Order 7 rule 11CPC---आदेश 7 नियम 11 सी पी सी--वाद पत्र का ख़ारिज किया जाना--Rejection of plaint. - CIVIL LAW

Wednesday, February 8, 2017

Order 7 rule 11CPC---आदेश 7 नियम 11 सी पी सी--वाद पत्र का ख़ारिज किया जाना--Rejection of plaint.

वादपत्र का ख़ारिज किया जाना- Rejection of plaint. आदेश 7 नियम 11 -सी. पी. सी.--Order 7 rule 11 CPC,

आदेश 7 नियम 11 " वादपत्र का नामंजूर किया जाना" के बारे में है। सिविल प्रक्रया संहिता में उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिन पर कोई न्यायालय वाद पत्र को अस्वीकार (नामंजूर) कर सकता है। यह तमाम आधार क़ानूनी है तथा संहिता में इस नियम के अंतर्गत सूचीबद्ध किए गए है जिनकी पालना वाद प्रस्तुत करते समय करना नितांत आवश्यक है अन्यथा न्यायालय द्वारा वाद को नामंजूर कर सकता है यह नियम निम्न प्रकार। से है--
आदेश 7 नियम 11 " वादपत्र का नामंजूर किया जाना" --वाद पत्र निम्न दशाओं में नामंजूर कर दिया जायेगा--
(क) जहाँ वह वाद कारण प्रकट नहीं करता है:,
(ख) जहाँ कि दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया जाता है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के लिए न्यायालय द्वारा आदेशित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है,ऐसा करने में असफल रहता है;

(ग)  जहाँ कि दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है,किन्तु वाद पत्र अपर्याप्त स्टाम्प पत्र लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिए न्यायालय द्वारा समय तय किया है ऐसे समय के भीतर,ऐसा करने में असफल रहता है;
(घ) जहाँ वादपत्र में के  कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है;
(ड़) जहां कि वह दो प्रतियो । में पेश नहीं किया जाता है;
(च) जहां वादी नियम 9 के परन्तुको का पालन करने में असफल रहता है।
  परन्तु मूल्यांकन की शुद्वि के लिये  या अपेक्षित स्टाम्प देने के लिए न्यायालय द्वारा  नियत समय तब तक नहीं बढ़ाया जाएगा जब तक की न्यायालय का अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समाधान नहीं हो जाता है कि वादी किसी असाधारण कारण से, न्यायालय द्वारा नियत समय के भीतर यथास्थति मूल्यांकन की शुद्वि करने के लिये या अपेक्षित स्टाम्प पत्र के देने से रोक दिया गया था और ऐसे समय से बढ़ावे से इंकार किये जाने से वादी के प्रति गंभीर अन्याय होगा।
इस प्रकार उपरोक्त वर्णित आधारों पर वाद ख़ारिज किया जा सकता है।विधि का सुस्थापित सिद्धान्त है कि वाद कारण प्रकट नहीं होने के आधार पर वाद ख़ारिज किये जाने के समय सामान्यतः वाद पत्र को ही देखा जाता है।वाद किसी दस्तावेज के आधार पर हो तो ऐसे दस्तावेजो पर भी विचार किया जा सकेगा।
यह आवश्यक नहीं है कि इस नियम के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करने के पूर्व प्रति वादी लिखित कथन पेश करे।
2008(3) डी एन जे (राज.)1343
माननीय सर्वोच्च न्यायालय  के अभिनिर्धारित किया कि--
O.7 R.11---Scope--Rejection of plaint--Rule11{d} has limited application--Conclusion that suit is barred by law must be drawn from averments made in plaint.
2007--08 {supply.} DNJ(SC) 251
वाद पत्र में किये गए या अभिक्थनो पर ही न्यायालय को आवेदन निर्णीत करते समय देखना होता है।जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है--
O.7 R.11(d) Rejection of plaint--Trail court rejected the suit being barred by limitation--High court also rejected the appeal and held that partial suit is not permissible--courts  below not taken consideration all materials available in the plaint --it is proper to  verified the entire plaint --averments -Held,Courts below have committed illegality in rejecting the plaint and trail court is directed to restore the suit and same be decide on marite.
2008(1) DNJ(SC)09
काउंटर क्लेम समय बाधित होने पर ख़ारिज किया जा सकता है।
इस नियम में न्यायालय अपनी शक्तिओ का उपयोग विचारण के समाप्त होने के पूर्व किसी समय किया जा सकता है।
      राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42( बी)के उल्लंघन में संविदा की गयी तथा उसकी पालना का वाद विधि द्वारा वर्जित होने से वाद ख़ारिज योग्य है।
2012(2)DNJ{ Raj.} 1137
   न्यायालय को आवेदन को निस्तारित करते समय न्यायिक निष्कर्ष दिए जाने आवश्यक है।
2010 RBJ 674 (Raj.HC)

Kamala & Ors. v. K.T. Eshwara Sa & Ors., (2008) 12 SCC 661. That was a case wherein the trial judge allowed an application for rejection of the plaint in a suit for partition of family properties and the same was affirmed by the High Court as well. An appeal against the order of the High Court was filed before this Court. While examining the scope, ambit and exercise of power under Order VII Rule 11 of CPC, this Court held as under:

"Order 7 Rule 11(d) of the Code has limited application. It must be shown that the suit is barred under any law. Such a conclusion must be drawn from the averments made in the plaint. Different clauses in Order 7 Rule 11, in our opinion, should not be mixed up. Whereas in a given case, an application for rejection of the plaint may be filed on more than one ground specified in various sub-clauses thereof, a clear finding to that effect must be arrived at. What would be relevant for invoking clause (d) of Order 7 Rule 11 of the Code are the averments made in the plaint. For that purpose, there cannot be any addition or subtraction. Absence of jurisdiction on the part of a court can be invoked at different stages and under different provisions of the Code. Order 7 Rule 11 of the Code is one, Order 14 Rule 2 is another.

It was further observed:

For the purpose of invoking Order 7 Rule 11(d) of the Code, no amount of evidence can be looked into. The issues on merit of the matter which may arise between the parties would not be within the realm of the court at that stage. All issues shall not be the subject-matter of an order under the said provision.

The principles of res judicata, when attracted, would bar another suit in view of Section 12 of the Code. The question involving a mixed question of law and fact which may require not only examination of the plaint but also other evidence and the order passed in the earlier suit may be taken up either as a preliminary issue or at the final hearing, but, the said question cannot be determined at that stage.

It is one thing to say that the averments made in the plaint on their face disclose no cause of action, but it is another thing to say that although the same discloses a cause of action, the same is barred by a law."
इस प्रकार स्पष्ट है कि आदेश 7 नियम 11 में उपबंधित प्रावधानों के उल्लंघन होने पर वाद विचारण के किसी प्रक्रम पर वाद ख़ारिज किया जा सकता है। एक सफल अधिवक्ता को वाद पत्र तैयार करते वक्त इस नियम की पूर्ण व् विस्तृत जानकारी होना आवश्यक है।
      यह नियम महत्वपूर्ण है। इस ब्लॉग के माध्यम से उपयोगी विधि के प्रावधान की जानकारी देना है।आप फॉलो व शेयर करे।
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2 comments:

  1. मध्यप्रदेश मे मकान मालिक और किरायेदार के संबंध में कौन से सक्षम ऑथॉरिटी है।क्या सिविल कोर्ट किराएदार के आवेद पर निषेधाज्ञा जारी कर सकता है कि उससे मकान खाली न कराया जाए जबकि मालिक को खुद के रहने के लिए मकान चाहिए।

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    1. Legal proceedings apnai bina Malik makan khali nhi kra shakta

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