आदेश 1 नियम 10 सी. पी. सी.-Order 1 rule 10 C.P.C.-- वादपत्रो में पक्षकारो का जोड़ा व हटाया जाना। Strike out or add parties in suits. - CIVIL LAW

Monday, February 6, 2017

आदेश 1 नियम 10 सी. पी. सी.-Order 1 rule 10 C.P.C.-- वादपत्रो में पक्षकारो का जोड़ा व हटाया जाना। Strike out or add parties in suits.

आदेश 1 नियम 10 सी. पी. सी.-Order 1 rule 10 C.P.C.--वादपत्रो में पक्षकारो का जोड़ा व हटाया जाना।

 Strike out or add parties in suits.

Necessary and Proper parties of the suit.

वाद हमेशा दो या अधिक पक्षकारो के किसी हक, अधिकार व स्वामित्व से सम्बंधित विवाद पैदा होता है और सम्बन्धित पक्षकार उसे न्यायालय से अपना अनुतोष मांगते है। न्यायालय का कर्तव्य पक्षकारो को समुचित न्याय प्रदान करना है। ऐसी अवस्था में कोई पक्षकार न्याय से वंचित नहीं रह जाय या अनावश्यक ही कोई निर्दोष के साथ अन्याय हो जाये।इसलिए वाद प्रस्तुत करते समय वादी को उन सभी पक्षकारो को वादी या प्रति वादी के रूप में संयोजित करना आवश्यक है जो न्याय प्राप्त करने के हक़दार पक्षकार है।अनावश्यक व्यक्ति को पक्षकार कतई नहीं बनाना चाहिये।संहिता के आदेश 1 में इस सम्बन्धी प्रावधान दिए गए है।उन सभी नियमो के बारे में विवेचन न कर नियम 10 जो वाद की कार्यवाहियों में महत्वपूर्ण व वाद के प्रस्तुत होने के बाद की प्रक्रया का है जो वाद के विचरण के दौरान उपयोगी उपबंध है।जो निम्न रूप से संहिता में उपबंधित किया गया है---
आदेश 1 नियम 10 सी. पी. सी.--

गलत वादी के नाम से वाद--(1) जहां कोई वाद वादी के रूप में गलत व्यक्ति के नाम से प्रस्तुत किया है,या जहाँ यह संदेह पूर्ण है कि क्या वह सही वादी के नाम से संस्थित किया गया है वहां यदि वाद के किसी प्रक्रम में न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि वाद सदभावी भूल से संस्थित किया गया है और विवाद में के वास्तविक विषय के अवधारण के लिये ऐसा करना आवश्यक है तो,वह ऐसे निबंधनों पर, जो न्यायगत समझे, वाद के किसी प्रक्रम में किसी अन्य व्यक्ति को वादी के रूप में प्रतिस्थापित किये जाने या जोड़े जाने का आदेश कर सकेगा।
(2)न्यायालय पक्षकारो का नाम काट सकेगा या जोड़ सकेगा---न्यायालय कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम में या तो दोनों पक्षकारो में से किसी के आवेदन पर या उसके बिना और ऐसे निबंधनों पर जो न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत हो, यह आदेश दे सकेगा कि वादी के रूप में या प्रतिवादी के रूप में अनुचित रूप तौर पर संयोजित किसी भी पक्षकार का नाम काट दिया जाय और किसी व्यक्ति का नाम जिसे वादी या प्रतिवादी के रूप में ऐसे संयोजित किया जाना चाहिये था या न्यायालय के सामने जिसकी उपस्थिति वाद में अन्तवर्लित सभी प्रशनो का प्रभावी तौर पर और पूरी तरह न्यायनिर्णय और निपटारा करने के लिये न्यायालय को समर्थ बनाने की दृष्टि  से आवश्यक हो, जोड़ दिये जाय।

(3) कोई भी व्यक्ति वाद मित्र के बिना वाद लाने वाले वादी के रूप में अथवा उस वादी के जो किसी निर्योग्यता के अधीन है,वाद मित्र के रूप में उसकी सहमति के बिना नहीं जोड़ा जायेगा।
(4) जहां प्रतिवादी जोड़ा जाय वहाँ वाद पत्र का संशोधित किया जाना--जहां कोई प्रतिवादी जोड़ा जाता है वहां जब तक न्यायालय अन्यथा निदिष्ट न करे वाद पत्र का इस प्रकार संशोधन किया जायेगा,जैसा आवश्यक हो,और समन की और वादपत्र की संशोधित प्रतियो की तामील नये प्रतिवादी पर,और यदि ठीक समझे तो मूल प्रतिवादी पर की जायेगी।
     इस नियम का सारांश यह है कि वादी द्वारा वाद पेश करने के बाद ज्ञात होता है कि उसने भूल या गलती से गलत व्यक्तियों के नाम समलित कर दिए है जो अनुतोष पाने के अधिकारी नहीं है या किसी वादी को समलित करना आवश्यक है उसके बिना पूर्ण अनुतोष प्राप्त नहीं किया जा सकता है तो ऐसी सदभाव पूर्ण भूल को सुधारने हेतु ऐसे वादी को समलित किये जाने का आदेश न्यायालय दे सकेगा।

        ठीक उसी प्रकार कोई व्यक्ति उस विवाद के वास्तविक विषय के अवधारण के लिये आवश्यक है तो पक्षकारो के आवेदन पर वादी या प्रतिवादी जोड़े जाने का आदेश न्यायालय दे सकेगा।
न्यायालय पक्षकारो के आवेदन के बिना भी स्वप्रेणा से किसी पक्षकार को वाद में जोड़े जाने का आदेश कर सकता है।
विलम्ब के आधार पर आवेदन अस्वीकार नहीं करना चाहिये यदि प्राथी उचित व आवश्यक पक्षकार हो तथा हितबद्ध हो।अधिकारों का वादावासान (non-whites) नही किया जा सकता है।
2012(2)DNJ (Raj.)810
2. संविन्दा की  विनिर्दिष्ट पालना का वाद--नोटिस मिलने के बाद सम्पति विक्रय की --पश्चात्वर्ती विक्रय का तथ्य जबाब दावे से जानकारी में आया--निर्णीत,विचारण न्यायालय आवेदन ख़ारिज करने में न्याय संगत नहीं था -आवेदन स्वीकार।
2012(1)DNJ (Raj.)371
3.पक्षकार जिसके विरुद्ध अनुतोष नहीं चाहा--आवेदन अस्वीकार किया गया।
2012(3)DNJ (Raj.)1370
4.वसीयत के आधार पर वाद--वादग्रस्त सम्पति का वाद के दौरान विक्रय।रेस्पॉडेंट को आवश्यक व् प्रॉपर पक्षकार नही माना गया।
O.1R.10---Necessary party & proper party--Suit for declaration and injunction based on registered Will executed by mother of plaintiff-appellant -Suit property sold by defendant to respondent during pendency of suit--Held,since claim is based on will,respondents are neither necessary nor proper parties.
1996(2)DNJ(SC)456
O1.R.10.--Impleadment of third party--Effect--If the involves de novo trial--Court should disallow the aplicacion.
1997(1)DNJ (SC)13
    कब अन्य व्यक्ति पक्षकार बन सकते है, यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वाद में विवाद के वास्तविक विषय के अवधारण के लिए अन्तवर्तित सभी प्रशनो का प्रभावी तौर पर न्यायनिर्णय व निपटारे हेतु आवश्यक होने पर ही पक्षकार जोड़े।मुख्य प्रतिवादी के समर्थन में दावे करने वालो को पक्षकार बनाना आवश्यक नहीं है।ये लोग साक्षी के रूप में आ सकेंगे।
1997(1)DNJ (Raj.)151
      वादी को यह अधिकार है कि अपना सम्पूर्ण अनुतोष प्राप्त करने के लिए किसे प्रति वादी बनाए और किसे नहीं।
      वाद के विचारण के दौरान सही अनुतोष प्राप्त करने के उदेश्य से आवश्यक पक्षकार जोड़े जाने और अनावश्यक पक्षकार को हटाने बाबत है।दीवानी विधि में महत्वपूर्ण नियम है।

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