा जाता यही कारण है कि संहिता की धारा 22 से 25 तक मैं वादों के अंतरण के बारे मैं व्यवस्था की गई है। संहिता में इस बारे में निम्न प्रकार से उपबंध किए गए है।
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धारा 22. जो वाद एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित किए जा सकते हैं उनको अंतरित करने की शक्ति -
जहां कोई वाद दो या अधिक न्यायालयों मैं किसी एक मैं संस्थित किया जा सकता है और ऐसे न्यायालयों मैं से किसी एक मैं संस्थित किया गया है वहां कोई भी प्रतिवादी अन्य पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात यथासंभव सर्वप्रथम अवसर पर और उन सब मामला मैं जिनमें विवाद्यक स्थिर किए जाते हैं ऐसे स्थिरीकरण के समय या उसके पहले अन्य न्यायालय को वाद अंतरित किए जाने के लिए आवेदन कर सकेगा और वह न्यायालय जिससे ऐसा आवेदन किया गया है अन्य पक्षकारों के( यदि कोई ) आक्षेपो पर विचार करने के पश्चात यह अवधारित करेगा की अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालयों मैं से किस न्यायलय मैं वाद चलेगा।
धारा 23 -- किस न्यायालय में आवेदन किया जाए -
(1) जहां अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालय एक ही अपील न्यायालय के अधीनस्थ है वहां धारा 22 के अधीन आवेदन अपील न्यायालय मैं किया जाएगा
(2) जहां ऐसे न्यायालय विभिन्न अपील न्यायालयों की अधीन होते हुए भी एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है वहां वह आवेदन उक्त उच्च न्यायालय मैं किया जाएगा।
(3) जहां ऐसे न्यायलय विभिन्न उच्च न्यायालयों अधीनस्थ है वहां आवेदन उस न्यायलय में किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वह न्यायालय स्थित है जिसमें वाद लाया गया है।
धारा 24 -- अंतरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्ति --
(1) किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हो उनको सुनने के पश्चात या ऐसी सूचना यह बिना स्वप्रेरणा से उच्च न्यायालय या जिला न्यायालय किसी भी प्रक्रम मैं --
(क) ऐसे किसी वाद अपील या अन्य कार्यवाही को जो उसके सामने विचारण या निपटारे के लिए लंबित है अपने अधीनस्थ ऐसे किसी न्यायालय को अंतरित कर सकेगा जो उसका विचारण करने या उसे निपटाने के लिए सक्षम है अथवा;
(ख) अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय में लंबित किसी वाद अपील या अन्य कार्यवाही प्रत्याहरण कर सकेगा तथा -
(१) उसका विचारण या निपटारा कर सकेगा अथवा
(२) अपने अधीनस्थ ऐसे किसी न्यायालय को उसका विचारण या निपटारा करणी लिए अंतरित कर सकेगा जो उसका विचारण करने या उसे निपटाने के लिए सक्षम हैं अथवा
(३) विचारण या निपटारा करने के लिए उसी न्यायालय को उसका प्रत्यय अंतरण कर सकेगा जिससे उसका प्रत्याहरण किया गया था।
(2) जहां किसी वाद या कार्यवाही का अंतरण या प्रत्याहरण उप धारा (1) के अधीन किया गया वहां वह न्यायालय जिसे ऐसे वाद या कार्यवाही का तत्पश्चात विचारण करना है या उसे निपटाना है अंतरण आदेश मैं दिए गए विशेष निर्देश के अधीन रहते हुए या तो उसका पुनः विचरण कर सकेगा या उस प्रक्रम से आगे कार्रवाई करेगा जहां से उसका अंतरण या प्रत्याहरण क्या गया था।
(3) इस धारा के प्रयोजनों के लिए --
(क) अपर और सहायक न्यायाधीशों के न्यायालय जिला न्यायालय के अधीनस्थ समझे जाएंगे
(ख) " कार्यवाही" के अंतर्गत किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन के लिए कार्यवाही भी है।
(4) किसी लघुवाद न्यायालय से इस धारा के अधीन अंतरित या प्रत्याहत किसी वाद का विचारण करने वाला न्यायालय ऐसे वाद के प्रयोजन के लिए लघुवाद न्यायालय समझा जाएगा।
(5) कोई वाद या कर्यवाही उस न्यायालय से इस धारा अधीन अंतरित की जा सकेगी जिससे उसका विचारण करने की अधिकारिता नहीं हैं | [1976 के अधिनियम संख्या 104 द्वारा (1/2/1977) से अंतःस्थापित ]
(5) कोई वाद या कर्यवाही उस न्यायालय से इस धारा अधीन अंतरित की जा सकेगी जिससे उसका विचारण करने की अधिकारिता नहीं हैं | [1976 के अधिनियम संख्या 104 द्वारा (1/2/1977) से अंतःस्थापित ]
(25) वादों आदि के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति -
(१) किसी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचित करने के पश्चात और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हो उनको सुनने के पश्चात यदि उच्चतम न्यायालय का किसी भी प्रक्रम पर यह समाधान हो जाता है कि न्याय की प्राप्ति के लिए इस धारा के अधीन आदेश देना समीचीन है तो वह यह निर्देश दे सकेगा की किसी राज्य के किसी उच्च न्यायालय या सिविल न्यायालय मैं अन्य राज्य के किसी उच्च न्यायालय या अन्य सिविल न्यायालय को कोई वाद अपील या कारवाही अंतरित कर दी जाए।
(२) इस धारा के अधीन प्रत्येक आवेदन समावेदन के द्वारा क्या जाएगा और अनुसमर्थन में एक शपथ पत्र होगा।
( ३) वह न्यायालय जिसको ऐसा वाद अपील या अन्य कार्यवाही अंतरित की गई है अंतरण आदेश में दिए गए विशेष निर्देशों के अधीन रहते हुए तो उसका पुनः विचारण करेगा या उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही करेगा जिस पर वह उसे अंतरित किया गया था।
(४) इस धारा के अधीन आवेदन को खारिज करते हुए यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ था या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को यह आदेश दे सकेगा की वह उस व्यक्ति को जिसनेआवेदन का विरोध किया है प्रतिकर के रूप में ₹2000 से अनधिक ऐसी राशि संदत्त करें जो न्यायालय मामले की परिस्थितियों में उचित समझें।
(५) इस धारा के अधीन अंतरित वाद अपील या अन्य कार्रवाई को लागू होने वाली विधि वह विधि होगी जो वह न्यायालय जिसमें वह वाद अपील या अन्य कार्यवाही मूलतः संस्थित की गई थी ऐसे वाद अपील या अन्य कार्यवाही को लागू करता है।
उपरोक्त उपबंध संहिता में वादों का अंतरण के संबंध में उपबंधित किए गए हैं उनकी व्यवस्था जिन सिद्धांतों पर की गई है उन्हें मुख्य है--
" न्याय किया ही नहीं जाना चाहिए अपितु यह प्रकट भी होना चाहिए कि न्याय किया गया है।"
यदि किसी पक्षकार को यह प्रतीत होता है कि न्यायालय उसके साथ अनावश्यक शक्ति बरत रहा है एवं अपने विवेकाधिकार का दुरुपयोग कर रहा है तो ऐसे मामले अंतरित किए जाने योग्य है।
अंतरण के लिए ठोस आधारों का होना आवश्यक है। भावना में बह कर किसी मामले को अंतरित कर देना उचित नहीं लगता है लेकिन यदि कोई न्यायाधीश किसी समुचित कारण से अंतरित करना चाहता है तो उसे अंतरित किया जा सकता है।
जहां समान एवं एक ही वाद हेतुक पर दो विभिन्न वाद जिला न्यायालय एवं सिविल न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है वहां जिला न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से सिविल न्यायाधीश क्या यहां से वाद को अंतरित करना पूर्णतः न्यायोचित है।
ऐसा आवेदन पत्र प्रस्तुत होने पर अपीलीय न्यायालय या उच्च न्यायालय सर्वप्रथम अन्य पक्ष कार द्वारा उठाए जाने वाली आपत्तियों पर विचार करेगा और ऐसा विचार करने के बाद वह यह अवधारित करेगा कि क्षेत्राधिकार रखने वाले कई न्यायालयों में से किस में वाद अग्रसर होगा
धारा 24 उच्च न्यायालय और जिला न्यायालय को किसी प्रकार के आवेदन पर और अन्य पक्षकारों को सूचना देने के बाद या स्वप्रेरणा से अपने सामने लंबित किसी वाद अपील या अन्य कार्यवाही को अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय को परीक्षण या निपटारे के लिए अंतरित करने की सामान्य शक्तियां प्रदान करती है। इतना ही नहीं वह वाद अपील या अन्य कार्रवाई का प्रत्याहरण करके स्वयं उसका परिक्षण या निपटारा करेगा अथवा पुनः उसे परीक्षण अथवा निपटारे के लिए अपने अधीनस्थ किसी न्यायालय को भेज सकेगा।
इस प्रकार संहिता में यह एक महत्वपूर्ण उपबंध है तथा हम उपरोक्त उपबंधों को समझने के लिए विभिन्न न्यायालय द्वारा पारित न्याय निर्णय नीचे दिए जा रहे हैं --
(1) एक मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस आधार पर मामले को अंतरित करने से इंकार कर दिया कि आवेदक के किसी पूर्व मामले में मुंसिफ द्वारा उसके विरुद्ध निर्णय दिया गया था। पूर्व मामले में आवेदक के विरुद्ध निर्णय दिया जाना वर्तमान मामले में उसके साथ अन्याय होने की आशंका कारण नहीं हो सकता है।
1996 AIR karnat.127
(2) जहां समान एवं एक ही वाद हेतुक पर दो विभिन्न वाद जिला न्यायालय एवं सिविल न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है वहां जिला न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से सिविल न्यायाधीश क्या यहां से वाद को अंतरित करना पूर्णतः न्यायोचित है।
1990 AIR( NOC) Karnatak 16
(3) आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक मामले में यह अभी निर्धारित किया है कि एक मामले के स्थांतरण के इस आधार को नकार दिया कि मामले की सुनवाई के दौरान पीठासीन अधिकारी द्वारा कतिपय टिप्पणियां की गई थी जिससे पक्षकार के साथ न्याय नहीं होने की आशंका है।
1996 AIR (AP) 34
4. एक मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि यह आवश्यक है कि ऐसा न्यायलय उस मामले की आर्थिक एवं प्रादेशिक दृष्टि से सुनवाई करने की अधिकारिता रखता हो।
1992 AIR Karnatak 163
5. ऐसा न्यायलय जो अनुसूचित जिला अधिनियम एवं आंध्र प्रदेश अभिकरण नियमों के अंतर्गत एक अभिकरण न्यायालय के रूप में गठित किया गया हो,उच्च न्यायालय का अधीनस्थ न्यायालय समझा जाएगा।
1978 AIR (AP) 82
6. अंतरण का प्रार्थना पत्र प्राप्त होने पर दूसरे पक्ष कार को उसकी सूचना देना इस धारा के अधीन आज्ञापक हैं ।
1981AIR (All.) 178
7. धारा 24 संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890-- धारा 10 --अजमेर से जयपुर मामले के अंतरण के लिए याचिका--प्रार्थिया अल्पवयस्क पुत्र के साथ जयपुर रह रही है-- नाबालिक पुत्र की अभिरक्षा के लिए आवेदन कुटुंब न्यायालय, अजमेर के समक्ष लंबित-- अप्रार्थी भी जयपुर मै सेवारत है ।न्यायलयकीआधिकारिता-- अभिनिर्धारित मामला कुटुंब न्यायालय जयपुर को अंतरित किया गया ।
1996 (2) DNJ (Raj.) 548
8. पारिवारिक न्यायालय नंबर 1 जोधपुर से पारिवारिक न्यायालय बूंदी प्रकरण स्थानांतरित करने हेतु याचिका --याचीनी के साथअवयस्क बालिका -- बूंदी व जोधपुर के बीच दूरी 350 किलोमीटर से कम नहीं है- अयाची के विरुद्ध बूंदी न्यायालय में 498 -ए भारतीय दंड संहिता तथा घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत कार्यवाही विचाराधीन है -- पिता तथा भाइयों की दया पर या चीनी को नहीं छोड़ा जा सकता निर्णीत, प्रकरण स्थानांतरित किया।
2014 (4) DNJ ( Raj.)1599
9. पारिवारिक न्यायालय जयपुर सेपारिवारिक न्यायालय जोधपुर को मामला अंतरित करने हेतु प्रार्थना पत्र -- पति ने तलाक हेतु धारा 13 के अंतर्गत याचिका जयपुर में पेश की -- याचीनी के साथ 3 वर्ष का बच्चा है और माता पिता के साथ रह रही है --जोधपुर से जयपुर नाबालिक बच्चे के साथ यात्रा करना बहुत ही असुविधा पूर्ण है-- पत्नी की असुविधा व कठिनाई पर ध्यान देना चाहिए -- निर्णीत, मामला पारिवारिक न्यायालय जयपुर से पारिवारिक न्यायालय जोधपुर अंतरित किया।
2015 (4) DNJ ( Raj)1689
10. तलाक याचिका को पारिवारिक न्यायालय चूरु से पारिवारिक न्यायालय श्रीगंगानगर अंतरित करने हेतु याचिका --अप्रार्थी के विरुद्ध श्री गंगानगर में 4 प्रकरण लंबित है-- रेस्पोंडेंट पहले ही गंगानगर कार्रवाई में उपस्थित हो रहा है --निर्णीत, प्रकरण को पारिवारिक न्यायालय चूरु से श्रीगंगानगर अंतरित करना न्याय संगत है।
2016 (3) DNJ ( Raj ) 1419
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