डिक्रियो और आदेशों का निष्पादन --Execution Of Decrees And OrdersOrder 21 Rule 1--2 CPC - CIVIL LAW

Wednesday, April 25, 2018

डिक्रियो और आदेशों का निष्पादन --Execution Of Decrees And OrdersOrder 21 Rule 1--2 CPC

डिक्रियो और आदेशों का निष्पादन --Execution Of Decrees And Orders
डिक्री के अधीन संदाय --Payment Under Decree

Order 21 Rule 1--2 CPC

आदेश 21 नियम 1--डिक्री के अधीन धनके संदाय की रीतियां --

(1) संदेश सभी धन का निम्नलिखित रीति से संदाय किया जाएगा अर्थात --
(क) उस न्यायालय में कर्तव्य उस डिक्री का निष्पादन करना है, जमा करके या उच्च न्यायालय को मनीआर्डर द्वारा अथवा बैंक के माध्यम से भेज कर; या
(ख) न्यायालय के बाहर डिक्रीदार को मनीआर्डर द्वारा या किसी बैंक के माध्यम से या किसी अन्य रीति से जिसके संदाय का लिखित साक्ष्य हो; या
(ग) अन्य रीति से जो वह न्यायालय जिसने डिक्री दी , निर्देश दें।
(2) जहां संदाय उपनियम (1) के खंड (क) या (ग)अधीन किया जाता है वहां निर्णीत ऋणी डिक्रीदार को उसकी सूचना न्यायालय के माध्यम से देगा या रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा सीधे देगा।
(3) जहां धन का संदाय उपनियम(1)के खंड (क) या खंड ( ख)के अधीन मनीआर्डर द्वारा या बैंक के माध्यम से किया जाता है वहां, यथास्थिति, मनीआर्डर में या बैंक के माध्यम से किए गए संदाय मैं निम्नलिखित विशिष्टियों का स्पष्ट रूप से कथन होगा, अथार्त --



(क) मूल वाद का संख्याक:
(ख) पक्षकारों के या या दो से अधिक वादी या दो से अधिक प्रतिवादी है वहां यह यथा स्थिति पहले दो वादियों और दो प्रतिवादियों के नाम:
(ग) प्रेषित धन का समायोजन किस प्रकार किया जाना है अर्थात वह संदाय मूल के प्रति ब्याज के प्रति या खर्चा के प्रति है;
(घ) न्यायालय के निष्पादन मामले का संख्याक जहां ऐसा मामला लंबित है ;और
(ङ) संदाय करता का नाम और पता।
(4) उपनियम एक के खंड (क) या खंड (ग)के अधीन किसी रकम पर ब्याज ,यदि कोई हो, उपनियम( 2 )में निर्दिष्ट सूचना की तमिल की तारीख से नहीं लगेगा।
(5) उपनियम (1)के खंड (क) के अधीन संदत्त किसी रकम पर ब्याज ,यदि कोई हो, ऐसे संदाय की तारीख से नहीं लगेगा:
   परंतु जहां भी डिक्रीदार मनीआर्डर या बैंक के माध्यम से संदाय स्वीकार करने से इंकार करता है वहां ब्याज उस तारीख से, जिसको धन उसे निविदत्त किया गया था,नहीं लगेगा अथवा जहां वह मनीआर्डर या बैंक के माध्यम से किए गए संदाय को स्वीकार करने से बचता है, वहां ब्याज उस तारीख से जिसको धन उसे, यथास्थिति
डाक प्राधिकारियों के या बैंक के कारोबार के मामूली अनुक्रम में दिया गया होता, नहीं लगेगा।

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आदेश 21 नियम 2 -- डिक्रीदार को न्यायालय के बाहर संदाय --

(1) जहां किसी प्रकार की डिक्री के अधीन संदेय कोई धन न्यायालय के बाहर संदत्त किया गया है या किसी प्रकार की पूरी डिक्री या उसके किसी भाग का समायोजन डिक्रीदार को समाधानप्रद रूप से अन्यथा कर दिया गया है वहां डिक्री उस न्यायालय को, जिस का कर्तव्य डिक्री का निष्पादन करना है, यह प्रमाणित करेगा कि ऐसा संदाय या समायोजन कर दिया गया है और न्यायालय उसे तदनुसार अभिलिखित करेगा।

(2) निर्णितऋणी (या कोई ऐसा व्यक्ति भी जो निर्णितऋणी लिए प्रतिभू है )ऐसे संदाय या समायोजन की इत्तिला न्यायालय को दे सकेगा और न्यायालय से आवेदन कर सकेगा कि न्यायालय अपने द्वारा नियत किए जाने वाले दिन को वह हेतु दर्शित करने के लिए सूचना डिक्री दार के नाम निकालें कि ऐसे संदाय या समायोजन के बारे में यह क्यों न अभिलिखित कर लिया जाए कि वह प्रमाणित है, या यदि डिक्री दार ऐसी सूचना की तमिल के पश्चात यह हेतु दर्शित करने में असफल रहता है कि संदाय या समायोजन के बारे में यह अभिलिखितत नहीं किया जाना चाहिए कि वह प्रमाणित है तो न्यायालय उसे तदनुसार अभिलिखित करेगा।

(2क) निर्णितऋणी की प्रेरणा पर कोई भी संदाय या समायोजन तब तक अभिलिखित नहीं किया जाएगा जब तक--
(क) वह संदाय नियम 1 में उपबंधित रीति से क्या हो :या
(ख) वहां संदाय या समायोजन दस्तावेज़ी साक्ष्य द्वारा साबित ना हो: या
(ग) वह संदाय या समयोजन डिक्रीदार द्वारा या उसकी ओर से उस सूचना के उसके उत्तर में क्यों नियम1 के उपनियम 2 के अधीन दी गई है या न्यायालय के समक्ष स्वीकार ना किया गया हो।




(3) वह संदाय या समायोजन जो पूर्वोक्त रीति से प्रमाणित या अभिलिखित नहीं किया गया है डिक्री निष्पादन करने वाले द्वारा मान्य नहीं किया जाएगा।

 संपूर्ण न्याय प्रशासन में डिक्री और आदेशों के निष्पादन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। डिक्री और आदर्शों का निष्पादन ही पक्षकारों को वास्तविक रुप से अनुतोष प्रदान करता है। निष्पादन के अभाव में निर्णय आज्ञप्ति और आदेशों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। निर्णय यदि  फल है तो निष्पादन उसके भोग करने का अधिकार। व्यवहार प्रक्रिया संहिता मैं इस बाबत धारा 36 से 74 एवं आदेश 21 मैं उपबंध किए गए हैं। न्याय व्यवस्था का यह एक महत्वपूर्ण विषय है तथा इसका अध्ययन हमारे लिए एक महति आवश्यकता है।

   सिविल प्रक्रिया संहिता में इस बाबत  उपबंध किए गए हैं ! सिविल व्यवहार प्रक्रिया संहिता में किए गए उपबंध अत्यंत क्लिष्ट एवं विस्तृत होने से आपकी सुविधा के लिए हम इसे निम्नलिखित भागों में विभाजित कर सकते हैं जिससे उपबंध समझने में सुविधा रहेगी।

1. किसी डिक्री के अंतर्गत धन का भुगतान करने की रीतियां:
2. निष्पादन के लिए आवेदन
3. निष्पादन करने वाले न्यायलय
4. निष्पादन करने वाले न्यायालय की शक्तियां
5. निष्पादन की रीतियां
6. विभिन्न न्यायालयों द्वारा पारित की गई  आज्ञप्तियों का निष्पादन
7. आज्ञप्ति का निष्पादन करने वाले न्यायालय द्वारा अवधारित किए जाने वाले प्रश्न!
8. दावो और आज्ञप्तियों का न्याय निर्णयन
9. हस्तांतरित और वैध  प्रतिनिधि ।




किसी आज्ञप्ति के अंतर्गत धन का भुगतान करने की रीतियां:-

संहिता के आदेश 21 के नियम 1 एवं 2   में किसी आज्ञप्ति के अंतर्गत धन के भुगतान की 3 विभिन्न रीतियों का उल्लेख किया गया है । यह निर्णीत ऋणी के विकल्प पर है कि वह इन तीनों रीतियों में से किसी के भी द्वारा आज्ञप्ति में विहित धन का भुगतान कर सकता है यथा-
1. ऐसे न्यायालय में जमा करा कर के, जिसका की आज्ञप्ति के निष्पादन का कर्तव्य है अथवा न्यायालय में धनादेश या बैंक द्वारा भेज कर: या
2. न्यायालय से बाहर आज्ञप्ति धारी को किसी धनादेश अथवा बैंक किसी रीति से भुगतान करके या
3. आज्ञप्ति पारित करने वाले न्यायालय द्वारा निर्देशित अन्य किसी रीति से।
इस प्रकार निर्णीत ऋणी उपर्युक्त तीनों रीतियों में से किसी भी रीति से आज्ञप्ति में के धन का भुगतान कर सकता है। यह पूर्णता उसके विकल्प पर है कि किस रीती से धन का भुगतान करें। लेकिन वह ऐसे किसी रीति का चुनाव नहीं कर सकेगा जो आज्ञप्ति के अधिकारों के प्रतिकूल हो। संहिता में यह महत्वपूर्ण उपबंध हैं।सहिंता का यह आदेश तथा इस सम्बंध में उपबंधित धाराए जो महत्वपूर्ण हैं उसका आगामी ब्लॉग में विवेचन करेंगे।
आदेश 21 नियम 1 -2 से सम्बंधित न्याय निर्णय दिये जा रहे है।

न्याय निर्णय --

1 --आदेश 21 नियम 1 सीपीसी-- निर्णित  नियम एक में उल्लेखित  रीतियो मैं से किसी भी रीति से आज्ञप्ति मैं के धन का भुगतान कर सकता है। यह पूर्णत उसके विकल्प पर है कि वह किस रीति से धन का भुगतान करें। लेकिन वह ऐसे किसी रीति का चुनाव नहीं कर सकेगा जो  आज्ञप्ति के अधिकारों के प्रतिकूल हो।
1938 AIR (Pat.)451

2. डिक्री  में जहां धन के भुगतान की तारीख निश्चित कर दी गई हो वहाँ निर्णित ऋणी यह नहीं कह सकेगा कि उस अंतिम तारीख को न्यायालय का अवकाश होने से भुगतान नहीं कर सका।
1972  AIR ( Bombay ) 299

3. आदेश 21 नियम 1-- बेदखली की डिक्री का निष्पादन-- विचारण न्यायालय ने कब्जा हेतु वारंट जारी किया और पुलिस सहायता से वारंट निष्पादन करने का निर्देश दिया-- बेदखली हेतु डिक्री दिनांक 25 जुलाई 2003 को पारित की - मामले के गुणागुण के बारे में प्रथम दृष्टया न्यायालय को संतुष्ट किए बिना याची रेस्पोंडेंट को नोटिस जारी करने हेतु याची जोर नहीं दे सकता-- प्रथम दृष्टया मामला स्थापित नहीं हुआ-- निर्णित, याचिका खारिज होने योग्य है।
2014 (4) DNJ (Raj.)1496




4. आदेश 21 नियम 1 व 32 -- निष्पादन याचिका- जवाब में उठाई आपत्तियां स्वीकार नहीं की और आदेश 21 के नियम 32 के अंतर्गत नोटिस जारी किया--- आपत्ति उठाई कि निगराकार ने डिक्री का उल्लंघन किया है और होदिया बनाई तथा पाइप भी बिछाए,-- निष्पादन न्यायालय ने तथ्य का निर्धारण नहीं किया-- पक्षकारों  के अधिकारों का निर्धारण नहीं किया--निर्णित, निगरानी सारहीन है वह खारिज की।
2014 (3) DNJ  (Raj) 967

5. आदेश 21 नियम 2 -- निष्पादन करने वाले न्यायालय की शक्ति-- क्या निष्पादन न्यायालय द्वारा डिग्री में संशोधन, परिवर्तन या समझौता किया जा सकता है और उस संशोधित आदेश को लागू किया जा सकता है-- अभिनिर्धारित- डिक्री  में समझौता या परिवर्तन या संशोधन किया जा सकता है और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 2 के तहत न्यायालय द्वारा समाधान दर्ज करने पर उस संशोधन को लागू किया जा सकता है -- दोनों ही पक्षकारों ने समय बढ़ाने हेतु अपनी अपनी सहमति नहीं दी या समझौते की शर्तें में कोई छूट नहीं दी थी तो निष्पादन न्यायालय समझौते में दिए गए समय से आगे डिग्रीधारी द्वारा निर्णित ऋणी को भुगतान की शर्तों की अनुपालना हेतु समय सीमा नहीं बढ़ा सकता था।
2007 (1) RLW 835

6.  आदेश 21 नियम 2 (3)- का विस्तार-- यदि डिक्री की संतुष्टि समायोजन या अन्यथा की जाती है तो यह आवश्यक है कि  निर्णितऋणी इसे न्यायालय को बताएं तथा तदनुसार अभिलिखित कराएं -- जब निर्णितऋणी ऐसा करने में विफल रहता है तो वह डिक्रीदार के विधिक वारिसों द्वारा निष्पादन चाहने के समय अपने दायित्वों से इनकार नहीं कर सकता।
2011  (2) WLN 456






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