Order. 22 CPC Death, Marriage And Insolvency Of Parties. आदेश 22 सीपीसी पक्षकारो की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला - CIVIL LAW

Saturday, October 7, 2017

Order. 22 CPC Death, Marriage And Insolvency Of Parties. आदेश 22 सीपीसी पक्षकारो की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला

Order. 22 CPC

Death, Marriage And Insolvency Of Parties.

आदेश 22 सीपीसी 

पक्षकारो की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला 

              मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला आदि से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन ला देता है।और ऐसे ऐसे परिवर्तन का प्रभाव वाद के पक्षकारो की स्थिति पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है इस सम्बंध में आवश्यक व्यवस्था सहिंता के आदेश 22 में की गई है।

इस उपबंध में वाद प्रस्तुत की के बाद और उसके अंतिम निपटारा के पूर्व किसी पक्षकारो की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला हो जाने पर उनके स्थान पर किसी वैध प्रतिनिधि को प्रतिस्थापित किये जाने के बारे में आवश्यक प्रावधान किए गए हैं।
 वाद प्रस्तुत करने के बाद पक्षकारो की मृत्यु, उनका विवाह और दिवाला आदि होने पर तथा वाद के निर्णय के लिये सहिंता के आदेश 22 के उपबंध बहुत ही महत्वपूर्ण है और उसका विस्तृत जानकारी जो आवश्यक है।अन्यथा पक्षकारो को न्याय से वंचित हो सकता हैं। सहिंता में किये गए उपबंध की पालना की जानी आवश्यक हैं।सहिंता में आदेश 22 निम्न प्रकार से उपबंधित क्या गया है -

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1. यदि वाद लेन का अधिकार बचा रहता हैं तो पक्षकार की मृत्यु से उसका उपशमन नहीं हो जाता - यदि वाद लेन का अधिकार बचा रहता हैं तो वादी या प्रतिवादी की मृत्यु से वाद का उपशमन नही होता |

2. जहां कई वादियों या प्रतिवादियो मे से एक की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लेन का अधिकार बचा रहता हैं वह प्रक्रियां -  जहां एक से अधिक वादी या प्रतिवादी हैं और उनमे से
सी की मृत्यु हो जाती हैं और जहां वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी वादी या वादियों को या अकेले उत्तरजीवी प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध बचा रहता हैं वह न्यायालय अभिलेख में उस भाग की एक प्रविष्ठी कराएगा और वाद उत्तरजीवी वादी या वादियों की प्रेरणा पर या उत्तरजीवी प्रतिवादी या प्रतिवादियों के विरुद्ध आगे चलेगा |

3. कई वादियों में से एक या एक मात्र वादी की मृत्यु की दशा में प्रक्रियां -
(1) जहां दो या अधिक वादियों में से एक की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी वादी को या अकेले उत्तरजीवी वादियों को बचा नही रहता हैं, या एक मात्र वादी या एक मात्र उत्तरजीवी वादी की मृत्यु हो जाती हैं , और वाद लेन का अधिकार बचा रहता हैं वहां इस निमित आवेदन किये जाने पर न्यायलय मृत वादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनवाएगा और वाद में अग्रसर होगा |
(2)जहां विधि द्वारा परिसीमित समय के भीतर कोई आवेदन उपनियम एक के अधीन नहीं किया जाता हैं वहां वाद का उपशमन वहां तक हो जायेगा जहा तक मृत वादी का सम्बन्ध और प्रतिवादी के आवेदन पर न्यायालय उन खर्चो को उसके पक्ष में अधिनिर्णीत कर सकेगा जो उसने वाद की प्रतिरक्षा के उपगत किये हो और वे मृत वादी की संपदा से वसूल किये जायेंगे |

4. कई प्रतिवादियों में से एक या एक मात्र प्रतिवादी की मृत्यु की दशा में प्रक्रियां - 
(1) जहां दो या अधिक प्रतिवादियों में  से एक मृत्यु हो जाती हैं और वाद लाने का अधिकार अकेले उत्तरजीवी प्रतिवादी के या अकेले उत्तरजीवी प्रतिवादियों के विरुद्ध बचा नहीं रहता हैं या एक मात्र प्रतिवादी या एक मात्र उत्तरजीवी प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती हैं और वाद लाने का अधिकार बचा रहता हैं वहा उस निमित किये गये आवेदन पर न्यायालय मृत प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को पक्षकार बनवाएगा और वाद में अग्रसर होगा |
(2) इस प्रकार पक्षकार बनाया गया कोई भी व्यक्ति जो मृत प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि के नाते अपनी हैसियत के लिए समुचित प्रतिरक्षा कर सकेगे |
(3) जहां विधि द्वारा परिसीमित समय के भीतर कोई आवेदन उपनियम (1) के अधीन नहीं किया जाता हैं वहां वाद का जहां तक वह मृत प्रतिवादी के विरुह हैं, उपशमन हो जायेगा |
(4) जब कभी वह ठीक समझे, वादी को किसी ऐसे प्रतिवादी के जो लिखित कथन फाइल करने में असफल रहा हैं या जो उसे फाइल  कर देने पर, सुनवाई के समय उपसंजात होने में और प्रतिवाद करने में असफल रहा हैं , विधिक प्रतिनिधि को प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता से छुट दे सकेंगा और ऐसे मामले में निर्णय उक्त प्रतिवादी के विरुद्ध उस प्रतिवादी की मृत्यु हो जाने पर भी सुनाया जा सकेगा और उसका वाही बल और प्रभाव होगा जो मानो वह मृत्यु होने के पूर्व सुनाया गया हो |

(5) जहां -
(क) वादी , प्रतिवादी की मृत्यु से अनभिज्ञ था और उस कारण से वह इस नियम के अधीन प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि का प्रतिस्थापन करने के लिए आवेदन, परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963का 36) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर नहीं कर सकता था और जिसके परिणामस्वरुप वाद का उपशमन हो गया हैं ; और
(ख) वादी, परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963का 36) में इसके लिए विनिर्दिष्ट अवधि के अवसान के पश्चात, उपशमन अपास्त करने के लिए आवेदन करता हैं और उस अधिनियम की धारा 5 के अधीन उस आवेदन को इस आधार पर ग्रहण किये जाने के लिए भी आवेदन करता हैं की ऐसी अनभिज्ञता के कारण उक्त अधिनियम में विनिर्दिष्ट अविधि के भीतर उसके आवेदन न करने के लिए उसके पर्याप्त कारण था,
वहां न्यायालय उक्त धारा 5 के अधीन आवेदन पर विचार करते समय ऐसी अनभिज्ञता के तथ्य पर, यदि साबित हो जाता तो, सम्यक ध्यान देगा |

4क. विधिक प्रतिनिधि न होने की दशा में प्रक्रियां -  (1) यदि किसी वाद में न्यायालय को यह प्रतीत होता हैं की ऐसे किसी पक्षकार का जिसकी मृत्यु वाद के लम्बित रहने के दौरान हो  गयी हैं, कोई विधिक प्रतिनिधि नहीं हैं तो न्यायलय वाद के किसी पक्षकार के आवेदन पर,  मृत व्यक्ति की संपदा का प्रतिनिधित्व  करने वाले व्यक्ति
 अनुपस्थिति में कर्यवाही कर सकेगा या आदेश द्वारा, महाप्रशासक या न्यायालय के किसी अधिकारी या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति को जिसको वह मृत व्यक्ति की संपदा का प्रतिनिधित्व करने के लिए ठीक समझता हैं, वाद के प्रयोजन के लिए नियुक्त कर सकेगा, और वाद में तत्पश्चात  दिया गया कोई निर्णय या किया गया कोई आदेश मृत व्यक्ति की संपदा को उसी सीमा तक आबद्ध करेगा जितना की वह तब करता जब मृत व्यक्ति का निजी प्रतिनिधि वाद में पक्षकार रहा होता |
(2) न्यायालय इस अधिनियम के अधीन आदेश करने के पूर्व,
(क) यह अपेक्षा कर सकेगा की मृत व्यक्ति की संपदा में हित रचाने वाले ऐसे व्यक्तियों को (यदि कोई हों ) जिनको न्यायालय ठीक समझता हैं, आदेश के लिए आवेदन की सुचना दी जाये; और
(ख) यह अभिनिश्चित करेगा की जिस व्यक्ति को मृत व्यक्ति की संपदा का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया जाना प्रतिस्थापित हैं, वह इस प्रकार नियुक्त किये जाने के लिए रजामंद हैं और वह मृत व्यक्ति के हित के प्रतिकूल कोई हित नहीं रखता हैं |

5. विधिक प्रतिनिधि के बारे में प्रश्न का अवधारण -  जहां इस सम्बन्ध में प्रश्न उदभूत होता हैं की कोई व्यक्ति मृत वादी या मृत प्रतिवादी का विधिक प्रतिनिधि हैं या नहीं वह ऐसे प्रश्न का अवधारण न्यायालय द्वारा किया जायेगा :
1[परन्तु जहां ऐसे प्रश्न अपील न्यायालय के समक्ष उद्भूत होता हैं वहां वह न्यायालय प्रश्न का अवधारण करने के पूर्व किसी अधीनस्थ न्यायालय को यह निदेश दे सकेगा की वह उस प्रश्न का विचरण करे और अभिलेखों को, जो ऐसे विचरण के समय अभिलिखित किये गये साक्ष्य के, यदि  कोई हो, अपने निष्कर्ष के और उसके कारणों के साथ वापस करें, और अपील न्यायालय उस प्रश्न का अवधारण करने में ध्यान में रख सकेगा |

6. सुनवाई के पश्चात मृत्यु हो जाने से उपशमन न होना -  पूर्वगामी नियमो में किसी बात के होते हुए भी, चाहे वाद हेतुक बचा हो या न बचा हो, सुनवाई की समाप्ति और निर्णय के सुनाने के बीच वाले समय में किसी भी पक्षकार की मृत्यु के कारण कोई भी उपशमन नही होगा, किन्तु ऐसी दशा में   हो जाने पर भी, निर्णय सुनाया जा सकेगा और उसका वही बल और प्रभाव होगा मनो वो मृत्यु होने के पूर्व सुनाया गया हो |


7. स्त्री पक्षकार के विवाह के कारण वाद का उपशमन न होना -
(1) स्त्री वादी या प्रतिवादी का विवाह वाद का उपशमन नही करेगा, किन्तु ऐसा हो जाने पर भी वाद निर्णय तक अग्रसर किया जा सकेगा और जहां स्त्री प्रतिवादी के विरुद्ध डिक्री हैं वह वह उस अकेली के विरुद्ध निष्पादित की जा सकेगी |
(2) जहां पति अपनी पत्नी के कर्जो के लिए विधि द्वारा दायी हैं और वहां डिक्री न्यायालय की अनुज्ञा से पति के विरुद्ध भी निष्पादन की जा सकेगी और पत्नी के पक्ष में हुए निर्णय की दशा में डिक्री का निष्पादन उस दशा में जिसमे की पति डिक्री की विषयवस्तु के लिए विधि द्वारा हक़दार हैं, ऐसी अनुज्ञा से पति के आवेदन पर किया जा सकेगा |

8. वादी का दिवाला कब वाद का वर्जन कर देता हैं -
(1) किसी ऐसे वाद में जिसे समुनिदेशिती या रिसीवर वादी के लेनादारो के फायदे के लिए चला सकता हैं, वाद का उपशमन वादी के दिवाले से उस दशा में के सिवाए नहीं होगा जिसमे कि ऐसा समुनिदेशिती या रिसीवर ऐसे वाद को चालू रखने से इंकार करदे या ( जब तक की न्यायालय किसी विशेष कारण से अन्यथा निर्दिष्ट न करे )
उस वाद के खर्चो के लिए प्रतिभूति ऐसे समय के भीतर जो न्यायालय निर्दिष्ट करे, देने से इंकार कर दे |
(2) जहां समुनिदेशिती वाद रखने या प्रतिभूति देने में प्रतिभूति देने में सफल रहता हैं वहां प्रक्रियां -  जहां
समुनिदेशिती या रिसीवर वाद चालू रखने और ऐसे आदिष्ट समय के भितार ऐसी प्रतिभूति देने की अपेक्षा करता हैं या देने में इंकार करता हैं वहां प्रतिवादी वाद को वादी के दिवाले के आधार पर ख़ारिज कराने के लिए आवेदन कर सकेगा और न्यायालय वाद को ख़ारिज कराने वाला और प्रतिवादी को वे खर्चे जिन्हें उसने अपनी प्रतिरक्षा करने में उपगत किया हैं, अधिनिर्णित करने वाले आदेश कर सकेगा और ये खर्चे _.k के तौर पर वादी सम्पदा के विरुद्ध साबित किए जाएंगे |

9. उपशमन या ख़ारिज होने का प्रभाव - 
(1) जहां वाद का इस आदेश के अधीन उपशमन हो जाता हैं या वह ख़ारिज किया जाता हैं वहां कोई भी नया वाद, उसी वाद हेतुक पर नही लाया जायेगा |
(2) वादी या मृत वादी का विधिक प्रतिनिधि होने का दावा करने वाला व्यक्ति या दिवालिया वादी की दशा में उसका समुनिदेषिती या रिसीवर, उपशमन या खारिजी अपास्त करने वाले आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि यह साबित कर दिया जाता हैं की वाद चालू रखने से वह पर्याप्त हेतुक से निवारीत रहा था तो न्यायालय के खर्चे के निबंधनो पर या अन्यथा जो वह ठीक समझे, उपशमन या खारिजी अपास्त करेगा |
(3) इण्डियन लिमिटेशन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15) की धारा 5 के उपबंध उपनियम 2 के अधीन आवेदनों को लागू होंगे |
    [स्पष्टीकरण - इस नियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जायेगा की वह पश्चातवर्ती वाद में ऐसे तथ्यों पर आधारित प्रतिरक्षा का वर्जन करती हैं जो उस वाद में वाद हेतुक बनते थे जिनका इस आदेश के अधीन उपशमन हो गया हैं या जो ख़ारिज कर दिया गया हिं | ]


10. वाद में अंतिम आदेश होने के पूर्व समनुदेशन की दशा में प्रक्रियां -
(1) वाद के लम्बित रहने के दौहरान किसी हित के समनुदेशन, सृजन या न्यायगमन की अन्य दशाओ में , वाद न्यायालय की इजाजत से उस व्यक्ति द्वारा या उसके विरुद्ध चालू रखा जा सकेगा जिसको ऐसा हित प्राप्त या न्यायागत हुआ हैं |
(2) किसी डिक्री की अपील के लम्बित रहने के दोहरान उस डिक्री की कुर्की के बारे में यह समझा जायेगा की वह ऐसा हित हैं जिससे वह व्यक्ति जिसने ऐसी कुर्की करायी थी, उपनियम 1 का फ़ायदा उठाने का हक़दार हो गया हैं |

10.(क) न्यायालय किसी पक्षकार की मृत्यु संसूचित करने के लिए प्लीडर का कर्तव्य -  वाद में पक्षकार की और से उपसंजात होने वाले प्लीडर को जब कभी यह जानकारी प्राप्त हो की उस पक्षकार की मृत्यु हो गयी हैं तो वह न्यायालय को इसकी इत्तिला देगा और जब न्यायालय ऐसी मृत्यु  की सुचना दुसरे पक्षकार देगा और इस प्रयोजन के लिए प्लीडर और मृत पक्षकार के बीच हुयी संविदा अस्तित्व में मनी जयेगी |

11. आदेश का अपीलों में लागु होना -  इस आदेश को अपीलों को लागु करने में जहां तक हो सके, वादी शब्द के अंतर्गत अपीलार्थी, प्रतिवादी शब्द के अंतर्गत प्रत्यर्थी और वाद शब्द के अंतर्गत अपील समझी जाएगी |

12. आदेश का कार्यवाहियों में लागु होना -  नियम 3, नियम 4 और नियम 8  कोई भी बात किसी डिक्री या आदेश के निष्पादन की कार्यवाहियों को लागु नहीं होगी |

 सहिंता में वादी या प्रतिवादी की मृत्यु वाद के विचाराधीन होने पर की जाने वाली उचित कार्यवाही का उल्लेख आदेश22 के नियम 2, 3, 4 ,व 6 में किया गया है।आदेश 22 के तमाम उपबन्ध की विस्तृत जानकारी विविध न्यायनिर्णय सहित दी जा रही हैं

(1)आदेश 22 नियम 1 के अनुसार यदि वाद चलाने का अधिकार ( right to sue survives) बचा रहे तो किसी वादी या प्रतिवादी की मृत्यु मात्र से वाद का उपशमन (abate) नहीं होगा।
जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने चरण सिंह बनाम दर्शन सिंह ऐ.आई.आर.1975 एस.सी. 371 में अभिनिर्धारित क्या है कि "जहां कोई वाद प्रतिनिधि की हैसियत से पेश किया है, वहां वादियो में से किसी एक की म्रत्यु हो जाने पर उस वाद का उपश्मन नही होगा।"

(2)आदेश 22 नियम 1 -जहां अपील की सुनवाई के दौरान एक प्रतिवादी की मृत्यु हो जाती है लेकिन मृतक के सभी उत्तराधिकारी का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य प्रतिनिधि अभिलेख पर विद्यमान है वहां ऐसी अपील का उपश्मन नहीं होगा।
AIR 1996 SC.702

(3)आदेश 22 नियम 1 - 4 --नुकसानी हेतु वाद --आगे लम्बित रखने अथवा उपस्तिथि का आधार वादी की मृत्यु के बाद नहीं बचता है।
1997  (1) DNJ (Raj.) 390

(4)आदेश 22 नियम 3 --वैध प्रतिनिधि को अभिलेख पर लाने के लिए आवेदन अनावश्यक विलम्ब के बिना पेश किया जाने चाहिए।यह एक आज्ञात्मक व्यवस्था है जिसका कठोरता से पालन किये जाने की अपेक्षा की जाती हैं।विलम्ब से प्रस्तुत आवेदन पर्याप्त कारण होने पर ही स्वीकार किया जाने चाहिए।
AIR 1975 Cal. 12


(5)आदेश 22 नियम 3 -भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम -,धारा 276 व 295 --उत्तराधिकार के आवेदनों में सिविल प्रक्रिया सहिंता प्रभावशाली है।मृतक के प्रतिनिधि अपनी प्रतिस्थापना कराने के हकदार हैं।
1995 (1) DNJ (Raj.)112

(6)आदेश 22 नियम 4 --मृतक के वैध प्रतिनिधयों ने अपील के उपश्मन हेतु निर्णय के बाद आवेदन पत्र पेश किया और रेकॉर्ड पर लेने का निवेदन किया।आवेदन को अपील के उपश्मन को निरस्त करने का माना गया।
AIR 1986 P & H 93

(7)आदेश 22 नियम 4 (4) --प्रतिवादी की मृत्यु सम्मन की तमिल होने के बाद हुई।प्रतिवादी की मृत्यु के बाद उसके विधिक प्रतिनिधि को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया न ही आदेश 22 नियम 4(4) के अंतर्गत छूट का आवेदन ही किया --अभिनिर्धारित -ऐसी पारित डिक्री को मृतक के वैध प्रतिनिधियो के विरुद्ध निष्पादन योग्य नही माना गया।
AIR 1992 Mad. 159

(8)आदेश 22 नियम 4 --मृतक व्यक्ति के विरूद्ध डिक्री --मृतक प्रतिवादी ने लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया और विचारण के दौरान भी प्रतिवादी उपस्थित नहीं रहा जिससे पारित डिक्री को अकृत व शून्य नहीं कहा जा सकता है।पारित डिक्री को वैध माना गया।
1996 (2) RLW 120

(9)आदेश 22 नियम 9 (2) --मृतक वादी के वैध प्रतिनिधि पर्याप्त कारण के आधार पर ऐसे उपश्मन या खारीजी के आदेश को अपास्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं और न्यायलय का इस समंध में समाधान हो जाने पर वह ऐसे उपश्मन या खारीजी के आदेश को अपास्त कर देगा।
AIR 1964 SC 215

(10)आदेश 22 नियम 5--राजस्व मंडल के आदेश के विरुद्ध याचिका दायर की गई।एक पक्षकार की मृत्यु हो जाने से रिट याचिका में उनके वैध प्रतिनिधि को रेस्पॉडेंट जोड़ दिया।अभिनिर्धारित--जब तक राजस्व मंडल की पत्रावली में वैध प्रतिनिधि को पक्षकार
के रूप में नहीं जोड़ा जाता है तब तक प्रस्तुत रीट पोषणीय नहीं है।
1999 (1) ,DNJ (Raj.) 44

(11)आदेश 22 नियम 6--यदि वादी मामला मैं बहस के बाद अपील का स्थगन निर्णय के लिए होती हैं और वादी की मृत्यु हो जाती हैं तो मामला का उपश्मन नहीं होगी और निर्णय का उतना ही प्रभाव होगी जो वादी के जीवित रहते होता।
1995 (2) DNJ (,SC)326

(12)आदेश 22 नियम 10 --यदि वाद लम्बित रहने के दौरान वादी या प्रतिवादी से वाद में का कोई पक्षकार कोई हित किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित हो गया हो तो न्यायलय की अनुमति से उसे अन्य व्यक्ति के द्वारा या विरुद्ध वाद चालू रखा जा सकेगा।
AIR 1958 SC 394


(13)आदेश 22 नियम 10 --प्रार्थी वाद में प्रतिवादी पक्षकार जोड़ा गया -प्रार्थी ने जबाब दावा पेश करने हेतु अनुमति के लिए आवेदन पेश किया --विचारण न्यायलय ने आवेदन खारिज किया - प्रतिस्थापित व्यक्ति जबाब दावा पेश करने या साक्षियो से प्रतिपरीक्षा करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकते है -वाद का विचारण रोका नहीं जा सकता।विचारण न्यायलय के आदेश को पुष्ट किया गया।
1998 (1) DNJ (Raj.)126




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