Temporary injunction and interlocutory Orders ORDER 39 CPC (अस्थाई व्यादेश और अंतर्वर्ती आदेश) - CIVIL LAW

Sunday, February 26, 2017

Temporary injunction and interlocutory Orders ORDER 39 CPC (अस्थाई व्यादेश और अंतर्वर्ती आदेश)

Temporary injunction and interlocutory Orders
ORDER 39 CPC
अस्थाई व्यादेश और अंतर्वर्ती आदेश
  आदेश 39 सी. पी. सी.


       सिविल प्रक्रिया सहिंता में आदेश 39 बहूत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उक्त  आदेश अस्थायी व्यादेश एवं वाद कालीन आदेश बाबत प्रक्रिया सम्बंधित हैं | जब पक्षकार न्यायलय में वाद प्रस्तुत करता हैं तब विरोधी पक्षकार के किसी अपकृत्य को तत्काल रोकने की आवयश्कता होती हैं | वाद कि लम्बी प्रक्रिया होने से तत्काल अनुतोष पक्षकार को वाद के साथ इस आदेश के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायलय तत्काल विरोधी पक्ष के अपकृत्य को रोकने का आदेश प्रदान कर सकते हैं। न्यायलय की सामान्य प्रक्रिया में यथास्थिति(status quo)  बनाये रखने का आदेश प्रदान किया जाता हैं ।  यदि कोई पक्षकारवाद ग्रस्त ऐसी सम्पति को क्षति पहुचाने का  कार्य करता हैं या ऐसे कार्य करने की धमकी देता हैं तो निश्चित ही यह कृत्य दुसरे पक्षकार के लिए अपूर्णीय क्षति का कृत्य करता हैं एसी अवस्था में न्यायलय का प्रथम कर्तव्य हैं की वाद के लंबित रहने के दौरान या उसके अंतिम निर्णय तक वादग्रस्त सम्पति की  सुरक्षा करने के लिए वाद के रोज की  स्थति को बनाये रखने का आदेश व्यादेश(njunction )विरोधी पक्ष के विरुद्ध जारी करे।

         व्यादेश 4 प्रकार के होते हैं -


1 अस्थायी व्यादेश ( temporary injunction)
2 स्थायी व्यादेश  (prohibitory injun)
3 निषेधात्मक व्यादेश(Prohibitory injunction)
4.आज्ञात्मक व्यादेश(Mandatory injuction)

सिविल प्रक्रिया संहिता में अस्थाई निषेधाज्ञा का ही उपबंध है।अन्य तीनो व्यादेश के बारे में विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम 1963(Specific Relief Act,1963)में प्रावधान किया गया है।


आदेश 39 सी पी सी-

नियम 1.वे दशाएं जिनमे अस्थाई व्यादेश दिया जा सकेगा-
जहा किसी वाद में शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा यह साबित कर दिया जाता है कि--
(क) वाद में किसी विवादग्रस्त सम्पति के बारे में यह खतरा है कि वाद का कोई भी पक्षकार उसका नष्ट करेगा ,या नुकशान पहुचायेगा या अन्य अंतरित करेगा,या डिक्री के निष्पादन में उसका सदोष विक्रय कर दिया जावेगा अथवा
(ख) प्रतिवादी अपने लेनदारों को (कपट वंचित) करने की दृष्टि से अपनी सम्पति को हटाने या व्ययन करने की धमकी देता है या ऐसा करने का आशय रखता है,
(ग) प्रतिवादी वादी को वाद में विवादग्रस्त किसी सम्पति से बेकब्जा करने की या वादी को उस सम्पति के सम्बध में अन्यथा क्षति पहुचाने की धमकी देता है,--वहां न्यायालय ऐसे कार्य को अवरूढ करने के लिये आदेश द्वारा अस्थाई व्यादेश दे सकेगा,या सम्पति के दुर्व्यन किये जाने ,नुकशान किये जाने,अन्य संक्रांत किये जाने, ,हस्तांतरण किये जाने ,हटाये जाने या व्ययनित किये जाने जाने से अथवा वादी को वाद में विवादग्रस्त सम्पति से बेकब्जा करने या वादी को उस सम्पति के सम्बन्ध में अन्यथा क्षति पहुचाने से रोकने और निवारित करने के प्रयोजन से ऐसे अन्य आदेश जो न्यायालय ठीक समझे ,तब तक के लिये कर सकेगा जब तक उस वाद का निपटारा न हो जाय या जब तक अतिरिक्त आदेश न दे दिए जाये ।


नियम 2.भंग की पुनरावर्ती या जारी रखना को रोकने के लिए व्यादेश-
नियम 2 (1). संविदा भंग करने से या किसी भी प्रकार की अन्य क्षति करने से प्रतिवादी को अवरुद्ध करने के किसी भी वाद में, चाहे वाद में प्रतिकर का दावा  किया गया हो या न किया गया हो, वादी प्रतिवादी को परिवादित संविदा भंग या क्षति करने से या कोई भी संविदा भंग करने से या तीव्र क्षति करने से, जो उसी संविदा से उद्भूत होती हो या उसी सम्पति या अधिकार से सम्बंधित हो, अवरुद्ध करने के अस्थाई व्यादेश के लिए न्यायालय से आवेदन, वाद प्रारंभ होने के पश्चात किसी भी समय और निर्णय के पहले या पश्चात कर सकेगा |

नियम 2(2). न्यायालय ऐसा व्यादेश, ऐसे व्यादेश की अवधि के बारे में ,लेखा करने के बारे में, प्रतिभूति देने के बारे में, ऐसे निबन्धनों पर,या अन्यथा, न्यायालय जो ठीक समझे, आदेश द्वारा दे सकेगा।

यह भी पढ़े -  वाद की रचना (FRAME OF SUIT )
                    व्यादेश व न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां

2(क) व्यादेश की अवज्ञा या भंग का परिणाम-
(1) नियम 1 या नियम 2 के अधीन दिए गए किसी व्यादेश या किये गए अन्य आदेश की अवज्ञा की दशा में या जिन निबन्धनों पर आदेश दिया गया था या आदेश किया गया था उनमे से के किसी निबंधन के भंग की दशा में व्यादेश देने वाला या आदेश करने वाला न्यायालय या ऐसा कोई न्यायालय, जिसे वाद या कार्यवाही अंतरित की गयी है,यह आदेश दे सकेगा कि ऐसी अवज्ञा या भंग करने के दोषी व्यक्ति की सम्पति कुर्क की जाए और यह भी आदेश दे सकेगा कि वह व्यक्ति तीन माह से अनधिक अवधि के लिए सिविल कारागार में तब तक निरुद्ध किया जाए जब तक की इस बीच में न्यायालय उसकी निर्मुक्ति के लिए निदेश न दे दे।
(2) इस अधिनियम के अधीन की गई कोई कुर्की एक वर्ष से अधिक समय के लिये प्रवर्त नहीं रहेगी,जिसके ख़त्म होने पर यदि अवज्ञा या भंग जारी रहे तो कुर्क की गयी सम्पति का विक्रय किया जा सकेगा और न्यायालय आगमो में से ऐसा प्रतिकर जो वह ठीक समझे उस पक्षकार को दिला सकेगा जिसकी क्षति हुई हो,और शेष रहे तो उसे हक़दार पक्षकार को देगा।
3.  व्यादेश देने से पहले न्यायालय निदेश देगा कि विरोधी पक्षकार को सुचना दे दी जाए-
वहा के सिवाय जहां यह प्रतीत होता है का व्यादेश देने का उद्देश्य विलम्ब द्वारा निष्फल हो जायेगा न्यायालय सब मामलो में व्यादेश देने के पूर्व  यह निदेश देगा कि व्यादेश के आवेदन कि सूचना विरोधी पक्षकार को दे दी जाए:
    परन्तु जहा यह प्रस्थापना की जाती है कि विरोधी पक्षकार को आवेदन की सुचना दिये बिना व्यादेश दे दिया जाए वहा न्यायालय अपनी ऐसी राय के लिए  विलम्ब द्वारा व्यादेश का उद्देश्य विफल हो जायेगा, कारण अभिलिखित करेगा और आवेदक से यह से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह--
( क)  व्यादेश देने वाला आदेश किये जाने के तुरंत पश्चात व्यादेश के लिए आवेदन के साथ निम्न प्रति--
१. आवेदन के समर्थन में फाइल किये शपथ पत्र की प्रति;
२. वाद पत्र की प्रति; और
३. उन दस्तावेजो की प्रति जिन पर आवेदक निर्भर करता है,
विरोधी पक्षकार को दे या उसे रजिस्टर्डकृत डाक द्वारा भेजे, और
(ख) उस तारीख को जिसको ऐसा व्यादेश दिया गया है या उस दिन से ठीक अगले दिन को यह कथन करने वाला शपथ पत्र पेश करे कि उपरोक्त प्रतियां इस प्रकार दे दी गयी है या भेज दी गयी है।

3 ( क) व्यादेश के लिए आवेदन का न्यायालय द्वारा तीस दिवस के भीतर निपटाया जाना -
जहाँ कोई व्यादेश विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना दिया गया है वहां न्यायालय आवेदन को ऐसी तारीख से जिसको व्यादेश दिया गया था, तीस दिवस के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा और जहा वह ऐसा करने में असमर्थ है वहा ऐसी असमर्थता के लिए कारण अभिलिखित करेगा।
4. व्यादेश के आदेश को प्रभावमुक्त,उसमे फेर फार या अपास्त किया जा सकेगा-
व्यादेश के किसी भी आदेश को उस आदेश से असंतुष्ट किसी पक्षकार द्वारा न्यायालय से किये गये आवेदन पर उस न्यायालय द्वारा प्रभाव मुक्त, उसमे फेर फार या उसे अपास्त किया जा सकेगा;
      परन्तु यदि अस्थाई व्यादेश के लिए किसी आवेदन में या ऐसे आवेदन का समर्थन करने वाले किसी शपथ पत्र में किसी  पक्षकार ने किसी तात्विक विशिष्ट के सम्बध में जानते हुए मिथ्या या भ्रामक कथन किया है और विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना व्यादेश दिया गया था तो न्यायालय व्यादेश को उस दशा में अपास्त कर देगा जिसमे वह अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समझता है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक नही है:
        परन्तु यह और कि जहां किसी पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिये जाने के पश्चात व्यादेश के लिये आदेश पारित किया गया है वहा ऐसे आदेश को उस पक्षकार के आवेदन पर तब तक डिस्चार्ज फेर फार या अपास्त किया जाना आवश्यक न हो गया हो या जब तक न्यायालय का यह समाधान नही हो जाता है कि आदेश से उस पक्षकार को कठिनाई हुई हो।
5. निगम को निर्दिष्ट व्यादेश उसके अधिकारियो पर आबद्ध होगा-
किसी निगम को निर्दिष्ट व्यादेश न केवल निगम पर ही बाध्यकर होगा बल्कि निगम के उन सभी सदस्य और अधिकारियो पर भी बाध्यकारी होगा जिनके व्यक्तिगत कार्य को अवरुद्ध करने के लिए वह चाहा गया है।
6. अंतरिम विक्रय को आदेश देने की शक्ति-
न्यायालय वाद के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर ऐसे आदेश में नामित किसी भी व्यक्ति द्वारा और ऐसी रीती से और ऐसे निबन्धनों पर जो न्यायालय ठीक समजे, किसी भी ऐसी चल संपत्ति के विक्रय का आदेश दे सकेगा जो ऐसे वाद की विषय वस्तु हैं या ऐसे वाद में निर्णय के पूर्व कुर्क की गयी हैं और जो शीघ्रतया और प्राकृत्या नष्ट होने योग्य हैं या जिसके बाबत किसी अन्य न्यायसंगत और पर्याप्त हेतुक से ये वांछनीय हो की उसका तुरंत विक्रय कर दिया जाये ।
7. वाद की विषय वस्तु का निरोध, परिक्षण, निरक्षण आदि -
(१) न्यायालय वाद के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और ऐसे निबन्धनों पर जो वो ठीक समझे-
 (क) किसी भी ऐसी सम्पति के , जो ऐसे वाद की विषय वस्तु हैं या जिसके बारे में उस वाद में कोई प्रश्न उतपन हो सकता हो, निरोध, परिरक्षण या निरक्षण के लिए आवेदन कर सकेगा ।
(ख) ऐसे वाद के किसी भी अन्य पक्षकार के कब्जे में किसी भी भूमि या भवन में पूर्वोक्त सभी या किन्ही परियोजन के लिए प्रवेश करने को किसी भी व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकेगा; तथा
(ग) पूर्वोक्त सभी या किन्ही परियोजनों के लिए किन्ही भी ऐसे नमूनों का लिया जाना या किसी भी ऐसे प्रेक्षण या प्रयोग का किया जाना, जो पूरी जानकारी या साक्ष्य
अभिप्राप्त करने प्रयोजन के लिए आवश्यक या उचित प्रतीत हो , प्राधिकृत क्र सकेगा ।

(२) आदेशिका के निष्पादन संबंधी उपबन्ध प्रवेश करने के लिए इस नियम के अधीन प्राधिकृत व्यक्तियों को यथा आवश्यक परिवर्तन सहित लागु होंगे ।
(8) ऐसे आदेशो के लिए आवेदन सुचना के पश्चात किया जायेगा -
(१) वादी द्वारा नियम 6 और 7 के अधीन आदेश के लिए आवेदन वाद के प्रस्तुत किये जाने के पश्चात किसी भी समय किया जा सकेगा ।
(२) प्रतिवादी द्वारा ऐसे ही आदेश के लिए आवेदन उपसंजात होन के पश्चात किसी भी समय किया जा सकेगा।
(३) इस प्रयोजन के लिए केकिये गए आवेदन पर नियम 6 या नियम   7 के अधीन आदेश करने के पूर्व न्यायालय उसकी सुचना विरोधी पक्षकार को देने का निदेश वहां के सिवाय देगा जहाँ ये प्रतीत हो की ऐसा आदेश करने का उद्देश्य विलम के कारण निष्फल हो जायेगा ।
(9) जो भूमि वाद की विषय वस्तु हैं उस पर पक्षकार का तुरंत कब्ज़ा कब कराया जा सकेगा -
जहा सरकार को राजस्व देने वाली भूमि या विक्रय के दायित्व के अधीन भू-धृति वाद की विषय वस्तु हैं वहाँ, यदि पक्षकार जो ऐसी भूमि या भू धरती पर कब्ज़ा रखता हैं , यथा स्थति सरकारी राजस्व या भू-धृति के स्वत्वधारी को शोध्य भाटक देने में अपेक्षा करता हैं और परिणामतः  ऐसी भूमि या भू-धृति के विक्रय के लिए आदेश दिया गया हैं तो उस वाद के किसी भी अन्य पक्षकार का जो हितबद्ध होने का दावा करता  हैं  तो तुरंत कब्ज़ा विक्रय के पहले से शोध्य राजस्व भाटक का संदाय कर दिए जाने पर न्यायालय के विवेकानुसार प्रतिभूति सहित या रहित कराया जा सकेगा ।
   और एस प्रकार संदत्त रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सहित जो न्यायालय ठीक समझे,  न्यायालय अपनी डिक्री में व्यतिकर्मी के विरुद्ध अधिनिर्णित कर सकेगा या इस प्रकार संदत्त रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सहित जो न्यायालय आदेश करे, लेखायो के किसी ऐसे समायोजन में, जो वाद में पारित डिक्री द्वारा निर्दिष्ट किया गया हो, प्रभावित कर सकेगा |


(10) न्यायालय में धन आदि का जमा किया जाना -
जहा वाद की विषय वस्तु धन या ऐसी कोई अन्य वस्तु हैं जिसका परीदान किया जा सकता हैं , और उसका कोई भी पक्षकार यह स्वीकार करता हैं कि वह ऐसे धन या ऐसी अन्य वस्तु को किसी अन्य पक्षकार के न्यासी के रूप में धारण किये हुए हैं या वह अन्य पक्षकार की हैं या अन्य पक्षकार को शोध्य हैं वहा न्यायालय अपने अतिरिक्त निदेश के अधीन रहते हुए यह आदेश दे सकता हैं कि उसे न्यायालय में जमा किया जाये या प्रतिभूति सहित या रहित ऐसे अंतिम नामित पक्षकार को परिदत्त किया जाये ।

   वाद प्रस्तुत होने के पश्चात वादी को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए न्यायालय द्वारा जो अस्थाई व्यादेश प्रदान किया जाता हैं सामान्य भाषा में जिसे स्थगन भी कहा जाता हैं दीवानी विधि की एक महत्वपूर्ण उपबंध हे जो बहुत उपयोगी उपबंध होने से आगे सभी विभिन्न नियमो का क़ानूनी नजीरो सहित विवेचन किया जायेगा |



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