Order 6 rule 17 CPC-Amendment of pleadings- आदेश 6 नियम 17 सी पी सी- अभिवचन का संशोधन --- - CIVIL LAW

Thursday, February 9, 2017

Order 6 rule 17 CPC-Amendment of pleadings- आदेश 6 नियम 17 सी पी सी- अभिवचन का संशोधन ---

Order 6 rule 17 CPC-Amendment of pleadings-आदेश 6 नियम 17 सी पी सी-अभिवचन का संशोधन ---


         न्यायालय में वाद या जबाब दावा पेश होने के बाद उसमें संशोधन क्या जा सकता है तथा कैसे-इसका प्रावधान आदेश 6 नियम 17 सी पी सी में किया गया है।

आदेश 6 नियम 17 सी पी सी-

न्यायालय दोनों में से किसी पक्षकार को कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम में अनुज्ञा दे सकेगा कि वह अपने अभिवचनों को ऐसी रीति से और ऐसे निबंधनों  पर, जो न्याय संगत हो अपने अभिवचनों के परिवर्तित या संशोधित करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा और वे सभी संशोधन किये जायेंगे जो दोनों पक्षकारों
के बीच विवाद के वास्तविक प्रश्न के अवधारण के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो।


परंतु विचारण प्रारंभ होने के उपरांत  संशोधन के लिए पार्थना की अनुमति तब तक नहीं दी जायेगी जब तक कि किसी आवेदन को जब  तक कि न्यायालय इस निर्णय पर न पहुंचे कि सम्यक तत्परता के उपरांत भी पक्ष विचारण आरम्भ होने के पूर्व मामला नहीं उठाया पाया।

        आदेश 6 के सभी नियमो के लिए यह क्लीक करे
 -Civil Procedure Code 1908, Order 6( Pleadings Generally)साधारणतः अभिवचन।

अभिवचन का संशोधन न्यायालय द्वारा निम्न आधारों की पूर्ति हेतु दिया जा सकेगा --
अ--  न्याय हित में आवश्यक है:या
 ब-- पक्षकारो के मध्य विवाद के सही विनिश्चय के लिए अदालत को सहायता प्राप्त होगी।
स--वाद की बाहुलता को रोकने के लिए आवश्यक हो।
      उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिये न्यायालय पक्षकारो के आवेदन पर आदेश प्रदान कर
सकता है।इस प्रकार का आदेश न्यायालय का विवेकाधीन है जो हर मामले की परिस्थतियो पर निर्भर है।

 
 न्यायालय वाद के संशोधन की बजाय जबाब दावे के संशोधन करने की अनुमति देने में ज्यादा उदार होते है।
संशोधन कब अनुज्ञात किया जा सकता है---

1- विचारण न्यायालय द्वारा आवेदन गुणा गुण पर ख़ारिज किया --भारी अवेधानिकता एवम अनियमता से आदेश ग्रसित होने से आदेश अपास्त किया।
   1997 (2)DNJ (Raj.) 446

2--. अभिवचन में संशोधन की अनुमति देना न्यायालय का विवेकाधीन है।
     1997 (1)DNJ(Raj.)315

3-- अपीलीय न्यायालय में बाद की घटनाओं के आधार पर प्रस्तुत आवेदन खारिज किया व निर्णय तथा डिक्री यथावत रखा--अभिनिर्धारित --आवेदन ख़ारिज कर न्यायालय ने अनियमता की है।
      1998(1)DNJ (Raj.)350

4--जबाब दावा में संशोधन--वाद के निर्णय के लिए संशोधन आवश्यक हो व वाद की प्रकृति में बदलाव नहीं हो तो आवेदन स्वीकार होना चाहिए।
    1996(1) DNJ (Raj.)81

5--जबाब दावा में संशोधन-- वाद पेश करने के 34 वर्ष बाद प्राथना पत्र पेश किया।अपीलीय स्तर पर यह सदभावी व उचित एवम न्याय संगत होना चाहिये।निर्णीत--आवेदन ख़ारिज योग्य है।
  2012 (3) DNJ (Raj.)1669

6----वाद पेश होने के 17 वर्ष बाद जबाब दावा में संशोधन के लिये आवेदन सदभावी नहीं होने से व वाद की कार्यवाहियों को लम्बा करने की नीयत से प्रस्तुत होने से खारिज करने का आदेश सही है।
 2010 WLC (Raj.)676

7---वाद पत्र में आंशिक संशोधन स्वीकार।निर्णीत --संशोधन पूर्ण रूप से स्वीकार करना चाहिए था आवेदन स्वीकार कर वाद पत्र में संशोधन स्वीकार किया।
    2013(2)DNJ (Raj.)889

8---अभिवचन में संशोधन--
संशोधन को स्वीकार करने की विस्तृत शक्तियां है और वो प्रक्रम के किसी स्तर पर प्रयोग की जा सकती है बशर्ते न्यायहित व वादों की बाहुलता को रोकने के लिये आवश्यक हो।
 2013(1)DNJ (SC) 75.
AIR 1986 SiKKim 6

9---  यदि संशोधन से वाद की प्रकृति में बदलाव होता है तो न्यायालय को उक्त संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
 -- 1991 (2)RLW 387.

10----  यदि संशोधन से वाद की प्रकृति में बदलाव नहीं होता है तो न्यायालय को उक्त संशोधन की अनुमति  दी जा सकती है।
   AIR 1994 NOC (MP)

  चूँकि यह उपबंध बहुत उपयोगी है तथा पक्षकारो को विचारण के दौरान अपने अभिकथनो में संशोधन की आवश्यकता होती है जिससे संशोधन सम्बंधी नियमो के बारे में आपको क़ानूनी नजीरों सहित विस्तृत विवेचन दिया गया है।
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