ORDER 9 RULE 4 CPC- Restoration of suit ( वाद का पुनः स्थापन किया जाना ) - CIVIL LAW

Saturday, February 25, 2017

ORDER 9 RULE 4 CPC- Restoration of suit ( वाद का पुनः स्थापन किया जाना )

ORDER 9 RULE 4 CPC. Plaintiff may bring fresh suit or court may restore suit to file. 

आदेश 9 नियम 4 सी. पी. सी. वादी नया वाद ला सकेगा या न्यायालय वाद को फाइल पर पुनःस्थापित कर सकेगा -





       न्यायिक प्रक्रिया में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत हैं की प्रत्येक न्यायिक कर्यवाही या विचारण पक्षकारो की उपस्थिति में किया जाना चाहिए। न्यायालय सामान्यतः पक्षकारो की अनुपस्थिति में किसी प्रकार की कर्यवाही का विचारण नही करता हैं इसी कारण किसी कार्यवाही के प्रारम्भ किये जाने के पूर्व न्यायालय विरोधी पक्षकार को समन द्वारा न्यायालय में उपस्थित रहने हेतु आहूत करते हैं तथा न्यायालय के ऐसे समन की पलना ना करने पर पक्षकार को उसके परिणाम भुगतने होते हैं। इसी प्रक्रिया के बारे में आदेश 9 में उपबंध किये गये हैं। इस आदेश का नियम 4 महत्वपूर्ण उपबंध है। यदि नियम 2 व 3 के अंतर्गत वादी का वाद ख़ारिज कर दिया जाता है तो वादी के पास क्या उपचार उपलब्ध है। संहिता के आदेश 9 नियम 4 में इस सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी है। नियम 4 का विस्तृत विवेचन किया जा रहा है।

        आदेश 9 नियम 4 - वादी नया वाद ला सकेगा या न्यायालय वाद को फाइल पर पुनःस्थापित कर सकेगा -

        जहा वाद नियम 2 या नियम 3 के अधीन ख़ारिज कर दिया जाता हैं वहा वादी नया वाद ( परिसीमा के विधि के अधीन रहते हुए ) ला सकेगा या वह उस उस खारिजी को अपास्त कराने के आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि वह न्यायालय को यह समाधान कर देता हैं यथा स्थिति नियम 2 में निर्दिष्ट असफलता के लिए या उसकी अनुपस्थिति के लिए प्रयाप्त कारण था तो न्यायालय ख़ारिजी के आदेश को अपास्त कराने के लिए आदेश करेगा और वाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा | इस नियम के अध्ययन से स्पष्ट है कि वाद नियम 2 व 3 की असफलता के कारण ख़ारिज हुआ हो। तो वादी के पास निम्न उपचार उपलब्ध है-- 1. वादी उसी हेतुक पर नया वाद ला सकता है। 2. वादी नियत दिनांक को अपनी अनुपसंजाति का पर्याप्त हेतुक बताकर न्यायलय को संतुष्ट करने पर खारीजी के आदेश को अपास्त करा कर वाद को पुनर्स्थापित करा सकता है।
       यह नियम जो वाद नियम 2 व 3 की असफलता के कारण ख़ारिज होते है उन्ही पर लागू होते है। इस कारण आदेश 9 के उक्त नियमो के अध्यन के लिए यहां click कर पढ़े।

       इस प्रकार स्पष्ट है कि जहां वादी व प्रतिवादी दोनों ही सुनवाई की दिनांक को अनुउपसंजात रहते है वहां यह नियम लागू होता है। यदि सुनवाई के दिन प्रतिवादी ही उपसंजात होता है और वाद नियम 8 के अधीन ख़ारिज होता है तो उक्त नियम के प्रावधान लागु नहीं होते है व आदेश 9 नियम 9 के प्रावधान लागु होगे।

 आदेश 9 नियम 9 के विस्तृत अध्ययन के लिए यहा Click कर पढ़े।

      सारांश यह है कि जहा कोई वाद आदेश 9 के नियम 2,3 व 5 के अंतर्गत ख़ारिज किया जाता है तो वादी उसी हेतुक पर नया वाद ला सकता है या वाद पुनर्स्थापित करा सकता है परंतु नियम 8 के अधीन ख़ारिज किये वाद में वादी उसी हेतुक पर नया वाद नहीं ला सकता है। उसे नियम 9 की और ही अग्रसर होने होगा।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ठ है कि वादों के विचारण में यह महत्वपूर्ण उपबंध है।

 इस संबंध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे है--

1. सारभूत न्याय को विफल करने के लिए तकनिकी आपत्तियों को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिये।
      RLW 2005 (1)Raj. 185 

2. पर्याप्त हेतु दर्शाने पर परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत अवधि बढ़ाई जा सकती है।
      2007(1) RLW 191 (SC) 

3. आवेदन को प्रतिवादी को सुचना दिए बिना प्रतिस्थापित किया।आदेश अवैध है। प्रतिस्थापित होने के बाद भी एकतरफा कार्यवाही नहीं की जा सकती है उसकी प्रतिवादी को सुचना देना आवश्यक है।
      AIR 1992 Raj. 57

4. आवेदन वादी के बिना हस्ताक्षर और बिना वकालतनामा प्रस्तुत किया गया।प्रार्थना पत्र पोषणीय नहीं है।           AIR 2001 Del. 19 

5. अधिवक्ता की मृत्यु होने पर नया वकालतनामा पेश नहीं होने से वाद ख़ारिज हुआ।वाद के पुनः स्थापन का आवेदन ख़ारिज किया।मृतक एड्वोकेट के एड्वोकेट पुत्र की गलती के लिए पक्षकार पीड़ित नहीं हो सकता -- निर्णीत- आदेश अपास्त किया व वाद पुनः स्थापित किया गया।
      2012 (1) DNJ Raj. 19 

सम्बन्धित न्याय निर्णय-- 

1. AIR 1996 SC 181 

2. AIR 1996 Kant. 91  

3. AIR 1993 Bom.160 

4. AIR 2003 Raj. 98 

5. 2004 (3) DNJ (Raj.)1427 



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