order 9 C.P.C. - Appearance of parties and consquence of non appearance - CIVIL LAW

Tuesday, February 21, 2017

order 9 C.P.C. - Appearance of parties and consquence of non appearance

ORDER 9 C.P.C.

 Appearance of parties and consquence of non appearance

 पक्षकारो की उपसंजाति और उनकी अनुपसंजाति का परिणाम


    न्यायिक प्रक्रिया में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत हैं की प्रत्येक न्यायिक कर्यवाही या विचारण पक्षकारो की उपस्थिति में किया जाना चाहिए | न्यायालय सामान्यतः पक्षकारो की अनुपस्थिति में किसी प्रकार की कर्यवाही का विचारण नही करता हैं इसी कारण किसी कार्यवाही के प्रारम्भ किये जाने के पूर्व न्यायालय विरोधी पक्षकार को समन द्वारा  न्यायालय में उपस्थित रहने हेतु आहूत करते हैं तथा न्यायालय के ऐसे समन की पलना ना करने पर पक्षकार को उसके परिणाम भुगतने होते हैं | इसी प्रक्रिया के बारे में आदेश 9 में उपबंध किये गये हैं |
आदेश 9 - पक्षकारो की उपसंजाति और उनकी अनुपसंजाति का परिणाम
नियम 1 - पक्षकार उस दिन उपसंजात होंगे जो प्रतिवादी के उपसंजात होने और  उतर देने के लिए समन में नियत हैं - 

   न्यायालय द्वारा दिए गये समन में सुनवाई के लिए नियत किये गये दिन वादी तथा प्रतिवादी दोनों ही न्यायालय में या तो स्वयं या अपने अधिवक्ता अथवा प्लीडर द्वारा न्यायालय में उपस्थित रहेंगे तब के सिवाए जबकि सुनवाई न्यायालय द्वारा किसी आगामी दिन के लिए स्थगित कर दी जाये और वाद उस दिन सुना जायेगा

नियम 2 - जहा समनो की तामिल, खर्चे देने में वादी के असफल रहने के परिणाम स्वरुप नही हुई हैं वह वाद का ख़ारिज किया जाना -

  
 समन में नियत तारीख को प्रतिवादी पर समन की तामिल इसलिए नही हुई हो की न्यायालय फीस या डाक व्यय यदि कोई हो और वह देने में वादी असफल रहा हो तो न्यायालय वाद ख़ारिज करने का आदेश दे सकेगा |

नियम 3 - जहा दोनों मे से कोई भी पक्षकार उपसंजात नही होता हैं वह वाद का ख़ारिज किया जाना -

   नियत तिथि को दोनों में से कोई भी पक्षकार उपस्थित नही होते हैं तो वहा न्यायालय आदेश दे सकेगा की वाद ख़ारिज कर दिया जाये |

नियम 4 - वादी नया वाद ला सकेगा या न्यायालय वाद को फाइल पर पुनःस्थापित कर सकेगा - 

   जहा वाद नियम 2 या नियम 3 के अधीन ख़ारिज कर दिया जाता हैं वहा वादी नया वाद ( परिसीमा के विधि के अधीन रहते हुए ) ला सकेगा या उस खारिजी को अपास्त करने के लिए आवेदन कर सकेगा और यदि वह न्यायालय को यह समाधान कर देता हैं की उक्त दिनांक को अपनी अनुपस्थिति के लिए प्रयाप्त कारण था तो न्यायालय ख़ारिजी के आदेश को अपास्त कर वाद को पुनःस्थापित कर वाद में आगे कार्यवाही करने के लिए दिन नियत करेगा |

नियम 5 - जहाँ वादी, समन तामिल के बिना लोटने के पश्चात एक माह तक नये समन के लिए आवेदन करने में असफल रहता हैं वहा वाद का ख़ारिज किया जाना - 

   [1] यदि प्रतिवादी पर समन तामिल नही होता हैं और समन की तामिल के बिना लोटाये जाने के पश्चात उस तारीख से 7 दिन की अवधि तक जिसकी न्यायालय को उस अधिकारी ने विवरणी दी हैं और उस विवरणी को न्यायालय मामूली तौर पर प्रमाणित करता हैं वहा वादी न्यायालय से नए समन निकालने के लिए आवेदन करने में असफल रहता  है वहां न्यायालय यह आदेश करेगा की वाद ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध ख़ारिज कर दिया जाये परन्तु यदि वादी न्यायालय को यह समाधान उक्त अवधि के भीतर कर देता हैं की -

  (क) जिस प्रतिवादी की तामिल नही हुयी हैं उसके निवास स्थान का पता लगाने में वह सर्वोतम प्रयास करने के पश्चात असफल रहा हैं , अथवा
  (ख) ऐसा प्रतिवादी समन की तामिल से बचने का प्रयास कर रहा हैं,
  (ग) समय को बढाने के लिए अन्य कोई प्रयाप्त कारण हैं,
 तो ऐसा आवेदन करने के लिए समय को न्यायालय इतनी अतिरिक्त अवधि के लिए बढा सकेगा जितनी वह ठीक समझे |

   [2] ऐसी दशा में वादी (परिसीमा अवधि के अधीन रहते हुए ) नया वाद ला सकेगा

नियम 6 - जब केवल वादी उपसंजात होता हैं तब प्रक्रियां -

   [1] जहां वादी सुनवाई के दिन उपसंजात होता हैं और प्रतिवादी उपसंजात नही होता हैं वहां -
(क) यदि यह साबित हो जाता हैं की समन की तामिल सभ्यक रूप से की गयी थी तो न्यायालय वाद की एकपक्षीय की सुनवाई कर सकेगा,
(ख) यदि यह साबित नही होता हैं की समन की तामिल सभ्यक रूप से की गयी थी तो न्यायालय प्रतिवादी की तामिल हेतु दुबारा समन का आदेश दे सकेगा,
(ग) यदि यह साबित हो जाता हैं की समन की तामिल प्रतिवादी पर हुयी थी किन्तु ऐसे समय पर नही हुयी थी की समन में नियत दिन को उपसंजात होने और उतर देने का उसे प्रयाप्त समय मिल जाता,
तो न्यायालय वाद की सुनवाई को न्यायालय द्वारा नियत किये जाने वाले किसी आगामी दिन के लिए स्थगित करेगा और निर्देश देगा की ऐसे दिन की सुचना प्रतिवादी को दी जाये |  

   [2] जहा समन की सभ्यक रूप से तामिल या प्राप्त समय के भीतर तामिल वादी की चूक के कारण नही हुई हैं वह न्यायालय वादी को आदेश देगा की स्थगित होने के कारण होने वाले खर्चो को वह दे  |

नियम 7 - जहा प्रतिवादी स्थगित सुनवाई के दिन उपसंजात होता हैं और पूर्व अनुपसंजाति के लिए अच्छा कारण बताता हैं वहा प्रक्रिया - 
   
   जहां न्यायालय ने एकपक्षीय रूप से वाद की सुनवाई स्थगित कर दी हैं और प्रतिवादी ऐसी सुनवाई के दिन या पहले उपसंजात होता हैं और अपनी पूर्व अनुपसंजाति के लिए अच्छा कारण बताता हैं वहा ऐसे शर्तो पर जो न्यायालय खर्चो और अन्य बातो के बारे में निर्दिष्ट करे, उसे वाद के उत्तर में उसी भांति सुना जा सकेगा मानो वह अपनी उपसंजाति के लिए नियत किये गये दिन को उपसंजात हुआ था |

नियम 8 - जहा केवल प्रतिवादी उपसंजात होता हैं वहा प्रक्रियां-
   
   नियत तारीख को प्रतिवादी उपस्थित होता हैं और वादी उपस्थित नही होता हैं वह न्यायालय आदेश करेगा की वाद को ख़ारिज किया जाये | किन्तु यदि प्रतिवादी दावे या उसके भाग को स्वीकार कर लेता हैं तो न्यायालय ऐसी स्वीकृति पर प्रतिवादी के विरूद्ध डिक्री पारित करेगा और जहां दावे का केवल भाग ही स्वीकार किया हैं वहा वाद को वहा तक ख़ारिज करेगा जहा तक उसका सम्बन्ध अविशिष्ट दावे से हैं |

नियम 9 - चूक के कारण वादी के विरूद्ध पारित डिक्री नये वाद का वर्जन करती हैं -  
   
    [1]  जहा वाद नियम 8 के अधीन ख़ारिज किया जाता हैं तो वादी को नया वाद संस्थित करने का अधिकार नही होगा |

नियम 10 - कई वादियो में से एक या अधिक गैर हाजरी की दशा में प्रक्रियां -
   
   कई वादियो में से एक या अधिक गैर हाजरी की दशा में एक या अधिक वादी उपस्थित होते हैं वहां वादियो की प्रेरणा पर वाद ऐसे आगे चलने दे सकेगा मानो सभी उपसंजात हुए हो, ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे |

नियम 11 - कई प्रतिवादियो में से एक या अधिक गैर हाजरी की दशा में प्रक्रियां - 
  
   जहा एक से अधिक प्रतिवादी हैं और उनमे से एक या अधिक उपसंजात नही होते हैं वहा वाद आगे चलेगा और न्यायालय निर्णय सुनाने के समय जो उपसंजात नही हुए उनके विरूद्ध ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे |
नियम 12 - स्वयं उपसंजात होने के लिए आदिष्ट पक्षकार के प्रयाप्त हेतुक दर्शित किये बिना गैर हाजिर रहने का परिणाम - 
  
   जहा पक्षकार को न्यायालय द्वारा स्वयं उपस्थित रहने का  आदेश दिया गया हैं और वह स्वयं उपसंजात नही होता हैं तथा उपसंजात नही होने बाबत प्रयाप्त हेतुक न्यायालय के सामने समाधानप्रद रूप से दर्शित नही करता हैं वहां वह पूर्वगामी नियमो के उन सभी उपबंधों के अधीन होगा जो ऐसे वादियो और प्रतिवादियो को जो उपसंजात नही होते, यथा स्थति लागू होंगे |


नियम 13 - प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय डिक्री को अपास्त करना -
   इस नियम का पूर्ण विवेचन यहा क्लीक कर देखे |*

नियम 14 - कोई भी डिक्री विरोधी पक्षकार को सुचना के बिना अपास्त नही की जाएगी - 
   
   नियम 13 के अधीन दिए गये आवेदन पर कोई भी डिक्री विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना अपास्त नही की जाएगी |

           आदेश 9 का न्यायिक विचारण में महत्वपूर्ण उपबंध हैं | यह पर सभी नियमो का मुख्य सारांश दिया गया हैं | यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक हैं की आदेश 9 के नियम 2,3,5 के अंतर्गत ख़ारिज किये गये पर नये वाद संस्थित किये जा सकते हैं यदि परिसीमा विधि से बाधित ना हो, परन्तु नया वाद संस्थित नही किया जा सकेगा यदि नियम 8 के अंतर्गत ख़ारिज किया गया हैं |

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