हम यह जानते हे कि न्यायिक प्रक्रिया स्वचालित नहीं होती है उसे चलाना पडता है।किसी प्रक्रिया के संचालन के लिये किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।न्यायिक प्रक्रिया चलाने का माध्यम अभिवचन है।
प्रत्येक न्यायिक प्रक्रिया का आरंभ एवम समाधान अभिवचन से ही होता है। अभिवचन जितना स्पष्ट एवम सुगठित होगा,प्रक्रिया सरल एवं शीघ्रगामी हो जायेगी।
अभिवचन--
संहिता के आदेश 6 नियम 1 में अभिवचन को परिभाषित किया गया है।
"अभिवचन" से वादपत्र या लिखित कथन अभिप्रेत होगा।
"Pleadings" shall mean plaint or written statement.
इस प्रकार अभिवचन में वादपत्र एवम लिखित कथन (जबाब दावा) दोनों को सम्मिलित किया गया है।
सरल भाषा में हम यह कह सकते हे कि वादी का वादपत्र और प्रतिवादी का लिखित कथन दोनों ही अभिवचन के भाग है।
अभिवचन के नियम--
1. अभिवचन में केवल घटनाओं का वर्णन किया जाना चाहिये, विधि का नहीं।
2. केवल सारभूत तथ्य की घटना का वर्णन किया जाना चाहिये।
(आदेश 6 नियम 2)
3.तथ्य जिसे साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना है उसका उल्लेख अभिवचन में नहीं किया जाना चाहिए।
4. अभिवचन में आवश्यक विवरण दिया जाना चाहिये।
आदेश 6 नियम 4)
5. विलुप्त।
6 .पूर्ववर्ती शर्त का विशेष रूप से वर्णन करना।
( आदेश 6 नियम 6)
7.संशोधन के बीना अभिवचन में फेरबदल नहीं किया जाना।
आदेश 6 नियम 7) संविदा का का इंकार (denial of contract)
आदेश 6 नियम 8)
9.दस्तावेज के प्रभाव का कथन किया जाना।
10. किसी व्यक्ति के विद्वेष, कपट पूर्ण भावना,ज्ञान या मस्तिष्क की अन्य दशा का अभिकथन परस्थितियों को दर्ज किये बिना अभिकथन पर्याप्त होगा।
( आदेश 6 नियम 10)
11.सुचना का एक तथ्य के रूप में अभिकथन किया जाना चाहिये।
( आदेश 6 नियम 11)
12. उपलक्षित संविदा का तथ्य के रूप में अभिकथन किया जाना चाहिये।
( आदेश 6 नियम 12)
13. विधि की उपधारणा- कोई भी पक्षकार किसी ऐसे तथ्य या विषय का अभिकथन नहीं करेगा जिसकी प्रकल्पना विधि उसके पक्ष में करती है।
( आदेश 6 नियम 13)
अभिवचन का हस्ताक्षरित किया जाना--
प्रत्येक अभिवचन पक्षकार एवम उसके अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित की जायेगी।विशेष परिस्थिति में उसके अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित की जा सकेगी।
( आदेश 6 नियम 14)
15.अभिवचन का सत्यापन।
16. अभिवचन का काट दिया जाना-
17.अभिवचन का संशोधन।
(आदेश 6 नियम 17)
न्यायालय में वाद या जबाब दावा पेश होने के बाद उसमें संशोधन क्या जा सकता है तथा कैसे-
यह प्रावधान महत्वपूर्ण होने से उसकी विस्तृत विवेचन करना उचित होगा।
आदेश 6 नियम 17 सी.पी.सी. इस प्रकार है:-
न्यायालय कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम पर, किसी भी पक्षकार को, ऐसी रीति से और ऐसे निबंधनों पर, जो न्याय संगत हो अपने अभिवचनों के परिवर्तित या संशोधित करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा और वे सभी संशोधन किये जायेंगे जो दोनों पक्षकारों के बीच विवाद के वास्तविक प्रश्न के अवधारण के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो:
परंतु विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् संशोधन के लिए किसी आवेदन को तब तक अनुज्ञात नहीं किया जायेगा जब तक की न्यायालय इस निर्णय पर न पहुंचे कि सम्यक तत्परता बरतने पर भी वह पक्षकार, विचारण प्रारंभ होने से पूर्व वह विषय नहीं उठा सका था।
इस प्रकार आदेश 6 नियम 17 सी.पी.सी. का अवलोकन करे तो यह स्पष्ट होता है कि यह प्रावधान आंशिक रूप से आज्ञापक और आंशिक रूप से विवेकाधिकार पर आधारित है।
वर्ष 2002 में संशोधन करके इस प्रावधान में एक परंतुक जोड़ा गया है जिसके प्रकाश में विचारण प्रारंभ होने के पूर्व यदि संशोधन आवेदन पेश होता है तो उसे उदारतापूर्वक स्वीकार करना चाहिये। इस न्याय दृष्टांत में यह कहां गया है कि ऐसे संशोधन जो विचारण प्रारंभ होने के पूर्व चाहे जाये उन्हें विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् के संशोधनों की अपेक्षा उदारतापूर्वक स्वीकार करना चाहिये।
धारा 153 सी.पी.सी. के प्रावधान भी ध्यान में रखना चाहिये जिसके अनुसार, न्यायालय किसी भी समय और खर्च संबंधी ऐसी शर्तो पर या अन्यथा जो वह ठीक समझे वाद के किसी भी कार्यवाही में की किसी भी त्रुटि या गलती को संशोधित कर सकेगा, और ऐसी कार्यवाही द्वारा उठाये गये या उस पर अवलंबित वास्तविक प्रश्न या विवाद्यक के अवधारण के प्रयोजन के लिये सभी आवश्यक संशोधन किये जायेंगे।
लिखित आवेदन व शपथ पत्र की आवश्यकता:- संशोधन के लिये किसी पक्षकार का लिखित आवेदन होना आवश्यक है न्यायालय स्वप्रेरणा से अभिवचनों को संशोधित नहीं कर सकता हैं।
इस तरह अभिवचनों में संशोधन के लिये एक लिखित आवेदन और समर्थन में शपथ पत्र होना आवश्यक होता हैं।
एक बार संशोधन स्वीकार हो जाने के बाद वह पक्ष उसे विड्रा नहीं कर सकता उसे आदेश का पालन करना होगा।
कोई पक्षकार स्वयं के अभिवचनों में संशोधन कर सकता है विपक्षी के अभिवचनों में संशोधन नहीं कर सकता है।
संशोधन संबंधी सामान्य सिद्धांत
1. क्या चाहा गया संशोधन प्रकरण के उचित व प्रभावी निराकरण के लिये आवश्यक है।
2. क्या संशोधन आवेदन सद्भावनापूर्ण है या दुर्भावनापूर्ण है।
3. संशोधन ऐसा नहीं होना चाहिये जो दूसरे पक्ष के हितों पर ऐसा प्रतिकूल प्रभाव डाले जिसकी पूर्ति प्रतिकर दिलाकर भी नहीं की जा सकती हो।
4. क्या संशोधन अस्वीकार करे तो इससे लिटिगेशन बढ़ेगा या अन्याय होगा।
5. क्या प्रस्तावित संशोधन मामले की प्रकृति और चरित्र को मूलभूत परिवर्तन नहीं होगा।
6.पक्षकारो के मध्य विवादग्रस्त प्रश्नों के अवधारण के लिए आवश्यक हो।
7.इससे वाद कारण परिवर्तन नहीं होता हो।
आदेश 6 नियम 18 में-"ऐसा संशोधन या तो न्यायलय द्वारा नियत समय के अंदर या 14 दिवस के भीतर प्रस्तुत किया जा सकेगा।"
इस प्रकार अभिवचन के साधारण नियम आदेश 6 में वर्णित है जिनका अध्यन व जानकारी आवश्यक है।
प्रत्येक न्यायिक प्रक्रिया का आरंभ एवम समाधान अभिवचन से ही होता है। अभिवचन जितना स्पष्ट एवम सुगठित होगा,प्रक्रिया सरल एवं शीघ्रगामी हो जायेगी।
अभिवचन--
संहिता के आदेश 6 नियम 1 में अभिवचन को परिभाषित किया गया है।
"अभिवचन" से वादपत्र या लिखित कथन अभिप्रेत होगा।
"Pleadings" shall mean plaint or written statement.
इस प्रकार अभिवचन में वादपत्र एवम लिखित कथन (जबाब दावा) दोनों को सम्मिलित किया गया है।
सरल भाषा में हम यह कह सकते हे कि वादी का वादपत्र और प्रतिवादी का लिखित कथन दोनों ही अभिवचन के भाग है।
अभिवचन के नियम--
1. अभिवचन में केवल घटनाओं का वर्णन किया जाना चाहिये, विधि का नहीं।
2. केवल सारभूत तथ्य की घटना का वर्णन किया जाना चाहिये।
(आदेश 6 नियम 2)
3.तथ्य जिसे साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना है उसका उल्लेख अभिवचन में नहीं किया जाना चाहिए।
4. अभिवचन में आवश्यक विवरण दिया जाना चाहिये।
आदेश 6 नियम 4)
5. विलुप्त।
6 .पूर्ववर्ती शर्त का विशेष रूप से वर्णन करना।
( आदेश 6 नियम 6)
7.संशोधन के बीना अभिवचन में फेरबदल नहीं किया जाना।
आदेश 6 नियम 7) संविदा का का इंकार (denial of contract)
आदेश 6 नियम 8)
9.दस्तावेज के प्रभाव का कथन किया जाना।
10. किसी व्यक्ति के विद्वेष, कपट पूर्ण भावना,ज्ञान या मस्तिष्क की अन्य दशा का अभिकथन परस्थितियों को दर्ज किये बिना अभिकथन पर्याप्त होगा।
( आदेश 6 नियम 10)
11.सुचना का एक तथ्य के रूप में अभिकथन किया जाना चाहिये।
( आदेश 6 नियम 11)
12. उपलक्षित संविदा का तथ्य के रूप में अभिकथन किया जाना चाहिये।
( आदेश 6 नियम 12)
13. विधि की उपधारणा- कोई भी पक्षकार किसी ऐसे तथ्य या विषय का अभिकथन नहीं करेगा जिसकी प्रकल्पना विधि उसके पक्ष में करती है।
( आदेश 6 नियम 13)
अभिवचन का हस्ताक्षरित किया जाना--
प्रत्येक अभिवचन पक्षकार एवम उसके अधिवक्ता द्वारा हस्ताक्षरित की जायेगी।विशेष परिस्थिति में उसके अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित की जा सकेगी।
( आदेश 6 नियम 14)
15.अभिवचन का सत्यापन।
16. अभिवचन का काट दिया जाना-
17.अभिवचन का संशोधन।
(आदेश 6 नियम 17)
न्यायालय में वाद या जबाब दावा पेश होने के बाद उसमें संशोधन क्या जा सकता है तथा कैसे-
यह प्रावधान महत्वपूर्ण होने से उसकी विस्तृत विवेचन करना उचित होगा।
आदेश 6 नियम 17 सी.पी.सी. इस प्रकार है:-
न्यायालय कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम पर, किसी भी पक्षकार को, ऐसी रीति से और ऐसे निबंधनों पर, जो न्याय संगत हो अपने अभिवचनों के परिवर्तित या संशोधित करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा और वे सभी संशोधन किये जायेंगे जो दोनों पक्षकारों के बीच विवाद के वास्तविक प्रश्न के अवधारण के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो:
परंतु विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् संशोधन के लिए किसी आवेदन को तब तक अनुज्ञात नहीं किया जायेगा जब तक की न्यायालय इस निर्णय पर न पहुंचे कि सम्यक तत्परता बरतने पर भी वह पक्षकार, विचारण प्रारंभ होने से पूर्व वह विषय नहीं उठा सका था।
इस प्रकार आदेश 6 नियम 17 सी.पी.सी. का अवलोकन करे तो यह स्पष्ट होता है कि यह प्रावधान आंशिक रूप से आज्ञापक और आंशिक रूप से विवेकाधिकार पर आधारित है।
वर्ष 2002 में संशोधन करके इस प्रावधान में एक परंतुक जोड़ा गया है जिसके प्रकाश में विचारण प्रारंभ होने के पूर्व यदि संशोधन आवेदन पेश होता है तो उसे उदारतापूर्वक स्वीकार करना चाहिये। इस न्याय दृष्टांत में यह कहां गया है कि ऐसे संशोधन जो विचारण प्रारंभ होने के पूर्व चाहे जाये उन्हें विचारण प्रारंभ होने के पश्चात् के संशोधनों की अपेक्षा उदारतापूर्वक स्वीकार करना चाहिये।
धारा 153 सी.पी.सी. के प्रावधान भी ध्यान में रखना चाहिये जिसके अनुसार, न्यायालय किसी भी समय और खर्च संबंधी ऐसी शर्तो पर या अन्यथा जो वह ठीक समझे वाद के किसी भी कार्यवाही में की किसी भी त्रुटि या गलती को संशोधित कर सकेगा, और ऐसी कार्यवाही द्वारा उठाये गये या उस पर अवलंबित वास्तविक प्रश्न या विवाद्यक के अवधारण के प्रयोजन के लिये सभी आवश्यक संशोधन किये जायेंगे।
लिखित आवेदन व शपथ पत्र की आवश्यकता:- संशोधन के लिये किसी पक्षकार का लिखित आवेदन होना आवश्यक है न्यायालय स्वप्रेरणा से अभिवचनों को संशोधित नहीं कर सकता हैं।
इस तरह अभिवचनों में संशोधन के लिये एक लिखित आवेदन और समर्थन में शपथ पत्र होना आवश्यक होता हैं।
एक बार संशोधन स्वीकार हो जाने के बाद वह पक्ष उसे विड्रा नहीं कर सकता उसे आदेश का पालन करना होगा।
कोई पक्षकार स्वयं के अभिवचनों में संशोधन कर सकता है विपक्षी के अभिवचनों में संशोधन नहीं कर सकता है।
संशोधन संबंधी सामान्य सिद्धांत
1. क्या चाहा गया संशोधन प्रकरण के उचित व प्रभावी निराकरण के लिये आवश्यक है।
2. क्या संशोधन आवेदन सद्भावनापूर्ण है या दुर्भावनापूर्ण है।
3. संशोधन ऐसा नहीं होना चाहिये जो दूसरे पक्ष के हितों पर ऐसा प्रतिकूल प्रभाव डाले जिसकी पूर्ति प्रतिकर दिलाकर भी नहीं की जा सकती हो।
4. क्या संशोधन अस्वीकार करे तो इससे लिटिगेशन बढ़ेगा या अन्याय होगा।
5. क्या प्रस्तावित संशोधन मामले की प्रकृति और चरित्र को मूलभूत परिवर्तन नहीं होगा।
6.पक्षकारो के मध्य विवादग्रस्त प्रश्नों के अवधारण के लिए आवश्यक हो।
7.इससे वाद कारण परिवर्तन नहीं होता हो।
आदेश 6 नियम 18 में-"ऐसा संशोधन या तो न्यायलय द्वारा नियत समय के अंदर या 14 दिवस के भीतर प्रस्तुत किया जा सकेगा।"
इस प्रकार अभिवचन के साधारण नियम आदेश 6 में वर्णित है जिनका अध्यन व जानकारी आवश्यक है।
Ya, right. good
ReplyDeleteThanks
DeleteYa, right. good
ReplyDeleteGood yaar
ReplyDeleteThnx to information
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