अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते।Temporary injunction--Conditions necessaryआदेश 39 नियम 1 व 2 सी. पी. सी.. - CIVIL LAW

Thursday, February 2, 2017

अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते।Temporary injunction--Conditions necessaryआदेश 39 नियम 1 व 2 सी. पी. सी..

            अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते।
            आदेश 39 नियम 1 व 2 सी. पी. सी.
 अस्थाई व्यादेश देना या नहीं देना तीन स्थापित सिंद्धान्तो पर निर्भर करता है।
1. क्या प्राथी का प्रथम दृष्टया मामला है।
2.क्या सुविधा का संतुलन प्राथी के पक्ष में है।
क्या प्राथी को अपूर्तनीय क्षति होगी।
प्रथम दृष्टया मामला (Prima facie Case) --
प्रथम दृष्टया मामला से तात्पर्य उस मामले से है जिसमे उसके समर्थन में दी गयी साक्ष्य पर विश्वास किया जा सके।इसका अर्थ यह नहीं है कि उस मामले को पूर्ण रूप से साबित कर दिया गया है बल्कि जिस मामले में ठोस व मजबूत रूप से स्थापित हुआ कहा जा सके।इस प्रकार ऐसा मामला जिसे यदि विरोधी पक्ष खंडित नहीं कर सके तो वादी को डिक्री मिल जायेगी।ऐसा मामला प्रथम दृष्टया मामला कहा जायेगा।
कोई मामला प्रथमिक है या नहीं इसका भार वादी पर होता है। वह शपथ पत्र या अन्य साक्ष्य द्वारा यह साबित करे कि उसके हक़ में प्रथम दृष्टया मामला मामला बनता है जिसका अंतिम निर्णय वाद में विचारण करके होगा।
प्रथम दृष्टया मामले का अर्थ प्रथम दृष्टया हक़ से नहीं है जो विचारण पर साक्ष्य से साबित होता है।प्रथम दृष्टया मामला सदभाव पूर्वक उठाया गया एक सारभूत प्रशन है जिसे अन्वेषण और गुणा गुण पर विनिश्चित किया जाना है।केवल प्रथम दृष्टया मामला से संतुष्ट होना ही व्यादेश का आधार नहीं है बल्कि न्यायालय को अन्य निम्न बिंदुओं को भी देखना होगा।
सुविधा का संतुलन--
     व्यादेश चाहने वाले पक्ष को सुविधा संतुलन उसके पक्ष में होना बताना पड़ेगा।न्यायालय जब व्यादेश मंजूर कर रहा हो या इंकार कर रहा हो तो उसे क्षति को उस सारभूत रिष्टि को ध्यान में रखते हुए युक्ति युक्त न्यायिक विवेचन का प्रयोग करना चाहिये जो पक्षो को व्यादेश मंजूर करने पर दूसरे पक्ष को हो सकती है।
सुविधा संतुलन उसके पक्ष में होना आवश्यक है जो अनुतोष की मांग करता है।
. ए.आई. आर 1990 सु. कोर्ट.867
अपूर्तनीय क्षति--
यदि पक्षकार को व्यादेश नहीं दिया गया तो पक्षकार को अपूर्तनीय क्षति होगी और व्यादेश देने के अलावा पक्षकार को अन्य कोई उपचार उपलब्ध नहीं है और क्षति या बेकब्जे के परिणामो से उसे संरक्षण की आवश्यकता है।यह एक ऐसी तात्विक क्षति होनी चाहिये जिसकी पूर्ति नुकसानी के रूप में पर्याप्त रूप से नहीं की जा सकती हो।यह भी कह सकते है कि उस क्षति की पूर्ति सामान्यतया धन से नहीं की जा सकती हो।
व्यादेश प्राप्त करने के लिये उक्त तीनों घटको का होना आवश्यक है,इनमे से एक के भी आभाव में न्यायालय व्यादेश देने से इंकार कर देगा।
न्यायालय यदि मुलभुत घटको पर विचार नहीं करता है तथा तीनो घटको पर विचार नहीं किया है तो आदेश विधि के प्रतिकूल है और विचारण न्यायालय को तीनों घटको पर निष्कर्ष अभिलिखित करना आज्ञापक था।विचारण न्यायालय का आदेश अपास्त किया।
2013(3) डी. एन. जे. (राज.)1006
अस्थाई व्यादेश प्राप्त होने के लिए तीन शर्ते है जो साथ साथ स्थित होनी  चाहिये। यदि इन में से एक का भी आभाव होगा तो व्यादेश प्रदान नहीं होगा।
1996(1) डी. एन. जे.(राज.)12
 अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते-इन शर्तों का स्पष्टीकरण।
1995(1)डी. एन. जे.(राज.)59
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आदेश 39 नियम 1व 2में ऐश
अस्थाई व्यादेश प्राप्त करने के लिए उक्त तीनों शर्तो का विद्यमान होना आवश्यक है।
    दीवानी अधिकारो या मामलो में अस्थाई व्यादेश महत्वपूर्ण होने से आगे भी नजीरों सहित विवेचन करते रहेंगे।आप मेरे ब्लॉग से जुड़े व फॉलो करे।मेरा प्रयास विधि से जुड़े लोगो को सरल हिंदी में विधि के प्रावधानों की जानकारी देना है।
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