Inherent Power Of Court --न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति-Section 151 CPC. - CIVIL LAW

Sunday, May 20, 2018

Inherent Power Of Court --न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति-Section 151 CPC.



न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति -- धारा 151 सी.पी.सी.
Inherent Power Of Court --Section 151 CPC.


     सिविल प्रक्रिया संहिता में सिविल वाद कौन से होंगे तथा कहां पर कौन से न्यायालय में प्रस्तु
त किए जाएंगे उन वादों का विचारण किस प्रकार किया जाएगा बाबत सभी प्रकार के उपबंध संहिता में किए गए हैं। परंतु संहिता में धारा 151 न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति सम्मिलित की गई है। कोई भी विधि अपने आप मैं नहीं होती है। उसमें सभी विषयों को सम्मिलित किया जाना संभव नहीं होता है, क्योंकि विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न मामले में व प्रश्न उत्पन्न होते रहते हैं। उपरोक्त सभी के लिए विधि में उपबंध हो यह संभव नहीं है। सामान्यतः संसद या विधानमंडल सभी विषयों या विचारण के दौरान उत्पन्न होने वाले प्रश्नों के संबंध में किसी अधिनियम को पारित करते समय सभी विषयों को उस अधिनियम में सम्मिलित नहीं कर सकते हैं। स्वाभाविक एवं सामान्य प्रसंगों का अनुमान करते हुए विधियो का निर्माण करते हैं। यह विधिसम्मत भी है क्योंकि भविष्य की घटनाओं की वर्तमान में कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे प्रश्नों का निराकरण करने के लिए साधारणतया न्यायालयों को ही शक्तियां  दी जाती है। जिन्हें ही न्यायालयों की अंतर्निहित शक्तियां कहां जाता है। यह शक्तियां न्यायालय को साम्य, न्याय एवं शुद्ध अंतकरण के आधार पर वादों का अवधारणा करने के लिए न्यायालयों को सशक्त करती है। न्यायालय अपने अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग तभी कर सकेगा जबकि संहिता में इस बाबत कोई उपबंध नहीं हो। यदि संहिता में कोई विशिष्ट उपबंध है ऐसी अवस्था में उस बंद के अनुसार ही न्यायालय कार्य करेगा। न्यायालय विशिष्ट उपबंध के प्रतिकूल जाकर अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकेगा और न ही न्यायालय ऐसी कोई बात कर सकता है जो की विधि द्वारा प्रतिषिद्ध हो। न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए करने के लिए यह धारा उपबंधित की गई है।



    न्यायालय अंतर्निहित शक्तियों के माध्यम से किसी पक्षकार  को कोई अधिकार प्रदान नहीं कर सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य पक्षकारो को विधि के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का सरक्षण करना होता है। सिविल प्रक्रिया संहिता में धारा 151 निम्न प्रकार से उपबंधित की गई है--
धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता - न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति-- इस संहिता की किसी भी बात के बारे में यह नहीं समझा जायेगा कि वह ऐसे आदेशों के देने की न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को परिसीमित अन्यथा प्रभावित करती है, जो न्याय के उद्देश्य के लिए या न्यायालय की आदेशिका के दुरुपयोग का निवारण करने के लिए आवश्यक है।

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संहिता में यह एक  यह महत्वपूर्ण उपबंध है। पूर्व में की गई विवेचना अनुसार स्पष्ट है कि अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब संहिता में विशिष्ट उपबंध मामले में न्याय प्राप्ति की सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हो। अंतर्निहित शक्तियां का प्रयोग इस प्रकार नहीं किया जा सकता कि वह किसी सामान्य अथवा विशिष्ट विधि के प्रतिकूल हो। विचार न्यायालय में न्याय हेतु सभी अंतर्निहित शक्तियां है जो उसे अन्य किसीप्रावधान द्वारा उपलब्ध नहीं हो। संहिता की धारा 151 के अंतर्गत किसी ऐसी आज्ञप्ति को संशोधित किया जा सकता है जो निर्णय के विपरीत हो। इस प्रकार स्पष्ट है कि संहिता में यह एक महत्वपूर्ण है। विभिन्न विनिश्चयो के आधार पर इस प्रावधान के अंतर्गत किन मामलों में न्यायालयों को अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त है, इस बाबत महत्वपूर्ण एक निर्णय नीचे दिए जा रहे हैं।

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय --


(1) दो प्रकरणो के संयुक्त विचारण का आदेश कब दिया जा सकता है -
(1) यदि दोनों कार्यवाहियों में विधि या तथ्य का समान प्रश्न उत्पन्न होता है या उसी सव्यवहार का सव्यवहारों की श्रंखला मै से किए गए दावे के अनुतोष का अधिकार उत्पन्न होता है,
(2) जहां किसी एक कार्यवाही में वही व्यक्ति वादी होता है दूसरी कार्यवाही या समेकित कार्यवाही में प्रतिदावे में प्रतिवादी होता है, और
(3) जब न्यायालय को यह पता चलता है कि ऐसी विचारण का आदेश देने से वाद के दो हेतू मैं लिए जा रहे साक्ष्य कि अलग-अलग अति व्याप्ति का बचाव होगा।



अभिनिर्धारित - यह आवश्यक नहीं है कि सारे प्रश्न या विवाद्यक जो उत्पन्न होते है वे दोनों कार्यवाहियो में समान हो, यदि कोई विवाद्यक और कोई साक्ष्य समान हो तो वह संयुक्त विचरण हेतु पर्याप्त होगा। दोनों पक्षों की सहमति के बिना न्यायालय द्वारा संयुक्त विचारण का आदेश पारित किया जा सकता है।
2007 (1) RLW 765  (SC)

(2) धारा 151 तथा आदेश 39 नियम 1 -2 सीपीसी-- इन के अंतर्गत दिए गए आदेश की अपील होगी या पुनरीक्षण-- जहां धारा 151 की शक्तियों के अधीन कार्यवाही की गई है तो पुनरीक्षण होगा तथा जब आदेश 39 नियम 1 व 2 के अंतर्गत आदेश हो तो अपील होगी।
1995 (1) DNJ  (Raj) 60

(3) धारा 151 - अंतर्निहित शक्तियां का प्रयोग इस प्रकार नहीं किया जाना चाहिए कि वह किसी सामान्य अथवा विशिष्ट विधि के प्रतिकूल लगे। अंतर्निहित शक्तियां का प्रयोग सामान्य व विशेष वीधीयो के अनुरूप किया जाना चाहिए।
2000 ए आई आर (कर्नाटक) 50

(4) धारा 151 -- माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक मामले में अभिनिर्धारित किया है कि न्यायालय को अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही करना चाहिए।



1979 ए. आई. आर. (राजस्थान) 179

(5) धारा 151- किराए की रसीद की प्रमाणित प्रतिलिपि दायर करने की अनुमति चाही जिसकी मूल रसीद पूर्व वाद मैं दायर की गई है-- इनकार किया-- अभीनिर्धारित, दस्तावेज किराए की रसीद और  प्रमाणित प्रतियां होने के कारण अभिलेख पर लिए जाने की अनुमति प्रदान की।
2007 (1) RLW 664

(6) धारा 151-- न्यायालय अंतर्निहित शक्तियों के माध्यम से किसी पक्ष कार को कोई अधिकार प्रदान नहीं कर सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य पक्षकारों को विधि के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का ध्यान रखते हुए ऐसा आदेश पारित करना है के उनके साथ न्याय हो सके।
1986 ए. आई. आर. (मुंबई) 182

(7) धारा 151 -- जहां धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत प्रस्तुत आवेदन में चाहे गए अनुतोष को प्रदान करने से प्रतिषेध करने वाला विनिर्दिष्ट प्रावधान ना हो वहां न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए न्यायालय धारा 151 के तहत समुचित आदेश पारित करने हेतु सभी आवश्यक आदेश पारित करने हेतु सशक्त है।
2004 (2) RLW (SC) 210

(8) धारा 151-- निष्पादन न्यायालय केवल इसलिए एक पक्षीय स्थगन आदेश पारित करने हेतु बाध्य नहीं है कि कोई यह दावा करे कि वह उस संपत्ति पर काबिज है या काबिज पाया गया है जिस हेतू डिक्री पारित की गई है।अभ्यापतिकर्ता को और अधिक सतर्क रहना चाहिए और यह सही नहीं मान लेना चाहिए कि केवल मांगने मात्र से डिक्री का निष्पादन स्थगित किया जा सकता है।
2005 (2) DNJ  (Raj) 1065




(9) धारा 151 - वाद के दौरान वादी को बेदखल किया, न्यायालय वादी का कब्जा बहाल करने में सशक्त है विचारण न्यायालय का आदेश न्याय संगत माना गया।
 2015 ( 2) DNJ  (Raj) 741

(10) धारा 151-- निष्पादन न्यायालय ने कब्जे का वारंट जारी किया और पुलिस सहायता से वारंट निष्पादन की अनुमति दी-- उच्च न्यायालय द्वारा पारित डिक्री अंतिम हुई तथा याची ने कब्जा सौंपने हेतु अंडरटेकिंग दी जिसकी याची ने पालना नहीं की। निर्णित, आदेश में अवैधता पर प्रतिकूलता नहीं है।
2014 (1)  DNJ  (Raj) 341

(11) धारा 151 - - वाद को पुनः प्रथम अपीलय न्यायालय को रिमाड करने की बजाय उच्च न्यायालय ने डिक्री को सुनिश्चित कर दिया- उच्च न्यायालय का आदेश अपील के क्षेत्र से बाहर था- अभिनिर्धारित-- न्यायालय की त्रुटि को सुधारा जा सकता है - न्यायालय की त्रुटि को इंगित करने हेतु समयावधि की सीमा नहीं है।
1993   DNJ  (Raj) 98

(12 धारा 151 - - वादों को समेकित करना-- वादों के समेकन हैतू सिविल प्रक्रिया संहिता मैं कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है फिर भी न्याय के उद्देश्य प्राप्ति हेतु सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत अंतर्निहित शक्तियों के तहत उन्हें समेकित किया जा सकता है जब तक कि विनिर्दिष्ट रूप से प्रतिषेद नहीं किया गया हो। यह पक्षकारों को कार्यवाहियों के बाहुल्य, विलंब एवं वयय से बचाता है।
2008 (2) RLW 1141

(13) धारा 151 - - आदेश 39 नियम 1 व 2 सिविल प्रक्रिया  संहिता के अंतर्गत अस्वीकार किए गए अनुतोष धारा 151 सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रदान नहीं किया जा सकता है।



2015  (4)  DNJ  (Raj) 1447

(14) धारा 151 - - 3 वादों को समेकित करने का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया - - माप व सीमांकन द्वारा विभाजन एवं घोषणा की विक्रय पत्र अकृत व शून्य है हैतू वाद-- जवाब दावा व विरचित तनकीयात एक जैसे हैं--निर्णित, आदेश न्याय संगत है।
2016 (2)   DNJ  (Raj) 719


(15) धारा 151 व आदेश 7 नियम 11 परंतुक- आदेश 7 नियम 11 के परंतुक के अधीन धारा 151 के अंतर्गत न्यायालय समय बढ़ाने हेतु प्राधिकृत हैं।
2016 (4)   DNJ  (Raj)  1775

(16) पत्नी को भरण पोषण का अंतरिम आदेश प्रदान करने की न्यायालय को अंतर्निहित शक्ति है।
1985 ए आई आर (उड़ीसा) 284

(17) विभाजन के वाद में जब संपत्ति विभाजन योग्य न हो तो न्यायालय को उसे विक्रय करने की अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त है।
1989 ए आई आर (मद्रास) 119

(18) अन्य कोई उपचार उपलब्ध ना होने पर न्यायालय धारा 151 के अंतर्गत अपनी अंतर्निहित शक्तियां का प्रयोग करते हुए अनुतोष प्रदान कर सकती है।
1988 ए आई आर (केरला) 233




(19) गलती से पारित आदेश को उसी न्यायालय द्वारा धारा 151 के अंतर्गत सुधार किया जा सकता है।
1983 ए आई आर (मुंबई) 291

(20) जब संहिता में वैकल्पिक उपचार उपलब्ध हो तब धारा 151 का प्रार्थना पत्र पोषणीय नहीं होगा।
1981 ए आई आर (कोलकाता) 81

(21) अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश अपवादी परिस्थितियों मैं न्यायालय द्वारा धारा 151 के अंतर्गत अंतर्निहित शक्तियां का प्रयोग करते हुए प्रदान किया जा सकता है।
1990 ए आई आर (पटना) 1

(22) जब वाद का प्रत्याहरण का आवेदन स्वीकार किया जाता है वहां न्यायालय धारा 151 के अंतर्गत प्रत्याहरण का आवेदन प्रस्तुत होने पर प्रत्याहरण के आवेदन को वापस लेने का आदेश अपनी अंतर्निहित शक्तियों के अंतर्गत कर सकती है।
1986 ए आई आर (कोलकाता) 19

(23) न्यायालय  अपने अंतर्निहित शक्तियों के अंतर्गत निषेधाज्ञा का आदेश प्रदान कर सकती है।
1962 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 527




(24) आदेश 39 नियम 1 -2 सीपीसी के अंतर्गत नहीं आने वाले मामलों में न्यायालय धारा 151 अंतर्गत अपने अंतर्निहित शक्तियां के तहत अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश पारित करने का अधिकार रखती है।
1962 ए आई आर (सुप्रीम कोर्ट) 532

(25) जहां वाद में स्थाई निषेधाज्ञा काअनुतोष नहीं मांगा गया है वहां न्यायालय अपने अंतर्निहित शक्तियों के अंतर्गत अस्थाई निषेधाज्ञा का आदेश प्रदान कर सकती है।
1998 ए आई आर (सिक्किम) 7

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