कृषिजोतो का विभाजन -धारा 53 राजस्थान कास्तकारी अधिनियम--Division of holding.Section 53 R T Act.
राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 के अंतर्गत धारा 53 कृषि जोतो के विभाजन बाबत है।जो इस प्रकार है--धारा 53-- जोत का विभाजन--Division of holding.--(1) विलोपित।
(2) किसी जोत का विभाजन निम्न प्रकार से किया जायेगा --
1. सह खातेदारों के बीच--
(क) जोत के उक्त विभाजन,और
(ख) उन विभिन्न भागों, जिनमे जोत इस प्रकार से विभाजित की जाये,लगान के बंटबारे के बारे में इकरार द्वारा:या
2. एक या अधिक सह खातेदारों द्वारा जोत के बंटवारे के प्रयोजनार्थ और उन विभिन्न हिस्सों ,जिनमे वह विभाजित की जाये,पर लगान के वितरण के प्रयोजनार्थ किसी वाद में सक्षम न्यायालय द्वारा पारित डिक्री या आदेश के जरिये।
(3) विलोपित
(4) एक या एक से अधिक जोतो के बंटवारे के प्रत्येक वाद में सभी सहखातेदार ओर भूमि धारक पक्षकार बनाये जायेंगे।
(5) एक से अधिक जोत के बंटवारे के लिए एक ही वाद प्रस्तुत किया जा सकता है कि बशर्ते कि पक्षकार वे ही हो।
इस धारा के अध्यन से स्पष्ट है कि कर्षि जोत के बंटवारा करने के दो ही आधार धारा 53(2) में बताये गये है इसके अलावा कानूनन जोत का विभाजन नहीं हो सकता है वो दो आधार निम्न है--
1.सह- खातेदारों के बीच इकरार द्वारा।
2. किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पारित डिक्री या आदेश द्वारा।
दोनों ही तरीको में जोत के हिस्से किये जायेंगे और उनके मध्य लगान का निधार्रण किया जायेगा।
यहाँ यह सपष्ट किया जाना आवश्यक है कि सह खातेदारों द्वारा आपस में इकरार नामा लिख देने या नोटरी कराने मात्र से ही विधिक बंटवारा नहीं माना जायेगा अपितु उक्त करार भमिधारक तहसील न्यायालय में प्रस्तुत किया जायेगा जिसके अधिकार क्षेत्र में भूमि स्थित है।तहसीलदार करार की शर्तों के अनुसार आदेश पारित करेगा और आदेशानुसार ही बंटवारा लागु होगा।तदनुसार उसका राजस्व रेकर्ड में लगान सहित इंद्राज होगा।
यदि जोत का विभाजन वाद के लंबित रहने के दौरान वाद के सह अभिधारी किसी करार पर आते है तो उस वाद को करार की शर्तों के अनुसार डिक्री किया जावेगा।
जहां पक्षकारो के मध्य लिखित में बंटवारा हो चुका है तो वे बंटवारा घोषित करवाने का वाद कर सकते है।
बंटवारे के वाद में खातेदारों के हिस्सों को विनिचय किया जाकर उनके विनिश्चित हिस्सो के अनुसार न्यायालय प्राथमिक डिक्री जारी करेगा।तथा उक्त डिक्री की पालना में भूमिधारी द्वारा विभाजन के प्रस्ताव प्रस्तुत होने पर न्यायालय सभी पक्षकारो को विभाजन प्रस्ताव पर सुनवाई का अवसर दे कर तथा कोई आपत्ति प्रतुत हुई हो तो उसका विधि अनुसार निस्तारण कर अंतिम डिक्री जारी करेगा।आगे न्यायनिर्णय दिए जा रहे है -
1. एक मामले में विचारण न्यायालय ने आदेश 20 नियम 18 सी पी सी के प्रावधान का अनुसरण न करते हुए प्राथमिक डिक्री पारित किए बिना ही अंतिम डिक्री पारित कर दी--आदेश अपास्त किया गया।
2011 RRD 202
2. वादी किसी हिस्से की घोषणा के हक़दार है।विवादित भूमि के किसी हिस्से के सम्बन्ध में बिना किसी विवाद्यक की रचना किये बिना कोई विधिक या युक्तियुक्त आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।
2010RRD 737
3. वादी ने उसके व प्रतिवादी के मध्य सह कास्तकारी होना सिद्ध किया।विचारण न्यायालय ने प्राथमिक डिक्री जारी की।राजस्व अपील अधिकारी ने पुष्टि की। निर्णीत-पारित प्राम्भिक डिक्री किसी अवैधता एवम दुर्बलता से ग्रसित नहीं है।
2014 RRD 302
4. प्राथमिक डिक्री पारित होने के बाद प्रतिवादी ने आदेश 6 नियम 17 का आवेदन पेश किया। यह प्राथना पत्र वाद की प्रक्रति को बदलने वाला तथा वाद की प्रक्रया को लम्बा करने वाला माना गया।राजस्व मंडल ने sdo के प्राथना .पत्र को स्वीकार करने के आदेश को निरस्त कर प्रतिवादी का प्राथना पत्र ख़ारिज किया।
2014 RRD 239
5. दोनों अधीनस्थ न्यायालय ने पर्याप्त रूप से साक्ष्य का विवेचन किया है जो निष्कर्ष ऐसी किसी गलती से ग्रसित नहीं है जो अभिलेख को देखने मात्र से ही गलत हो तथा जिनमे उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने की अपेक्षा हो।
6.धारा 53 के अनुसार संयुक्त सहखातेदारी की भूमि सभी कास्तकारों के मध्य नियम 18 से 21 के प्रावधानों के अनुसार माप और सीमांकन करके विभाजित करायी जानी होती है।आज्ञापक प्रावधानों की पालना नही करने से अवैध है।आदेश अपास्त किया।
2009RRD 378
आज के युग में विभाजन करवाना जरूरी है।तथा न्यायालय में विभाजन के मुकदमो का अम्बार लग रहा है।यह राजस्व विधि का महत्वपूर्ण उपबंध है।अधिकारी मुकदमे निकलने की नीयत से विधि के प्रावधानों की पालना किये बिना पी डी कर देते है जो विधि विरुद्ध है।पक्षकारो को सही न्याय दिलाने के लिए इस उपबंध की पालना सुनिश्चित की जानी आवश्यक है ताकि पक्षकारो को आगे के न्यायालय में परेशानी होने से बचाया जा सके।
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Super
ReplyDeleteसर। मेरे पिता जी तीन भाई है। तीनों का बटवारा 20/4/2004 से पहले हो गया है। अब मेरी बहन मेरे पिता जी से हिस्सा मांग रही हैं। क्या हिस्सा मांगना उचित है। इसमें पिता जी का क्या अधिकार है।
ReplyDeleteMere dada k bhai ne sayunkta jmeen pr kabza kr rkha h kya hm forcefully le skte h ya koi aur treeka h
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