hindu marriage act 1955 धारा 13 -हिन्दू विवाह अधिनियम - CIVIL LAW

Wednesday, October 4, 2017

hindu marriage act 1955 धारा 13 -हिन्दू विवाह अधिनियम

Hindu marriage act 

 धारा 13 -हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 -विवाह विच्छेदSection 13 in The Hindu Marriage Act, 1955 -Divorce

              हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 के पारित होने के बाद हिन्दू धर्म से शासित होने वाले हिन्दुओ के मध्य इस अधिनियम के
पारित होने के पूर्व या पश्चात सम्पन्न हुए विवाह को धारा 13 में दिये गये प्रावधानों एवम आधारों के अनुसार विवाह विच्छेद की डिक्री दम्पति में से किसी एक के द्वारा जिला न्यायलय पेश याचिका के आधार पर पारित की जा सकती हैं।धारा 10 न्यायिक पृथक्करण एवम विवाह विच्छेद के लिए एक ही आधार है जिनके अनुसार न्यायलय न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित करे या विवाह विच्छेद की डिक्री पारित करे ऐसा मामला के आधार पर ओर परिस्थितियों के अनुसार किया जा सकता है।धारा 23 के अध्यधीन रहते हुए ही याचिका कर्ता को राहत दी जा सकती हैं क्योंकि याचिका कर्ता अपनी गलती का लाभ नहीं ले सकता है किंतु विधिक प्रावधान के अनुसार याचिकाकर्ता को विवाह विघटन कराने का लाभ मिलता है तो वह लाभ ले सकता हैं।
AIR 1977 SC 2218

hindu marriage act of 1955




 हिन्दू विधि में सहमति से विवाह विच्छेद
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 विवाह विच्छेद की व्यवस्था भी करता है। लेकिन इस में विवाह के पक्षकारों की सहमति से विवाह विच्छेद की व्यवस्था 1976 तक नहीं थी। मई 1976 में एक संशोधन के माध्यम से इस अधिनियम में धारा 13-ए व धारा 13-बी जोड़ी गईं, तथा धारा 13-बी में सहमति से विवाह विच्छेद की व्यवस्था की गई।

आपकी सुविधा के लिए  हमारी website का APP DOWNLOAD करने के लिए यह क्लीक करे -            

  APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE


hindu marriage divorce act


धारा 13-बी में प्रावधान किया गया है कि यदि पति-पत्नी एक वर्ष या उस से अधिक समय से अलग रह रहे हैं तो वे यह कहते हुए जिला न्यायालय अथवा परिवार न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं कि वे एक वर्ष या उस से अधिक समय से अलग रह रहे है, उन का एक साथ निवास करना असंभव है और उन में सहमति हो गई है कि विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर विवाह को समाप्त कर दिया जाए। इस प्रवधान को भी आगे विस्तार पूर्वक विवेचन करेंगे।

 प्रारंभिक हिन्दू विधि में तलाक या विवाह विच्छेद की कोई अवधारणा उपलब्ध नहीं थी। हिन्दू विधि में विवाह एक बार हो जाने के बाद उसे खंडित नहीं किया जा सकता था। विवाह विच्छेद की अवधारणा पहली बार हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 से हिन्दू विधि में सम्मिलित हुई। वर्तमान में हिन्दू विवाह को केवल उन्हीं आधारों पर विखंडित किया जा सकता है

धारा 13 --विवाह विच्छेद (Divorce)-
(1) कोई विवाह, भले वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् अनुष्ठित हुआ हो, या तो पति या पत्नी पेश की गयी याचिका पर तलाक की आज्ञप्ति द्वारा एक आधार पर भंग किया जा सकता है कि -
(i) दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् अपनी पत्नी या अपने पति से भिन्न किसी व्यक्ति , के साथ स्वेच्छया मैथुन किया है; या
(i-क) विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् अर्जीदार के साथ क्रूरता का बर्ताव किया है; या
(i-ख) अर्जी के उपस्थापन के ठीक पहले कम से कम दो वर्ष की कालावधि तक अर्जीदार को अभित्यक्त रखा है; या
(ii) दूसरा पक्षकार दूसरे धर्म को ग्रहण करने से हिन्दू होने से परिविरत हो गया है, या
(iii) दूसरा पक्षकार असाध्य रूप से विकृत-चित रहा है लगातार या आन्तरायिक रूप से इस किस्म के और इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित रहा है कि अर्जीदार से युक्ति-युक्त रूप से आशा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्यर्थी के साथ रहे।

स्पष्टीकरण -
(क) इस खण्ड में 'मानसिक विकार' अभिव्यक्ति से मानसिक बीमारी, मस्तिष्क का संरोध या अपूर्ण विकास, मनोविक्षेप विकार या मस्तिष्क का कोई अन्य विकार या अशक्तता अभिप्रेत है और इनके अन्तर्गत विखंडित मनस्कता भी है;
(ख) 'मनोविक्षेप विषयक विकार' अभिव्यक्ति से मस्तिष्क का दीर्घ स्थायी विकार या अशक्तता (चाहे इसमें वृद्धि की अवसामान्यता हो या नहीं) अभिप्रेत है जिसके परिणामस्वरूप अन्य पक्षकार का आचरण असामान्य रूप से आक्रामक या गम्भीर रूप से अनुत्तरदायी हो जाता है और उसके लिये चिकित्सा उपचार अपेक्षित हो या नहीं, या किया जा सकता हो या नहीं, या
(iv) दूसरा पक्षकार याचिका पेश किये जाने से अव्यवहित उग्र और असाध्य कुष्ठ रोग से पीड़ित रहा है; या
(v) दूसरा पक्षकार याचिका पेश किये जाने से अव्यवहित यौन-रोग से पीड़ित रहा है; या
(vi) दूसरा पक्षकार किसी धार्मिक आश्रम में प्रवेश करके संसार का परित्याग कर चुका है; या
(vii) दूसरे पक्षकार के बारे में सात वर्ष या अधिक कालावधि में उन लोगों के द्वारा जिन्होंने दूसरे पक्षकार के बारे में, यदि वह जीवित होता तो स्वभावत: सुना होता, नहीं सुना गया है कि जीवित है।


स्पष्टीकरण -
इस उपधारा में 'अभित्यजन' पद से विवाह के दूसरे पक्षकार द्वारा अर्जीदार का युक्तियुक्त कारण के बिना और ऐसे पक्षकार की सम्मति के बिना या इच्छा के विरुद्ध अभित्यजन अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा अर्जीदार की जानबूझकर उपेक्षा भी है और इस पद के व्याकरणिक रूपभेद तथा सजातीय पदों के अर्थ तदनुसार किये जायेंगे।
(1-क) विवाह में का कोई भी पक्षकार चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पहले अथवा पश्चात् अनुष्ठित हुआ हो, तलाक की आज्ञप्ति द्वारा विवाह-विच्छेद के लिए इस आधार पर कि
(i) विवाह के पक्षकारों के बीच में, इस कार्यवाही में जिसमें कि वे पक्षकार थे, न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति के पारित होने के पश्चात् एक वर्ष या उससे अधिक की कालावधि तक सहवास का पुनरारम्भ नहीं हुआ है; अथवा
(ii) विवाह के पक्षकारों के बीच में, उस कार्यवाही में जिसमें कि वे पक्षकार थे, दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की आज्ञप्ति के पारित होने के एक वर्ष पश्चात् एक या उससे अधिक की कालावधि तक, दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन नहीं हुआ है;
याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
(2) पत्नी तलाक की आज्ञप्ति द्वारा अपने विवाह-भंग के लिए याचिका :-
(i) इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठित किसी विवाह की अवस्था में इस आधार पर उपस्थित कर सकेगी कि पति ने ऐसे प्रारम्भ के पूर्व फिर विवाह कर लिया है या पति की ऐसे प्रारम्भ से पूर्व विवाहित कोई दूसरी पत्नी याचिकादात्री के विवाह के अनुष्ठान के समय जीवित थी;
परन्तु यह तब जब कि दोनों अवस्थाओं में दूसरी पत्नी याचिका पेश किये जाने के समय जीवित हो; या
(ii) इस आधार पर पेश की जा सकेगी कि पति विवाह के अनुष्ठान के दिन से बलात्कार, गुदामैथुन या पशुगमन का दोषी हुआ है; या
(iii) कि हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 18 के अधीन वाद में या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अधीन (या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 की तत्स्थानी धारा 488 के अधीन) कार्यवाही में यथास्थिति, डिक्री या आदेश, पति के विरुद्ध पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए इस बात के होते हुए भी पारित किया गया है कि वह अलग रहती थी और ऐसी डिक्री या आदेश के पारित किये जाने के समय से पक्षकारों में एक वर्ष या उससे अधिक के समय तक सहवास का पुनरारम्भ नहीं हुआ है; या
(iv) किसी स्त्री ने जिसका विवाह (चाहे विवाहोत्तर सम्भोग हुआ हो या नहीं) उस स्त्री के पन्द्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व अनुष्ठापित किया गया था और उसने पन्द्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् किन्तु अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का निराकरण कर दिया है।

स्पष्टीकरण — 
यह खण्ड लागू होगा चाहे विवाह, विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 (1976 का 68) के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठापित किया गया हो या उसके पश्चात्।
13 – क. विवाह-विच्छेद कार्यवाहियों में प्रत्यर्थी को वैकल्पिक अनुतोष – 
विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए अर्जी पर इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में, उस दशा को छोड़कर जहाँ और जिस हद तक अर्जी धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ii), (vi) और (vii) में वर्णित आधारों पर है, यदि न्यायालय मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह न्यायोचित समझता है तो विवाह-विच्छेद की डिक्री के बजाय न्यायिक-पृथक्करण के लिए डिक्री पारित कर सकेगा।
13 - ख, पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद-
(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए या दोनों पक्षकार मिलकर विवाह-विच्छेद की डिक्री विवाह के विघटन के लिए अर्जी जिला न्यायालय में, चाहे ऐसा विवाह, विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठापित किया गया हो चाहे उसके पश्चात् इस आधार पर पेश कर सकेंगे कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और वे एक साथ नहीं रह सके हैं तथा वे इस बात के लिए परस्पर सहमत हो गये हैं कि विवाह विघटित कर देना चाहिये।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अर्जी के उपस्थापित किये जाने की तारीख से छ: मास के पश्चात् और अठारह मास के भीतर दोनों पक्षकारों द्वारा किये गये प्रस्ताव पर, यदि इस बीच अजीं वापिस नहीं ले ली गई हो तो न्यायालय पक्षकारों को सुनने के पश्चात् और ऐसी जाँच, जैसी वह ठीक समझे, करने के पश्चात् अपना यह समाधान कर लेने पर कि विवाह अनुष्ठापित हुआ है और अर्जी में किये गये प्रकाशन सही हैं यह घोषणा करने वाली डिक्री पारित करेगा कि विवाह डिक्री की तारीख से विघटित हो जाएगा।

 इस सम्बन्ध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे हैं

1 पत्नी रेस्पोडेन्ट के साथ रहने को इच्छुक हैं -डिक्री मंजूरी हेतु साक्ष्य नहीं।अभिनिर्धारित -विचारण न्यायलय ने डिक्री पारित करने में त्रुटि कारित की है।
1996 (1) DNJ (Raj.)192
2. जारता, मानसिक क्रूरता व परित्याग का आरोप।पत्र लिखने की दिनांक से याचिका दायर करने में 7 वर्ष विलम्ब -नेगेटिव के अभाव में फोटोग्राफ साक्ष्य में ग्राह्य नहीं।आदेश में त्रुटि नही।
1998 (1) DNJ (Raj.)365
3. रेस्पोडेन्ट पत्नी विवाह के समय अव्यस्क थी।विवाह के बाद कभी पत्नी पति के साथ उसके घर नहीं रही।पिछले 12 सालों से अलग अलग रह रहे हैं।विवाह विघटन करने पर दोनों सहमत हैं।विवाह विघटन की डिक्री सही पारित की गई है।
2008 (2) DNJ (Raj.)584
 4. आपसी सहमति से पति पत्नी का विवाह विच्छेद हो जाता है तो भी पत्नी धारा 125 दंड प्रक्रिया सहिता के अंतर्गत पति से भरण पोषण की राशि प्राप्त करने की अधिकारिणी है।
1995 (2) MP. W. N162 (SC)
5. दाम्पत्य अधिकारों की पुनः स्थापन की डिक्री की एक वर्ष तक पालना नही करने पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदान की गई।
AIR 1995 Orisa.180

6. उच्च न्यायलय ने दाम्पत्य अधिकारों की पुनः स्थापना की डिक्री की पुष्टि की।सुप्रीम कोर्ट ने मेल मिलाप का प्रयास किया तो न्यायलय ने पाया कि पति पत्नी का एक साथ रहना सम्भव नहीं है इसलिए विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदान की गई।
AIR 1995 SC 2170
7. पत्नी का पति से स्वेच्छा पूर्वक अलग रहना।पत्नी ने आरोप लगाया कि पति अनैतिक जीवन बिता रहा है तथा ससुर ने उससे अभद्रता पूर्ण व्यहार किया जो असत्य था इसे मानसिक क्रूरता माना गया और विवाह विच्छेद की डिक्री दी गई।
AIR 1994 "AII.128
8. पत्नी पति की माता और बहनों पर अपमानजनक आरोप लगाया करती थी गन्दी गालियां बकती थीं।वेश्यावृत्ति का आरोप लगाया करती थी।पति के विरुद्ध भी अपमानजनक आरोप लगाया करती।बात बात पर झगड़ा करती।पत्नी के द्वारा क्रूरता माना गया और पति की ओर से दायर याचिका स्वीकार की गई।
AIR 1994 SC 710
9. पति या पत्नी विवाह विच्छेद के लिए दी गई सहमति डिक्री पारित होने के पूर्व किसी भी स्तर पर वापिस ले सकते है ऐसी स्थिति मे धारा 13 (ख) के अंतर्गत विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदान नहीं कि जा सकती हैं।
1991 MP. L. J.382 (SC)
10. ऐसी स्थिति में विवाह विच्छेद का अनुतोष प्रदान नहीं किया जा सकता जहां रेस्पोडेन्ट अप्रार्थी ने पति के साथ नहीं रहने का तर्क संगत कारण दर्शाया हो और माफी चाही हो ,--धारा 23 (1) (क)यह विनिर्दिष्ट रूप से उपबन्ध करती है कि ऐसे व्यक्ति के पक्ष में विवाह विच्छेद की डिक्री प्रदान नही की जा सकती जिसने स्वयं ने दुष्कृत्य किया हो।
2007 (1) RLW 656


हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13(ख) अत्यंत महत्वपूर्ण होने से इसका विस्तृत विवेच आगामी पोस्ट में किया जायेगा आप हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे


नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी लिंक निचे दी गयी हैं। आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से नई जानकारी के लिए जुड़े रहे।

                 APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE




13 comments:

  1. क्या पति द्वारा सेक्शन 9 का दावा करने पर पत्नी इस दावे को खारिज कर सकती है?

    ReplyDelete
  2. Kya ladki ke do bacche he or ek amount baccho ki parwarish ka lene ke bad yadi talak ho to kya ladki wapas sadi nhi kr sakti

    ReplyDelete
  3. Jaise patne ne jhutha case kiya ki shadi se pahle enhone mera kidnapping or rape kiya tha tabhi shadi hui or shadi ke 3 sal bad puri family par dahej or marpit ka arop lagaye to..

    ReplyDelete
  4. Agar patni baar baar samjhota kar k jay aur pati usky baad bhi patni ko maansik aur saririk pratadna kary to patni pati k saath nahi reh sakti to is dasha m kya kiya jay patni pati k saath bilkul bhi rehna nahi cahati plsss tell me

    ReplyDelete
  5. Sir hum ne 13 b me divorce fill kiya tha ab mane not press fill kiya hai marag patni divorce chahati hai kya divorce ho jaye ga

    ReplyDelete

Post Top Ad